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रविवार, 25 मार्च 2012

'स्माईल प्लीज'

         स्माईल  प्लीज

आपकी एक मुस्कान
जीत सकती है सारा जहान
बस,थोड़ी सी बांछें फैलाइये
और मुस्कराइये
आपकी स्माईल
जीत लेगी लोगों के दिल
गिले शिकवे सब मिट जायेंगे
दुश्मन भी दोस्त बन जायेंगे
क्योंकि मुस्कान
नहीं जानती रंग का भेद,
ना भाषा का ज्ञान
फिर भी दोस्ती करा देती है,
अंजानो को अपना बना देती है
बच्चों की मुस्कान निश्छल होती है,
सब का मन जीत लेती है
मासूम  सी किलकारियां,
सभी का ध्यान अपनी और खींच लेती है
जवानी की मुस्कान चंचल  होती है,
बिजलियाँ गिराती है
सभी के मन भाती है
कई बार इसे मुस्कराते मुस्कराते ही,
प्रीत हो जाती है
 बुढ़ापे की मुस्कान,
पर अगर दो ध्यान,
तो थोड़ी सी बेबस और लाचार होती है
पर ढलती उमर में,
वक़्त गुजारने का,
सबसे बड़ा आधार होती है
इसीलिए जब भी हो कोई आसपास,
जिसको आप,नहीं जानते हो खास,
लिफ्ट में मिले या घूमने में,
उसे देख  कर,हल्का सा मुस्कराइये
और अपना दोस्त बनाइये
क्योंकि मुस्कान है ही इसी चीज
इसलिये '
स्माईल प्लीज'
  
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा सम्मवत् 2069 शुक्रवार तदानुशार 23 मार्च 2012 आपके लिए मंगलमय हो…

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा सम्मवत् 2069 शुक्रवार तदानुशार 23 मार्च 2012 आपके लिए मंगलमय हो…

शनिवार, 24 मार्च 2012

हमारा आज-तुम्हारा कल

             हमारा आज-तुम्हारा कल
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ये न समझो ,यूं ही हमने ,काट दी अपनी उमर है
भीग करके ,बारिशों में,अनुभव की हुए तर  है
आज तुम जिस जगह पर हो,क्या कभी तुमने विचारा
तुम्हारी इस प्रगति में,सहयोग है कितना   हमारा
तुम्हारे सुख ,दुःख ,सभी पर,आज भी रखते नज़र है
हमारा मन मुदित होता,तुम्हे बढ़ता देख कर है
प्यार तुम से कल किया था,प्यार तुमसे आज भी है
देख तुम्हारी तरक्की,हमें तुम पर नाज़ भी है
हमें है ना गिला कोई,आ गया बदलाव तुम मे
बदलना नियम प्रकृति का,क्यों रखें हम क्षोभ मन में
भाग्य का लेखा सभी को,भुगतना है,ख्याल रखना
आज हम को जो खिलाते,पड़ेगा कल तुम्हे  चखना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 23 मार्च 2012

किया इक तुरंती अगर टिप्पणी

सही को सराहो बिराओ नहीं ।
विरुद-गीत भी व्यर्थ गाओ नहीं ।

किया इक तुरंती अगर टिप्पणी-
अनर्गल गलत भाव लाओ नहीं । 

करूँ भेद लिंगी धरम जाति ना 
खरी-खोटी यूँ तो सुनाओ नहीं ।

सुवन-टिप्पणी पर बड़े खुश दिखे 
मगर मित्र को तो भगाओ नहीं ।

टिप्पणी का जरा ब्लॉग देखो इधर-
रूठ कर इस तरह दूर जाओ नहीं ।। 

दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक 

परिवर्तन

              परिवर्तन
तब घूंघट पट,लेते थे ढक,उनके सब घट
अब कपडे घट,करे उजागर,उनके घट घट
तब झुक  कर,लेते  थे मन हर,नयना चंचल
अब तकते है,इधर उधर वो हो उच्श्रंखल  
मर्यादित थे,रहते बंध कर,उनके  कुंतल
उड़ते रहते,आवारा से ,अब गालों पर
बाट जोहती थी  तब आँखें,पिया मिलन की
मोबाईल पर,रखे खबर पति के क्षण क्षण की
पति पत्नी  तब,मुख दिखलाते,प्रथम रात में
अब शादी के,पूर्व घूमते,साथ साथ में
पहले रिश्ता,पक्का करते,ब्राह्मण , नाई
अब तो इंटरनेट,चेट,फिर है शहनाई
पति कमाते थे,पत्नी,घरबार  संभाले
अब पति पत्नी,दोनों बने,केरियर  वाले
यह समता अच्छी ,पर इससे आई विषमता
बच्चे तरसे,पाने को ,माता की ममता
माता पिता  ,रहे बच्चों संग,छुट्टी के दिन
प्रगति की गति,लायी है ,कितने परिवर्तन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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