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गुरुवार, 1 मई 2014

पत्नी तारा बाहेती के जन्मदिवस पर

    मेरी प्रिय

               शुभकामनाओं सहित

सड़सठ की हो गयी ,मगर अब भी मतवाली
वही  कशिश  है,वही  अदायें ,सत्रह  वाली
पांच दशक के बाद अभी भी उतनी  दिलकश
पास तुम्हारे आने को मन करता  बरबस 
वही ठुमकती  चाल ,निगाहें वो ही कातिल
मधुर मधुर  मुस्कान ,मोह  लेती मेरा दिल
तिरछी नज़रों वाला वो अंदाज ,वही है
वो ही साँसों की सरगम है ,साज वही है
 तो क्या हुआ ,बढ़ गया कंचन है जो तन पर 
तो क्या हुआ चढ़ गया चश्मा,अगर नयन पर
वो ही सुन्दर तन है,वैसी ही सुषमा है
और प्यार में ,अब भी वैसी ही ऊष्मा है
वही महकता बदन लिये खुशबू चन्दन की
वो ही प्यारी छटा और आभा यौवन की
अब भी तुम में वही चाशनी ,मीठी  रस की
बहुत बधाई तुमको अपने जनम दिवस की
सदा रहे मुख पर छाई  ,मुस्कान निराली
वही कशिश है ,वही अदायें , सत्रह  वाली

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

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