एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

बुधवार, 13 जून 2018

तुम पीठ खुजाओ हमारी 

हम संग है एक दूजे के ,तो फिर कैसी लाचारी 
मैं पीठ खुजाऊँ तुम्हारी,तुम पीठ खुजाओ हमारी 
इस बढ़ती हुई उमर में ,जो आई शिथिलता तन में 
 बढ़ गयी प्रगाढ़ता उतनी  ,हम दोनों के  बंधन में 
हम रोज घूमने जाते ,हाथों में  हाथ  पकड़ कर 
मिलती जब धुंधली नज़रें ,बहता है प्यार उमड़ कर 
रह कर के व्यस्त हमेशा 
हम रहे कमाते  पैसा 
बस यूं ही उहापोह में  ,ये उमर बिता दी सारी 
मैं पीठ खुजाऊँ तुम्हारी,तुम पीठ खुजाओ हमारी 
है दर्द मेरे घुटनो में ,तुम इन पर बाम लगा दो 
नस चढ़ी पिंडलियों की है ,तुम थोड़ा सा सहला दो 
हमने झुकना ना सीखा ,जीवन भर  रहे तने हम 
अब रहा नहीं वो दमखम ,आया झुकने का मौसम 
नाखून बढे  पैरों के 
काटे हम एक दूजे के 
काम एक दूजे के आएं ,यूं हम तुम बारी बारी 
मैं पीठ खुजाऊँ तुम्हारी ,तुम पीठ खुजाओ हमारी 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-