एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

बुधवार, 2 मई 2018

मेरी राधायें 

मेरे जीवन की कितनी ही राधायें 
रह रह कर के याद मुझे वो अक्सर आये 
मेरी पहली राधा मेरी पड़ोसिन थी 
जो नाजुक सी प्यारी,सुन्दर,कमसिन थी 
उसकी सभी अदाये होती दिलकश थी 
हाँ,वो ही मेरा सबसे पहला 'क्रश 'थी 
जिसे देख कर मुझको कुछ कुछ होता था 
मैं उसकी उल्फत के सपन संजोता था 
वो भी तिरछी नज़र डाल ,मुस्काती थी
 मेरे दिल पर छुरियां कई चलाती थी 
कभी पहल  मैं करता,नज़र झुकाती वो 
कभी पहल वो करती ,पर शर्माती वो 
चहल पहल होती थी लेकिन दूरी से 
मिलन हमारा हो न सका ,मजबूरी से 
उसकी चाहत में थे मेरे सपन रंगीले 
पर कुछ दिन में हाथ हो गए उसके पीले 
उस दिन पहली बार दिल मेरा टूटा था 
चखा प्यार का स्वाद ,किसी ने लूटा था
ये मन  मुश्किल  से समझा था ,समझाये 
मेरे जीवन की कितनी ही राधाये 
जो रह रह कर याद मुझे अक्सर आये 
दूजी राधा , सिस्टर जी  की सहेली थी 
उसे समझना मुश्किल ,कठिन पहेली थी
 यूं तो मुझको देख प्यार से मुस्काती 
पास जाओ तो बड़ा भाव थी वो खाती 
चंचल बड़ी ,चपल थी और सुहानी थी 
मैंने था तय किया कि वो पट जानी थी 
वेलेंटाइन डे पर उसे गुलाब दिया 
मंहगी मंहगी गिफ्टों से था लाद दिया 
इम्पोर्टेड चॉकलेट उसे थी  खिलवाई 
पर  वो लड़की ,मेरे काबू  ना आयी 
इसके पहले कि मैं आगे बढ़ पाता 
उसकी ऊँगली पकड़ ,कलाई पकड़ पाता 
मेरी प्यारी , सुंदर सी वो वेलेंटाइन 
हुई किसी लाला के घर की थी  लालाइन
और बह गए आंसूं में थे मेरे अरमां 
सुनते चार पांच बच्चों की है अब वो माँ  
सोचूं उसके बारे में ,तो मन तड़फाये 
मेरे जीवन की कितनी ही राधायें 
रह रह कर वो याद मुझे अक्सर आये 
कितनी राधायें ,यूं आयी जीवन में 
मीठी खट्टी यादें घोल गयी मन में 
था कोई का करना मस्ती मौज इरादा 
करने टाइम पास बनी थी कोई राधा 
कई बार हम खुद को समझे सैंया थे 
उन राधाओं के कितने ही कन्हैया थे 
लेकिन जो भी मिली वो सभी  राधाये 
जिनने पार करी  जीवन की बाधाएं 
कोई बन चुकी अब कोई की रुक्मण है 
कोई रम गयी,पूरी आज गृहस्थन है 
कोई  दुखी है अब तक अपने कंवारेपन में  
कोई रह रही  'लिविंग इन के  रिलेशन' में 
हमने अब राधा का चक्कर छोड़ दिया है 
फेरे ले ,रुक्मण संग ,मन को जोड़ लिया है 
अब समझे ,राधायें तो है आती,जाती 
पर रुक्मण ही जीवन भर का साथ निभाती 
बहुत सुख मिला ,उसको अपने हृदय बसाये 
फिर भी जीवन में आयी कितनी राधाये 
रह रह कर जो ,याद मुझे है अक्सर आये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-