एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

मंगलवार, 3 जून 2014

प्राणायाम--एक शंका

प्राणायाम--एक शंका

ऐसा कहा जाता है
आदमी गिनती की सांस लेकर आता है
और जब वो गिनती पूरी हो जाती है
मौत आती है
जीवन जीने में हर रोज
देतें है महत्वपूर्ण सहयोग
भोग और योग
भोग की प्रक्रिया में ,साँसे गतिमान होती है
और आदमी जितना ज्यादा भोग में लिप्त होता है ,
उतनी साँसों की गिनती कम होती जाती है
और उम्र घट जाती   है 
इसीलिए ,ऐसा  कहा जाता है
 ब्रह्मचर्य , उम्र को बढाता  है
और योग की एक विधा ,
जिसे  हम प्राणायाम कहते है
जिसमे अलग अलग विधि से ,
जल्दी जल्दी सांस लेते है
ये भी कहा जाता है  कि ,
प्राणायाम करने  से , उम्र बढ़ जाती है
यह बात हमारी समझ में कम आती है
जब जिंदगी की साँसे ,गिनी चुनी होती है ,
तो क्यों हम प्राणायाम कर,
जल्दी जल्दी सांस लेकर ,
व्यर्थ ही अपनी साँसों की गिनती ,
 यूं ही कम कर दिया  करते है
और अपनी उम्र घटा दिया करते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-