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शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018

शादी के बाद -बदलते परिदृश्य 

पहले वर्ष 

पति जब कहता 
सुनती हो जी ,प्यास लगी है 
पत्नी झट ले आयी पानी
 पति ने बोला मेरी रानी 
पानी तो था एक बहाना 
तुम्हे था अपने  पास बुलाना 
अब तुम आ गयी हो पास 
तुम्ही बुझादो ,मेरी प्यास 

दूसरे वर्ष 

पति जब कहता 
सुनती हो जी प्यास लगी है 
पत्नी कहती ,रुकिए थोड़ा लाती हूँ  जी 
ठंडा पानी ,या फिर सादा पिओगे जी 
पति कहता कैसा भी ला दो ,
हाथ तुम्हारा जब लगता है 
तुम्हारे हाथों से लाया ,
पानी भी अमृत लगता है 

पांच वर्ष के बाद 

पति जब कहता 
सुनती हो जी ,प्यास लगी है 
पत्नी कहती, अभी व्यस्त हूँ 
आज सुबह से ,लगी काम में ,
हुई पस्त हूँ 
खुद ही जाकर 
फ्रिज से लेकर 
पानी पीकर ,प्यास बुझालो 
हाथ पैर भी जरा हिला लो 
कोई बहाना ,नहीं बनाना 
और सुनो ,एक गिलास पानी,
मुझको भी देकर के जाना 

दस वर्ष बाद 

पति जब कहता ,
सुनती हो जी ,प्यास लगी है 
पत्नी कहती ,
अगर प्यास लगी है 
तो मै क्या करू
घर भर के सारे काम के लिए 
मै ही क्यों खटू ,मरू 
तुम इतने निट्ठल्ले हो गए हो 
रत्ती भर काम नहीं किया जाता 
अपने हाथ से पानी भी 
भर कर नहीं पिया जाता 
जरा हाथ पाँव हिलाओ ,
और आलस छोड़ कर जी लो 
खुद उठ कर जाओ 
और पानी पी लो 
 
पंद्रह वर्ष बाद 

पति कहता है 
सुनती हो जी,,प्यास लगी है 
पत्नी कहती ,हाँ सुन रही हूँ 
कोई बहरी नहीं हूँ 
तुम्हारी रोज रोज की फरमाइशें 
सुनते सुनते गयी हूँ थक 
इसलिए तुम्हारे सिरहाने ,
पानी से भरा जग 
दिया है रख 
जब प्यास लगे,पी लिया करो 
यूं मुझे बार बार आवाज देकर 
तंग मत किया करो 

पचीस वर्ष बाद 

पति कहता है ,
सुनती हो जी,प्यास लगी है ,
पत्नी कहती ,
आती हूँ जी 
कल से आपको खांसी हो रही है 
पानी को थोड़ा कुनकुना करके 
लाती हूँ जी 

पचास वर्ष बाद 

पति कहता है 
सुनती हो जी ,प्यास लगी थी 
मैं खुद तो ,रसोई में जाकर ,
हूँ पी आया 
प्यास लगी होगी तुमको भी ,,
दर्द तुम्हारे घुटनो में है ,
इसीलिये तुम्हारे खातिर ,
एक गिलास भर कर ले आया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'  

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