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गुरुवार, 17 अगस्त 2023

बातचीत 

तुम भी चुप 
मैं भी चुप 
घर में चारों तरफ मौन है पसरा 
चलो इस सन्नाटे को हटाए जरा 
अपना अपना मुंह खोलें 
तुम भी कुछ बोलो, हम भी कुछ बोले 
कुछ बात करें 
वार्तालाप करें 
थोड़ा हंसे मुस्कुराए 
या चलो किसी की बुराइयां करके 
ही बात को आगे बढ़ाएं 
निंदा रस में भी बड़ा मजा आता है 
वक्त कट जाता है 
इसी बहाने कुछ हंसते बोलते हैं 
या चलो यूं करते हैं अलमारी खोलते हैं 
पुराने कपड़ों की सलवटो में सिमटी हुई यादें
 वह क्षण उन्मादे 
 बहुत कुछ याद आएगा 
 इसी बहाने बातों का सिलसिला चालू हो जाएगा चलो याद करते हैं प्रथम मिलन की रात 
 तुम बैठी थी चुपचाप 
 मैंने ही की थी बातचीत की शुरुआत 
 मैंने जब तुम्हारा घूंघट उठाया था 
 तुम्हें अपने सीने से लगाया था 
 कितने हसीन थे वो जवानी के पल 
 देखते ही देखते वक्त गया निकल 
 और फिर जब फंसे गृहस्थी के बीच 
 शुरू हो गई थी हमारी रोज की किचकिच 
 बात बात पर लड़ाई और झगड़ा 
 हमेशा दोष मुझे पर ही जाता था मढ़ा
 अच्छा यह बदलाओ
 पिछली बार जब हुई थी लड़ाई हमारी
 गलती मेरी थी या तुम्हारी 
 वह तो मैं कह दिया था सारी 
 वरना तुमने तो बना दिया था बात का बतंगड़ बिना बात की मेरे ऊपर गई थी चढ़ 
बस की रहने दो तुम कौन से दूध के धुले हो 
सारा दोष मुझे पर लगाने पर तुले हो 
जब देखो मुझ में कमियां निकालते रहते हो गलतफहमियां पालते रहते हो 
वह तो मैं ही सीधीसादी मिल गई 
जो तुम्हें झेलती रहती हूं इतना ज्यादा 
और कोई नकचढ़ी मिल जाती 
तो आटे दाल का भाव पता पड़ जाता 
मैं ही हूं जो पिछले इतने सालों से 
निभा रही हूं तुमसे और तुम्हारे घर वालों से 
रहने दो, रहने दो ,
मैं ही हूं जो मुसीबत से खेल रहा हूं
 इतने सालों से तुम्हें झेल रहा हूं 
 घर में शांति रहे इसलिए 
 रहता हूं तुम्हारे आगे घुटने टेक 
वर्ना तुम तो मेरी हर बात में 
 निकालती रहती हो मीन मेख 
 रहने दो ,रहने दो बात मत बढ़ाओ 
 राई का पर्वत मत बनाओ 
 गलत तुम होते हो 
 नहीं, गलत तुम होती हो 
 तुम 
 नहीं तुम 
 मेरे नसीब फूटे थे जो तुम पड़े मेरे गले 
 तुम्हें बात करनी थी इसलिए मैं करने लगी 
 वरना तो इससे हम मौन ही थे भले
 फिर से वही चुप्पी 
 तुम भी चुप 
 हम भी चुप
 फिर वही सन्नाटा
 बस इसी तरह की नोकझौंक में
 जीवन जाता है काटा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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