भाव नहीं देती है
ऐसा है स्वभाव ,करती सबसे है मोलभाव ,
सब्जी हो या साड़ी सब ,सस्ती लेकर आती है
मन में है उसके न दुराव न छुपाव कहीं,
सज के संवर ,हाव भाव दिखलाती है
रीझा पति पास जाय ,भाव नहीं देती है ,
मन में लगाव पर बहुत भाव खाती है
रूप के गरूर में सरूर इतना आ जाता ,
पिया के जिया के भाव ,समझ नहीं पाती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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