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सोमवार, 13 अगस्त 2012

कसक मन में रह गयी है

कसक मन में रह गयी है

भावनायें बह गयी,संभावनायें  ढह गयी है

मिलन फिर हो पायेगा, ये आस धूमिल रह गयी है
अब तो  कहने सुनने को बाकी बचा ही और क्या है,
ये तुम्हारी बेरुखी ही बात सारी कह गयी है
एक तो वातावरण में,हवाएं फैली,विषैली,
और उस पर फिर अचानक,हवा उलटी बह गयी है
कलकलाती थी नदी पर जब से पानी थम गया है,
हो गयी फिसलन यहाँ पर,काई  की  जम तह गयी है
आस में ,मौसम बसंती,आयेगा,पत्ते लगेंगे,
जिंदगानी एक सूखा वृक्ष बन कर रह गयी है
पता ना,किस दिन ढहेगी,पर टिकी,मजबूत है ,
ये पुरानी इमारत,भूचाल  इतने सह गयी है
क्यों हुआ,कैसे हुआ,क्यों कर हुआ,क्या बतायें,
मगर ये होना न था,ये कसक मन में रह गयी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 12 अगस्त 2012

माँ बाप और बेटा

माँ बाप और बेटा

मेरा बेटा,

जब नर्सरी स्कूल में पढता था
तो जो उसकी मिस कहती थी ,
उसी को सच जानता था
माँ बाप कुछ भी कहे,
उनकी बात नहीं मानता था
और  अब जब उसकी शादी हो चुकी है,
उसमे कुछ ज्यादा बदलाव नहीं आया है
अब मिस नहीं,
उसकी मिसेस जो भी कहती है,
उसी को  सच जानता है
माँ बाप कुछ भी कहे,
उनकी बात नहीं मानता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

उनकी सारी गलतियाँ बिसरा चुके है

उनकी सारी गलतियाँ बिसरा चुके है

चोंट इतनी जमाने की खा चुके है

जितने भी आंसू थे आने,आ चुके है
विदारक घड़ियाँ दुखों की टल गयी है,
सैंकड़ों ही बार अब  मुस्का  चुके है
मुकद्दर में लिखा है वो ही मिलेगा,
अपने दिल को बारहा समझा चुके है
किये होंगे करम कुछ पिछले जनम में,
जिसका फल इस जनम में हम पा चुके है
मोहब्बत के नाम से लगने लगा डर,
मोहब्बत का सिला एसा  पा चुके है
हम तो है वो फूल देशी गुलाबों के,
महकते है ,गो  जरा कुम्हला चुके है
रहे वो खुश और सलामत ये दुआ है,
उनकी सारी गलतियाँ बिसरा चुके है

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 11 अगस्त 2012

चंद पंक्तियाँ


जुगनुओं से रोशन ये जहाँ होता नहीं यारों,
वो आज भी भर नींद कभी सोता नहीं यारों,
दो जून की रोटी मुकम्मल जिन्हें नसीब नहीं होती,
सरकारी वादों से उनका कुछ होता नहीं यारों |

कोई डेढ़ सौ की कमाई पे भी कभी रोता नहीं यारों,
कोई करोड़ों में खेलकर भी खुश होता नहीं यारों,
कोई किस्मत के लकीरों का सब खेल है समझता,
कोई हार हार के भी आस कभी खोता नहीं यारों |

खून से कभी धब्बों को कोई धोता नहीं यारों,
खाने को आम, बबूल कोई कभी बोटा नहीं यारों,
खुशनसीबी नहीं की यूँही जिए जा रहे "दीप",
लक्ष्य के बिना मतलब कुछ भी होता नहीं यारों |

सूरज,चाँद और तारे

सूरज,चाँद और तारे

      सूरज
सूरज सूर है बड़ा,
जहाँ जहाँ जाता है
अँधेरे को हराता है
और जीती सीमा पर,
उजाला फैलाता है
उन्ही उन्ही जगहों पर,
दिन होता जाता है
   चाँद
चंद्रमा की तो बड़ी,
निराली कहानी है
दुनिया में एसा ना,
कोई भी दानी है
सूरज से रौशनी,
वो उधार लेता है
और प्रकाश दुनिया में,
वो बाँट देता है
जब उधार कम मिलता,
तो वो घट जाता है
जब उधार ज्यादा मिलता,
तो वो बढ़ जाता है
पूनम को खुशहाल है
अमावास को कंगाल है
    तारे
नन्हे नन्हे से तारे
दिन भर खेलने के बाद,थके हारे
बेचारे
आसमान में जाकर ,नींद के मारे
कभी पलक बंद करते,
कभी जाग जाते है
और हमको लगता है,
कि वो टिमटिमाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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