अब तो खिचड़ी खानेवाली उमर आ गयी
आलस तन में बसा ,रहे ना अब फुर्तीले
खाना वर्जित हुए ,सभी पकवान रसीले
मीठा खाना मना,तले पर पाबंदी है
भूख न लगती,पाचनशक्ति भी मंदी है
खा दवाई की रोज गोलियां ,हम जीते है
चाट पकोड़ी मना ,चाय फीकी पीते है
दांत गिर गए ,चबा ठीक से ना पाते हम
पुच्ची भर में बदल गया हो जैसे चुंबन
यूं ही मन समझाने वाली उमर आ गयी
अब तो खिचड़ी खानेवाली उमर आ गयी
'आर्थराइटिस 'है घुटनो में रहती जकड़न
थोड़ी सी मेहनत से बढ़ती दिल की धड़कन
'डाइबिटीज 'के मारे सब अंग खफा हो गए
मिलन और अवगुंठन के दिन ,दफा हो गए
वो उस करवट हम इस करवट ,सो लेते है
आई लव यू आई लव यू ,कह खुश हो लेते है
कभी यहां पीड़ा है ,कभी वहां दुखता है
फिर भी दिल का दीवानापन ,कब रुकता है
अब तो बस ,सहलानेवाली ,उमर आ गयी
अब तो खिचड़ी खानेवाली ,उमर आगयी
कहने,सुनने की क्षमता भी क्षीण हो चली
अंत साफ़ दिखता पर आँखें धुंधली धुंधली
छूटी मौज मस्तियाँ ,मोह माया ना छूटी
देते रहते खुद को यूं ही तसल्ली ,झूठी
कोसों दूर बुढ़ापा ,हम अब भी जवान है
मन ही मन ,अंदर से रहते परेशान है
बात बात पर अब हमको गुस्सा आता है
बीती यादों में मन अक्सर खो जाता है
यूं ही मन बहलानेवाली उमर आ गयी
अब तो खिचड़ी खानेवाली ,उमर आ गयी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।