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शनिवार, 13 सितंबर 2014

बीत गए दिन

       बीत गए दिन

बीत गए दिन अवगुंठन के ,
         अब केवल सहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर ,
          अपना मन बहला लेते है
जो पकवान रोज खाते थे,
           कभी कभी ही चख पाते है
जोश जवानी का गायब है ,
           अब जल्दी ही थक जाते है
'आई लव यू 'उनको कह देते ,
           उनसे भी कहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर ,
          अपना मन बहला लेते है
कभी दर्द मेरा सर करता ,
            कभी पेट दुखता तुम्हारा
कभी थकावट, बने रुकावट,
            एक दूजे  से करें किनारा
कोई न कोई बहाना करके ,
             इच्छा को टहला देते  है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर,
            अपना मन बहला लेते  है
गया ज़माना रोज चाँद का ,
           जब दीदार हुआ करता  था
मौज ,मस्तियाँ होती हर दिन ,
          जब त्योंहार हुआ करता था
बीती यादों की गंगा में,
           बस खुद को  नहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर,
           अपना मन बहला लेते है
 शाश्वत सत्य बुढ़ापा लेकिन ,
             उमर बढ़ी और जोश घट गया      
एक दूजे की पीड़ा में ही ,
               हम दोनों का ध्यान  बंट  गया
 शारीरिक सुख ,गौण हो गया ,
              मन का सुख पहला  लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता  कर ,
              अपना मन बहला लेते  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू '       




  

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