परिधान से फैशन तक
एक वस्त्र से ढक खुद को ,निज लाज बचती थी नारी
ढक लेता था काया सारी ,वह वस्त्र कहाता था साड़ी
कालांतर में होकर विभक्त ,वह वस्त्र एक ना रह पाया
जो बना पयोधर का रक्षक,वह भाग कंचुकी कहलाया
और दूजा भाग ढका जिसने ,लेकर नितम्ब से एड़ी तक
उसने ना जाने कितने ही है रूप बदल डाले अब तक
कोई उसको कहता लहंगा ,वह कभी घाघरा बन डोले
कहता है पेटीकोट कोई ,सलवार कोई उसको बोले
वो सुकड़ा ,चूड़ी दार हुआ ,ढीला तो बना शरारा वो
कुछ ऊंचा ,तो स्कर्ट बना ,'प्लाज़ो'बन लगता प्यारा वो
कुछ बंधा रेशमी नाड़े से ,कुछ कसा इलास्टिक बंधन में
बन 'हॉट पेन्ट 'स्कर्ट मिनी',थी आग लगा दी फैशन में
ऊपर वाला वह अधोवस्त्र ,कंचुकी से 'चोली'बन बैठा
फिर टॉप बना ,कुर्ती नीचे ,'ब्रा'बन कर इठलाया,ऐंठा
उस एक वस्त्र ने साड़ी के,कट ,सिल कर इतने रूप धरे
धारण करके ये परिधान ,नारी का रूप नित्य निखरे
पहले तन को ढकता था अब ,ढकता कम ,दिखलाता ज्यादा
फैशन मारी अब रोज रोज ,है एक्सपोज को आमादा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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