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गुरुवार, 31 जुलाई 2014

समंदर

       समंदर

 समंदर ,समंदर,समंदर,समंदर
भला हो,बुरा हो,खरा हो या खोटा ,
समा जाता सब कुछ ही है इसके अंदर
समंदर,समंदर,समंदर,समंदर
उठा करते दिल में है लहरों के तूफां ,
मचलता है  चंदा को लख ,पागलों सा
उडा ताप सूरज का  देता है , पानी,
तो बनते है बादल,जनक बादलों का 
बढ़ता ही जाता है खारापन मन में,
पर कुछ ऐसा जादू है उसकी कशिश में
भरे मीठा जल ,दौड़ती सारी नदियां ,
इससे मिलन को, समाने को इसमें
सीपों में स्वाति की बूंदे ठहरती ,
समा कर के इसमें है ,मोती बनाती
इसे मथने से रत्न सोलह निकलते ,
अमृत कलश और लक्ष्मी भी आती
बड़ी व्हेल सुरसा सी,या छोटी मछली ,
सभी को सहारा ,मिले इसके अंदर
समंदर,समंदर ,समंदर ,समंदर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


क्या वो शख्स मैं ही हूँ?

         क्या वो शख्स मैं ही हूँ?  

मैं जब भी आइना देखता हूँ,
मुझे एक शख्स नज़र आता है
जिसका हुलिया,एकदम ,
मेरी तरह का ही दिखलाता है
पर कभी कभी ,ये लगता है,
मैं कोई अनजान , अजनबी हूँ  
और  मैं  यह नहीं समझ पाता ,
कि क्या वो शख्स मैं ही  हूँ   ?
एक शैतान  बच्चा जो अपने भाई बहनो की ,
गुल्लक तोड़ कर ,पैसे चुराया करता था
और उन पैसों से चोरी चोरी ,गोलगप्पे ,
 बर्फ का गोला और टाफियां खाया करता था
जो बरसात में ,घर के आगे बहती नालियों में ,
कागज़ की नाव  तैराया करता था
और उसके साथ ,दूर तक भाग भाग कर ,
तालियां  बजाया  करता  था
 वो  जो  दरख्तों पर  लगे आम या इमलियां
पत्थर फेंक फेंक कर तोडा करता था
कभी लट्टू घुमाता ,कभी गिल्ली डंडे खेलता ,
कभी पतंगों को लूटने ,दौड़ा करता था
और दिन भर की मस्ती के बाद ,
थका हारा ,जब पस्त  हो जाता था
तो  बूढी  दादी अम्मा  की गोदी में ,
अपना सर रख कर  ,सो जाता था 
वो शख्स ,जीवन की आपाधापी में ,
लुटी पतंग की डोर सा उलझ गया है
गिल्ली डंडे खेलने वाला ,तकदीर के डंडे खा,
इधर उधरगुम होने वाली,गिल्ली बन गया है
गृहस्थी चलाने के चक्कर में ,
दिन भर लट्टू सा घूमता रहता है
 कागज़ की नाव की तरह ,
कभी डूबता ,कभी इधर उधर बहता है
वो शख्स ,जिसकी आँखों में चमक होती थी ,
और जो रहता था,सदा मुस्कराता
उसकी पेशानियों पर ,अब परेशानी है,
और बुझा बुझा सा ,चेहरा है नज़र आता
लोग कहते है ,आइना झूंठ नहीं बोलता ,
तो क्या मैं झूंठ बोल रहा हूँ
दुनियादारी के कीचड में लथपथ,
क्या वो शख्स मैं  ही हूँ ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 30 जुलाई 2014

आज का ज़माना

                आज का ज़माना

ज़माना ऐसा आया है ,आपको हम क्या बतलाएं
हो रही रोज ही अगवा ,यहाँ कितनी ही सीताएं
बढ़ रही रावणो की भीड़ है इस कदर दुनिया में ,
  नहीं कोई  जटायु  है ,बचाने  सामने  आये
कचहरी ,कोर्ट में अब राम रावण युद्ध होता है ,
नहीं हनुमान कोई सोने की लंका जला पाये
भले कलयुग है लेकिन त्रेता युग की दास्ताने सब,
नए अंदाज से फिर से यहाँ ,  दोहराई  है  जाए
नहीं होती अगर पूजा ,कुपित है इंद्र हो जाता ,
नहीं कान्हा ,बचाने को ,जो गोवर्धन ,उठा पाये
दुशासन,द्रोपदी का चीर हरता ,सामने सबके,
नहीं हिम्मत किसी की है,बचाने के लिए  आये
 कई पांडव,कई कौरव,शकुनि मामा है कितने ,
कृष्ण बन कर ,वकीलों से ,लड़ाई को है उकसाये
भले कलयुग है द्वापरयुग की लेकिन दास्ताने सब,
नए अंदाज से फिर से ,यहाँ दोहराई  है जाये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हर युग का किस्सा

               हर युग का किस्सा

कहीं कोई अपहरण हो गया ,चीर किसी का हरण हो गया ,
पति ने पत्नी को मरवाया ,समाचार ये नित्य  आ रहा
सम्पति के विवाद में भाई ने भाई को मारी गोली,
सुन कर समाचार हम कहते ,कैसा कलयुग घोर छारहा
किन्तु अगर इतिहास उठा कर,देखेंगे तो ये पाएंगे ,
इस युग की ही बात नहीं है ,यह तो है हर युग का किस्सा 
जार,जोरू ,जमीन का झगड़ा ,युगों युगों से चलता आया ,
महाभारत का युद्ध हो गया ,पाने अपना अपना  हिस्सा
हर युग में कैकेयी जैसी माताओं में कुमति जागती,
और राम को चौदह वर्षों का वनवास मिला करता है
हर युग में होता है रावण ,जो साधू का वेष धार कर ,
लक्ष्मण रेखा लंघवाता है,भोली सीता को हरता  है
कितने भाई विभीषण जैसे,पैदा होते है हर युग मे,
जो कि घर का भेद बता कर ,मरवाते भाई रावण को
हर युग में अफवाहें सुनकर,अपनी गर्भित पत्नी को भी ,
राजाराम ,लोकमत से डर ,सीता त्याग,भेजते वन  को
ध्रुव का तिरस्कार करती है ,हर युग में सौतेली मायें  ,
मरवाता प्रह्लाद पुत्र को ,हिरण्यकश्यप,निज प्रभुता हित
और युधिष्ठिर जैसे ज्ञानी ,द्युत क्रीड़ा में ,मतवाले हो,
निज पत्नी का ,दाव लगाने में भी नहीं हिचकते,किंचित
अपनी पूजा ना होने पर,होता इंद्र कुपित हर युग में,
तो गोवर्धन उठा ,सभी की,रक्षा कान्हा करता भी है 
सात भांजे,भांजियों का ,पैदा होते,हनन करे जो,
ऐसा कंस ,आठवें भगिनी सुत के हाथों ,मरता भी है
ये सब कुछ,त्रेता,द्वापर में ,होता था,अब भी होता है
कलयुग कह कर के इस युग को,क्यों बदनाम कर रहे है हम
क्रोध,झूंठ और मोह,पिपासा ,अहम ,स्वार्थ,मानव स्वभाव है
कोई युग  कैसा  भी  आये,  ये मौजूद  रहेंगे, हरदम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 29 जुलाई 2014

'हरेक में छुपा है ,एक छोटा सा बच्चा '

'हरेक में छुपा है ,एक छोटा सा बच्चा '

बड़े  सख्त दिल के है दीखते जो इन्सां ,
         रहे झाड़ते रौब ,हमेशा ही,जब तब
झलकते  है उनकी भी आँखों में आंसूं,
       विवाह करके बेटी,बिदा करते है जब
बाहर से कोई दिखे सख्त दिल पर ,
       है दिल मोम  का और भरा प्यार सच्चा
बड़ा कोई कितना भी बन जाए लेकिन,
      हरेक में छुपा है ,एक छोटा सा बच्चा
अम्मा की गोदी में जब रखता माथा ,
     ममता से अम्मा ,जब  सहलाती सिर  है
आँखों में छा जाती बचपन की यादें ,
    लौट आता प्यारा सा, बचपन वो फिर है
नज़र फिर से आता है ,भोलापन वो ही ,
    वही प्यारी मीठी सी,बातों का  लच्छा
बड़ा कोई कितना भी बन जाए लेकिन,
    हरेक में छुपा  है एक छोटा सा बच्चा
नफासत,नज़ाकत,शराफत का पुतला,
          बड़े ही अदब से ,सदा पेश आता  
बड़े ही सलीके से,काँटा छुरी से ,
          है खाने की टेबल पे ,खाना जो खाता
अकेले में,ठेले पे,खा गोलगप्पे,
          या गोला बरफ का,मज़ा लेता सच्चा
भले ही बड़ा कोई बन जाए कितना ,
         हरेक में छुपा है एक छोटा सा बच्चा
वो बच्चा बड़ा जो हठी जिद्दी होता ,
         जिसे पाने को रहती,चन्दा की चाहत
अगर जिद नहीं उसकी होती है पूरी ,
        उठा लेता ,घर सर पे,करता मुसीबत
उसे अक्स चंदा का पानी में दिखला ,
         नहीं बहला सकते हो,दे  सकते गच्चा
भले ही बड़ा कोई बन जाए कितना ,
         हरेक में छुपा है,एक  छोटा  सा बच्चा
बुढ़ापे में आता वो बच्चा निकल कर,
        वो ही जिद,हठीपन और वो ही मचलना
बूढ़ों में ,बच्चों में ,अंतर न रहता ,
        वही खानापीना और डगमग के चलना
बच्चों सी जिद ,रौब लेकिन बड़ों सा ,
        है लाचार तन ,प्यार दिल में है  सच्चा
बड़ा कोई कितना ही बन जाए लेकिन ,
        हरेक में छुपा है एक छोटा सा बच्चा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बिल्लो रानी

             बिल्लो रानी
बिल्लियाँ जब है खिसयाती ,तो खम्बा नोचने लगती ,
     बिल्लियाँ रोटी को लड़ती,मज़ा बन्दर उठाता है
बिल्लियाँ मार करके नौ सौ चूहे ,हज़  को जाती है,
     गले में बिल्ली के घंटी ,कोई ना बाँध  पाता   है 
कोई में तेजी बिल्ली सी,किसी की आँख बिल्ली सी ,
   शेर की मौसी है और दाँव सौवां,उसको आता है
जिंदगी  खेल है बस एक चूहे और बिल्ली का ,
  दौड़ते दोनों है  लेकिन ,पकड़  कोई न पाता  है    
दबे पाँवों आ बिल्ली  दूध सारा , जाती है गटका,
बैर कुत्ते और बिल्ली का ,कभी भी  थम न पाता है
बड़े होशियार लोगों ने,चलाया है चलन ऐसा ,
गले में ऊँट के बिल्ली, बाँध कर बेचा जाता है
कोई अफसर जो दफ्तर में ,दहाड़ा करता शेरों सा,
सामने बीबी के आ ,भीगी बिल्ली ,बन वो जाता है
बड़ी ही होशियारी से ,पति को नोचती रहती,
और 'वो' बिल्लो रानी' के,सभी नखरे  उठाता है

 'घोटू'

पति की मजबूरी

           पति की मजबूरी

बड़े प्यार से पीना पड़ता ,कड़वी काफी भले दवा है
अच्छे खासे शेरों की भी,देती खिसका  सदा हवा है
दुनिया में वो,सबसे सुन्दर, यह कहना भी आवश्यक है,
 भले हो रही हो बूढी भी  ,कहना पड़ता किन्तु , जवां है
घर में अगर शान्ति रखना है ,तो फिर है ये बात जरूरी
चाहे नाम प्यार का दे दो,पर  ये  है पति  की  मजबूरी

घोटू 

मेंहदी और प्यार

         मेंहदी और प्यार

रचे तुम्हारे हाथों मेंहदी ,ज्यादा गहरी,सुन्दर,प्यारी
इसका भी है भार मुझी पर,ये भी पति की जिम्मेदारी
तुम मेंहदी लगवाती,प्रभु से ,खूब रचे,मैं विनती करता
कम रचती तो तुम ये कहती ,तुमसे प्यार नहीं मैं करता 
क्योंकि पता ना ,जाने किसने ,एक कहावत है ये कह दी
जितना ज्यादा प्यार पति का,उतनी ज्यादा रचती मेंहदी

'घोटू'

शनिवार, 26 जुलाई 2014

यूं ही बैठे बैठे

         यूं ही बैठे बैठे

रहे खुद को खुद में ही हरदम समेटे
उमर कट  गयी बस,यूं ही  बैठे  बैठे
यादों के बादल, घने  इतने  छाये ,
लगे आंसू बहने ,यूं ही  बैठे  बैठे
नज़र से जो उनकी ,नज़र मिल गयी तो,
गयी हो  मोहब्बत ,यूं  ही बैठे  बैठे
रहे वो भी चुप और हम भी न बोले,
हुई गुफ़्तगू सब ,यूं  ही  बैठे  बैठे
सिखाया बड़ों ने,करो काम दिल से,
न होगा कुछ हासिल ,यूं ही बैठे  बैठे
बहा संग नदी के ,गया बन समंदर ,
रहा सिमटा कूए में,जल बैठे बैठे
कई राहियों को ,दिला कर के मंजिल,
रही टूटती पर,सड़क  बैठे  बैठे
उमर का सितम था,बचा कुछ न दम था,
जब आया बुढ़ापा ,यूं  ही बैठे बैठे
जो कहते थे कल तक,है चलने में दिक्कत ,
गए कूच  वो कर,,यूं ही  बैठे बैठे
कलम भी चली और चली उंगलियां भी ,
ग़ज़ल लिख दी'घोटू' ,यूं  ही बैठे, बैठे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फिसलपट्टी

         फिसलपट्टी

हौंसला हारते है वो, बड़े कमजोर दिल होते ,
              जुझारू जानते, मुश्किल से है कैसे लड़ा जाता
किसी की नज़रों से गिरना ,बड़ा तकलीफ देता है,
              नज़र से गिर गए तो फिर,नहीं आगे बढ़ा जाता
हुस्न को देख कर के दिल,तो सबका ही फिसलता है,
             बड़ी फिसलन मोहब्बत में,संभल कर है चला जाता
फिसल पट्टी ,फिसलने में,बड़ा आनंद देती है ,
            बड़ी मुश्किल से उस फिसलन पे फिर ऊपर चढ़ा जाता

घोटू   

संवाद -रेल की पटरियों का

     संवाद -रेल की पटरियों का

उधर तुम अकेली,इधर मैं अकेली,
             पडी हम ,यूं ही जंग है लगती जाती
अगर जिंदगी का ,लड़े जंग हम तुम,
             मिले एक से एक,ग्यारह कहाती
संग संग रहे पर ,उचित दूरियां हो ,
               पकड़ हो जमीं से,बहुत काम आती
तभी रेल की पटरियां बन के बिछती,
               कई ट्रेन हम पर,तभी दौड़  पाती

घोटू

मैं हूँ भारत की आजादी

              मैं हूँ भारत की आजादी

उमर हो गयी है सड़सठ की ,अब भी किन्तु,अधूरी,आधी
                                          मैं हूँ  भारत की आजादी
आयी थी मैं स्वप्न सजा कर,सुन्दर ,खुशहाली जीवन के
हो  बरबाद  ,रह गयी हूँ मैं , केवल एक तमाशा बन के
समझौतों की राजनीति ने, जिससे सत्ता में टिक पाओ
ऐसी बंदर बांट मचाई,  हम भी खाएं,तुम भी खाओ
सबने मुझको ,लूटा जी भर,किसे बताऊँ ,मैं अपराधी
                                       मैं हूँ भारत की आजादी
अब भी  मुझको ,छेड़ा करते ,हैं शैतान ,पड़ोसी लड़के
कई बार पीटा है उनको ,और छकाया आगे   बढ़  के
लेकिन उनकी ,बुरी नज़र है ,लगी हुई है,अब भी मुझ पर
कई रहनुमा ,आये बदले,कोई नहीं ,पाया कुछ भी कर
सबने अपने , मतलब साधे ,और हुई मेरी   बरबादी
                                      मैं  हूँ भारत की आजादी
अवमूल्यन हो रहा दिनोदिन,लोग मुफ्त का चन्दन घिसते
और जनता के लोग बिचारे,मंहगाई के मारे    पिसते
 चुरा चुरा कर ,मेरे गहने,स्विस बैंकों में जमा कर दिये 
मेरे ही संरक्षक बन कर,मेरे तन पर घाव   भर दिये                                         
क्षत विक्षत कर,अर्थव्यवस्था सबने खूब कमाई चांदी
                                            मैं हूँ भारत की आजादी
बहुत  दिनों के बाद भाग्य ने,मेरे अब एक करवट ली है
जनता ने अबके चुनाव में ,मेरी कुछ किस्मत बदली है
बहुत दिनों से छाये थे जो बादल छट  जाने वाले है
मेरे मन में आस लगी है ,अच्छे दिन आने वाले है
देखें लालकिले से अबके ,मोदी करते ,कौन मुनादी
                                   मैं हूँ भारत की आजादी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                                      

छप्पर

          छप्पर
कहते है,जब खुदा देता,देता छप्पर फाड़ के,
दिया हमको भी खुदा ने ,मगर उलटा हो गया
फटा छप्पर,धूप,बारिश की मुसीबत आगयी ,
रिपेयर छप्पर कराया ,खर्चा  दूना  हो गया
एक हसीना नाज़नीं ,बीबी हमारी जब बनी,
हम थे खुश कि खुदा हम पर है मेहरबां हो गया
शुरू जब फरमाइशों का ,सिलसिला उनका हुआ,
क्या बताएं,मुफलिसी में ,आटा गीला हो गया 
घोटू

बुधवार, 23 जुलाई 2014

भविष्यवाणी

           भविष्यवाणी

 सभी चैनल पर है  पंडित जी कोई ना कोई ,आते
देख कर के चाल ग्रह की,सभी को है ,ये   बताते
आज दिन बीतेगा कैसे ,आपका भविष्य क्या है
एक दिन की बात ना है ,रोज का ये सिलसिला है
सिर्फ बारह राशियों में ,समय का है खेल चलता
'मेष' के घर क्लेश होगा,'कुम्भ'पायेगा सफलता
'मिथुन'वाले सुखी होंगे,मान कर पत्नी की बातें
'मीन'का है चन्द्र दुर्बल,रहें शिव पर जल चढ़ाते
'कर्क'पर शनि वक्र है ,हनुमानजी का करें पूजन
'बन रहा धन योग 'धनु' अचानक ही आएगा धन
और 'वृश्चिक',रहे निश्चित,शीध्र उनके दिन फिरेंगे
एक नरियल,बहते जल में,वो अगर जो बहा देंगे
संभल करके  रहे'कन्या'राशि,दुर्घटना घटेगी
और 'मकर'वालों सभी की,आज तो चांदी कटेगी
'सिंह' वाले ,क्रोध पर जो ,रखें काबू तो भला है
 मिला जुला रहेगा दिन, जिन्होंकी राशि 'तुला' है
और सब 'वृष'राशि वाले,भावना को रखे वश में
प्रभु का स्मरण करेंगे,वृद्धि होगी ,किर्ती,यश में
पास में आचार्य जी के ,हर एक विपदा की दवा है
जान ही अब गए होंगे , आपका भविष्य  क्या है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मंगलवार, 22 जुलाई 2014

इन्तजार

           इन्तजार
थे बच्चे भूख जब लगती ,हम रोते और मचलते थे,
  दूध अम्मा पिलाएगी ,यही इन्तजार करते थे
बड़े होकर गए स्कूल,न मन लगता पढाई में ,
बजे कब छुट्टी की घंटी,यही इन्तजार करते थे
मोहब्बत की जवानी में,किसी के प्यार में डूबे,
हमेशा माशुका से मिलन का, इन्तजार करते थे
गृहस्थी का पड़ा जब बोझ,तो फिर मुश्किलें आई,
कभी आएंगे अच्छे दिन,यही इन्तजार करते थे
रहा इन्तजार जीवन भर,कभी इसका,कभी उसका ,
सिलसिला अब बुढ़ापे में ,भी वो का वो ही जारी है
जिंदगी के सफर का अब,अंत नजदीक आने को ,
न जाने मौत  कब आये,उसी की  इंतजारी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मोमबत्ती जल रही है

                मोमबत्ती जल रही है

आजकल इस देश में क्या हो रहा है,
          नहीं कोई की समझ में आ रहा है
लोग कहते हम तरक्की कर रहे है,
           रसातल पर देश लेकिन जा रहा है
दो बरस की नन्ही हो मासूम बच्ची ,
            या भले बुढ़िया पिचासी साल की है
हो रही है जबरजस्ती सभी के संग ,
              दरिंदों के हाथों ना कोई बची है
पाशविक अपनी पिपासा पूर्ण करके ,
               मार देते,पेड़ पर लटका रहे है
आजकल तो इसतरह के कई किस्से,
               रोज ही सबकी नज़र में आरहे है
कोई साधू कर रहा है रासलीला,
               कोई नेता ,लड़कियों को रौंदता है
और सुरक्षा के लिए तैनात है जो,
               पुलिसवाले ,थाने में करते खता है
नौकरी का देके लालच कोई लूटे,
              कोई शादी का वचन दे और भोगे
कोई शिक्षागृहों में कर जबरजस्ती,
              खेलता है नन्ही नन्ही बच्चियों से
 मामला जब पकड़ता है तूल ज्यादा,
               कान में सरकार के जूँ  रेंगती है
दे देती मुआवजा कुछ लाख रूपये ,
              अफसरों को ट्रांसफर पर  भेजती है
नेता करने लगते है बयानबाजी,
             देश है इतना बड़ा ,क्या क्या करें हम
अपराधी है अगर नाबालिग बचेगा,
             इस तरह अपराध क्या होंगे भला कम
आज ये हालात है अस्मत किसी की,
             किस तरह से भी सुरक्षित है नहीं अब
किस तरह इस समस्या का अंत होगा,
             किस तरह हैवानगी यह रुकेगी सब
रोज ही ये वारदातें हो रही है ,
             और मानवता सिसकती रो रही है
और नेता सांत्वना बस दे रहे है,
              सभी शासन की व्यवस्था सो रही है
देश के नेता पड़े कर बंद आँखें,
               जागरूक जनता प्रदर्शन कर रही है
किन्तु होता सिर्फ ये कि पीड़िता की,
                 याद में कुछ मोमबत्ती जल रही है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 21 जुलाई 2014

मिले है ऐसे प्रीतमजी

               मिले है ऐसे प्रीतमजी

बताएं क्या तुम्हे हम जी
मिले है ऐसे प्रीतम  जी
       पड़े रहते है ये घर पर
        करें ना काम रत्ती भर
        कभी ये लाओ,वो लाओ,
        चलाते हुक्महै दिन भर
तंग हो जाते है हम जी
मिले है ऐसे प्रीतम जी
      दिखाते है कभी पिक्चर
      कराते है डिनर बाहर
      तबियत के रंगीले है,
      सताते है हमें  जी भर
नहीं कोई से है कम जी
मिले है ऐसे प्रीतम जी
       प्यार पर जब दिखाते है
       बनाते   खूब    बातें है
        रात को करते है वादे,
        सवेरे  भूल  जाते है 
निकला करते है दम जी
मिले है ऐसे प्रीतम जी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पुराने खिलाड़ी

            पुराने खिलाड़ी

न तो देखो धुला कुरता ,फटी बनियान मत देखो
          धड़कता इनके पीछे जो, दीवाना सा है दिल देखो
सफेदी देख कर सर की ,नहीं बिदकाओ  अपना मुंह,
            पुराने हम खलाड़ी है ,कभी हम से तो मिल देखो
       पुराने स्वाद चावल है ,अनुभव का खजाना है 
        चखोगे ,याद रख्खोगे ,माल परखा ,पुराना है
 नए नौ दिन,पुराने सौ दिनों तक काम आते है ,
       इस भँवरे का दिवानापन,कभी फूलों सा खिल देखो                 
'घोटू '

उम्र है मेरी तिहत्तर

       उम्र है  मेरी तिहत्तर

जिंदगानी के सफर में ,मुश्किलों से रहा लड़ता
आ गया इस मोड़ पर हूँ,कभी गिरता ,कभी पड़ता
ना किया विश्राम कोई,और रुका ना ,कहीं थक कर
                                           उम्र है मेरी तिहत्तर
जवानी  ने बिदा ले ली ,भले कुछ  मुरझा रहा तन
जोश और जज्बा पुराना ,है मगर अब तलक कायम
आधा खाली दिख रहा पर,भरा है आधा कनस्तर
                                           उम्र है मेरी तिहत्तर  
भले ही सर पर हमारे ,सफेदी सी छा रही  है
पर हमारे हौंसले की ,बुलंदी वो की  वो ही है
दीवारें मजबूत अब भी ,गिर रहा चाहे पलस्तर
                                       उम्र मेरी है तिहत्तर  
छाँव दी कितने पथिक को ,था घना मैं जब तरुवर
दिया पंछी को बसेरा और बहाई हवा शीतल
फल उन्हें भी खिलाएं है,मारा जिनने ,फेंक पत्थर
                                           उम्र मेरी है तिहत्तर
किसी से शिकवा न कोई ,ना किसी को कोसता हूँ
न तो कल को भूल पाता और न कल की सोचता हूँ
पा लिया मैंने बहुत कुछ,जैसा था मेरा मुकद्दर
                                      उम्र मेरी है तिहत्तर
बेसुरी सी हो रही है  उमर के  संग  बांसुरी है
लग गयी बीमारियां कुछ,किन्तु हालत ना बुरी है
ज़रा ब्लडप्रेशर बढ़ा है,खून में है अधिक शक्कर
                                         उम्र है मेरी तिहत्तर
कठिन पथ है ,राह में कुछ ,दिक्कतें तो आ रही है 
चाल है मंथर नदी की ,मगर बहती जा रही है
 कौन जाने कब मिलेगा ,दूर है कितना समंदर
                                        उम्र है मेरी तिहत्तर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 19 जुलाई 2014

बदपरहेजी

         बदपरहेजी

ये सच है मैं तुम्हारा हूँ,तुम्हारा ही रहूंगा पर,
   हुस्न बिखरा हुआ सब ओर है,दीदार करने दो
निमंत्रण दे रहे है फूल इतने,बाग़ में खिलते ,
    ज़रा सी छूट दे दो ,मुझको इनसे प्यार करने दो
यूं तो अक्सर ही तुम इंकार,मुझसे करती रहती हो,
   करोगी आज जो इंकार,  मानूंगा न मैं  हरगिज
रोज ही दाल रोटी, घर की खाता ,जैसी भी मिलती,
     परांठा मिल रहा है,खाऊंगा,मुझको चढ़ी है जिद
मुझे मधुमेह है,मिठाई पर पाबंदियां है पर,
      कब,कहाँ इसतरह मधु के छलकते जाम मिलते है
चार दिन ,चार गोली ज्यादा खा लूँगा दवाई की,
       हमेशा चूसने को कब, दशहरी  आम मिलते है
नहीं रोको तुम मुझे बस थोड़ी  बदपरहेजी करने दो ,
    बड़ी किस्मत से मिल पाते है,ये इतने हसीं  मौके
देखलो फिर बगावत पर ,उतर आऊंगा वर्ना मै ,
    आज पर रुक नहीं सकता ,भले कितना ,कोई रोके

घोटू 

संवाद -बादल से

          संवाद -बादल से

मुझसे कल पूछा बादल ने ,बताओ मैं कहाँ बरसूँ
              चाहते सब है बरसूँ मैं ,पर छतरी तान लेते है
सिर्फ धरती है जो मुझको,समा लेती  सीने में ,
             और बाकी सब बहा देते ,पराया मान लेते है               
बहुत जी चाहता मेरा ,मिलूं आकर के धरती से,
            हवाएँ आवारा  लेकिन मुझे अक्सर उडा लेती ,
सरोवर पीते मेरा जल ,मगर नदियां बहा देती ,
             समंदर भी उडा  देते,नहीं अहसान  लेते  है

घोटू

शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

खाते पीते लोग

          खाते पीते लोग

भूख अपनी मिटाने में,
रहे हम व्यस्त  खाने में
बताएं आपको अब क्या,कि हम क्या क्या नहीं खाये
भाव हमने  बहुत खाये
घाव हमने  बहुत  खाये
वक़्त की मार जब खाई ,तब कहीं जा संभल पाये
रिश्वतें भी बहुत खायी
कमीशन भी बहुत खाया ,
बड़े ही खानेपीने वाले,ऑफिसर थे कहलाये 
गालियां खाई लोगों से,
और खाये बहुत  धोखे ,
ठोकरें खा के दर दर की ,मुकाम पे हम पहुँच पाये
मन नहीं लगता था घर में
पड़े उल्फत के चक्कर में ,
पटाने उनको,उनके घर के चक्कर भी बहुत खाये
मिली बस दाल रोटी घर
दावतें खाई,जा होटल,
मिठाई खूब खाई ,चटपटी हम ,चाट चटखाये
डाट साहब की दफ्तर में
और  घरवाली की घर में
खूब खाई ,तभी तो हम,ढीट है इतने बन  पाये
बुढ़ापे में है ये आलम
दवाई खा रहे है हम
हो गया है हमें अरसा ,मिठाई कोई भी खाये
कमाया कम,अधिक खाया
मगर वो पच नहीं पाया
माल चोरी का मोरी में ,बहा  कैसे ,क्या बतलायें
इधर भी जा ,उधर भी जा
सारी दुनिया का  चक्कर खा
गये थे घर से हम बुद्धू ,लौट बुद्धू ही घर आये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 
 

पीले से प्रीत

       पीले से प्रीत

आम,संतरा और मौसम्बी ,केला और पपीता सब ही,
     अक्सर स्वाद भरा हर एक  फल ,ये देखा है  पीला होता
पीले सब नमकीन ,पकोड़े,पीली बूंदी,बेसन लड्डू,
     चाहे  जलेबी ,राजभोग हो , कितना स्वाद  रसीला  होता
 पीले होते  स्वर्णाभूषण ,और पीताम्बरधारी भगवन,
      उगता ,ढलता सूरज पीला, चन्दा है चमकीला   होता
इसीलिये जब शादी होती ,कहते पीले हाथ कर दिए ,
      हल्दी चढ़ने से दुल्हन का ,कितना रूप  खिला है होता

घोटू 

आम या ख़ास

             आम या ख़ास

दशहरी हो या फिर लंगड़ा ,हो चौंसा या कि अल्फांसो,
          आम ,कोई  न आम होता  ,हमेशा  ख़ास  होता   है
माशुका की तरह उनका ,स्वाद जब मुंह में लग जाता ,
          लबों पर उसकी लज्जत का,गजब अहसास होता है
ज़रा सा मुंह में लेकर के ,पियो जब घूँट तुम रस की,
            हलक में जा रहा अमृत ,यही आभास   होता है  
गुट्ठिया चूस कर देखो , रसीली,रसभरी होती ,  ,
             हरेक रेशे में रस ही रस , बड़ा  मिठास होता है
घोटू

खून का खेल

            खून का खेल
एक तो तंग हमको कर कर रखा इन मच्छरों ने है ,
               रात भर तुनतुनाते और हमारा खून पी जाते
दूसरा तंग हमको कर रखा इन डाक्टरों ने है,
             बिमारी कोई हो ना हो,   खून का टेस्ट  करवाते
तीसरा घर की घरवाली ,रोज फरमाइशें कर कर,
               अदा से प्यार से ,मनुहार से सब खून पीती है 
बॉस दफ्तर में कस कर,काम करवाते है खूं पीते,
               नहीं केवल हमारी ये ,सभी की आपबीती है
खौलता खून है सबका ,मगर कुछ कर नहीं पाते ,
               हमारा खून पीती ,मुश्किलें ,जो रोज आती है
और उस पे ये मंहगाई ,हमारे खून की दुश्मन,
            मुंह सुरसा  सा फैलाती ,दिनोदिन बढ़ती जाती है
रोज हम लेते है लोहा,जमाने भर की दिक्कत से ,
            मात्रा 'आयरन 'की खून में ,बिलकुल न बढ़  पाती
कभी 'ऐ 'है,कभी 'ओ'है ,कभी 'बी पोसिटिव'कहते,
           खून की कितनी भाषाएँ ,समझ में ही नहीं आती 
हो गए इस तरह से 'प्रेक्टिकल'लोग दुनिया के ,
           आजकल खून का रिश्ता ,बड़ी मुश्किल से निभता है
गए दिन खून की सौगंध खाने वाले वीरों के ,
            आजकल खून तो एक 'कमोडिटी'है,खूब बिकता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Re: प्रियतम ,मैं आटा ,तुम पानी



On Sunday, July 13, 2014, madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:
घोटू के पद

प्रियतम ,मैं आटा ,तुम पानी
पूरी,परांठा या जैसी भी,रोटी हमें बनानी
बहुत जरूरी ,गुंथे ढंग से ,आटा मिल संग पानी
और पलेथन ,लगे प्यार का ,रोटी अगर फुलानी
गरम गृहस्थी के चूल्हे पर ,जल्दी से सिक जानी
तब ही तो स्वादिष्ट बनेगी,रोटी,नरम सुहानी
जितनी प्रीत मुझे है तुमसे,उतनी तुम्हे दिखानी
तालमेल हो सही ख़ुशी से ,काट जाए जिंदगानी

घोटू

बुधवार, 16 जुलाई 2014

सोचो -समझो -करो

           सोचो -समझो -करो

आज जो काम करना है,उसे कल पर नहीं टालो ,
             वक़्त जो बीत जाता है,नहीं आता दोबारा है
बड़ा हो या की छोटा हो,मगर ये बात पक्की है,
             हरेक डायरिया का होता है ,कहीं पर तो किनारा है
रात को आते जो सपने ,वो अपने आप आते है ,
             जो होते महत्वाकांक्षी ,वो दिन में देखते सपने
ये क्यों होता बुढ़ापे में,भूल जाते है अपने ही,
              मगर ऐसा भी होता है,पराये जाते हो अपने
हरेक मौसम का अपना ही ,अलग मिजाज होता है ,
              गरम है तो कभी ठंडा ,कभी बरसात होती है
उजेला हो जो सूरज का,तो हम कहते है क़ि दिन है,
               मगर दिन भी बुरे,  अच्छे ,ये कैसी बात होती है ,
मुझे कल पूछा बादल ने ,बताओ मैं कहाँ बरसूँ,
              चाहते सब है बरसूँ मैं ,पर छतरी तान लेते है
बड़े नादान है हम सब,दिया है जिसने ये सब कुछ  ,
               उसी को कुछ चढ़ा सिक्के ,ये कहते दान देते है
आदमी कितना मूरख है,खबर जिसको नहीं कल की,
                  बनाता जिंदगी भर की,हज़ारों योजनाएं वो
व्यर्थ ही कल की चिंता में ,हुआ जाता है वो बेकल,
                  भरोसा कौनसा कल का,कल तलक जी भी पाये वो 
व्यर्थ काहे का रोना है ,जो होना है सो होना है,
                  मुसीबत ,आना,आएगी ,हंसो या रो के तुम झेलो
करो बस आज की परवाह,सामने जो खड़ा हाज़िर ,
                  छोड़ दो कल की चिंताएं,मज़ा तुम आज का ले लो
 अरे देखो नदी को ही,जो कल कल करती बहती हैं ,
                  यही आशा लिए मन में,मिलेगी कल समंदर से
लगन से जो चलेंगें हम,ठिकाना मिल ही जाएगा,
                   नहीं कुछ भी है नामुमकिन,अगर हो जोश अंदर से
थी पतली धार उदगम पर,रही मिलती वो औरों से ,
                तभी सागर पहुँचने तक,पात हो जाता चौड़ा है
इसलिए सबको अपनाओ,सभी के साथ मिल जाओ,
                बहुत हो जाता है मिल कर,कोई कितना भी थोड़ा हो
हवा तो बस हवा ही है,हमेशा बहती रहती है,
                मगर जब सांस  बनती  है,चलाती जिंदगानी है
हो जैसी भी परिस्तिथियाँ , उसी अनुसार चलना है,
                 किसी भी पात्र में उसके मुताबिक़ ,ढलता पानी है
सुबह टी वी में ज्योतिषी ,ग्रहों की चाल बतलाता ,
               फलाँ है राशियाँ जिनकी ,मिलेगी उनको खुशखबरी
खबर जब है नहीं हमको,कोई भी अगले एक पल की,
               आज हम है  और ज़िंदा है ,बड़ी सबसे ये खुशखबरी
सोच कर ये कि कल पकवान ,मिल सकते है खाने को,
                आज हम भूखे रहने की ,सजा भुगते ,भला क्यों कर
पता है पेट भरना है ,हमें जब दाल रोटी से ,
                 समझ पकवान उनको ही,उठाएँ ना,मज़ा क्यों कर
  तुम्हे लगते है वो सुन्दर ,उन्हें लगे हो तुम सुन्दर ,
                मगर ये सारी सुंदरता ,नज़र का खेल  है केवल
केरियां कच्ची, खट्टी जो ,समय के संग पकेगी जब,
                रसीली ,स्वाद  और  मीठी ,लगेगी आम वो बन कर
हवा के साथ चलने पर ,हवा है पीठ थपकाती ,
                हवा के सामने चलते,हवा भरती है बाहों में
दिक्कते तो हमेशा हैं,मगर जो तुम में जज्बा है ,
              मिलेंगी मंजिलें ,अड़चन ,भले कितनी हो राहों में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 15 जुलाई 2014

देखे सपने

             देखे सपने

जग देखे सोयी आँखों से
मैंने उड उड़ ,बिन पाँखों से
बिना पलक अपनी झपकाये ,
            मैंने जग जग ,देखे सपने
अन्धकार का ह्रदय चीर कर
आती ज्योति रश्मि अति सुन्दर
तन मन में उजियारा फैला,
            मैंने  जगमग देखे सपने
जब भी चला प्रेम की राहें
तुझ पर अटकी रही निगाहें
कभी थाम लेगी तू बाँहें ,
            मैंने  पग पग ,देखे सपने
तेरी आस ,संजोये मन में,
रहा भटकता ,मैं जीवन में
रोज रोज ,आपाधापी में ,
              मैंने भग भग ,देखे सपने
कभी भाग्य चमकेगा मेरा
सख्त ह्रदय पिघलेगा तेरा
ये आशा ,विश्वास लिए मैं ,
              हुआ न डगमग ,देखे सपने
      
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नज़रिया-औरतों का

         नज़रिया-औरतों का

पति गैरों के गुण वाले ,और स्मार्ट दिखते है ,
     पति खुद का  हमेशा ही ,नज़र आता  निकम्मा है
सास में उसको दिखती है ,  कमी खलनायिका की,
       गुणों की खान लगती है ,हमेशा खुद की अम्मा है
ससुर कमतर नज़र आते ,हमेशा ही पिता से है,
      बहन के गाती है गुण पर ,ननद से पट न पाती है
जहाँ पर काटना है जिंदगी ,वो घर  न भाता है ,
          सदा तारीफ़ में वो  मायके के गीत  गाती   है
है खुदऔरत मगर अक्सर यही होता है जाने क्यूँ ,
           नज़र में उसकी,बेटी और बेटे में फरक  होता
बेटियां नूर है घर की ,वो खुद कोई की बेटी है,
          मगर वो चाहती दिल से, बहू उसकी  जने पोता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

उम्र बढ़ी तो क्या क्या बदला

           उम्र बढ़ी तो क्या क्या बदला

गठीली थी जो जंघाएँ ,पड़  गयी गांठ अब उनमे ,
              कसा था जिस्म  तुम्हारा ,हुआ अब गुदगुदा सा है
कमर चोवीस इंची थी ,हुई चालीस इंची अब,
              पेट  पर पड़  गए है सल, हुलिया ही जुदा सा  है
लचकती थी कमर तुम्हारी ,चलती थी अदा से जब ,
              आजकल चलती हो तुम तो,बदन सारा लचकता है
हिरन जैसी कुलाछों में,आयी गजराज की मस्ती,
              दूज का चाँद था जो ,हो गया ,अब वो पूनम का है
भले ही आगया है फर्क काफी तन में तुम्हारे ,
               तुम्हारे मन का भोलापन ,वही प्यारा सा है निर्मल
आज भी प्यार से जब देखती हो,जुल्मी नज़रों से ,
              दीवाना सा मैं हो जाता,मुझे कर देती तुम  पागल
कनक की जो छड़ी सा था ,हुआ है तन बदन दूना ,
               तुम्हारा प्यार मुझसे हो गया है चौगुना   लेकिन
हो गए इस तरह आश्रित है हम एक दूजे पर ,
               न रह सकती तुम मेरे बिन,न मैं रहता तुम्हारे बिन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     

सोमवार, 14 जुलाई 2014

पुराना माल -तीन चतुष्पद

           पुराना माल -तीन चतुष्पद
                              १
पुराने माल है लेकिन,ढंग से रंग रोगन कर ,
         किया 'मेन्टेन 'है खुद को ,चमकते ,साफ़ लगते है
कमी जो भी है अपनी ,हम,उसे ऐसा छिपाते है,
          लोग ये कहते है तंदरुस्त कितने   आप लगते है
हरेक अंग आजकल नकली ,हमें बाज़ार में मिलता ,
           आप  इम्प्लांट करवा लो,लगालो बाल भी नकली , 
विटामिन और ताक़त की ,गोलियां खूब बिकती है,
           जवाँ खुद ना ,जवानो के ,मगर हम बाप  लगते  है
                          २    
तीन ब्लेडों के रेज़र से,सफाई गाल की करते ,
           लगा कर 'फेयर एंड लवली'रूप अपना निखारा  है
रँगे  है बाल हमने 'लोरियल'की हेयर डाई से,
            कराया 'फेसियल' सेलून' में ,खुद को संवारा है 
 आज भी जब कलरफुल 'ड्रेस में सज कर निकलते है,
            लड़कियां 'दादा' ना  कहती, हमें 'अंकल'बुलाती है,
बूढ़ियाँ भी हमें नज़रें बचाके देख लेती है ,
                 कहे कोई हमें बूढा ,ये  हमको ना गंवारा है 
                           ३
'सेल'है 'एंड सीजन 'का,माल ये सस्ता हाज़िर है ,
          है डिस्काउंट भी अच्छा , ये मौका फिर न पाएंगे
पके है पान खा  लो तुम,न सर्दी ना जुकाम होगा ,
         बहल कुछ तुम भी जाओगे ,बहल कुछ हम भी जाएंगे
पुराना माल है इसको,समझ एंटीक ही ले लो,
       समय के साथ 'वेल्यूं' बढ़ती जाती ऐसी चीजों की,
उठाओ लाभ तुम इसका,ये ऑफर कुछ दिनों का है,
         हाथ से जाने ना दो तुम   ,ये मौका फिर न पाएंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 13 जुलाई 2014

मृतसागर

         मृतसागर

आकुल,व्याकुल,कल कल करती ,कितनी नदियां ,मिलने आती
छोड़ सभी खारापन अपना ,बादल  बनती  और उड़ जाती
मैं चुपचाप,मौन बेचारा ,दिन दिन होता जाता   खारा
सारी पीड़ाये लहरों सी,ढूंढा करती ,कोई किनारा
मुझसे विमुख सभी जलचर है,इतना एकाकीपन सहता
डूब न जाए कोई मुझ में, इतना पितृ भाव है रहता
मन का भारीपन गहराता,घनीभूत होता जाता मैं
सभी भावना,मृत हो जाती,और मृतसागर कहलाता मैं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

प्रियतम ,मैं आटा ,तुम पानी

घोटू के पद

प्रियतम ,मैं आटा ,तुम पानी
पूरी,परांठा या जैसी भी,रोटी हमें बनानी
बहुत जरूरी ,गुंथे ढंग से ,आटा मिल संग पानी
और पलेथन ,लगे प्यार का ,रोटी अगर फुलानी
गरम गृहस्थी के चूल्हे पर ,जल्दी से सिक जानी
तब ही तो स्वादिष्ट बनेगी,रोटी,नरम सुहानी
जितनी प्रीत मुझे है तुमसे,उतनी तुम्हे दिखानी
तालमेल हो सही ख़ुशी से ,काट जाए जिंदगानी

घोटू

अपनी अपनी दास्ताँ

         अपनी अपनी  दास्ताँ

हिन्दू कोई,कोई मुस्लिम
बौद्ध कोई है ,कोई क्रिस्चन
सिख है कोई,बहाई कोई ,
              सबकी अलग आस्था है
कोई इडली ,कोई डोसा
कोई जलेबी और समोसा
पूरी कोई परांठा  खाता ,
           सबका अलग नाश्ता है
कोई भूखा करता है व्रत
और खोलता कोई सदाव्रत
मोक्ष को  पाने  सभी का ,
         अपना अलग रास्ता है
दुखी निसंतान इन्सां
कोई बच्चों से परेशां
सबके है अपने अपने दुःख,
           सबकी अलग दास्ताँ है

घोटू

याद तुम्हारी

               याद तुम्हारी

ये चंदा और ये तारे ,और उसपे रात ये कातिल
ये सबके सब ही काफी थे ,जलाने को हमारा दिल
बड़ी खामोशी पसरी  थी दर्द देती थी तन्हाई
और उसपे याद तुम्हारी ,सितम ढाने चली आई
हवा के झोकें भी आ खटखटाते द्वार, दे दस्तक
मुझे लगता है तुम आयी ,मगर नाहक ही होता शक
बड़ा दिल को दुखाता है ,सताता तुम्हारा गम है
दो घड़ी चैन से भी सो नहीं सकता ,ये आलम है
लगाईं आँख क्या तुमसे ,आँख ही लग नहीं पाती
लगी है आग कुछ ऐसी ,बुझाए बुझ नहीं पाती
कभी दिल के समंदर में,है उठते ज्वार और भाटे
कभी है काटने को दौड़ते ,सुनसान सन्नाटे
न जाने कब सुबह होगी,जिंदगी जगमगाएगी
न जाने लौट फिर किस दिन ,खुशी घर मेरे आएगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नाम की कमाई

               नाम की कमाई

आदमी आम होता ख़ास है , जब उसके जीवन में,
ख़ास कुछ ऐसा हो जाता ,नहीं जो आम  होता है
ये इस पर है कि किसके संग,हुआ है कौनसा किस्सा ,
कोई का नाम होता है ,कोई बदनाम होता  है
अगर मिल जाते लैला और मजनू ,हीर और रांझा,
तो क्या उनकी महोब्बत के ,यूं अफ़साने लिखे जाते
बसा लेते वो अपना घर ,आठ दस बच्चे हो जाते ,
गृहस्थी को चलाने में ,वो भी मशगूल हो जाते
मगर उनकी जुदाई ने ,बनाया ख़ास है उनको,
नहीं तो वो भी  हम तुमसे ,आदमी आम ही रहते
नहीं कुर्बान होते जो ,इश्क़  में एक दूजे  के ,
हमारी और तुम्हारी ही तरह अनजान ही रहते
नहीं तो लोग कितने ही ,कमाते और खाते है,
है आते और चले जाते,कोई ना याद भी करता
कोई जो देता  कुर्बानी,या फिर कुछ ख़ास करता है,
ज़माना उसके चर्चे उसके ,जाने बाद भी करता

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

 

बरसात आई

         बरसात आई

आज बरसात आई है
मुद्द्तों बाद आयी है
मचलने लग गया है मन,
लिए जज्बात आयी है
हुआ मौसम बड़ा बेहतर
भीग कर जाएँ हम हो तर
 साथ बूंदों के हम नाचें,
मज़ा मौसम का लें जी भर
देख कर तेरा भीगा तन ,
रहूँ ना मैं भी आपे में
मज़ा मुझको जवानी का,
मिले फिर से बुढ़ापे में

घोटू

अगर- मगर

        अगर- मगर

जो तुम गर्मी की लू होती ,मैं कच्चा आम,पक गिरता,
         अगर होती जो तुम बारिश,भीगता तुममे रहता मैं  
अगर तुम होती जो सर्दी ,रजाई में दबा लेता ,
          अगर  बासंती ऋतू होती,तो फूलों सा महकता   मैं
अगर तुम आग होती तो ,मैं भुट्टे सा सिका करता,
            अगर होती हवा जो तुम,तुम्हारे साथ  बहता  मैं
अगर होती जो तुम पानी,तो तुममे डूब मैं जाता,
           तुम्हारा साथ पाने को ,सितम कितने ही सहता मैं
मगर तुम बन गयी बीबी ,और शौहर मैं बेचारा,
            तुम्हारे मूड के संग संग ,बदलते रहते है मौसम
तुम्हारी उँगलियों के इशारों पर ,नाचता मैं रहता ,
            बनी हो जब से तुम हमदम,निकाला तुमने मेरा दम

  मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Re: तीन चतुष्पद



On Thursday, July 10, 2014, madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:
           तीन चतुष्पद
                    १
तुम्हारा रूप प्यारा है,अदाएं शोख और चंचल
तुम्हारी चाल मतवाली, कमर में पड़ने लगते बल
बुलाता,पास ना आती,हमेशा टालती ,कह ,कल
कलेजा चीर देती हो ,जब कहती हो हमें अंकल
                         २
हसीना को पटाने में ,पसीने छूट जाते  है
हसीना मान जाती तो पसीना हम बहाते है
प्यार के बाद शादी कर,बोझ बढ़ जाता है सर पर , 
गृहस्थी को चलाने में ,पसीने छूट जाते है
                            ३
मेरी तारीफ़ करते ,लक्ष्मी घर की बताते हो
कमा कर दूसरी फिर लक्ष्मी तुम घरपे लाते हो  
मेरी सौतन को जब मैं खर्च कर ,घर से भगाती हूँ,
मुझपे खर्चीली होने की,सदा तोहमत लगाते  हो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शनिवार, 12 जुलाई 2014

दीवानगी

      दीवानगी
दीवान ए आम हो चाहे ,
दीवान ए ख़ास हो  चाहे
दीवानो का दीवानापन तो खुल्ले आम होता है
दीवानो के लिए ना ,
कोई भी दीवार होती है,
दीवानो का  लिखा खत,प्यार का दीवान होता है
   बजाते   बांसुरी कान्हा ,
  दीवानी  गोपियाँ  आती ,
दीवानापन  ये ,उनके प्यार की पहचान  होता  है
दीवाना  होता  परवाना ,
शमा के प्यार में जलता ,
कोई मजनू ,कोई राँझा ,सदा  कुर्बान होता है

मदन मोहन  बाहेती 'घोटू' 

आपकी जरुरत नहीं है

        आपकी जरुरत नहीं है

सजा कर पकवान हम पर,प्रेम से दावत उड़ाई,
भर गया जब पेट तो फिर ,उठाया और फेंक डाला
समझ कर ,हमको  रखा है ,उनने दोने पत्तलों सा ,
जब नहीं जरुरत रही  तो ,उठाया,घर से निकाला
जब तलक,मधुकोश में था ,भरा संचित ,प्रेम का रस,
तब तलक, अनुराग जतला ,रहे  पीते ,प्रेम अमृत
प्यास अपनी  जब बुझाली ,और हुआ जब कोष खाली,
खो गयी उपयोगिता तो,कर दिया हमको तिरस्कृत
 चाह थी  जब तक अधूरी,रहे करते  जी हजूरी ,
और मतलब निकलने पर ,लोग बस कहते यही है
                                      आपकी जरुरत नहीं है
हवन की लकड़ी समझ कर ,कुण्ड में हमको जलाया
मन्त्र  पढ़ , आहुतियां दी ,पुण्य सब  तुमने  कमाया
यज्ञ जब पूरा हुआ तो ,रह  गए  हम राख बनके ,
और बस ये किया तुमने , हमें  गंगा  में   बहाया
यदि अगन के सात फेरे,लगा लेते  साथ  मेरे,
जिंदगी जगमगा जाती ,दूर होते सब अँधेरे
पर किसी से बाँधना  बंधन, नहीं आदत  तुम्हारी ,
एक जगह रुकते नहीं हो,बदलते रहते बसेरे
लाख बोला ,साथ मेरे ,बसा लो तुम नीड अपना ,
किन्तु तुम उन्मुक्त पंछी,कहा,ये  आदत नहीं है
                                   आपकी जरुरत नहीं है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

गुरुवार, 10 जुलाई 2014

तीन चतुष्पद

           तीन चतुष्पद
                    १
तुम्हारा रूप प्यारा है,अदाएं शोख और चंचल
तुम्हारी चाल मतवाली, कमर में पड़ने लगते बल
बुलाता,पास ना आती,हमेशा टालती ,कह ,कल
कलेजा चीर देती हो ,जब कहती हो हमें अंकल
                         २
हसीना को पटाने में ,पसीने छूट जाते  है
हसीना मान जाती तो पसीना हम बहाते है
प्यार के बाद शादी कर,बोझ बढ़ जाता है सर पर , 
गृहस्थी को चलाने में ,पसीने छूट जाते है
                            ३
मेरी तारीफ़ करते ,लक्ष्मी घर की बताते हो
कमा कर दूसरी फिर लक्ष्मी तुम घरपे लाते हो  
मेरी सौतन को जब मैं खर्च कर ,घर से भगाती हूँ,
मुझपे खर्चीली होने की,सदा तोहमत लगाते  हो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

जीवन में कितने अवसर है

     जीवन में कितने अवसर है

जीवन में कितने अवसर है
कैसे,किसका ,लाभ उठायें,
ये सब अपने पर निर्भर है
सूरज वही,धूप भी  आती
चुभती कभी,कभी मन भाती
दिन में तपन,शाम को ठंडक
लेते कभी उसे बादल ढक
कैसे उसका लाभ मिलेगा ,
यह सब मौसम पर निर्भर है
जीवन में कितने अवसर है
हरेक जिस्म का अपना जादू
हर तन की है अपनी खुशबू
हरेक होंठ का स्वाद अलग है
हर क्षण का उन्माद अलग है
पर जब मिलते है दो प्रेमी ,
बहता मधुर प्यार निर्झर है
जीवन में कितने अवसर है
इस दुनिया में सौ सौ दुःख है
इस जीवन में सौ सौ सुख है
दुःख में हम खुद को तड़फ़ाते
या फिर सुख का मज़ा उठाते
कैसे किसका लाभ उठाये,
ये  निर्णय लेना हम पर है
जीवन में कितने अवसर है
लाख महल बांधो सपनो के
लेकिन जब मिलते है मौके
यदि तुम हिचकेऔर घबराये
लाभ समय पर उठा न पाये
वक़्त निकल जाता ,रह जाते,
हम अपने हाथों को  मल है
जीवन में कितने अवसर है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मेरा पहला डेटिंग

         मेरा पहला डेटिंग

हसीना
फंसी  ना
निकल गया ,
पसीना
दिया लंच ,
डिनर भी
दिखलाया ,
पिक्चर भी
इधर उधर ,
टहलाया
गिफ्ट दे ,
बहलाया
आइसक्रीम,
चॉकलेट
मगर नहीं
हुई'सेट'
जेब हो ,
गयी खाली
मगर घास ,
ना डाली
मुफ्त में ,
मज़ा लिया
बेवकूफ ,
बना दिया
न तो प्यार,
नहीं 'किस '
हुई टांय,
टांय फिस्स
कुछ भी ना,
कर पाये
बुध्धू बन,
घर  आये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जल बीच मीन पियासी

                   घोटू के पद           
               जल बीच मीन पियासी
जल बीच मीन पियासी रे 
मोहे सुन सुन आये हांसी रे
एक जमाने में होती थी,जो चरणो की दासी रे
साथ समय के ऐसी बदली,सर पर चढ़ कर नाची रे
लाख मनाओ ,पर ना माने ,मुख पर लाये  उदासी रे
उसे पटाने को हम करते,मेहनत अच्छी खासी  रे
हम समझती है हम जैसे, हो उसके चपरासी  रे
तीखे तेवर दिखलाती है ,सुन कर बात  जरासी रे
जिक्र प्यार का ,जब भी छेड़ो,आये उसे उबासी रे
वो इस करवट ,हम  करवट ,जल बीच मीन पियासी रे
हर पति की ऐसी  हालत,मोहे सुन सुन आये हांसी रे 

घोटू

मंगलवार, 8 जुलाई 2014

इनफ्लेशन और अवमूल्यन

    इनफ्लेशन और अवमूल्यन

हमें याद आते हैं वो दिन ,जब अपना सिक्का था चलता
थोड़ी सी ही इनकम थी पर ,परिवार सारा  था   पलता
कदर हमारी भी होती थी,हममें  था परचेजिंग पॉवर
घर का राशन फल और सब्जी,सब आते थे,थैला भर कर
साथ उमर के बड़े हुए हम ,बढ़ा चौगुनी गति, इनफ्लेशन
गयी हमारी कीमत घटती ,नहीं रहा हममें बिलकुल दम 
बच्चों की दौलत होती थी,कभी चवन्नी और अठन्नी
अब तो इनका चलन बंद है,लोग काटते ,इनसे कन्नी
जैसे इनकी कदर घाट गयी ,पूछ हमारी भी ना  वैसे
हम हज़ार के नोट बने ना,रहे  वही ,वैसे के  वैसे
इनफ्लेशन की तरह बुढ़ापा ,घटा दिया करता है कीमत
जैसे उसकी सेहत गिरती , घट जाती है ,उसकी  इज्जत 
अपना,इतना ये अवमूल्यन,हमको बहुत अधिक है खलता
हमें याद आते है वो दिन ,जब अपना था सिक्का चलता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दौलत -महोब्बत की

             दौलत -महोब्बत की

बड़ा ही नाज़ दिखलाते ,
हुस्न पर अपने इतराते,
 हवा में उड़ते रहते है,
             जवानी जिस पे चढ़ती है
समय के साथ दुनिया की ,
हक़ीक़त सामने आती ,
ये गाडी जिंदगानी की,
           बड़ी रुक रुक के बढ़ती है
दौलते जिस्म हो चाहे,
दौलते  हुस्न हो चाहे ,
ये दोनों दौलतें ऐसी ,
         समय के साथ ढलती है
मगर  दौलत महोब्बत की,
 इश्क़ की और चाहत की ,
  ये दौलत  दोस्ती की है,
           दिनों  दिन दूनी बढ़ती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

खुशबू

                         खुशबू

चाहे कितना भी मंहगा हो ,एक पत्थर का टुकड़ा है ,
         मगर सुहाती है सबको ही  ,जगमग एक नगीने की
जब खिलता है पुष्प ,हमेशा, बगिया को महकाता है ,
        उसकी खुशबू सबको भाती ,आग बुझाती  सीने की
मगर हसीनों में सुंदरता और महक दोनों होते,
        अंग अंग फूलों सा नाजुक,मुख पर चमक नगीने की
लेकिन माशूक जब मस्ती मे ,अपना तन महकाती है,
        भड़काती है आग जिस्म की,खुशबू मस्त पसीने की

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

क्यों हर बार छला जाता है

          क्यों हर बार छला जाता है

नेताओं के झूंठे झूंठे ,वादों पर फिसला जाता है
मंहगाई के बोझ तले वो,रोज रोज कुचला जाता है
बहुत जरूरी सुविधाएं भी,उसको होती नहीं मुहैया,
बिजली कभी चली जाती है ,पानी कभी चला जाता है
आलू प्याज हो रहे मंहगे,और चीनी में आग लगी है,
कैसे घर का पेट भरे वो ,बेचारा पगला   जाता  है
स्कूल फीस ,रेल का भाड़ा ,सब चीजों के दाम बढ़ गए ,
दुनिया भर की चिंताओं से,वो होता दुबला जाता है
एक पाट दफ्तर,एक घर का,मिडिल क्लास सा फँसा हुआ वो,
दो पाटों के बीच बिचारा,उसका दिल दहला   जाता है
मजबूरी में चुप रहता है ,मुंह से चूं तक नहीं निकलती ,
बोझ गृहस्थी का इतना है,उसका दम निकला जाता है
हे भगवान ,बता  दे ,मुझको,क्यों ये तेरा अपना बंदा ,
क्यों अक्सर तेरे ही बंदों से हर बार छला  जाता  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

लड़ाई और प्यार

          लड़ाई और प्यार

चम्मच से चम्मच टकराते,जब खाने की टेबल पर ,
        तो निश्चित ये बात समझ लो,खाना है स्वादिष्ट बना
नज़रों से नज़रें  टकराती,तब ही  प्यार पनपता है ,
         लडे  नयन ,तब ही  तो कोई ,राँझा कोई हीर बना 
एक दूजे को गाली देते ,नेता जब चुनाव लड़ते ,
       मतलब पड़ने पर मिल जाते ,लेते है सरकार  बना
मियां बीबी भी लड़ते है,लेकिन बाद लड़ाई के,
       होता है जब उनका मिलना,देता प्यार मज़ा दुगुना

घोटू 

रविवार, 6 जुलाई 2014

ग़म ही गम

      ग़म ही गम

गमो के गाँव में आकर ,गए हम भूल मुस्काना ,
पड़ गयी मुश्किलें पीछे ,ग़मों की इतनी शिद्दत है
न कोई सूझता रस्ता,अँधेरा ही अँधेरा  है,
सुखों की साख बिगड़ी है, मुसीबत ही मुसीबत है

घोटू 

बूढ़ों में भी दिल होता है

       बूढ़ों में भी दिल होता है

होता सिर्फ जिस्म बूढा है,
जो कुछ नाकाबिल होता है
पर जज्बात भड़कते रहते,
बूढ़ों में भी दिल होता है
सबसे प्यार महब्बत करना
और हुस्न की सोहबत करना
ताक,झाँक,छुप कर निहारना
चोरी चोरी  ,नज़र   मारना
जब भी देखें , फूल सुहाना
भँवरे सा उसपर  मंडराना
सुंदरता की  खुशबू  लेना
प्यार लुटाना और दिल देना
ये सब बातें, उमर न देखे
निरखें हुस्न ,आँख को सेंकें
दिल पर अपने काबू रखना ,
उनको भी मुश्किल होता है
बूढ़ों में भी दिल होता है
उनके दिल का मस्त कबूतर
उड़ता रहता नीचे , ऊपर 
लेता इधर उधर की खुशबू
करता रहता सदा गुटरगूं
 घरकी चिड़िया  रहती घर में
खुद उड़ते रहते अम्बर मे
चाहे रहती, ढीली  सेहत
पर रहती अनुभव की दौलत
काम बुढ़ापे में जो आती
उनकी दाल सदा  गल जाती 
दंद फंद कर के कैसे भी ,
बस पाना मंज़िल होता है
बूढ़ों में भी दिल होता है
जब तक रहती दिल की धड़कन
तब तक रहता दीवानापन
भले बरस वो ना पाते है
लेकिन बादल तो छाते है
हुई नज़र धुंधली हो चाहे
माशूक ठीक नज़र ना आये
होता प्यार मगर अँधा है
चलता सब गोरखधंधा है
भले नहीं करते वो जाहिर
अपने फ़न में होते माहिर
कैसे किसको जाए पटाया,
ये अनुभव हासिल होता है
बूढ़ों में भी दिल होता है
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ऐसा भी होता है

      ऐसा भी  होता है

चाहते हैं लोग बिस्कुट कुरकुरे,
                    भले चाय में भिगो कर खाएंगे
कितनी ही सुन्दर हो पेकिंग गिफ्ट की,
                    मिलते ही रेपर उतारे  जाएंगे
पहनती गहने है सजती ,संवरती ,
                     है हरेक दुल्हन सुहाग रात को,
जबकि होता है उसे मालूम ये,
                      मिलन में,  ये सब उतारे जाएंगे

घोटू

गुरुवार, 3 जुलाई 2014

Re: क्या हाल है?



On Friday, June 27, 2014, madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:
         क्या हाल है?

दांत, डेंटिस्ट के भरोसे
सांस,दवाइयों के भरोसे
नज़र,चश्मे के भरोसे
वक़्त,टी. वी. के भरोसे
किससे क्या करें आस,
किसी को क्यों कोसे?
अब तो हम दोनों है,
एक दूसरे के भरोसे 
बाकी ये जीवन है ,
सिर्फ भगवान के भरोसे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 1 जुलाई 2014

मेह-नेह

                मेह-नेह 
श्याम श्याम बादल का,ह्रदय चीर ,बहा मेह
सर्वप्रथम  टकराई, गरम गरम,  हवा  देह
तप्त ह्रदय के उसके,पंहुचाई  ठंडक   फिर
तपी तपी ,उड़ी उड़ी ,गयी उसे माटी मिल
माटी के  रंग रंगा, साथ  रहा  और बहा
हुआ लाल पीला वो,उसके संग ,कहाँ कहाँ  
और प्रतीक्षारत बैठी,धीर धरे,प्रिया  धरा
मिलन हुआ उसके संग,जी भर के प्यार करा
समा गया उसके मन,भर उमंग, संग संग में 
जिसका भी साथ मिला,गया रंग ,उस रंग में
प्यार मिला प्रियतम का,हुई धरा मतवाली
मिला  नेह, धरा  देह, पर  छाई   हरियाली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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