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गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

आशिकी और हक़ीक़त 

आशिक़ी के कई किस्से ,हमने लोगों के सुने है 
इसलिए ही इस कदर से ,हम जले है और भुने है 
जिससे पूछो,कहता उसने ,मौज मारी जवानी में 
किस तरह से मोड़ कितने ,आये उनकी कहानी में 
लड़कियां कितनी पटाई ,कितनो के संग आशिक़ी की 
कितनो ने दिल तोडा उनका,कितनो ने नाराजगी की 
कितनो के संग मस्तियाँ ली,कितनो के संग फायर,घूमे 
गले कितनो से लिपट कर ,कितनो के  है  गाल चूमे 
सुनता हूँ जब भी कभी मैं ,दोस्तों की  दास्ताने 
मेरा दिल धिक्कारता है और देता मुझे ताने 
अरे बौड़म ,क्यों न तूने ,जवानी का  मज़ा लूटा 
प्यार का गुब्बार कोई ,क्यों न तेरे दिल में फूटा 
पढाई में व्यस्त रह कर ,नहीं देखे कोई भी रंग  
काट दी तूने जवानी ,किताबों और कापियों संग 
करता हूँ अफ़सोस मैं भी ,अपने दिल को क्या दूँ उत्तर 
मन में पश्चाताप रहता ,भूल मैंने  की भयंकर 
यहाँ तक कि शादी भी की ,तो भी लड़की नहीं देखी 
न तो उसके साथ घूमा ,और ना ही आशिक़ी  की 
बाँध दी जो भी पिता ने गले ,लेकर सात फेरे 
मेरी मन मरजी मुताबिक़ ,चल रही है साथ मेरे 
सीधी सादी ,भोली भाली ,ना कोई शिकवा शिकायत 
उसको मेरी,मुझको उसकी ,पड़ गयी है अब तो आदत 
वो गृहस्थी निभाती है ,साथ मै उसका निभाता 
एक दूजे के बिना अब ,नहीं हमसे रहा जाता 
वो मेरे मन भा रही है ,उसके मन मै भा रहा हूँ 
बुढ़ापे में ,साथ उसके ,मैं बड़ा सुख पा रहा हूँ 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

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