Hi!
I`ve just checked your website and saw that it could really use a boost
if you ever should choose to consider a SEO strategy for your website,
kindly check our plans here
https://www.cheapseoagency.co/cheap-seo-packages/
thanks and regards
Cheap SEO Agency
Unsubscribe:
please send a blank email to RonaldLilly7162@gmail.com
you will be automatically unsubscribed
पृष्ठ
एक सन्देश-
यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |
सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com
pradip_kumar110@yahoo.com
इस ब्लॉग से जुड़े
रविवार, 29 अगस्त 2021
मुहावरों का चिड़ियाघर
यह मुहावरों का चिड़ियाघर ,जानवरों से जुड़ा हुआ है
उनकी आदत और स्वभाव केअनुभव से ये भरा हुआ है
जिसकी लाठी भैंस उसीकी,यह होता देखा है अक्सर
ज्ञान बांटते फिरते जिनको, काला अक्षर भैंस बराबर
अकल बड़ी या भैंस याकि जो भैंस के आगे बीन बजाए
रहे हाथ मलता बेचारा ,चली भैंस पानी में जाए
नौ सौ चूहे मार के कोई, बिल्ली जैसा हज को जाता
कोई से गलती होती तो ,वह भीगी बिल्ली बन जाता
मेरी बिल्ली मुझसे ही जब म्याऊं करती ,बात बिगड़ती
बिल्ली गले कौन बांधेगा, घंटी सारी दुनिया डरती
हो जो अपनी गली, शेर फिर कुत्ता भी बन जाया करता
धोबी का कुत्ता बेचारा , न तो घाट ना घर का रहता
जो कुत्ते भोंका करते हैं अक्सर नहीं काटते हैं वो
दुम मालिक आगे हिलती है उनके पैर चाटते हैं वो
कर लो कोशिश लाख पूंछ ना,उनकी सीधी है हो पाती
और गीदड़ की भभकी ,लोगों को अक्सर है बहुत डराती
समय कभी जब पड़ता बांका,लोग गधे को काका कहते
और गधे के सींग की तरह मौके पर है गायब रहते
दिन भर खटता रहे आदमी ,काम गधे की तरह कर रहा गधा धूल में कभी लोटता, कभी रेंकता घास चर रहा आता ऊंट पहाड़ के नीचे ,तो अपनी औकात जानता
ऊंट कौन करवट बैठेगा ,यह कोई भी नहीं जानता नेताओं को कुछ भी दे दो, होता ऊंट मुंह में जीरा
ऊंची गर्दन ,पूंछ है छोटी, रेगिस्तानी जहाज रंगीला
घोड़ा अगर घास से यारी ,कर लेगा तो क्या खाएगा
घोड़े बेच कोई सोएगा, तो सोता ही रह जाएगा
हाथी चलता ही रहता है कुत्ते सदा भोंकते रहते
दांत हाथी के, खाने के कुछ ,और दिखाने के कुछ रहते
घुड़की सदा दिखाएं बंदर ,स्वाद अदरक का जान न पाए
भूले नहीं गुलाटी मारना, बूढ़ा कितना भी हो जाए
खैर मनाएगी बकरे की अम्मा बोलो तुम ही कब तक
काटी ना जाती है मुर्गी ,सोने का अंडा दे जब तक
शेर न कभी घास खाता है, चाहे भूखा ही मर जाए
हैं खट्टे अंगूर लोमड़ी,यदि उन तक वह पहुंच न पाए
बगुला भगत मारता मछली, कौवा चाल हंस की चलता
मोर नाचता है जंगल में, कोई न देखे ,मन को खलता
कांव-कांव कौवे की ,कोई के आने की सूचक होती कोयल अंबिया, काग निबौली, और हंस है चुगता मोती
रंगा हुआ सियार साथियों के, संग करता हुआ हुआ है
यह मुहावरों का चिड़ियाघर ,जानवरों से जुड़ा हुआ है
मदन मोहन बाहेती घोटू
शनिवार, 28 अगस्त 2021
संतानों से
जिनने अपना पूरा जीवन, तुम पर जी भर प्यार लुटाया भूले भटके, मात-पिता से प्यार कर लिया करो कभी तो
मर जाने के बाद याद तुम करो ना करो फर्क नहीं पड़ता जबतक जिंदा है उनको तुम याद करलिया करो कभीतो
कैसे हैं किस हाल में है वह जीवित है या गुजर गए हैं
उनकी मौजूदा हालत का ख्याल कर लियाकरो कभी तो
मरने बाद श्राद्ध पंडित को खिलवाना या मत खिलवाना,
अभी तो नहीं भूखे यह पड़ताल कर लिया करो कभी तो
उनमे गैरत है, न तुम्हारे आगे हाथ पसारेंगे वो
लेकिन उनकी जरूरतों का ख्याल कर लिया करो कभी तो
नहीं चाहिए उनको कुछ भी ,बस दो मीठे बोल ,बोल दो उनके प्रति श्रद्धा दिखला सन्मान कर लिया करो कभी तो
अरे आज है कल ना रहेंगे कितने दिन जीना है उनको बूढ़े हैं ,उनकी थोड़ी संभाल कर लिया करो कभी तो
तुम जैसे भी हो मरते दम तक वो तुम्हें दुआएं देंगे
तुमभी उनके संग अच्छा व्यवहार कर लिया करो कभी तो
मदन मोहन बाहेती घोटू
शुक्रवार, 27 अगस्त 2021
मुहावरों की महिमा
ये मुहावरे, बड़े बावरे, इनका खेल समझ ना आता
किंतु रोजमर्रा के जीवन ,से है इनका गहरा नाता
अगर दाल में कुछ काला है तो वह साफ नजर आता है
थोड़ी सी असावधानी से ,गुड़ का गोबर बन जाता है
हींग लगे ना लगे फिटकरी, फिर भी रंग आता है चोखा
लेकिन टेढ़ी खीर हमेशा, हमको दे जाती है धोखा
कोई छीछालेदर करता ,कोई रायता फैलाता है
बात न कुछ होती राई का लेकिन पर्वत बन जाता है
कई बार हम पहाड़ खोदते, चूहा मगर निकल आता है
चूहे को चिन्दी मिल जाती, तो बजाज वो बन जाता है
नहीं बाप ने मारा मेंढक, बेटा तीरंदाज बन गया
कल खेला करता रुपयों से,वह ठन ठन गोपाल बन गया
कोई आंख में धूल झोंकता, कोई खिचड़ी अलग पकाता
और अकल के मारा कोई, भैंस के आगे बीन बजाता
किस्मतवाले कुछ अंधों के हाथ बटेर जब लग जातीहै
अंधा अगर रेवड़ी बाटे ,अपनों को ही मिल पाती है
कुछ अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते, लठ्ठ धूल में मारे
कोई अपने पांव कुल्हाड़ी मारे अपना काम बिगाड़े
कोई उंगली पकड़ पकड़ कर पहुंचे तलक पहुंच जाते हैं
कोई छेद उसी में करते ,जिस थाली में वो खाते हैं
अगर ओखली में सिर डाला, मूसल से फिर डरा जाता
कई बार कंगाली में भी ,आटा है गीला हो जाता
कहीं छलकती अधजल गगरी कहीं भरे गागर में सागर
कोई चिकना घड़ा, डूबता कोई पानी में चुल्लू भर
कोई टस से मस ना होता ,कोई झक्क मारता रहता
कोई ढोल की पोल छुपाता, तिल का ताड़ बनाता रहता
दाल किसी की ना गलती है, कोई है थाली का बैंगन
और किसी की पांचो उंगली ,घी में ही रहती है हरदम
कोई नाकों चने चबाता, कोई होता नौ दो ग्यारह
पापड़ कई बेलने पड़ते, तब ही होती है पौबारह
कोई मक्खी मारा करता, कोई भीगी बिल्ली रहता
कोई धोबी के कुत्ते सा ,घर का नहीं घाट का रहता
नौ मन तेल न राधा नाचे,नाच न जाने , टेढ़ा आंगन
कल तक जिसकी तूती बजती,चुप है जबसे बदला मौसम
और नक्कारखाने में तूती की आवाज न सुन पाते हम
हरदम रहे मस्त मौला जो ,भादौ हरा न सूखे सावन
बरसो रखो भोगली में पर,सीधी ना हो पूंछ श्वान की
अक्सर दांत गिने ना जाते,बछिया हो जो अगर दान की
छोटी-छोटी बात भले पर,गागर में सागर भर आता
ये मुहावरे बड़े बावरे ,इनका खेल समझ ना आता
मदन मोहन बाहेती घोटू
मुहावरों की महिमा
ये मुहावरे, बड़े बावरे, इनका खेल समझ ना आता
किंतु रोजमर्रा के जीवन ,से है इनका गहरा नाता
अगर दाल में कुछ काला है तो वह साफ नजर आता है
थोड़ी सी असावधानी से ,गुड़ का गोबर बन जाता है
हींग लगे ना लगे फिटकरी, फिर भी रंग आता है चोखा
लेकिन टेढ़ी खीर हमेशा, हमको दे जाती है धोखा
कोई छीछालेदर करता ,कोई रायता फैलाता है
बात न कुछ होती राई का लेकिन पर्वत बन जाता है
कई बार हम पहाड़ खोदते, चूहा मगर निकल आता है
चूहे को चिन्दी मिल जाती, तो बजाज वो बन जाता है
नहीं बाप ने मारा मेंढक, बेटा तीरंदाज बन गया
कल खेला करता रुपयों से,वह ठन ठन गोपाल बन गया
कोई आंख में धूल झोंकता, कोई खिचड़ी अलग पकाता
और अकल के मारा कोई, भैंस के आगे बीन बजाता
किस्मतवाले कुछ अंधों के हाथ बटेर जब लग जातीहै
अंधा अगर रेवड़ी बाटे ,अपनों को ही मिल पाती है
कुछ अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते, लठ्ठ धूल में मारे
कोई अपने पांव कुल्हाड़ी मारे अपना काम बिगाड़े
कोई उंगली पकड़ पकड़ कर पहुंचे तलक पहुंच जाते हैं
कोई छेद उसी में करते ,जिस थाली में वो खाते हैं
अगर ओखली में सिर डाला, मूसल से फिर डरा जाता
कई बार कंगाली में भी ,आटा है गीला हो जाता
कहीं छलकती अधजल गगरी कहीं भरे गागर में सागर
कोई चिकना घड़ा, डूबता कोई पानी में चुल्लू भर
कोई टस से मस ना होता ,कोई झक्क मारता रहता
कोई ढोल की पोल छुपाता, तिल का ताड़ बनाता रहता
दाल किसी की ना गलती है, कोई है थाली का बैंगन
और किसी की पांचो उंगली ,घी में ही रहती है हरदम
कोई नाकों चने चबाता, कोई होता नौ दो ग्यारह
पापड़ कई बेलने पड़ते, तब ही होती है पौबारह
कोई मक्खी मारा करता, कोई भीगी बिल्ली रहता
कोई धोबी के कुत्ते सा ,घर का नहीं घाट का रहता
नौ मन तेल न राधा नाचे,नाच न जाने , टेढ़ा आंगन
हरदम रहे मस्त मौला जो ,भादौ हरा न सूखे सावन बरसो रखो भोगली में पर,सीधी ना हो पूंछ श्वान की
अक्सर दांत गिने ना जाते,बछिया हो जो अगर दान की छोटी-छोटी बात भले पर,गागर में सागर भर आता
ये मुहावरे बड़े बावरे ,इनका खेल समझ ना आता
मदन मोहन बाहेती घोटू
गुरुवार, 26 अगस्त 2021
तू मेरी तकदीर बन गई
मैं सीधा सा भोला भाला
पर तूने घायल कर डाला
गई चीर जो मेरे दिल को ,
नजर तेरी शमशीर बन गई
मैं स्वच्छंद विचरता रहता
अपने मनमाफिक था बहता
तूने प्यार जाल में बांधा,
जुल्फ तेरी जंजीर बन गई
मैं रेतीला राजस्थानी
मिला प्यार का तेरे पानी
तन मन में हरियाली छाई
मेरी छवि कश्मीर बन गई
मैं एक पत्ता हरा भरा था
तूने छुआ रंग निखरा था
मेहंदी हाथ रचाई तूने,
लाल मेरी तस्वीर बन गई
मैं चावल का अदना दाना
पाया तेरा साथ सुहाना
तूने अपने साथ उबाला,
स्वाद भरी फिर खीर बन गई
हाथों में किस्मत की रेखा
लेकिन जब से तुझको देखा
तू और तेरी वर्क रेखाएं
ही मेरी तकदीर बन गई
मदन मोहन बाहेती घोटू
बुधवार, 25 अगस्त 2021
मिलन पर्व
रूप तुम्हारा मन को भाया,
तुमने भी कुछ हाथ बढ़ाया
बंधा हमारा गठबंधन और ,
मिलन पर्व हैअब जब आ
सांसो से सांसे टकराई
और प्रीत परवान चढ़ गई
यारां, मेरी नींद उड़ गई
तुमने जब एक अंगड़ाई ली,
फैला बांह ,बदन को तोड़ा
देखा उस सुंदर छवि को तो,
सोया मन जग गया निगोड़ा
फिर जो तेरे अलसाये से ,
तन की मादक खुशबू महकी
मेरे तन मन और बदन में,
एक चिंगारी जैसी दहकी
पहले वरमाला, बांहों की,
माला फिर थी गले पड़ गई
यारां, मेरी नींद उड़ गई
मैंने जब तुमको सहलाया ,
प्यार तुम्हारा भी उमड़ाया
बात बड़ी आगे, अधरों ने ,
जब अधरों का अमृत पाया
हम तुम दोनों एक हो गए,
बंध बाहों के गठबंधन में
सारा प्यार उमड़ कर आया
और सुख सरसाया जीवन में
मैं न रहा मैं, तुम न रही तुम,
ऐसी हमने प्रीत जुड़ गई
यारां, मेरी नींद उड़ गई
मदन मोहन बाहेती घोटू
मंगलवार, 24 अगस्त 2021
शाश्वत सच
मैं चौराहे पर खड़ा हुआ
क्योंकि मुश्किल में पड़ा हुआ
मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं,
यह प्रश्न सामने खड़ा हुआ
एक तरफ जवानी के जलवे
जिनमें मैं डूबा था अब तक
एक तरफ बुढ़ापा बुला रहा
देता है बार-बार दस्तक
मैं किधर जाऊं, क्या निर्णय लूं
मन में उलझन, शंशोपज है
आएगा बुढ़ापा निश्चित है
क्योंकि ये ही शाश्वत सच है
कोई चिर युवा नहीं रहता
यह सत्य हृदय को खलता है
दिन भर जो सूरज रहे प्रखर,
वह भी संध्या को ढलता है
रुक पाता नहीं क्षरण तन का,
मन किंतु बावरा ना माने
इसलिए लगा हूं बार-बार
मैं अपने मन को समझाने
तू छोड़ मोह माया सारी
अब आया समय विरक्ती का
जी भर यौवन में की मस्ती,
अब वक्त प्रभु की भक्ति का
एक वो ही पार लगाएंगे,
तेरा बेड़ा भवसागर में
तू भूल के सांसारिक बंधन
अब बांधले बंधन ईश्वर से
मदन मोहन बाहेती घोटू
मिलन पर्व
रूप तुम्हारा मन को भाया, तुमने भी कुछ हाथ बढ़ाया
बंधा हमारा गठबंधन और मिलन पर्व हैअब जब आया
सांसो से सांसे टकराई और प्रीत परवान चढ़ गई
यारां, मेरी नींद उड़ गई
तुमने जब एक अंगड़ाई ली, फैला बांह ,बदन को तोड़ा
देखा उस सुंदर छवि को तो सोया मन जग गया निगोड़ा
फिर जो तेरे अलसाये से ,तन की मादक खुशबू महकी
मेरे तन मन और बदन में, एक चिंगारी जैसी दहकी
और फिर मुझे सताने तुमने करवट बदली और मुड़ गई
यारां, मेरी नींद उड़ गई
मैंने जब तुमको सहलाया ,प्यार तुम्हारा भी उमड़ाया
बात बड़ी आगे अधरों ने ,जब अधरों का अमृत पाया
हम तुम दोनों एक हो गए, बंध बाहों के गठबंधन में सारा प्यार उमड़ कर आया और सुख सरसाया जीवन में
मैं न रहा मैं, तुम न रही तुम, ऐसी हमने प्रीत जुड़ गई
यारां, मेरी नींद उड़ गई
मदन मोहन बाहेती घोटू
रविवार, 22 अगस्त 2021
रक्षाबंधन नया विचार
जब भी आता है हर साल,
रक्षाबंधन का त्योहार
बहन भाई को बांध के राखी
जतलाती है अपना प्यार
जागृत हो जाता है मन में ,
बचपन का वह लाड़ दुलार
जबकि मनौती मांगे बहना,
जिये भाई उसका सौ साल
यह प्यारा त्यौहार हर्ष का,
आए हर बरस सावन में
भाई बहन के प्यारे रिश्ते
आ जाते नवजीवन में
रक्षा सूत्र कलाई में जब,
भाई की बांधा जाता
बहन भाई से ले लेती है,
अपनी रक्षा का वादा
हर राखी पर मेरे मन में
उठता है यह सोच जरा
भाई भाई में क्यों ना होती
रक्षा की यह परंपरा
छोटा भाई बड़े भाई को
रक्षा सूत्र अगर बांधे
भाई भाई के सारे झगड़े,
रह जाएंगे फिर आधे
अगर भाई अपने भाई को
राखी बांधेगा हर बार
भाई भाई में फिर से जीवित
होगा बचपन वाला प्यार
मदन मोहन बाहेती घोटू
शनिवार, 21 अगस्त 2021
बहन से
(राखी के अवसर पर विशेष )
एक डाल के फल हम बहना
संग संग सीखा,सुखदुख सहना
एक साथ थे ,जब कच्चे थे
मौज मनाते ,सब बच्चे थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
एक दूजे पर ,प्यार लूटना ,
याद आता वो मिलजुल रहना
एक डाली के फल हम बहना
ना कोई चिन्ता , जिम्मेदारी
बचपन की सब बातें न्यारी
कितनी सुखकर,कितनी प्यारी
तितली सा उन्मुक्त उछलना ,
शीतल मंद पवन सा बहना
एक डाल के फल हम बहना
पके समय संग ,टूटे,बिछड़े
पाया स्वाद ,मधुर हो निखरे
अलग अलग होकर सब बिखरे
हमने अपना काम संभाला ,
और तुम बनी ,किसी का गहना
एक डाल के फल हम बहना
एक डोर बांधे जो माँ थी
दूजी डोर बांधती राखी
प्रेम का बंधन ,अब भी बाकी
मिलकर,सुख दुःख बांटा करना ,
दिल की अपने , बातें कहना
एक डाल के फल हम बहना
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
(राखी के अवसर पर विशेष )
एक डाल के फल हम बहना
संग संग सीखा,सुखदुख सहना
एक साथ थे ,जब कच्चे थे
मौज मनाते ,सब बच्चे थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
एक दूजे पर ,प्यार लूटना ,
याद आता वो मिलजुल रहना
एक डाली के फल हम बहना
ना कोई चिन्ता , जिम्मेदारी
बचपन की सब बातें न्यारी
कितनी सुखकर,कितनी प्यारी
तितली सा उन्मुक्त उछलना ,
शीतल मंद पवन सा बहना
एक डाल के फल हम बहना
पके समय संग ,टूटे,बिछड़े
पाया स्वाद ,मधुर हो निखरे
अलग अलग होकर सब बिखरे
हमने अपना काम संभाला ,
और तुम बनी ,किसी का गहना
एक डाल के फल हम बहना
एक डोर बांधे जो माँ थी
दूजी डोर बांधती राखी
प्रेम का बंधन ,अब भी बाकी
मिलकर,सुख दुःख बांटा करना ,
दिल की अपने , बातें कहना
एक डाल के फल हम बहना
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
शुक्रवार, 20 अगस्त 2021
जाओ चाय बना कर लाओ
बूढ़े बुढ़िया, मियां बीबी, बैठ बुढ़ापे में क्या करते
तनहाई में गप्प मारते ,अपना वक्त गुजारा करते
दुनिया भर की, इधर उधर की, बहुत ढेर सारी है बातें
कई बार जागृत हो जाती, पिछली धुंधली धुंधली यादें
मुझे देखने आए थे तुम ,पत्नी जी ने पूछा हंसकर
ऐसा मुझ में क्या देखा था, जो तुम रीझ गए थे मुझ पर
क्या वह मेरी रूप माधुरी थी या था वो खिलता चेहरा
या मेरी मासूम निगाहें, जिन पर पड़ा लाज का पहरा
या फिर मेरा खिलता यौवन,या मतवाली मुस्कुराहट थी
चोरी-चोरी तुम्हें देखना या फिर मेरी घबराहट थी
कुछ तो था जो तुम सकुचाए,रहे देखते मुझे एकटक
बढ़ी हुई थी मेरी धड़कन, धड़क रहा मेरा दिल धक धक
न तो बात की ना कुछ पूछा ना कुछ बोले नही कुछ कहा
यूं ही फुसफुसा,मां कानों में, तुमने झट से कर दी थी हां
मैं बोला सच कहती हो तुम,मै था बिल्कुल भोला भाला
पहली बार किसी लड़की को पास देखकर था मतवाला
यूं कॉलेज में ,यार दोस्त संग हम लड़की छेड़ा करते थे
लेकिन बात बिगड़ ना जाए ,हम घबराते और डरते थे
पहली बार तुम्हें देखा था जीवन साथी चुनने खातिर
तुम सुंदर थी भोली भाली रूप तुम्हारा था ही कातिल
तुम्हें देख कर परख रहा था ,पत्नी बनी लगोगी कैसी
फिर तुम्हारी शर्माहट और सकुचाहटभी थी कुछ ऐसी
तुम जो ट्रे में लिए चाय के ,प्याले आई थी घबराते
हाथों के कंपन के कारण, चाय भरे प्याले टकराते उनकी टनटन का वह मधु स्वर मेरे मन को रिझा गयाथा
दिया चाय का प्याला जिसमें अक्स तुम्हारा समा गया था
यह प्यारा अंदाज तुम्हारा, लूट ले गया मेरा मन था पहली चुस्की नहीं चाय की,वह मेरा पहला चुंबन था फिर आगे क्या हुआ पता है तुमको और मालूम मुझे है
पति पत्नी बन जीवन काटा,मस्ती की और लिऐ मजे हैं
अपनी पहली मुलाकात को, एक बार फिर से दोहराओ
वक्त हो गया, तलब लगी है जाओ चाय बना कर लाओ
मदन मोहन बाहेती घोटू
मंगलवार, 17 अगस्त 2021
शांति का अस्त्र मोबाइल
याद जमाना आता जब हमजो कुछ पल भी थे नामिलते
बेचैनी सी छा जाती थी ,और चलती थी छुरियां दिल में
पर कुछ ऐसा पलटा मौसम, बदल गया है सारा आलम, तुम खुश अपने मोबाइल में, मैं खुश अपने मोबाइल में
दूर-दूर हम बैठे रहते ,
नहीं किसी से कुछ भी कहते
अपने अपने मोबाइल से ,
हम दोनों ही चिपके रहते
फुर्सत नहीं हमें की देखें
एक दूजे को उठाकर नजरें
अपनी अपनी ही दुनिया में ,
खोए रहते हम बेखबरे
आपस में हम बात करें क्या
,कोई टॉपिक नजर ना आता
मेरा वक्त गुजर जाता है,
वक्त तुम्हारा भी कट जाता
बात शुरू यदि कोई होती,
तू तू मैं मैं बढ़ जाती है
मेरे हरेक काम में तुमको ,
कोई कमी नजर आती है
इसीलिए शांति से जीने
का पाया यह रस्ता सुंदर
व्यस्त रहो और मस्त रहो तुम ,
मोबाइल से खेलो दिनभर
यह तुम्हारी सुन लेता है ,
दो आदेश ,काम करता है
उंगली से तुम इसे नचाती ,
चुप रहता, तुम से डरता है
मैं ये सब ना कर सकता था
इस कारण होता था झगड़ा
हम तुम बहुत सुखी है जब से,
हाथों में मोबाइल पकड़ा
मोबाइल ना शांति यंत्र यह,
टोका टाकी मिट जाती है
नोकझोंक सब बंद हो जाती,
घर में शांति पसर जातीहै
मौन भावना पर हो जाती,
रह जाती है दिल की दिल में
तुम खुश अपने मोबाइल में,
मैं कुछ अपने मोबाइल में
मदन मोहन बाहेती घोटू
शांति का अस्त्र मोबाइल
याद जमाना आता जब हमजो कुछ पल भी थे नामिलते
बेचैनी सी छा जाती थी ,और चलती थी छुरियां दिल में
पर कुछ ऐसा पलटा मौसम, बदल गया है सारा आलम,
तुम खुश अपने मोबाइल में, मैं खुश अपने मोबाइल में
दूर-दूर हम बैठे रहते ,नहीं किसी से कुछ भी कहते अपने अपने मोबाइल से ,हम दोनों ही चिपके रहते फुर्सत नहीं हमें की देखें एक दूजे को उठाकर नजरें अपनी अपनी ही दुनिया में ,खोए रहते हम बेखबरे आपस में हम बात करें क्या,कोई टॉपिक नजर ना आता
मेरा वक्त गुजर जाता है, वक्त तुम्हारा भी कट जाता
बात शुरू यदि कोई होती, तू तू मैं मैं बढ़ जाती है
मेरे हरेक काम में तुमको ,कोई कमी नजर आती है इसीलिए शांति से जीने का पाया यह रस्ता सुंदर
व्यस्त रहो और मस्त रहो तुम ,मोबाइल से खेलो दिनभर
यह तुम्हारी सुन लेता है ,दो आदेश काम करता है
उंगली से तुम इसे नचाती ,चुप रहता, तुम से डरता है
मैं ये सब ना कर सकता था इस कारण होता था झगड़ा
हम तुम बहुत सुखी है जब से, हाथों में मोबाइल पकड़ा
मोबाइल ना शांति यंत्र यह,टोका टाकी मिट जाती है
नोकझोंक सब बंद हो जातीघरमेंशांतिपसरजातीहै मौन भावना पर हो जाती,रह जाती है दिल की दिल में
तुम खुश अपने मोबाइल में, मैं कुछ अपने मोबाइल में
मदन मोहन बाहेती घोटू
शनिवार, 14 अगस्त 2021
किस्मत
जिस दिन और जहां पर भी है होता जब भी जन्म हमारा
उसी समय तय हो जाता है, पूरा जीवन चक्र हमारा
उस पल की ही ,ग्रह स्थिति से, जन्मकुंडली अपनी बनती
चाल ग्रहों की ही जीवन के, पल पल का संचालन करती उसी समय अनुसार हमारा, भाग्य लिखा जाता है सारा जन्म स्थल भूगोल बनाता, कद काठी, रंग गोरा काला भाग्य लिखा रहता मुट्ठी में ,रेखाओं में अंकित होता
कब तक जीना, कैसे जीना, कब मरना, सब निश्चित होता
पूर्व जन्म के संचित कर्मों का जो भी है लेखा-जोखा इस जीवन में हमें भोगना ,पड़ता है फल उन कर्मों का केवल अच्छे कर्म हमारे ,भाग्य बदलने में सक्षम है इसीलिए सत्कर्म करो तुम ,जब तक बाकी तुम में दम है कामयाबी का ये ही नुस्खा,काम करो जी जान लगन से अपना भाग्य स्वयं लिख लोगे, यदि चाहोगे सच्चे मन से
मदन मोहन बाहेती घोटू
किस्मत वाला पति
आप प्यार करते हैं जिनसे, उनसे ही कुछ कहते हैं
बच्चों को मां-बाप इसलिये,कभी डांटते रहते हैं
ताकि चले वे सही राह पर, गलत राह पर ना भटके
प्यार भरी यह डाट निराली, होती है सबसे हटके
जिन्हें समझते हो तुम अपना, ओर जिनसे है प्यार तुम्हे कभी कभी फटकार लगाने, का उन पर अधिकार तुम्हें स्कूल में मास्टर जी डांटे, पाठ याद करवाने को
डांट बॉस की दफ्तर में है, ड्यूटी सही निभाने को
डांट नहीं यह तो जादू का डंडा, बोले सर चढ़कर
जीवन में अनुशासन लाता ,हमें बनाता है बेहतर
प्यार प्रदर्शित अपना करने का यह ढंग निराला है
जिसे डाटती पत्नी वह पति ,सचमुच किस्मत वाला है
मदन मोहन बाहेती घोटू
फेंकू
तुम भी फेंकू,मैं भी फेंकू
रूप तुम्हारा, प्यारा सुंदर और नयना हिरनी से चंचल
एक नज़र जिसपर भी फेंको,कर देती हो उसको घायल
एक मीठी मुस्कान फेंक दो , बड़ी आस से तुम को देखूं
तुम भी फेंकू, मैं भी फेंकू
ऊंची ऊंची फेंका करता, मैं तुम्हारे प्यार का मारा
कैसे भी मैं तुम्हें पटा लूं और जीत लूं दिल तुम्हारा
प्रणय निवेदन करूं ,तुम्हारे आगे अपने घुटने टेंकू
तुम भी फेंकू, मैं भी फेंकू
हम दिल की फेंकाफेंकी में,उलझे कुछ ना कर पाए पर
फेंकू नेता, ऊंचे ऊंचे ,वादे फेंक ,जमे कुर्सी पर
भाषण और आश्वासन फेंके ताकि वोट उन्हीं को दे दूं
तुम भी फेंकू, मैं भी फेंकू
हम सब बातों के फेंकू पर ,असली फेंकू निकला नीरज
भाला फेंक,स्वर्ण ले आया और लहराया भारत का ध्वज
स्वर्ण पदक टोक्यो में जीता ,बड़े गर्व से उसको देखूं
तुम भी फेंकू, मैं भी फेंकू
मदन मोहन बाहेती घोटू
गुरुवार, 12 अगस्त 2021
ऐसा साज मुझे दे दो तुम
जब भी दिल के तार छिड़े तो ,
निकले मधुर रागिनी मोहक ,
जो अंतर तक को छू जाए
ऐसा साज मुझे दे दो तुम
बीती खट्टी मीठी यादों,
के सब पन्ने बिखरे बिखरे
उन्हें समेट, सजा फिर से,
जिल्दसाज ऐसा दे दो तुम
भटक रहे बादल से मन को, घनीभूत कर जो बरसा दे सूखे अपनेपन की खेती ,को नवजीवन दे, सरसा दे शुष्क पड़ी जो मन की सरिता, बह निकले ,उसमें कल कल हो
है सुनसान पड़ी यह बस्ती, दिल की, इसमें कुछ हलचल हो
इस दुनिया में बहुत त्रसित हूं
परेशान हूं, रोग ग्रसित हूं,
मेरे मुरझाए चेहरे पर
खुशियां आज मुझे दे दो तुम
जो अंतरतर तो छू जाए ,
ऐसा साज मुझे दे दो तुम
एक जमाना था जब हम भी, फूलों से महका करते थे उड़ते थे उन्मुक्त गगन में, पंछी से चहका करते थे
सूरज जैसा प्रखर रूप था , धूप पहुंचती आंगन आंगन सावन सूखे, हरे न भादौ, मतवाला था हर एक मौसम फिर से फूल खिले बासंती
फिर आए जीवन में मस्ती
खुशी भरे जीवन जीने का,
वो अंदाज मुझे दे दो तुम
जो अंतरतर को छू जाए ,
ऐसा साज मुझे दे दो तुम
मदन मोहन बाहेती घोटू
मैंने जीना सीख लिया है
यह बीमारी वह बीमारी
रोज-रोज की मारामारी
यह मत खाओ, वह मत खाओ
मुंह पर अपने मास्क लगाओ
गोली ,कैप्सूल ,इंजेक्शन
खाओ दवाएं, फीका भोजन
हर एक चीज पर थी पाबंदी
पाचन शक्ति पड़ गई मंदी
मेरी हालत बुरी हो गई
चेहरे की मुस्कान खो गई
मुझे प्यार से समझा तुमने,
मेरे मन को ठीक किया है
मैंने जीना सीख लिया है
तुमने बोला ,सोच सुधारो
यू मत अपने मन को मारो
मनमाफिक, सब खाओ पियो
लेकिन घुट घुट कर मत जियो
तन अनुसार ,ढाल लो तुम मन
आवश्यक पर कुछ अनुशासन
मज़ा सभी चीजों का लो पर
रखो नियंत्रण तुम अपने पर
मौज मस्तियां खूब मनाओ
मित्रों के संग नाचो गाओ
नई फुर्ती और नए जोश ने ,
कर मुझ को निर्भीक दिया है
मैंने जीना सीख लिया है
जिस दिन से यह शिक्षा पाई
नव जीवन शैली अपनाई
बीमारी सारी गायब है
चेहरे पर आई रौनक है
फुर्तीला हो गया चुस्त हूं
लगता है मैं तंदुरुस्त हूं
मेरी सोच सकारात्मक है
और जीने की बढ़ी ललक है
बाकी जितनी बची उमर है
अब जीना सुख से ,हंसकर है
मेरे मन के वाद्य यंत्र ने ,
सीख गया संगीत लिया है
मैंने जीना सीख लिया है
मदन मोहन बाहेती घोटू
मंगलवार, 10 अगस्त 2021
cheap whitehat monthly SEO Plans
Hi!
I`ve just checked your website and saw that it could really use a boost
if you ever should choose to consider a SEO strategy for your website,
kindly check our plans here
https://www.cheapseoagency.co/cheap-seo-packages/
thanks and regards
Cheap SEO Agency
https://www.cheapseoagency.co/unsubscribe/
I`ve just checked your website and saw that it could really use a boost
if you ever should choose to consider a SEO strategy for your website,
kindly check our plans here
https://www.cheapseoagency.co/cheap-seo-packages/
thanks and regards
Cheap SEO Agency
https://www.cheapseoagency.co/unsubscribe/
शब्दों का फंडा
उनके घर क्या कार आ गई अब उनका आकार बढ़ गया
जबसे उनके नयन लड़े हैं ,आपस में है प्यार बढ़ गया
पहन शेरवानी इठला वो ,खुद को शेर समझ बैठे हैं
घर में कुर्सी मेज नहीं है, मेजबान पर बन बैठे हैं
विष का वास मुंह में जिनके हम उनका विश्वास न करते
सदा चार की बात करें जो ,सदाचार व्यवहार न करते
असरदार वह नहीं जरा भी, फिर भी है सरकार कहाते
हारे ना,वो जीत गए हैं ,फिर भी हार गले लटकाते
है मकान तो उनका पक्का, किंतु कान के वह है कच्चे
चमचे से खाते ,खिलवाते,पर खुद कहलाते हैं चमचे
जब से उनके भाव बढ़े हैं ,हमको भाव नहीं देते हैं
उड़ना जब से सीख गए हैं, सबके होश उड़ा देते हैं
होता मन में मैल अगर तो मेल नहीं मिलता है मन का
टांके भिड़े सिले ना फिरभी चालू हुआ सिलसिला उनका
कुछ भी उनमें नहीं नया रे ,पर है उनके बारे न्यारे
भारी सर तो चल सकता है,भारी पैर न चले जरा रे
नाम लौंग पर बड़ी शार्ट है ,तेज हीन पर तेज पान है
न तो दाल है ना चीनी है ,दालचीनी का मगर नाम है कहते हैं पूरी उसको पर ,आधी भी है खाई जाती
और गुलाबजामुन में खुशबू ना गुलाब,जामुन की आती ना अजवाइन में वाइन है नाशपति में नहीं पति है
और पपीता बिना पिता के,हर एक शब्द की यही गति है
कहते जिसको गरममसाला,वो बिलकुल ठंडा होता है
शब्द गुणों के डबल रोल का ,ऐसा ही फंडा होता है
मदन मोहन बाहेती घोटू
शब्दों का फंडा
उनके घर क्या कार आ गई अब उनका आकार बढ़ गया जबसे उनके नयन लड़े हैं ,आपस में है प्यार बढ़ गया पहन शेरवानी इठला वो ,खुद को शेर समझ बैठे हैं
घर में कुर्सी मेज नहीं है, मेजबान पर बन बैठे हैं
विष का वास मुंह में जिनके हम उनका विश्वास न करते
सदा चार की बात करें जो ,सदाचार व्यवहार न करते असरदार वह नहीं जरा भी, फिर भी है सरकार कहाते हारे ना,वो जीत गए हैं ,फिर भी हार गले लटकाते
है मकान तो उनका पक्का, किंतु कान के वह है कच्चे चमचे से खाते ,खिलवाते,पर खुद कहलाते हैं चमचे
जब से उनके भाव बढ़े हैं ,हमको भाव नहीं देते हैं
उड़ना जब से सीख गए हैं, सबके होश उड़ा देते हैं
होता मन में मैल अगर तो मेल नहीं मिलता है मन का
टांके भिड़े सिले ना फिरभी चालू हुआ सिलसिला उनका कुछ भी उनमें नहीं नया रे ,पर है उनके बारे न्यारे
भारी सर तो चल सकता है,भारी पैर न चले जरा रे
नाम लौंग पर बड़ी शार्ट है ,तेज हीन पर तेज पान है
न तो दाल है ना चीनी है ,दालचीनी का मगर नाम है कहते हैं पूरी उसको पर ,आधी भी है खाई जाती
और गुलाबजामुन में खुशबू ना गुलाब,जामुन की आती ना अजवाइन में वाइन है नाशपति में नहीं पति है
और पपीता बिना पिता के,हर एक शब्द की यही गति है
कहते जिसको गरममसाला,वो बिलकुल ठंडा होता है
शब्द गुणों के डबल रोल का ,ऐसा ही फंडा होता है
मदन मोहन बाहेती घोटू
कलदार रुपैया
याद जमाना आता कल का ,होता था कलदार रुपैया कितना नीचे आज गिर गया, देखो मेरे यार रुपैया
एक तोला चांदी का सिक्का,एक रुपैया तब होता था चलता तो खनखन करता,यह सबका ही मन मोहता था
जब यह आता था हाथों में, सब के चेहरे खिल जाते थे कभी टूटता ,तो तांबे के चौंसठ पैसे मिल जाते थे
इसके हाथों में आने से ,आया करते सोलह आने
इतनी ज्यादा क्रयशक्ति थी, हम सब थे इसके दीवाने इसके छोटे भाई बहन थे,, एक अधन्ना,एक इकन्नी
एक दुअन्नी,एक चवन्नी,अच्छी लगती मगर अठन्नी लेकिन इसने धीरे-धीरे अवनति का है दामन थामा
लुप्त हो गए भाई बहन सब,बचा सिर्फ हैअब आठआना इतना ज्यादा सिकुड़ गया है,ना चलता ना होती खनखन अबतो जाने कहां उड़गया हल्का फुल्का कागज का बन इतना ज्यादा टूट गया वह, बदले सौ में ,चौंसठ पैसे
कोई सिक्का नजर आता, इसके दिन बिगड़े हैं ऐसे
दो हजार के नोटों में भी अब इसका अवतार हो गया नेताओं ने भरी तिजोरी, इसका बंटाधार हो गया
बेचारा अवमूल्यन मारा ,है कितना लाचार रुपैया
याद जमाना आता कल का, होता था कलदार रुपैया
मदन मोहन बाहेती घोटू
सोमवार, 9 अगस्त 2021
प्रतिशत
सारे नेता, सारे अफसर, रहते हैं बस इस जुगाड़ में
उनका प्रतिशत जाए उन्हें मिल,बाकी दुनियाजाएभाड़में
यह प्रतिशत वाली बीमारी इतनी ज्यादा फैल रही है
हर कोई इसका शिकार है जनता इसको खेल रही है चपरासी बाबू या अफसर पंच विधायक मंत्री नेता
काम कराने का कोई भी बस अपना कुछ प्रतिशत लेता सड़क बनाने से लेकर के ,बड़े-बड़े रक्षा के सौदे
हमने देखा शत-प्रतिशत ये, बिना प्रतिशत के ना होते साहब जी को नगद चाहिए नेता मांगी कहकर चंदा बहुत अधिक कब फैल रहा है ,सभी तरफ ये गोरखधंधा काम कराना प्रतिशत दे दो,सब कुछ नगद न कुछ उधार में
सारे नेता सारे अफसर ,रहते हैं बस इस जुगाड़ में
उनका प्रतिशत जाए उन्हें मिल बाकी दुनिया जाए भाड़ में
खुद को कहें देश का सेवक ,जड़े देश की खोद रहे हैं निजी स्वार्थ की सिद्धि करने, यह प्रगति को रौंद रहे हैं घटिया माल खरीद रहे हैं, गुणवत्ता पर ध्यान न देते प्रतिशत देखकर काम कराते, उनके अपने कई चहेते सब्जबाग दिखलाने वाले ,अपना बाग उजाड़ रहे हैं
और बाद में भोले बनकर ,अपना पल्ला झाड़ रहे हैं प्रतिशत है दस्तूर बन गया कुछ दफ्तर में यह रूटीन में किसी एक को प्रतिशत दे दो, बंट जाता है सभी टीम में भले आज जो चीज खरीदी,अगले दिन बिकती कबाड़ में
सारे नेता सारे अफसर रहते है बस इस जुगाड़ में
उनका प्रतिशत जाए उन्हें मिल,बाकी दुनिया जाए भाड़ में
यह कोटेशन ,टेंडर बाजी,खानापूर्ति है कागज की
सांप मरे, लाठी ना टूटे , जान बची रहती है सबकी प्रतिशत लेकर काम कराते,खोट नहीं इनके इमान में कोई दूध का धुला नहीं है, सब के सब नंगे हमाम में कोई अपने हाथ न गंदे ,करता ,चमचों से खाता है
उसको उसका प्रतिशत मिलता और पेट जबभर जाताहै काम ठीक से तब होता है जब वह ले लेता डकार है कोई बगुला भगत बन रहा, खुद ही मच्छी रहा मार है और जब फसंते,तो फिर चक्की पीसा करते हैं तिहाड़ में
सारे नेता, सारे अफसर, रहते हैं बस इस जुगाड़ में
उनका प्रतिशत जाएं उन्हे मिल,बाकी दुनिया जाए भाड़ में
मदन मोहन बाहेती घोटू
रविवार, 8 अगस्त 2021
प्यार और समझ
सोच समझ कर कदम बढ़ा तू, दिल ने कितना ही समझाया
बिन समझे ही प्यार हुआ पर , बिन समझे ही साथ निभाया
कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं ,जिनको हम तुम नहीं बनाते
ईश्वर द्वारा निर्मित होते ,और ऊपर से बनकर आते इसीलिए हम सोच समझकर उन्हें निभाए समझदारी है एक दूसरे को हम समझे, रहना संग उमर सारी है
कुछ तो नयन नयन से उलझे,और कुछ दिल से दिल उलझाया
बिन समझे ही प्यार हो गया, बिन समझे ही साथ निभाया
प्यार हुआ करता है दिल से ,नहीं समझ की जरूरत पड़ती
जितना साथ साथ हम रहते ,प्रीत दिनों दिन जाती बढ़ती
सामंजस्य बना आपस में ,जीवन सुख से जी सकते हैं अगर समर्पण हो आपस में, सुख का अमृत पी सकते हैं प्रेम भाव में डूब गया जो, जीवन का आनंद उठाया
बिन समझे ही प्यार हो गया, बिन समझे ही साथ निभाया
मदन मोहन बाहेती घोटू
शुक्रवार, 6 अगस्त 2021
तेरी जय जय
तू तारों सी झिलमिल झिलमिल
तू चंदा सी चम चम चम चम
मस्त हवा सी शीतल शीतल
खिली धूप सी आंगन आंगन
तू पर्वत की ऊंची ऊंची
तू गहरी गहरी सागर सी
तू बादल सी भरी-भरी सी
दिल पर छाई नीलांबर सी
तू गंगा सी निर्मल निर्मल
तू नदिया सी बहती कलकल
तू झरने सी झरती झर झर
प्यार बरसता क्षण क्षण पल पल
तेरा मन है सावन सावन
बरसा करती रिमझिम रिमझिम
तेरी छवि है नयन नयन में ,
श्वास श्वास में तेरी सरगम
तू राधा की भोली भोली
तू कान्हा सी माखन माखन
तेरी खुशबू मधुबन मधुबन
महक रही तू चंदन चंदन
खिली कली सी नवल नवल तू
तू गुलाब सी कोमल कोमल
तेरा तन है कंचन कंचन
तेरा मन है चंचल चंचल
सरस्वती सी सरस सरस तू
तू लक्ष्मी सी वैभव वैभव
तू दुर्गा सी निर्भय निर्भय
तेरी जय जय तेरी जय जय
मदन मोहन बाहेती घोटू
गुरुवार, 5 अगस्त 2021
पत्नी जी और उनका मोबाइल
प्रियतमे
कई बार यह शिकायत रहती है तुम्हें
कि तुम्हारा मोबाइल फोन
बार-बार हो जाता है मौन
कई बार ठीक से आवाज भी नहीं सुनाती है
उसकी बैटरी जल्दी डिस्चार्ज हो जाती है
कम मेमोरी है और बॉडी पर स्क्रेच भी है आ गए आजकल बाजार में रोज आ रहे हैं मॉडल नए
और यह मुआ खराब होकर तंग करता है, मुसीबत है अब मुझे नए मोबाइल की जरूरत है
हमने कहा डियर
मैं देखता हूं कि दिन भर
तुम अपने मोबाइल को उंगलियों से सहलाती रहती हो कभी गाल से चिपकाती रहती हो
होठों के पास ले जाकर फुसफुसा कर बात करती हो
और वह भी दिन रात करती हो
अब तुम ही बताओ,
जब तुम मुझे थोड़ा सा सहलाती हो
या होठों के पास आती हो
तो मेरी हालत कैसी बिगड़ जाती है
मेरी नियत खराब हो जाती है
डर के मारे मैं धीरे बोलता हूं मेरी आवाज नहीं निकलती मेरी एनर्जी क्षीण हो जाती और मेरी एक नहीं चलती
जब कुछ क्षण मे हो जाता है मेरा हाल ऐसा
तो दिन भर तुम्हारा साथ पाकर ,अगर मोबाइल हो जाता है खराब,तो अचरज कैसा
दरअसल वह खराब नहीं होता ,उसकी नियत खराब हो जाती है, वह खो देता अपने होंश हैं
यह मोबाइल का दोष नहीं, यह तुम्हारा दोष है
मदन मोहन बाहेती घोटू
बुधवार, 4 अगस्त 2021
Re:
शानदार वाह वाह,,,,,,,,
On Wed, Aug 4, 2021, 7:32 AM madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:
अच्छा लगता हैकभी-कभी तुम्हारा लड़ना, अच्छा लगता हैबात मनाने ,पीछे पड़ना ,अच्छा लगता हैयूं ही रूठ जाती हो, मुझसे बात न करती होकभी-कभी ऐसे भी अकड़ना, अच्छा लगता हैत्योहारों पर जब सजती तो ,गोरे हाथों में ,लाल रंग मेहंदी का चढ़ना, अच्छा लगता हैनये निराले नाज और नखरे नित्य दिखाती हो ,यूं इतराकर सर पर चढ़ना, अच्छा लगता हैअपनी ज़िद पूरी होने पर लिपटा बाहों में,मेरे मुंह पर चुम्बन जड़ना,अच्छा लगता हैपहले उंगली पकड़, पहुंचती हो फिर पहुंची तक, धीरे-धीरे आगे बढ़ना ,अच्छा लगता हैकाली-काली सी कजरारी तेरी आंखों में,कभी गुलाबी डोरे पड़ना, अच्छा लगता हैमेरे बिन बोले बस केवल हाव भाव से ही,मेरे मन की इच्छा पढ़ना ,अच्छा लगता हैमदन मोहन बाहेती घोटू
अच्छा लगता है
कभी-कभी तुम्हारा लड़ना, अच्छा लगता है
बात मनाने ,पीछे पड़ना ,अच्छा लगता है
यूं ही रूठ जाती हो, मुझसे बात न करती हो
कभी-कभी ऐसे भी अकड़ना, अच्छा लगता है
त्योहारों पर जब सजती तो ,गोरे हाथों में ,
लाल रंग मेहंदी का चढ़ना, अच्छा लगता है
नये निराले नाज और नखरे नित्य दिखाती हो ,
यूं इतराकर सर पर चढ़ना, अच्छा लगता है
अपनी ज़िद पूरी होने पर लिपटा बाहों में,
मेरे मुंह पर चुम्बन जड़ना,अच्छा लगता है
पहले उंगली पकड़, पहुंचती हो फिर पहुंची तक, धीरे-धीरे आगे बढ़ना ,अच्छा लगता है
काली-काली सी कजरारी तेरी आंखों में,
कभी गुलाबी डोरे पड़ना, अच्छा लगता है
मेरे बिन बोले बस केवल हाव भाव से ही,
मेरे मन की इच्छा पढ़ना ,अच्छा लगता है
मदन मोहन बाहेती घोटू
चिंतन
चिंतन बदलो ,तन बदलेगा
जीवन का कण कण बदलेगा
कई व्याधियां है जो अक्सर ,
तन के आसपास मंडराती
इनमें से आधी से ज्यादा ,
चिंताओं के कारण आती
गुस्से में ब्लड प्रेशर बढ़ता,
हो अवसाद, नींद उड़ती है
किडनी, लीवर की बीमारी ,
मानस स्थिति से जुड़ती है
यदि तुम सोचो मैं बीमार हूं
तो बुखार भी चढ़ जाएगा
यदि तुम सोचो मैं स्वस्थ हूं,
जीवन में सुख बढ़ जाएगा
परेशानियां इस जीवन में ,
सब पर आती, मत घबराओ
बड़े धैर्य से उनसे निपटो,
चिंता में मत स्वास्थ्य गमाओ
तिथि मौत की जब तय है तो,
रोज-रोज क्यों जीना घुट कर
हंसी खुशी से क्यों न गुजारें,
हम अपने जीवन का हर पल
मस्त रहोगे, मन बदलेगा
मुस्कराओ,मौसम बदलेगा
चिंतन बदलो, तन बदलेगा
जीवन का कण कण बदलेगा
मदन मोहन बाहेती घोटू
मैं की मैं मैं
तुम मुझको अपना मैं दे दो, मैं तुमको दे दूंगा अपना मैं रहे प्रेम से हम मिलजुल कर ,बंद करें अब तू तू मैं मैं
जब तक तुममें मैं, मुझमें मैं ,अहम अहम से टकराता है
अहम अगर जो हम बन जाये,तो जीवन में सुख आता है अपनी मैं का विलय करें जो,हम में, सोच बदल जाएगी रोज-रोज की खींचातानी, हम होने से थम जाएगी
और जिंदगी बाकी अपनी फिर बीतेगी मजे मजे में
तुम मुझको अपना मैं दे दो, मैं दे दूं तुमको अपना मैं
दुनिया में सारे झगड़ों की, जड़ है ये मैं की बीमारी
मैं के कारण ही होती है, जग में इतनी मारामारी मैं सब कुछ हूं,मेरा सब कुछ,सोच सोच हम इतराते हैं खाली हाथ लिए है आते,खाली हाथ लिये जाते हैं
तो फिर क्यों झगड़ा करते, क्या मिल जाता हमको इसमें तुम मुझको अपना मैं दे दो ,मैं तुमको दे दूं अपना मैं
रहे प्रेम से, हम मिलजुल कर,बंद करें अब तू तू मैं मैं
मदन मोहन बाहेती घोटू
बारिश तब और अब
अब भी पानी बरसा करता, अब भी छाते बादल काले पर अब आते मजे नहीं है, वह बचपन की बारिश वाले
अब ना घर के आगे कोई, बहती है नाली पानी की,
ना कागज की नाव बनाकर बच्चे उसमें छोड़ा करते
नहीं भीगने से डर लगता, बारिश का थे मजा उठाते,
नंगे पैरों छप छप छप छप ,उसके पीछे दौड़ा करते
अब न कबेलू वाली छत है ,जिससे टप टप टपके पानी जहां-जहां चूती छत ,नीचे बर्तन और पतीला रखना
पूरे परिवार के संग, बैठ मजा लेना बारिश का,
और वह मां का बड़े प्यार से, गरमा गरम पकौड़े तलना
वह बारिश में भीग नाचना,उछल कूद और करना मस्ती, जब स्कूल की रेनी डे की छुट्टी की थी घंटी बजती
बना घिरोंदे गीली माटी से, खुश होना खेला करना
हरी घास पर लाल रंग की बीरबहूटी जब थी मिलती
तब बादल की गरज और थी, तब बिजली की चमकऔरथी ,
रिमझिम मस्त फुहारों में जब ,नाचा करती वर्षा रानी
तब बारिश में जीवन होता, मेह के संग था नेह बरसता,
अब तो केवल आसमान से, बस बरसा करता है पानी
मदन मोहन बाहेती घोटू
,
unique domains links
Hi!
When you get 1000 unique domains you get links from only unique domains
with unique ips
https://www.creative-digital.co/product/unique-domains-links/
https://www.creative-digital.co/unsubscribe/
When you get 1000 unique domains you get links from only unique domains
with unique ips
https://www.creative-digital.co/product/unique-domains-links/
https://www.creative-digital.co/unsubscribe/
मंगलवार, 3 अगस्त 2021
बारिश तब और अब
अब भी पानी बरसा करता, अब भी छाते बादल काले पर अब आते मजे नहीं है, वह बचपन की बारिश वाले
अब ना घर के आगे कोई, बहती है नाली पानी की,
ना कागज की नाव बनाकर बच्चे उसमें छोड़ा करते
नहीं भीगने से डर लगता, बारिश का थे मजा उठाते,
नंगे पैरों छप छप छप छप ,उसके पीछे दौड़ा करते
अब न कबेलू वाली छत है ,जिससे टप टप टपके पानी जहां-जहां चूती छत ,नीचे बर्तन और पतीला रखना
पूरे परिवार के संग, बैठ मजा लेना बारिश का,
और वह मां का बड़े प्यार से, गरमा गरम पकौड़े तलना
वह बारिश में भीग नाचना,उछल कूद और करना मस्ती, जब स्कूल की रेनी डे की छुट्टी की थी घंटी बजती
बना घिरोंदे गीली माटी से, खुश होना खेला करना
हरी घास पर लाल रंग की बीरबहूटी जब थी मिलती
तब बादल की गरज और थी, तब बिजली की चमकऔरथी ,
रिमझिम मस्त फुहारों में जब ,नाचा करती वर्षा रानी
तब बारिश में बारिश होती ,तब बारिश में जीवन होता
अब तो केवल आसमान से, बस बरसा करता है पानी
मदन मोहन बाहेती घोटू
,
बरसा है पानी
दबे पांव आ गया बुढ़ापा
मैंने कितना रोका टोका बात न मानी
दबे पांव आ गया बुढ़ापा गई जवानी
मैंने लाख कोशिशें की, कि यह ना आए
फूल जवानी का न कभी भी मुरझा पाए
कितने ही नुस्खे अपनाएं, पापड़ बेले
जितने भी हो सकते थे, सब किये झमेले
च्यवनप्राश के चम्मच चाटे, टॉनिक पिए
किया फेशियल और बाल भी काले किये
रंग-बिरंगे फैशन वाले कपड़े पहने
बन स्मार्ट, लगा तेज फुर्तीला रहने
जिम में जाकर करी वर्जिशें,भागा दौड़ा
लेकिन ये ना माना, आकर रहा निगोड़ा
मैं जवान हूं, सोच सोच कर मन बहलाया
हुई कोशिशें लेकिन मेरी सारी जाया
धीरे धीरे थी मेरी आंखें धुंधलाई
और कान से ऊंचा देने लगा सुनाई
तन की आभा क्षीण, अंग में आई शिथिलता
मुरझाया मुख, जो था कभी फूल सा खिलता
शनेःशनेःचुस्ती फुर्ती में कमी आ गयी
मेरे मन में बेचैनी सी एक छा गयी
और लग गई, तन पर कितनी ही बिमारी
थोड़ी थोड़ी मैंने भी थी हिम्मत हारी
पर फिर मैंने,अपने मन को यह समझाया
यह जीवन का चक्र, रोक कोई ना पाया
इस से डरो नहीं तुम बिल्कुल मत घबराओ
बल्कि उम्र के इस मौसम का मजा उठाओ
क्योंकि यही तो बेफिक्री की एक उमर है
ना चिंता है, भार कोई भी ना सर पर है
जो भी कमाया,जीवन में,उपभोग करो तुम
मरना सबको एक दिवस है, नहीं डरो तुम
समझदार अंतिम पल तक है मजा उठाता
डरो नहीं , इंज्वॉय करो तुम यार बुढ़ापा
मदन मोहन बाहेती घोटू
घर के झगड़े
घर के झगड़े ,घर में ही सुलझाए जाते
लोग व्यर्थ ही कोर्ट कचहरी को है जाते
संग रहते सब ,कुछ अच्छे, कुछ लोग बुरे हैं
यह भी सच है ,नहीं दूध के सभी धुले हैं
छोटी-छोटी बातों में हो जाती अनबन
एक दूसरे पर तलवारे ,जाती है तन
वैमनस्य के बादल हैं तन मन पर छाते
घर के झगड़े घर में ही सुलझाए जाते
कुछ में होता अहंकार, कुछ में विकार है
इस कारण ही आपस में पड़ती दरार है
होते हैं कुछ लोग,हवा जो देते रहते
आग भड़कती है तो मज़ा लूटते रहते
जानबूझकर लोगों को है लड़ा भिड़ाते
घर के झगड़े ,घर में ही सुलझाए जाते
पर जबअगला है थोड़ी मुश्किल में आता
सब जाते हैं खिसक कोई ना साथ निभाता
इसीलिए इन झगड़ों से बचना ही हितकर
जीना मरना जहां ,रहे हम सारे मिलकर
बादल हटते , फूल शांति के है खिल जाते
घर के झगड़े घर में ही सुलझाए जाते
मदन मोहन बाहेती घोटू
सोमवार, 2 अगस्त 2021
जीने की ललक
जिस्म गया पक , पैर कब्र में रहे लटक है
फिर भी लंबा जिएं, मन में यही ललक है
तन के सारे अंग, ठीक से काम न करते
तरह-तरह की बीमारी से हम नित लड़ते
कभी दांत में दर्द ,कभी है मुंह में छाले
पर मन करता,सभी चीज का मजा उठा ले
खा लेते कुछ,पाचन तंत्र पचा ना पाता
सांस फूलती ,ज्यादा दूर चला ना जाता
लाख दवाई खाएंगे, टॉनिक पिएंगे
लेकिन मन में हसरत है, लंबा जिएंगे
हुस्न देख, आंखों में आती नयी चमक है
फिर भी लंबा जिएं, मन में यही ललक है
कोई अपंग अपाहिज है ,चल फिर ना सकता
फिर भी उसका मन लंबा जीने को करता
इस जीने के लिऐ न जाने क्या क्या होता
कोई चलाता रिक्शा, कोई बोझा ढोता
कोई अपना जिस्म बेचता ,जीने खातिर
कोई चोरी करता ,कोई बनता शातिर
इस जीने के चक्कर में कितने मरते हैं
जो जो पापी पेट कराता ,सब करते हैं
गांव-गांव में गली-गली में रहे भटक है
फिर भी लंबा जिएं,मन में यही ललक है
कोई वृद्ध है, नहीं पूछते बेटी बेटे
दिन भर तन्हा यूं ही रहते घर में बैठे
बड़े तिरस्कृत रहते ,होता किन्तु अचंभा
उनके मन में भी चाहत, वो जिए लंबा
बंधा हुआ मन है मोह माया के चक्कर में
उलझा ही रहता है बच्चों में और घर में
हैं बीमार अचेत,सांस वेंटीलेटर पर
फिर भी चाहें, बढ़ जाएं जीवन के कुछ पल
दुनिया में क्यों रहते सब के प्राण अटक है
फिर भी लम्बा जिएं मन में यही ललक है
मदन मोहन बाहेती घोटू
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
हलचल अन्य ब्लोगों से 1-
-
-
पुस्तक लोकार्पण एवं नवगीत परिचर्चा - 19 जनवरी, 2025 को राजकीय लाइब्रेरी, एल.टी. कॉलेज वाराणसी में नवगीत कुटुंब समूह के बैनर तले पुस्तक लोकार्पण एवं राष्ट्रीय गोष्ठी का आयोजन किया गया। समार...17 घंटे पहले
-
परी नहीं बेटी - हिन्दू धर्म की एक प्रसिद्ध उक्ति है "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" जिसे हिन्दू धर्मावलंबियों द्वारा बहुत ही जोर शोर से उच्चारित किया जाता...1 दिन पहले
-
नये साल की एक भोर - नये साल की एक भोर वादा किया था उस दिनएक नयी भोर का लो ! आज ही वह भोर मुस्कुराती हुई आ गई है गगन लाल है पावन बेला सितारों ने ले ली है विदा दूर तक फैला है ...1 दिन पहले
-
फुटपाथ .... - कानों में गूँजती अनगिनत स्वर लहरियों के साथ कहीं रास्ते पर चलते कदम अक्सरठिठक कर रुक जाते हैं जब नज़रों के सामने फुटपाथ आ जाते हैं। हाँ सड़क किनारे के वही फु...2 दिन पहले
-
सेल डीड रजिस्टर नहीं होने तक अचल संपत्ति का स्वामित्व ट्रांसफर नहीं होता : सुप्रीम कोर्ट - संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882 (Transfer of Property Act ) की धारा 54 का हवाला देते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एनके सिंह की खंडपीठ ने कहा कि प्र...2 दिन पहले
-
आठवां वेतन आयोग: खुशी के झूले, जलन के शोले - *आठवां वेतन आयोग: खुशी के झूले, जलन के शोले* आठवां वेतन आयोग घोषित होते ही सरकारी कर्मचारियों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। गुप्ता जी, जो अब तक गुमसुम ...3 दिन पहले
-
पतंजलि अष्टांग योग के प्रारंभिक दो अंग - पतंजलि योग दर्शन में अष्टांगयोग भाग - 02 , यम एवं नियम पिछले अंक में पतंजलि अष्टांगयोग के निम्न अंगों की परिभाषाओं को देखा गया और अब यहां इन अंगों में...3 दिन पहले
-
अवनीश सिंह चौहान की तीन लघुकथाएँ - *चित्र :डॉ श्रद्धांजलि सिंह से साभार * ------------------------------ *लघुकथा-1: भविष्य* उस दिन विश्वविद्यालय के एडमीशन सेल में बड़ी भीड़ थी। नर्सिंग में डिप...4 दिन पहले
-
2025 में विवाह मुहूर्त कब है ? - Marriage dates in 20252025 में विवाह मुहूर्त कब है ? [image: Marriage dates in 2025] भारतवर्ष में हिंदू धर्म में प्रत्येक मांगलिक कार्यों में शुभ मुहूर्त ...1 हफ़्ते पहले
-
1445 - *लौट आओ * * - सुशीला शील स्वयंसिद्धा* त्योहारों की रौनको लौट आओ ! कितनी सूनी है मन की गलियाँ बरसों से नहीं चखी लोकगीतों की मिठास ...1 हफ़्ते पहले
-
पाँच लघुकथाएँ - ऋता शेखर - 1. असर कहाँ तक "मीना अब बड़ी हो गई है। उच्च शिक्षा लेने के बाद नौकरी भी करने लगी है। कोई ढंग का लड़का मिल जाये तो उसके हाथ पीले कर दें !" चाय पीते हुए सरला...1 हफ़्ते पहले
-
हम सभी बेचैन से हैं न - अभी कुछ दिनों से मैं अपनी कजिन के घर आई हुई हूं, वजह कुछ खास नहीं बस अपनी खामखाह की बैचेनी को की कुछ कम करने का इरादा था और अपने मन को हल्का करना था। अब वाप...1 हफ़्ते पहले
-
787. तुम्हें जीत जाना है - तुम्हें जीत जाना है *** जीवन की हर रस्म निभाने का समय आ गया है उस चक्रव्यूह में समाने का समय आ गया है जिसमें जाने के रास्तों का पता नहीं न बाहर निकलने का...1 हफ़्ते पहले
-
किन भावों का वरण करूँ मैं? - हर पल घटते नए घटनाक्रम में, ऊबड़-खाबड़ में, कभी समतल में, उथल-पुथल और उहापोह में, किन भावों का वरण करूँ मैं ? एक भाव रहता नहीं टिककर, कुछ नया घटित फिर ह...2 हफ़्ते पहले
-
गुलाबी ठंडक लिए, महीना दिसम्बर हुआ - कोहरे का घूंघट, हौले से उतार कर। चम्पई फूलों से, रूप का सिंगार कर। अम्बर ने प्यार से, धरती को जब छुआ। गुलाबी ठंडक लिए, महीना दिसम्बर हुआ। धूप गुनगुनाने ...3 हफ़्ते पहले
-
गुम हो गये सफ़हे - *गुम हो गये सफ़हे * *वक्त की किताब से * *ढूँढे से नहीं मिलते * *वो जो लोग थे नायाब से * *आब तो थी * *लश्करे-आफ़ताब सी * *ओझल हो गया वही चमन * *जिसक...3 हफ़्ते पहले
-
अकेली हो? - पति के गुजर जाने के बाद दिन पहाड़ से लगते हैं रातें हो जाती है लंबी से भी लंबी दूर तक नजर नहीं आती सूरज की कोई किरण मशीन बन जाता है शरीर खाने, पीने की ...1 माह पहले
-
किताब मिली - शुक्रिया - 22 - दुखों से दाँत -काटी दोस्ती जब से हुई मेरी ख़ुशी आए न आए जिंदगी खुशियां मनाती है * किसी की ऊंचे उठने में कई पाबंदियां हैं किसी के नीचे गिरने की कोई भी हद ...1 माह पहले
-
बचपन के रंग - - बहुत पुरानी , घोर बचपन की बातें याद आ रही है. मुझसे पाँच वर्ष छोटे भाई का जन्म तब तक नहीं हुआ था. पिताजी का ट्रांस्फ़र होता रहता था - उन दिनों हमलोग तब ...1 माह पहले
-
क्या अमेरिकन समाज स्त्रीविरोधी है? : (डॉ.) कविता वाचक्नवी - क्या अमेरिकन समाज स्त्रीविरोधी है? : (डॉ.) कविता वाचक्नवी अमेरिका के चुनाव परिणाम की मेरी भविष्यवाणी पुनः सत्य हुई। लोग मुझे पूछते और बहुधा हँसते भी हैं क...2 माह पहले
-
शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (२६) - * बेशक कोई रिश्ता हमें जन्म से मिलता है परंतु उस रिश्ते से जुड़ाव हमारे मनोभाव पर निर्भर करता है । जन्म मर...3 माह पहले
-
अनजान हमसफर - इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। गैस खिड़कियाँ ...3 माह पहले
-
पुरानी तस्वीर... - कल से लगातार बारिश की झड़ी लगी है। कभी सावन के गाने याद आ रहे तो कभी बचपन की बरसात का एहसास हो रहा है। तब सावन - भादो ऐसे ही भीगा और मन खिला रहता था। ...4 माह पहले
-
बीज - मंत्र . - शब्द बीज हैं! बिखर जाते हैं, जिस माटी में , उगा देते हैं कुछ न कुछ. संवेदित, ऊष्मोर्जित रस पगा बीज कुलबुलाता फूट पड़ता , रचता नई सृष्टि के अंकन...4 माह पहले
-
गुमशुदा ज़िन्दगी - ज़िन्दगी कुछ तो बता अपना पता ..... एक ही तो मंज़िल है सारे जीवों की और वो हो जाती है प्राप्त जब वरण कर लेते हैं मृत्यु को , क्यों कि असल मंज़िल म...8 माह पहले
-
-
-
रामलला का करते वंदन - कौशल्या दशरथ के नंदन आये अपने घर आँगन, हर्षित है मन पुलकित है तन रामलला का करते वंदन. सौगंध राम की खाई थी उसको पूरा होना था, बच्चा बच्चा थ...11 माह पहले
-
क्यों बदलूं मैं तेवर अपने मौसम या दस्तूर नहीं हूँ - ग़ज़ल मंज़िल से अब दूर नहीं हूँ थोड़ा भी मग़रूर नहीं हूँ गिर जाऊँ समझौते कर लूँ इतना भी मजबूर नहीं हूँ दूर हुआ तू मुझसे फिर भी तेरे ग़म से चू...1 वर्ष पहले
-
ज़िन्दगी पुरशबाब होती है - क्या कहूँ क्या जनाब होती है जब भी वो मह्वेख़्वाब होती है शाम सुह्बत में उसकी जैसी भी हो वो मगर लाजवाब होती है उम्र की बात करने वालों सुनो ज़िन्दगी पुरशबाब ह...2 वर्ष पहले
-
अब पंजाबी में - सिन्धी में कविता के अनुवाद के बाद अब पंजाबी में "प्रतिमान पत्रिका" में मेरी कविता " हाँ ......बुरी औरत हूँ मैं " का अनुवादप्रकाशित हुआ है सूचना तो अमरज...2 वर्ष पहले
-
Bayes Theorem and its actual effect on our lives - मित्रों आज बेज़ थियरम पर बात करुँगी। बहुत ही महत्वपूर्ण बात है - गणित के शब्द से परेशान न हों - पूरा पढ़े, गुनें, और समझें। हम सभी ने बचपन में प्रोबेबिलिटी ...4 वर्ष पहले
-
कविता : खेल - शहर के बीच मैदान जहाँ खेलते थे बच्चे और उनके धर्म घरों में खूँटी पर टँगे रहते थे जबसे एक पत्थर लाल हुआ तो दूसरे ने ओढ़ी हरी चादर तबसे बच्चे घरों में कैद...4 वर्ष पहले
-
दोहे "रंगों की बौछार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') - *होली का त्यौहार* *-0-0-0-0-0-* *फागुन में अच्छी लगें, रंगों की बौछार।* *सुन्दर, सुखद-ललाम है, होली का त्यौहार।।* *--* *शीत विदा होने लगा, चली बसन्त बयार।*...4 वर्ष पहले
-
कांच के टुकड़े - सुनो मेरे पास कुछ कांच के टुकड़े हैं पर उनमें प्रतिबिंब नहीं दिखता पर कभी फीका महसूस हो तो उन्हें धूप में रंग देती हूं चमक तीक्ष्ण हो जाते तो दुबारा ...4 वर्ष पहले
-
-
बचपन की यादें - कल अपने भाई के मुख से कुछ पुरानी बातों कुछ पुरानी यादों को सुनकर मुझे बचपन की गालियाँ याद आ गयीं। जिनमें मेरे बचपन का लगभग हर इतवार बीता करता था। कितनी...4 वर्ष पहले
-
मॉर्निंग वॉक- एक सुरक्षित भविष्य - जीवन में चलते चलते कभी कुछ दिखाई दे जाता है, जो अचानक दिमाग में एक बल्ब जला देता है , एक विचार कौंधता है, जो मन में कुनमुनाता रहता है, जब तक उसे अभिव्यक...5 वर्ष पहले
-
2019 का वार्षिक अवलोकन (सत्ताईसवां) - डॉ. मोनिका शर्मा का ब्लॉग Search Results Web results परिसंवाद *आपसी रंजिशों से उपजी अमानवीयता चिंतनीय* अमानवीय सोच और क्रूरता की कोई हद नहीं बची ह...5 वर्ष पहले
-
जियो सेट टॉप बॉक्स - महा बकवास - जियो फ़ाइबर सेवा धुंआधार है, और जब से इसे लगवाया है, लाइफ़ है झिंगालाला. आज तक कभी ब्रेकडाउन नहीं हुआ, बंद नहीं हुआ और स्पीड भी चकाचक. ऊपर से लंबे समय से...5 वर्ष पहले
-
परमेश्वर - प्रार्थना के दौरान वह मुझसे मिला उसे मुझसे प्रेम हुआ उसकी मैली कमीज के दो बटन टूटे थे टिका दिया उसने अपना सर मेरे कंधे पर वह युद्ध में हारा सैनिक था शायद!...5 वर्ष पहले
-
Aakhir kab ? आखिर कब ? - * आखिर कब ? आखिर क्यों आखिर कबतक यूँ बेआबरू होती रहेंगी बेटीयाँ आखिर कबतक हवाला देंगे हम उनके पहनावे का उनकी आजादी का उनकी नासमझी और समझदारी का क्यों ...5 वर्ष पहले
-
तुम्हारा स्वागत है - 1 तुम कहती हो " जीना है मुझे " मैं कहती हूँ ………… क्यों ? आखिर क्यों आना चाहती हो दुनिया में ? क्या मिलेगा तुम्हे जीकर ? बचपन से ही बेटी होने के दंश ...5 वर्ष पहले
-
ना काहू से दोस्ती .... - *पुलिस और वकील एक ही परिवार के दो सदस्य से होते हैं, दोनों के लक्ष समाज को क़ानून सम्मत नियंत्रित करने के होते हैं, पर दिल्ली में जो हुआ या हो रहा है उस...5 वर्ष पहले
-
Kritidev to Unicode Converter - [image: Real Time Font Converter] DL-Manel-bold. (ã t,a udfk,a fnda,aâ) Unicode (යුනිකෝඩ්) ------------------------------ © 2011 Language Technology R...5 वर्ष पहले
-
जल्दी आना ओ चाँद गगन के ..... - *करवा चौथ* *मैं यह व्रत करती हूँ* * अपनी ख़ुशी से बिना किसी पूर्वाग्रह के करती हूँ अपनी इच्छा से अन्न जल त्याग क्योंकि मेरे लिए यह रिश्ता .... इनसे भी ज़...5 वर्ष पहले
-
इंतज़ार और दूध -जलेबी... - वोआते थे हर साल। किसी न किसी बहाने कुछ फरमाइश करते थे। कभी खाने की कोई खास चीज, कभी कुछ और। मैं सुबह उठकर बहन को फ़ोन पे अपना वह सपना बताती, यह सोचकर कि ब...5 वर्ष पहले
-
राजू उठ ... चल दौड़ लगाने चल - राजू उठ भोर हुई चल दौड़ लगाने चल पानी गरम कर दिया है दूध गरम हो रहा है राजू उठ भोर हुई चल दौड़ लगाने चल दूर नहीं अब मंजिल पास खड़े हैं सपने इक दौड़ लगा कर जीत...5 वर्ष पहले
-
काया - काया महकाई सतत, लेकिन हृदय मलीन। चहकाई वाणी विकट, प्राणी बुद्धिविहीन। प्राणी बुद्धिविहीन, भरी है हीन भावना। खिसकी जाय जमीन, न करता किन्तु सामना। पाकर उच्चस्...5 वर्ष पहले
-
-
कविता और कुछ नहीं... - कविताएं और कुछ नहीं आँसू हैं लिखे हुए.... खुशी की आँच कि दुखों के ताप के अतिरेक से पोषित लयबद्ध हुए... #कविताक्याहै5 वर्ष पहले
-
cara mengobati herpes atau dompo - *cara mengobati herpes atau dompo* - Kita harus mengetahui apa Gejala Penyakit Herpes Dan Pengobatannya, agar ketika kita terjangkiti penyakit herpes, kit...5 वर्ष पहले
-
तुमसे मिलने के बाद.......अज्ञात - तुम्हे जाने तो नही देना चाहती थी .. तुमसे मिलने के बाद पर समय को किसने थामा है आज तक हर कदम तुम्हारे साथ ही रखा था ,ज़मीं पर बहुत दूर चलने के लिए पर रस्ते ...5 वर्ष पहले
-
अरे अरे अरे - आ गईं तुम आना ही था तुम्हे देहरी पर कटोरी उलटी रख कर माँ ने कहा था, आती ही होगी वह देखना पहुँच जायेगी। वह भीगी हुई चने की दाल और हरी मिर्च जो तोते के लिये...5 वर्ष पहले
-
यह विदाई है या स्वागत...? - एक और नया साल...उफ़्फ़ ! इस कमबख़्त वक्त को भी जाने कैसी तो जल्दी मची रहती है | अभी-अभी तो यहीं था खड़ा ये दो हज़ार अठारह अपने पूरे विराट स्वरूप में...यहीं पह...6 वर्ष पहले
-
मन के अंदर चल रहा निरंतर संघर्ष कठिन यह मानव के ... - इच्छाओं के चक्रवात से निरंतर जूझ रहा यह मानव मन उड़ जाता है अशक्त आत्मबलरहित तिनके के माफिक। इधर उधर बेचैन कहीं भी, बिना छोर और बिना ठिकाना दरबदर भटकता व्...6 वर्ष पहले
-
BIJASAN DEVI - विंध्याचल पर्वत पर विराजी हैं यह देवी, सबके लिए करती हैं न्याय - [image: Navratri 2018: विंध्याचल पर्वत पर विराजी हैं यह देवी, सबके लिए करती हैं न्याय] *मध्यप्रदेश बिजासन देवी धाम को आज कौन नहीं जानता। कई लोगों की कुलदेव...6 वर्ष पहले
-
पापा तुम क्यों चले गए ? - पापा ……………………………….. तुम्हारी साँसों में धडकन सी थी मैं , जीवन की गहराई में बचपन सी थी मैं । तुम्हारे हर शब्द का अर्थ मैं , तुम्हारे बिना व्यर्थ मैं , ...6 वर्ष पहले
-
कविता- " इक लड़की" 8 मार्च- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर - *इक लड़की* *मुस्कराहट, * *उसकी आँखों से उतर;* *ओठों को दस्तक देती;* *कानों तक फ़ैल गई थी.* *जो* *उसकी सच्चाई की जीत थी. * *और * *उसकी उपलब्धि से आई थी.* *वो ...6 वर्ष पहले
-
मेरी कविता - जीवन - *जीवन* *चित्र - google.com* *जीवन* * तुम हो एक अबूझ पहेली, न जाने फिर भी क्यों लगता है तुम्हे बूझ ही लूंगी. पर जितना तुम्हे हल करने की कोशिश कर...7 वर्ष पहले
-
“ रे मन ” - *रूह की मृगतृष्णा में* *सन्यासी सा महकता है मन* *देह की आतुरता में* *बिना वजह भटकता है मन* *प्रेम के दो सोपानों में* *युग के सांस लेता है मन* *जीवन के ...7 वर्ष पहले
-
-
मन का टुकड़ा मनका बनाकर - मन का टुकड़ा मनका बनाकर मनबसिया का ध्यान करूं | प्रेम की राह बहुत ही जटिल है ; चल- चल कर आसान करूं | (१५ जुलाई २०१७, रात्रि )7 वर्ष पहले
-
ये कैसा संस्कार जो प्यार से तार-तार हो जाता है? - जात-पात न धर्म देखा, बस देखा इंसान औ कर बैठी प्यारछुप के आँहे भर न सकी, खुले आम कर लिया स्वीकारहाय! कितना जघन्य अपराध! माँ-बाप पर हुआ वज्रपातनाम डुबो दिया,...7 वर्ष पहले
-
हिन्दी ब्लॉगिंग : आह और वाह!!!...3 - गत अंक से आगे.....हिन्दी ब्लॉगिंग का प्रारम्भिक दौर बहुत ही रचनात्मक था. इस दौर में जो भी ब्लॉगर ब्लॉगिंग के क्षेत्र में सक्रिय थे, वह इस माध्यम के प्रति ...7 वर्ष पहले
-
प्रेम करती हूँ तुमसे - यमुना किनारे उस रात मेरे हाँथ की लकीरों में एक स्वप्न दबाया था ना उस क्षण की मधुस्मृतियाँ तन को गुदगुदाती है उस मनभावन रुत में धडकनों का मृदंग बज उ...7 वर्ष पहले
-
गाँधी जी...... - गाँधी जी...... --------- चौराहॆ पर खड़ी,गाँधी जी की प्रतिमा सॆ,हमनें प्रश्न किया, बापू जी दॆश कॊ आज़ादी दिला कर, आपनॆं क्या पा लिया, बापू आपके सारॆ कॆ सारॆ सि...7 वर्ष पहले
-
Demonetization and Mobile Banking - *स्मार्टफोन के बिना भी मोबाईल बैंकिंग संभव...* प्रधानमंत्री मोदीजी ने अपनी मन की बात में युवाओं से आग्रह किया है कि हमें कैशलेस सोसायटी की तरफ बढ़ना है औ...8 वर्ष पहले
-
आप अदालत हैं - अपना मानते हैं जिन्हें वही नहीं देते अपनत्व। पक्षपात करते हैं सदैव वे पुत्री के आँसुओं का स्वर सुन। नहीं जाना उन्होंने मेरी कटुता को न ही मेरी दृष्टि में बन...8 वर्ष पहले
-
फिर अंधेरों से क्यों डरें! - प्रदीप है नित कर्म पथ पर फिर अंधेरों से क्यों डरें! हम हैं जिसने अंधेरे का काफिला रोका सदा, राह चलते आपदा का जलजला रोका सदा, जब जुगत करते रहे हम दीप-बा...8 वर्ष पहले
-
-
चलो नया एक रंग लगाएँ - लाल गुलाबी नीले पीले, रंगों से तो खेल चुके हैं, इस होली नव पुष्प खिलाएँ, चलो नया एक रंग लगाएँ । मानवता की छाप हो जिसमे, स्नेह सरस से सना हो जो, ऐसी होली खू...8 वर्ष पहले
-
-
स्वागतम् - मित्रों, सभी को अभिवादन !! बहुत दिनों के बाद कोई पोस्ट लिख रहा हूँ | इतने दिनों ब्लॉगिंग से बिलकुल दूर ही रहा | बहुत से मित्रों ने इस बीच कई ब्लॉग के लि...8 वर्ष पहले
-
विचार शून्यता। - विचार , कई बार बहते है हवा से, छलकते है पानियों से, झरते है पत्तियों से और कई बार उठते है गुबार से घुटते है, उमड़ते है, लीन हो जाते है शून्य में फिर यह...9 वर्ष पहले
-
बीमा सुरक्षा और सुनिश्चित धन वापसी - कविता - अविनाश वाचस्पति - ##AssuredIncomePlanPolicy निश्चित धन वापसी और बीमा सुविधा संदेह नहीं यह पक्का बनाती है विश्वास विश्वास में ही मौजूद रहती है यह आस धन भी मिलेगा और निडर ...9 वर्ष पहले
-
एक रामलीला यह भी - एक रामलीला यह भी यूं तो होता है रामलीला का मंचन वर्ष में एक बार पर मेरे शरीर के अंग अंग करते हैं राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान के पात्र जीवन्त. देह की सक...9 वर्ष पहले
-
-
-
-
मन गुरु में ऐसा रमा, हरि की रही न चाह - ॐ श्री गुरुवे नमः *ॐ ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम् ।* * द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् ॥ एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षीभूतम् । ...9 वर्ष पहले
-
गुरु पूर्णिमा - आज गुरु पूर्णिमा है ! अपने गुरु के प्रति आभार प्रकट करने का दिवस ,गुरु शब्द का अर्थ होता है अँधेरे से प्रकाश की और ले जाने वाला ,अज्ञान ज्ञान की और ले...9 वर्ष पहले
-
-
-
-
हमारा सामाजिक परिवेश और हिंदी ब्लॉग - वर्तमान नगरीय समाज बड़ी तेजी से बदल रहा है। इस परिवेश में सामाजिक संबंध सिकुड़ते जा रहे हैं । सामाजिक सरोकार से तो जैसे नाता ही खत्म हो गया है। प्रत्येक...9 वर्ष पहले
-
क्रिकेट विश्व कप 2015 विजय गीत - धोनी की सेना निकली दोहराने फिर इतिहास अब तो अपनी पूरी होगी विश्व विजय की आस | शास्त्री की रणनीति भी है और विराट का शौर्य , धोनी की तो धूम मची है विश्व ...9 वर्ष पहले
-
'मेरा मन उचट गया है त्यौहारों से' - मेरा मन उचट गया है त्यौहारों से… मेरे कान फ़ट चुके हैं सवेरे से लाउड वाहियत गाने सुनकर और फ़ुर्र हो चुका है गर्व। ये कौनसा रंग है मेरे देश का? बिल्कुल ऐसा ...9 वर्ष पहले
-
-
कथा सुनो शबाब की - *कथा सुनो शबाब की* *सवाल की जवाब की* *कली खिली गुलाब **की* *बड़े हसीन ख़ाब की* * नया नया विहान था* * घ...10 वर्ष पहले
-
कम्बल और भोजन वितरण के साथ "अपंगता दिवस" संपन्न हुआ - *नई दिल्ली: विगत 3 दिसम्बर 2014 दिन-बधुवार को सुबह 10 बजे, स्थान-कोढ़ियों की झुग्गी बस्ती,पीरागढ़ी, दिल्ली में गुरु शुक्ल जैन चैरिटेबल ट्रस्ट (पंजीकृत) दिल...10 वर्ष पहले
-
जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (21) चलो-चलो यह देश बचायें ! (‘शंख-नाद’ से) - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) चुपके-खुल कर अमन जलाते | खिलता महका चमन जलाते || अशान्ति की जलती ज्वाला से- सुखद शान्ति का भवन जलाते || हिंसा के दुर्दम प...10 वर्ष पहले
-
झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (14) आधा संसार (नारी उत्पीडन के कारण) (क) वासाना-कारा (vi) कुबेर-सुत | - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) दरिद्रता-दुःख-दीनता, निर्धनता की मार ! कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !! पुत्र कुबेरों के कई, कारूँ के कुछ लाल ! ज...10 वर्ष पहले
-
-
आहटें ..... - *आज भोर * *कुछ ज्यादा ही अलमस्त थी ,* *पूरब से उस लाल माणिक का * *धीरे धीरे निकलना था * *या * *तुम्हारी आहटें थी ,* *कह नहीं सकती -* *दोनों ही तो एक से...10 वर्ष पहले
-
झाँसी की रानी पर आधारित "आल्हा छंद" - झाँसी की रानी पर आधारित 'अखंड भारत' पत्रिका के वर्तमान अंक में सम्मिलित मेरी एक रचना. हार्दिक आभार भाई अरविन्द योगी एवं सामोद भाई जी का. सन पैंतीस नवंबर उ...10 वर्ष पहले
-
हम,तुम और गुलाब - आज फिर तुम्हारी पुरानी स्मृतियाँ झंकृत हो गई और इस बार कारण बना वह गुलाब का फूल जिसे मैंने दवा कर किताबों के दो पन्नों के भूल गया गया था और उसकी हर पंखुड़िय...10 वर्ष पहले
-
-
गाँव का दर्द - गांव हुए हैं अब खंढहर से, लगते है भूल-भुलैया से। किसको अपना दर्द सुनाएँ, प्यासे मोर पप्या ? आंखो की नज़रों की सीमा तक, शहरों का ही मायाजाल है, न कहीं खे...10 वर्ष पहले
-
-
रंग रंगीली होली आई. - [image: Friends18.com Orkut Scraps] रंग रंगीली होली आई.. रंग - रंगीली होली आई मस्तानों के दिल में छाई जब माह फागुन का आता हर घर में खुशियाली...10 वर्ष पहले
-
-
भ्रष्ट आचार - स्वतंत्र भारत की नीव में उस समय के नेताओं ने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के रख दिये थे भ्रष्ट आचार फिर देश से कैसे खत्म हो भ्रष्टाचार ?11 वर्ष पहले
-
अन्त्याक्षरी - कभी सोचा नहीं था कि इसके बारे में कुछ लिखूँगी: बचपन में सबसे आमतौर पर खेला जाने वाला खेल जब लोग बहुत हों और उत्पात मचाना गैर मुनासिब। शायद यही वजह है कि इ...11 वर्ष पहले
-
संघर्ष विराम का उल्लंघन - जम्मू,संघर्ष विराम का उल्लंघनकरते हुए पाकिस्तानी सेना ने रविवार को फिर से भारतीय सीमा चौकियों पर फायरिंग की। इस बार पाकिस्तान के निशाने पर जम्मू जिले के का...11 वर्ष पहले
-
प्रतिभा बनाम शोहरत - “ हम होंगें कामयाब,हम होंगें कामयाब,एक दिन ......माँ द्वारा गाये जा रहे इस मधुर गीत से मेरे अन्तःकरण में नए उत्साह का स्पंदन हो रहा था .माँ मेरे माथे को ...11 वर्ष पहले
-
रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 7 ........दिनकर - 'हाय, कर्ण, तू क्यों जन्मा था? जन्मा तो क्यों वीर हुआ? कवच और कुण्डल-भूषित भी तेरा अधम शरीर हुआ? धँस जाये वह देश अतल में, गुण की जहाँ नहीं पहचान? जाति-गोत्...11 वर्ष पहले
-
आवरण - जानती हूँ तुम्हारा दर्प तुम्हारे भीतर छुपा है. उस पर मैं परत-दर-परत चढाती रही हूँ प्रेम के आवरण जिन्हें ओढकर तुम प्रेम से भरे सभ्य और सौम्य हो जाते हो जब ...11 वर्ष पहले
-
OBO -छंद ज्ञान / गजल ज्ञान - उर्दू से हिन्दी का शब्दकोश *http://shabdvyuh.com/* ग़ज़ल शब्दावली (उदाहरण सहित) - 2 गीतिका छंद वीर छंद या आल्हा छंद 'मत्त सवैया' या 'राधेश्यामी छंद' :एक ...12 वर्ष पहले
-
इंतज़ार .. - सुरसा की बहन है इंतज़ार ... यह अनंत तक जाने वाली रेखा जैसी है जवानी जैसी ख्त्म होने वाली नहीं .. कहते हैं .. इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती हैं ख़त्म भ...12 वर्ष पहले
-
यार की आँखों में....... - मैं उन्हें चाँद दिखाता हूँ उन्हे दिखाई नही देता। मैं उन्हें तारें दिखाता हूँ उन्हें तारा नही दिखता। या खुदा! कहीं मेरे यार की आँखों में मोतियाबिंद...12 वर्ष पहले
-
आज का चिंतन - अक्सर मैं ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते हैं, के साथ हंसी-मजाक करता हूँ. जब तक एक इंसान अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रख सकता है तभी तक जीवन उस अंधकारमय...12 वर्ष पहले
-
-
Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar - Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar is a Charitable Eye Hospital which today sets an example of a selfless service to the...12 वर्ष पहले
-
क्राँति का आवाहन - न लिखो कामिनी कवितायें, न प्रेयसि का श्रृंगार मित्र। कुछ दिन तो प्यार यार भूलो, अब लिखो देश से प्यार मित्र। ……… अब बातें हो तूफानों की, उम्मीद करें परिवर्तन ...12 वर्ष पहले
-
कल रात तुम्हारी याद - कल रात तुम्हारी याद को हम चाह के भी सुला न पाये रात के पहले पहर ही सुधि तुम्हारी घिर कर आई अहसास मुझको कुछ यूँ हुआ पास जैसे तुम हो खड़े व्याकुल हुआ कुछ मन...12 वर्ष पहले
-
HAPPY NEW YEAR 2012 - *2012* *नव वर्ष की शुभकामना सहित:-* *हर एक की जिंदगी में बहुत उतार चढाव होता रहता है।* *पर हमारा यही उतार चढाव हमें नया मार्ग दिखलाता है।* *हर जोखिम से ...13 वर्ष पहले
-
"भइया अपने गाँव में" -- (बुन्देली काव्य-संग्रह) -- पं० बाबूलाल द्विवेदी - We're sorry, your browser doesn't support IFrames. You can still <a href="http://free.yudu.com/item/details/438003/-----------------------------------------...13 वर्ष पहले
-
अब बक्श दे मैं मर मुकी - चरागों से जली शाम ऐ , मुझे न जला तू और भी, मेरा घर जला जला सा है,मेरा तन बदन न जला अभी, मैंने संजो रखे हैं बहुत से राख के ढेर दिल मैं कहीं, सुलग सुलग के आय...13 वर्ष पहले
-
अपनी भाषाएँ - *जैसे लोग नहाते समय आमतौर पर कपड़े उतार देते हैं वैसे ही गुस्से में लोग अपने विवेक और तर्क बुद्धि को किनारे कर देते हैं। कुछ लोगों का तो गुस्सा ही तर्क...13 वर्ष पहले
-
-
दरिन्दे - बारूद की गन्ध फैली है, माहौल है धुआँ-धुआँ कपड़ों के चीथड़े, माँस के लोथड़े फैले हैं यहाँ-वहाँ। ये छोटा चप्पल किसी मासूम का पड़ा है यहाँ ढूँढो शयद वह ज़िन...14 वर्ष पहले
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-