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शनिवार, 14 जनवरी 2012

JAGO HINDU JAGO: मकरसक्राँति और लोहरी के पवित्र त्यौहार पर आप सबको ...

JAGO HINDU JAGO: मकरसक्राँति और लोहरी के पवित्र त्यौहार पर आप सबको ...
जिंदगी यूँ ही गुजर रही है ,
और अँधेरा थम नहीं रहा,
दूरियों  को मिटाना आसान था कभी ,
अब दूर तलक शमशान है ...
खामोश थे हम बेवजह कभी,
अब वो खामोश हो गए |
वजह कुछ  खास थी उनकी .....
बताना बहुत कुछ था
जुबान भी सही सलामत थी मेरी |
पर उनके कान निर्जीव पड़े थे ........
दबे पावों लौट आया एक अनकही कहानी बनकर ...
अब अलविदा भी कहना बेईमानी लगता है |




कवि परिचय:
विकास कुमार
केमिकल इंजिनियर
गुजरात 

मुझे जन्म दो


(यह कविता मेरे द्वारा लिखी हुई नहीं है, पर एक डॉक्टर के क्लिनिक में मैंने इसे देखा तो सोचा की सबके साथ साझा करना चाहिए और मैंने इसे लिख लिया | कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए सबको जागरूक करने हेतु इस रचना का प्रयोग किया जाता है |


हुमक हुमक गाने दो मुझको,
यूँ मत मर जाने दो मुझको,
जीवन भर आभार करुँगी,
माँ मैं तुमसे प्यार करुँगी,
मैं तेरी ही बेटी हूँ माँ,
मुझे जन्म दो, मुझे जन्म दो |

मैं भी तो हूँ अंश तुम्हारा,
मैं भी तो हूँ वंश तुम्हारा,
पापा को समझाकर देखो,
सारी बात बताकर देखो,
बिगड़ा है अनुपात बताओ,
क्या होंगे हालात बताओ,
फिर भी अगर न माने पापा,
रोउंगी मनुहार करुँगी,
जीवन भर आभार करुँगी,

मुझे जन्म दो, मुझे जन्म दो |


लक्ष्मी बाई, मदर टेरेसा,
क्या कोई बन पाया वैसा,
मत कहना एक धाय है पन्ना,
ममता का अध्याय है पन्ना,
ये बातें बतलाओ अम्मा,
दादी को समझाओ अम्मा,
सब गुण अंगीकार करुँगी,
जीवन भा आभार करुँगी,

मुझे जन्म दो, मुझे जन्म दो |

अन्तरिक्ष में जाकर के माँ,
रोशन तेरा नाम करुँगी,
जो-जो बेटे कर सकते हैं,
हर वो अच्छा काम करुँगी,
नाम से तेरी जानी जाऊं,
ये मैं बारम्बार करुँगी |
माँ मैं तुमसे प्यार करुँगी,
मुझे जन्म दो, मुझे जन्म दो |

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

जल की अनंत यात्रा

जल की अनंत यात्रा
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बादलों में भरा हुआ जल,
जब पानी की बूंदों में बरसता है
तो धरती के दिल में आ बसता है
कुछ सहमा सहमा,
कुए की गहराई में सिमिट कर रह जाता है
कुछ सरोवर में तरंगें भरता है,
तो कुछ नदिया की कल कल में बह जाता है
और कुछ बेचारा,
मुसीबत का मारा,
ठिठुरता है सर्दी में,
और पहाड़ों की चोटियों पर ठहर जाता है
पर जब सूरज को दया आती है,
तो पहाड़ों की जमी बर्फ पिघल जाती है
और इतने दिनों का जमा जल ,जब पिघलता है
तो मचलता ,इठलाता हुआ चलता है
और जवानी के जोश में,
या कहो आक्रोश में,
कितने ही पहाड़ों को काट कर,
अपना रास्ता बनाता है
और अपना एक धरातल पाता है
और कल कल करता हुआ ,
अपनी मंजिल की ओर,
 निकल पड़ता है
पर कई बार ,उसको  ,
ऊंचे धरातल से ,
निचले धरातल पर गिरना पड़ता है
तो वो दहाड़ता है
अपने में सिमटी हुई ,चांदी उगलता है,
गर्जना करता है,
और छोटी छोटी बूंदों में बिखर बिखर,
फिर से ऊपर को उछालें मारता है
और उसे सूरज की कुछ किरणे,
इंद्र धनुष सा चमका देती है
कुछ क्षणों के लिए,सुहावना बना देती है
और फिर बेबस सा,
अपने नए धरातल पर,
धीरे धीरे ,अपनी पुरानी चल से चलने लगता है
कितने ही कटाव और बिखराव के बाद,
अंत में सागर में जा मिलता है
क्योंकि हर जल की नियति ,
सागर में विलीन होना ही होता है
और  फिर से बादल बन ,
जल की अनंत यात्रा का आरम्भ होता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

कन्यादान



मतलब क्या है इस कन्यादान का ?
क्या ये सीढ़ी भर है नए जीवन निर्माण का ?

या सचमुच दान ही इसका अर्थ है,
या समाज में हो रहा अर्थ का अनर्थ है ?

दान तो होता है एक भौतिक सामान का,
कन्या जीवन्त मूल है इस सृष्टि महान का ।

नौ मास तक माँ ने जिसके लिए पीड़ा उठाई,
एक झटते में इस दान से वो हुई पराई ?

नाजो-मुहब्बत से बाप ने जिसे वर्षों पाला,
क्या एक रीत ने उसे खुद से अलग कर डाला ?

जिस घर में वह अब तक सिद्दत से खेली,
हुई पराई क्योंकि उसकी उठ गई डोली ?

क्या करुँ मन में हजम होती नही ये बात,
यह प्रश्न ऐसे छाया जैसे छाती काली रात |

कौन कहता है कन्याएँ नहीं हमारा वंश है,
वह भी सबकुछ है क्यो.कि वह भी हमारा ही अंश है ।

कन्या 'दान' करने के लिए नहीं है कोई वस्तु,
परायापन भी नहीं है संगत, ज्यों कह दिया एवमस्तु ।

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