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शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

शरारत

इस तरह क्यों देखती हो ,शरारत से नज़र गाड़े
बड़ी लापरवाही से ,थोड़ा बदन ,अपना उघाड़े
ये तुम्हारी मुस्कराहट ,प्यार की दे रही आहट
हो रही मेरे हृदय में ,एक अजब सी सुगबुगाहट
समझ में आता नहीं ये ,क्या इशारा कह रहा है
क्या तुम्हारी बंदिशों का ,किला थोड़ा ढह रहा है
क्या ये कहना चाहती हो ,तुम्हे मुझसे महोब्बत है
या कि फिर ये कोई सोची और समझी शरारत है
छेड़ना मासूम भोले नवेलों को और सताना
क्या तुम्हारा शगल है ये ,मज़ा तंग करके उठाना
क्या यूं ही बस मन किया है ,करने हरकत चुलबुली कुछ
या की फिर मन में तुम्हारे ,हो रही है  खलबली कुछ
या गुलाबी देख मौसम ,ना रहा मन पर नियंत्रण
इसलिए तुम देख ऐसे , दे रही मुझको  निमंत्रण
ऐसा लगता है तुम्हारे ,इरादे कुछ नेक ना है
कितना और आगे  बढ़ोगी ,अब यही बस देखना है
सच बताओ बात क्या है ,चल रहा है क्या हृदय में
क्योंकि नन्हा दिल हमारा ,बड़ा आशंकित है भय में
लगा उठने ,प्यार का है ज्वार मन के समंदर में
हक़ीक़त क्या ,जानने को ,हो रहा हूँ ,बेसबर मैं
अगर ये सब शरारत है ,प्रीत यदि सच्ची नहीं है
ऐसे तड़फाना किसी को ,बात ये  अच्छी नहीं है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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