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बुधवार, 25 अप्रैल 2018

वो अब भी परी है 

मेरी बीबी अब भी ,जवानी भरी है 
सत्रह बरस की ,लगे छोकरी  है 
उम्र का नहीं कोई उसमे असर है ,
निगाहों में मेरी वो अब भी परी है
 
भले जाल जुल्फों का ,छिछला हुआ है 
भले पेट भी थोड़ा ,निकला हुआ है 
हुई थोड़ी मोटी  ,वजन भी बढ़ा है 
भले आँख पर उनकी ,चश्मा चढ़ा है
मगर अब भी लगती है आँखें नशीली 
रसीली थी  पहले ,है अब भी रसीली 
वही नाज़ नखरे है वही है अदाए 
सताती थी पहले भी,अब भी सताये 
नहीं आया पतझड़,वो अब भी हरी है 
निगाहों में मेरी ,वो अब भी परी  है
 
भले अब रही ना वो दुल्हन नयी है 
दिनोदिन मगर वो निखरती गयी है 
भले तन पे चरबी ,जरा चढ़ गयी है 
मुझसे महोब्बत ,मगर बढ़ गयी है , 
बड़ी नाज़नीं ,खूबसूरत ,हसीं थी 
ख्यालों में मेरे जो रहती  बसी थी 
मगर रंग लाया है अब प्यार मेरा 
रखने लगी है वो अब ख्याल मेरा 
कसौटी पे मेरी ,वो उतरी  खरी है 
निगाहों में मेरी ,वो अब भी परी है

महकती हुई अब वो चंदन बनी है 
जवानी की उल्फत,समर्पण बनी है 
संग संग उमर के मोहब्बत है बढ़ती 
जो देखी है उसकी ,नज़र में उमड़ती 
 हम एक है अब ,नहीं दो जने है 
हम एक दूजे पर  ,आश्रित बने है   
जवानी का अब ना,रहा वो जूनून है 
देता मगर साथ उसका सुकून है 
मैंने सच्चे दिल से ,मोहब्बत करी है 
निगाहो में अब भी वो लगती परी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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