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मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

हुस्न की मार से बचना 

नजाकत से,नफासत से ,अदाओं से करे घायल 
और उनकी मुस्कराहट भी ,बड़ी ही कातिलाना है 
बड़ी मासूम सी सूरत ,बड़ी चंचल  निगाहें है 
काम इन हुस्न वालों का,कयामत सब पे ढाना है 
जरूरी ये नहीं होता ,कि हर एक फूल कोमल हो,
टहनियों पर गुलाबों की ,लगा करते है कांटे भी 
हथेली फूल सी नाजुक,सम्भल कर इनको सहलाना ,
ख़फ़ा जो हो गए ,इनसे,लगा करते है चांटे  भी 
बड़ी ही खूबसूरत सी ,उँगलियाँ उनकी कोमल है ,
नजाकत देख कर इनकी ,आप क्या सोच सकते है 
सिरे पर उँगलियों के जो, दिए नाख़ून कुदरत ने,
कभी हथियार बन ये आपका मुंह नोच सकते है 
गुलाबी होठ उनके देख कर मत चूमने बढ़ना,
ये गुस्से में फड़क कर के ,तुम्हे है डाट भी सकते 
छिपे है दांत तीखे  इन गुलाबी पखुड़ियों पीछे ,
हिफ़ाजत अपनी करने को ,तुम्हे है काट भी सकते 
रंगे हो नेल पोलिश से  ,निखारे रूप नारी का ,
प्रेम में बावले होकर ,ये नख है  क्षत किया करते 
पराकाष्ठा हो गुस्से की ,तो ये हथियार बन जाते ,
बड़ी आसानी से दुश्मन ,को ये आहत किया करते 
ये कटते ,खून ना आता ,तभी  नाखून कहलाते,
बड़ी राहत ये देते है ,बदन को जब खुजाते  है 
हमारे जिस्म पर एक बाल है और एक नाखून है ,
कोई चाहे या ना चाहे,दिन ब दिन बढ़ते जाते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

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