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बुधवार, 10 अक्तूबर 2012

Re: जमाई जी,आप तो देश के दामाद है

This poem seems to be for Robert Vadra. Pls find under given facts about him.

Hidden Truths
 
 

 
THIS IS JUST AMAZING ! IT HAPPENS ONLY IN INDIA !

Please read and then forward to as many people as possible...

1. TATAs took 100 years to become billionaire, Ambanis took 50 years(after utilizing all its resources), where as Robert Vadra took less than 10 years to become fastest multi billionaire.


2. All newspapers are scared to discuss the story of Robert Vadra because of severe threat from Sonia Gandhi and Congress govt.


3. After Robert Vadra got married with Priyanka Gandhi, Robert's father committed suicide under mysterious circumstances, his brother found dead in his Delhi residence and his sister found dead in mysterious car accident. These reports were not published in any Indian media.


4. He is having stakes in Malls in premier locations of India, he is having stakes in DLF IPL, and DLF itself. He was involved in CWG corruption - DLF was responsible for development of Commonwealth games, and Kalmadi gave favoritism to DLS because of Robert Vadra's direct interest and business partnership with DLF.


5. Robert Vadra owns many Hilton Hotels including Hilton Gardens New Delhi


6. Robert Vadra's association with Kolkata Knight Ryders has never been reported by Indian media


7.
Hehas 20% ownership in Unitech, Biggest beneficiaryownership of 2G Scam. Because of Robert's involvement in this scam, there are concerns that investigationwould never reach decisive conclusion
8. He owns prime property in India specially commercial hubs, and taxi business but for Air Taxi. He owns few private planes as well.

9.
He has direct link with Italian businessman Quatrochi.
10.The Bureau of Civil Aviation Security has created a record of sorts by according special privilege to Robert Vadra, which entails him to walk in and out of any Indian airports without being subject to any security check. Only the President of India , Vice-President and a handful of other top dignitaries were accorded this rare distinction.
As a concerned citizen, I would like to know from the Government as to what was the special quality in Mr. Vadra that merited this rare honor. The government has no right to go in for such largesse that concerns with the security of the general public just for pleasing the son-in-law of Sonia Gandhi.
WAKE UP FELLOW INDIANS ! FIGHT AGAINST CORRUPTION !!!!!!!

 
 
 
   


 

Regards
Rakesh Sharda
Sent from my I Pad


On 10-Oct-2012, at 19:04, madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:

जमाई जी,आप तो देश के दामाद है

राजाजी के दामाद जी पर किसीने आरोप लगाया

कि  उनने अपने संबंधों का अनुचित लाभ उठाया
और जनता को जब इस बारे में समाचार मिलगया
तो सारा राजदरबार हिल गया
दरबार के नवरतन
करने लगे जी तोड़ जतन
इसके पहले कि विरोधी चिल्लाये
दामादजी को इस कलंक से बचाये
और इस प्रयत्न में,
राजाजी की नज़र में भी चढ़ जायें
बयान पर बयान आने लगे
दामाद जी को बचने लगे
राज दरबार के कई मंत्रियों ने अरबों खाया है
दामादजी ने तो थोडा सा कमाया है
दामादों से कहीं लोग पैसे लेते है
लाखों का माल,कोडियों में दे देते है
इतना तो दामादजी का हक बनता है,
इसमें क्या अपराध है
क्योंकि राजाजी का दामाद,
पूरेदेश का दामाद है

घोटू

जमाई जी,आप तो देश के दामाद है

जमाई जी,आप तो देश के दामाद है

राजाजी के दामाद जी पर किसीने आरोप लगाया

कि  उनने अपने संबंधों का अनुचित लाभ उठाया
और जनता को जब इस बारे में समाचार मिलगया
तो सारा राजदरबार हिल गया
दरबार के नवरतन
करने लगे जी तोड़ जतन
इसके पहले कि विरोधी चिल्लाये
दामादजी को इस कलंक से बचाये
और इस प्रयत्न में,
राजाजी की नज़र में भी चढ़ जायें
बयान पर बयान आने लगे
दामाद जी को बचने लगे
राज दरबार के कई मंत्रियों ने अरबों खाया है
दामादजी ने तो थोडा सा कमाया है
दामादों से कहीं लोग पैसे लेते है
लाखों का माल,कोडियों में दे देते है
इतना तो दामादजी का हक बनता है,
इसमें क्या अपराध है
क्योंकि राजाजी का दामाद,
पूरेदेश का दामाद है

घोटू

मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

आओ, देश को लूटें

       आओ, देश को लूटें
   
आओ ,देश को लूटें
लेकिन कुछ ऐसे कि,
सांप  भी  मर जाए,लाठी भी ना टूटे
सत्ता में रह कर के ,रिश्वत ना खाना है
पैसा भी कमाना है,भरना खजाना है
तो एसा तरीका अपनाये
किसी कि नज़र भी ना लगे,
काम भी बन जाये
हम अपना जन्म दिन मनायें
पहने हज़ार रुपयों के ,
नोटों से बनाया गया हार
और लाखों लोगो से लें,
बेंक के ड्राफ्ट से ,अपने नाम उपहार
सारी काली कमाई,एक नंबर में आएगी
आलोचकों कि बाट लग जायेगी
सारा पैसा व्हाइट है
आप एक दम राइट है
पैसा भी कमा लिया ,
और आयकर वालों के ,कहर से भी छूटे
आओ,देश को लूटें
हमें अच्छी तरह याद है
दहेज़ लेना या देना,कानूनी अपराध है
वैसे हमारे पास,धन कि क्या कोई कमी है?
पर हम सत्ता में है और बेटी ब्याहनी है
बेटी की शादी में ज्यादा दिखावा न करें
शोर शराबा न करें
सबको दहेजमुक्त शादी दिखलायें
पर दामाद जी और उनके घरवालों को ,
दूसरी तरह से फायदा पहुंचायें
अपने पावर और पहुँच से,
किसी बिजनेस मेन को ओब्लायिज़ करें
और वो बिजनेस मेन,
करोड़ों का माल,कोडियों के दाम में बेच,
बेटी के ससुराल वालों को ओब्लायिज  करे
एसा कुछ सिलसिला जमा लें
की कैसे भी दामाद जी ,
फटाफट करोड़ों कमालें
ऐसे या वैसे,दहेज़ तो पहुँच ही गया,
और दहेज़ देने के आरोप से भी छूटे
सांप भी मर जाये,लाठी भी ना टूटे
आओ, देश को लूटें

मदन मोहन बाहेती'घोटू;

सोमवार, 8 अक्तूबर 2012

पके हुए फल है हम

      पके हुए फल है हम

रोज रोज शुगर  की,

हाई ब्लड प्रेशर  की
मुसली पावर  की,  केप्सूल खाते है
पीड़ा है घुटने की,
मन ही मन घुटने की
फिर भी खुश रहने की,कोशिश कर गाते है
सुबह सुबह है  वाकिंग
फिर दिन भर है टाकिंग,
लाफिंग क्लब में लाफिंग ,करने को जाते है
ख़बरें दुनिया भर की
अन्दर की,बाहर की
सुबह  न्यूज़ पेपर की ,सारी पढ़ जाते है
टी वी के सिरिअल,
देखें हम रेग्युलर,
कभी हंसें या रोकर ,आंसू छलकाते  है
कभी चाट चटकाते,
कभी पकोड़े  खाते,
कभी फोन खटकाते,पीज़ा मंगवाते  है
बचा खुचा ये जीवन,
बोनस में जीते हम,
जब तक है दम में दम,हरदम मुस्काते है
पके हुए है हम फल,
गिर जाए कब किस पल,
यही सोच  हर पल का,मज़ा  हम  उठाते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

वो औरत


देखा उस दिन उस घर में

शादी का जश्न था;
आँगन था भरा पूरा
हो रहा हल्दी का रस्म था,
ठहाकों कि गूंज थी
हँसी मज़ाक कमाल था,
शमा देखकर खुशियों का
"दीप" भी खुशहाल था |

तभी अचानक नजर उठी
छत पर जाकर अटक गई,
एक काया खड़ी-खड़ी
सब दूर से ही निहार रही,
होठों पे मुस्कान तो थी
नैनों में पर बस दर्द था,
आँखों के कोर नम थे
हृदय में एक आह थी;
बुझी-बुझी सी खड़ी थी वो
बातें उसकी रसहीन थी,
खुशियों के मौसम में भी
वो औरत बस गमगीन थी |

श्वेत वस्त्र में लिपटी हुई
सुने-सुने हाथ थे,
न आभूषण, न मंगल-सूत,
सुनी-सुनी मांग थी,
चेहरे में कोई चमक नहीं
मायूसी मुख-मण्डल में थी;
नजरें तो हर रसम में थी
पर हृदय से एकल में थी |
उस घर की एक सदस्य थी वो,
वो लड़के की भोजाई थी,
था पति जिसका बड़ा दूर गया
बस मौत की खबर आई थी;
दूर वो इतना हो गया था
तारों में वो खो गया था |

घरवालों का हुक्म था उसको
दूर ही रहना, पास न आना,
समाज का उसपे रोक था
सबके बीच नहीं था जाना;
शुभ कार्य में छाया उसकी
पड़ना अस्वीकार था,
शादी जैसे मंगल काम में
ना जाने का अधिकार था |
खुशियाँ मनाना वर्जित था,
रस्मों में उसका निषेध था;
झूठे नियमों में वो बंधी
न जाने क्या वो भेद था;
जुर्म था उसका इतना बस
कि वो औरत एक विधवा थी,
जब था पति वो भाभी थी,
बहू भी थी या चाची थी,
पति नहीं तो कुछ न थी
वो विधवा थी बस विधवा थी |

एक औरत का अस्तित्व क्या बस,
पुरुषों पर ही यूं निर्भर है ?
कभी किसी कि बेटी है,
कभी किसी कि पत्नी है,
कभी किसी बहू है वो,
तो कभी किसी कि माता है;
उसकी अपनी पहचान कहाँ,
वो क्यों अब भी अधीन है ?
इस सभ्य समाज के सभी नियम
औरत को करे पराधीन है;
वो औरत क्यों यूँ लगा-सी थी ?
वो औरत क्यों मजबूर थी ?
उसपर क्यों वो बंदिश थी ?
वो खुद से ही क्यों दूर थी ?

शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012


















महात्मा गांधी
:::::::::::::::::::::::::::::
जो भी था तुम्हारे पास देश पर लुटा गए
हँसते-हँसते देश के लिए ही गोली खा गए,
यूं तो सभी जीते हैं अपने - अपने वास्ते
दूसरों के वास्ते तुम जीना सिखा गए....

लाल बहादुर शास्त्री 
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
तख़्त-ओ-ताज पाके भी आम आदमी रहे
कोशिश की हर जगह सिर्फ सादगी रहे,
करके दिखा दिया कि मुल्क साथ आएगा
शर्त मगर एक कि ईमान लाजमी रहे.....

- VISHAAL CHARCHCHIT

गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

प्रभु दर्शन का प्रताप

       प्रभु दर्शन का प्रताप

एक आदमी उम्र भर रहा बुरे कामो में लगा

जब पचास के आसपास हुआ ,
उसका जमीर जगा
सोचा अब तलक करता रहा पाप कर्म
न कोई भला काम किया ना दान धर्म
मरने के बाद पछताऊंगा
यहाँ भी नारकीय जीवन जिया है,
मरने के बाद भी नरक जाऊँगा
तो क्यों न जीते जी अपना जीवन सुधार लूं
दान धर्म करलूं और प्रभू का नाम लूं
मौके की बात की उस समय भगवान,
पृथ्वी  का लगा रहे थे चक्कर 
उन्होंने  उसका ह्रदय परिवर्तन देख कर
सोचा इसकी परीक्षा ले लें जरा
और उन्होंने एक बीमार,निर्धन बूढ़े का रूप धरा
और इस आदमी से मदद की गुहार की,
तो उसके  भीतर का सोया इंसान जग गया
और वो उस बूढ़े की सेवा में लग गया
प्रभु जी प्रसन्न  हुए  ,और प्रकट  होकर
उन्होंने उसको दे दिया ये वर
सामनेवाले मंदिर के तू लगाएगा जितने चक्कर
उतने ही वर्षों की होगी तेरी उमर,
आदमी ख़ुशी से पागल हो चक्कर लगाने लगा
और तेजी से भागने लगा
पर पचासवें चक्कर में उसका हार्ट फ़ैल हो गया
और उसका देहांत हो गया
मरने के बाद वो चकराया
जब उसने अपने आप को स्वर्ग में पाया
उसने चित्रगुप्त जी से पूछा,
मैंने उम्र भर था पाप किया
तो आपने कैसे मुझे ये स्वर्ग  दिया
चित्रगुप्त  जी बोले  ये सच है,तूने,
 उमर भर अपने को  पाप ही पाप में उलझाया था 
पर मरने के पूर्व तेरे मन में पश्चाताप आया था
और तूने साक्षात् प्रभू के दर्शन का पुण्य कमाया है
बस इसी का प्रताप है,तू स्वर्ग आया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

करुण पुकार

रे मैया मेरी छाया भी ना तुझे सुहाती है,
भैया से तो तू तो हरदम लाड़ दिखाती है;
सूखा मुझको देकर मेवा उसे खिलाती है,
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

क्या गलती ये मेरी कन्या काया पाई हूँ ?
पर मैया मैं भी तो तेरे कोख से आई हूँ;
तू भी तो एक कन्या है क्यों इसे भूलाती है,
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

दादा-दादी, बापू को तो जरा न भाती मैं,
पर तूने तो जन्मा क्यों फिर याद न आती मैं?
तू खुद ही जाके क्यों न सबको समझाती है?
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

गर्भ में थी तब ही सबने मुझको मरवाना था,
ईश कृपा थी धरती पर जो मुझको आना था,
भैया जैसे ही प्रकृति मुझको भी बनाती है,
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

नहीं अलग मैं भैया से हूँ, नहीं हूँ कमतर मैया,
बाला-बाल में भेद नहीं है अब तो मानो मैया;
कुल रोशन कर सकती अवसर क्यों न दिलाती है?
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

धरती से उस आसमान तक मैं भी तो उड़ सकती माँ,
भैया जो-जो कर सकता है मैं भी तो कर सकती माँ,
क्यों भैया को खुशियाँ देती, मुझे रुलाती है,
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

खुद तुम समझो मैया और जग को भी तुम बताओ,
दूर करो हर भेद को, सबके मन का मैल मिटाओ,
सब माएं ये समझ के कसम क्यों न खाती है ?
मैया मुझसे भी न क्यों तू प्यार जताती है |

कर्मक्षेत्र -कुरुक्षेत्र

        कर्मक्षेत्र -कुरुक्षेत्र

जीवन में जंग होती अक्सर,

                       जर,जमीन का हो चक्कर
सगे और सम्बन्धी कितने,
                           तुमसे लड़ने को तत्पर
भ्राता दुर्योधन  हठ धर्मी ,
                           जिद है सत्ता   पाने की
घर घर पर होती महाभारत,
                           ये है रीत जमाने की
  कई शकुनी,भड़काने को,
                           फेंक   रहे  उलटे पासे
धृतराष्ट्र भी ,पुत्र मोह में,
                           बंद रखे ,अपनी आँखें
भरी सभा,रो रही द्रोपदी,
                            चीरहरण  इज्जत का है
तो फिर कौन रोक सकता है,
                             युद्ध  महाभारत  का है
कर्मक्षेत्र ही कुरुक्षेत्र  है,
                            भले बुरे की जंग छिड़ी
सत्य असत्य आज दोनों की,
                            आपस  में है फ़ौज भिड़ी
अधिकार की इस लड़ाई में,
                            लड़ना पड़ता,जीवन भर
देख सामने ,कुछ अपनों को,
                           शस्त्र  फेंकतें है कायर
तुम अर्जुन बन,कृष्ण चन्द्र को ,
                             बना सारथी ,पास रखो
तुम अपने गांडीव ,बाहुबल,
                              पर पूरा  विश्वास  रखो
कृष्ण साथ है,राह दिखाते,
                             ध्वज  पर बैठे हनुमत है
तो समझो इस महासमर में,
                            जीत  तुम्हारी निश्चित  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

              
       

महिलायें-महान बड़ी

     महिलायें-महान बड़ी

महिलायें,सचमुच में,होती है महान बड़ी,

                          पति का भी ख्याल रखे,बच्चे भी पाले है
कभी सूर्य चंदा बन,रास्ता दिखलाती,
                          अंधियारे जीवन में,करती उजियाले   है
जीवन की उलझन के डोरे भी सुलझाती,
                           और कभी मनभावन ,डोरे भी डाले है
मुख पर मुस्कान लिए,ख्याल रखे है सब का,
                             दफ्तर भी जाती है,घर भी संभाले  है
कभी सरस्वती है तो ,कभी रूप दुर्गा का,
                             कभी ज्ञान बाँटें है,कभी दुष्ट  मारे है
नारी तो देवी है,नारी सा कोई नहीं,
                             वो घर की लक्ष्मी है,घर को सँवारे है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'   

सोमवार, 1 अक्तूबर 2012

वो बचपन कितना प्यारा था

       वो बचपन कितना प्यारा था

जब मै था,नन्हा नन्हा मुन्ना गोलू सा

सबको देख मुस्करा देता था मै भोलू सा
सजा धजा कर मुझको सुन्दर और सलोना
आँखों में काजल ,माथे पर लगा ठिठोना
करती थी तैयार,पास था जो भी आता
करता मुझको प्यार और था मै  इठलाता
बूढ़े,बड़े,जवान,और कितनी कन्यायें
मुझसे मिलने आती थी ,बाँहें फैलाये
मुझको गोदी में लेकर घूमा करती थी
मेरे कोमल गालों को चूमा करती थी
उन्हें देख कर मै भी भरता था किलकारी
टांगें हिला हिला  उन पर जाता बलिहारी
मुझको गोदी में लेकर जो थी इतराती
आज वो ही कन्यायें ,मुझसे है कतराती
बड़ा हो गया तो क्या,मै  हूँ,वो का वोही
पहले जैसा प्यार  क्यों नहीं  करता कोई
हे भगवन,मुझको लौटा दे,प्यारा बचपन
उठा गोद में,प्यार करें,कन्यायें ,हरदम
जब मै उनकी प्यारी आँखों का तारा था
वो बचपन कितना प्यारा था

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


रविवार, 30 सितंबर 2012

रिटायर होने पर

रिटायर होने पर

उस दिन जब हम  होकर के तैयार

ऑफिस जाने वाले थे यार
बीबी को आवाज़ लगाई,
अभी तलक नहीं बना है खाना
हमको है ऑफिस जाना
तो बीबीजी बोली मुस्काकर
श्रीमानजी,अब आपको दिन भर,
रहना है घर पर
क्योंकि आप हो गए है रिटायर
सारा दिन घर पर ही काटना है
और मेरा दिमाग चाटना है
एसा ही होता है अक्सर
रिटायर होने पर
आदमी का जीना हो जाता है दुष्कर
दिन भर बैठ कर निठल्ला
आदमी पड़ जाता है इकल्ला
याद आते है वो दिन,
 जब मिया फाख्ता मारा करते थे
अपने मातहतों पर,
ऑफिस में रोब झाडा करते थे
यस सर ,यस सर का टोनिक पीने की,
जब आदत पड़ जाती है
तो दिन भर बीबीजी के आदेश सुनते सुनते,
हालत बिगड़ जाती है
सुबह जल्दी उठ जाया करो
रोज घूमने जाया करो
डेयरी से दूध ले आया करो
घर के कामो में थोडा हाथ बंटाया करो
बीते दिन याद आते है जब,
हर जगह वी आई पी ट्रीटमेंट था मिलता
आजकल कोई पूछता ही नहीं,
यही मन को है खलता
पर क्या करें,
उम्र के आगे किसी का बस नहीं है चलता
वक़्त काटना हो गया दूभर है
हम हो गए रिटायर है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नेता और शायर-कभी नहीं होते रिटायर

       नेता और शायर-कभी नहीं होते रिटायर

एक नेताजी,जो है अस्सी के उस पार

आज कल चल रहे है थोड़े बीमार
पर जब कोई उदघाटन करने बुलाये
या टी.वी.पर किसी मुद्दे पर चर्चा करवाए
हरदम रहते है तैयार
सुबह मंगवाते है ढेर सारे अखबार
और उन्हें खंगालते जाते है
अपने बारे में कोई खबर न छपने पर,
उदास हो जाते है
ये ही उनकी बीमारी की जड़ है सारी
और उन्हें नींद ना आने की हो गयी है बीमारी
उनका बेटा
जो उनकी मेहरबानी से,
मिनिस्टर है बना बैठा
क्योंकि राजनीती,आजकल बन गयी है,
पुश्तैनी ठेका
उसने डाक्टर  को बुलवाया
और अपने पिताजी को दिखलाया
डाक्टर ने काफी जांच पड़ताल  के बाद
उनके बेटे को बताया उनकी बिमारी का इलाज
कि आप किसी टी.वी.चेनल में हर रात
बुक करवालो,एक पांच मिनिट का स्लाट
और एक टी.वी.प्रोग्राम बनवाओ
जैसे'नेताजी के बोल-अनुभवों का घोल'
और उसे रोज रात प्रसारित करवाओ
और नेताजी को भी दिखलाओ
जब टी.वी. पर नेताजी को रोज अपनी ,
शकल नज़र आ जायेगी
उन्हें रात को अच्छी नींद आएगी
इनकी बिमारी का ये ही इलाज है
आजकल नेताजी को खूब नींद आती है,
डाक्टर का ये नुस्खा,रहा कामयाब है
कहते है नेता और शायर
कभी नहीं होते रिटायर
एक बुजुर्ग से शायर,जब कभी,
किसी मुशायरे में बुलाये जाते है
तो गरारे करते है,बाल रंगवाते है
पुरानी शेरवानी  पर ,प्रेस करवाते है
और फिर मुशायरे में अपनी ग़ज़ल सुनाते है
वाह वाह और इरशाद
का नशा,मुशायरे के बाद
आठ दस दिनों तक रहता है कायम
और इस बीच,दो तीन गज़लें,
ले लेती है जनम
ये सच शाश्वत है
जिसको पड़ जाती,तारीफ़ कि आदत है
बिना तारीफ़ से रह नहीं पाता है
और बुढ़ापे में बड़ा दुःख पाता है
नेताजी कि जुबान,तक़रीर के लिए तडफाती है
शायर को सपनो में भी,वाह वाह सुनाती है
 बूढीयाओं   को जवानी कि याद आती है
पुलिस वालों कि हथेली खुजलाती है
कुछ नहीं होने पर दिल टूटता है
ये नशा बड़ी मुश्किल से छूटता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

 
 

शनिवार, 29 सितंबर 2012

अनाम रिश्ते


कुछ रिश्ते
धरा पर
ऐसे भी हैं
दुष्कर होता जिनको
परिभाषित करना,
सरल नहीं जिनको
नाम दे पाना,
फिर भी वो होते
गहराइयों में दिल के,
जीवन में समाए,
भावनाओं से जुड़े,
अन्तर्मन में व्याप्त,
औरों की समझ से
बिलकुल परे,
खाश रिश्ते;
दुनिया के भीड़ से
सर्वथा अलग,
नहीं होता जिनमे
बाह्य आडंबर,
मोहताज नहीं होते
संपर्क व संवाद के,
समग्र सरस, सुखद
सानिध्य हृदय के,
हर व्यथा
हर खुशी में
उतने ही शरीक,
अदृश्य डोर के
बंधन में बंधे,
नाम की लोलुपता से
सुदूर और परे,
कशमकश से भरे
अनाम रिश्ते |

याद रखे दुनिया ,तुम एसा कुछ कर जाओ

 याद रखे दुनिया ,तुम एसा कुछ कर जाओ

तुम्हारा चेहरा ,मोहरा और ये आकर्षण

सुन्दर सजे धजे से कपडे या आभूषण
रौबीला व्यक्तित्व,शान शौकत तुम्हारी
धन ,साधन और ये दौलत सारी की सारी
ये गाडी ,ये बंगला और ये रूपया ,पैसा
रह जाएगा पड़ा यूं ही,वैसा का वैसा
साथ निभाने वाला कुछ भी नहीं पाओगे
खाली हाथ आये थे,खाली हाथ  जाओगे
नहीं रख सकोगे तुम ये सब,संग संभाल कर
एक दिन बन तस्वीर ,जाओगे टंग दीवाल पर
तुमने क्या ये कभी शांति से बैठ विचारा
तुम क्या हो और कब तक है अस्तित्व  तुम्हारा
झूंठी शान और शौकत पर मत इतराओ
याद रखे दुनिया, तुम एसा कुछ कर जाओ
मोह और माया के बंधन से आकर बाहर
अपनी कोई अमिट छाप छोडो  धरती पर
तुम्हारी भलमनसाहत और काम तुम्हारा
मरने पर भी अमर रखेगी,नाम तुम्हारा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  


शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

कागा-बढ़भागा

              कागा-बढ़भागा

कौवा ,एक बुद्धिमान प्राणी है

बात ये जानी मानी है
हम सबने उस कौवे की कथा तो है पढ़ी
जिसको लग रही थी प्यास बड़ी
उसे एक छत पर
एक मटकी आई नज़र
जिसकी तली में थोडा पानी था
पर कौवा तो ज्ञानी था
वो चुन चुन कर,लाया कंकर
और मटकी में डालता गया,
और जब पानी का स्तर
उसकी चोंच की पहुँच तक आया
उसने अपनी प्यास को बुझाया
प्राचीन ग्रंथो में भी,
काग के गुण गाये जाते है
काग जैसी चेष्ठा को,विद्यार्थी के,
पांच लक्षणों में से एक बताते है
कहते है कौवा एकाक्षी होता है
सबको एक नज़र  से देखने वाला पक्षी होता है
कोयल ओर कागा,दोनों हमजाति है
फर्क केवल इतना है,
 कौवा कांव कांव करता है
और कोयल कूहू कूहू गाती है
पर कौवा परोपकारी जीव है,
जाति धर्म निभाना जानता है
कोयल के अण्डों को अपना मान कर पालता है
कौवा  प्रतीक  है,हमारे पुरखों का
और ये चलन है कई बरसों का
कि जब हम श्राद्ध पक्ष मनाते है,
तो सबसे पहले कौवे को खाना खिलाते है
एक पुराना  मुहावरा है,
'कौवा चला हंस कि चाल'
पर आजकल है उल्टा हाल,
हंस जैसे सफेदपोश नेता,
कौवे कि चाल चलते है
काजल कि कोठरी से भी,
बिना  दाग निकलते है
कोयले कि दलाली में कमाया हुआ काला धन ,
स्विसबेंकों में जमा करते है
कौवे की कांव कांव,आजकल,
बड़ी पोपुलर दिखाई देती है
विधानसभा हो या संसद,
हड़ताल हो या बंद,
हर जगह बस कांव कांव ही सुनाई देती है
पुराने जमाने में,जब ,मोबाईल नहीं होता था,
विरहन नायिकाएं,बस कौवे के गुण गाती थी
अटरिया पर कौवे की कांव कांव,
उन्हें पियाजी का संदेशा सुनाती थी
और जब पिया के आने का सन्देश मिलता था,
उसकी चोंच को सोने से मढ़ाती थी
ये काग का ही सामर्थ्य था,
कि वो कृष्ण कन्हैया के हाथों से,
माखन रोटी छीन सकता था
सीता माता के चरणों  में चोंच मार सकता था
वो काकभुशंडी कि तरह,भक्त और  विद्वान् है
कौवा सचमुच महान है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

शहीदे आजम रहा पुकार


("शहीदे आजम" सरदार भगत सिंह के जन्म दिवस पर श्रद्धांजलि स्वरूप पेश है एक रचना )

जागो देश के वीर वासियों,
सुनो रहा कोई ललकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

सुप्त पड़े क्यों उठो, बढ़ो,
चलो लिए जलती मशाल;
कहाँ खो गई जोश, उमंगें,
कहाँ गया लहू का उबाल ?

फिर दिखलाओ वही जुनून,
आज वक़्त की है दरकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

पराधीनता नहीं पसंद थी,
आज़ादी को जान दी हमने;
भारत माँ के लिए लड़े हम,
आन, बान और शान दी हमने |

आज देश फिर घिरा कष्ट में,
भरो दम, कर दो हुंकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

कई कुरीति, कई समस्या,
से देखो है देश घिरा;
अपने ही अपनों के दुश्मन,
नैतिक स्तर भी खूब गिरा |

ऋण चुकाओ देश का पहले,
तभी जश्न हो तभी त्योहार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

भ्रष्टाचार, महंगाई से है,
रो रहा ये देश बड़ा;
अपनों ने ही खूब रुलाया,
देख रहा तू खड़ा-खड़ा ?

पहचानों हर दुश्मन को अब,
छुपे हुए जो हैं गद्दार,
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

लोकतन्त्र अब नोटतंत्र है,
बिक रहा है आज जमीर;
देश भी कहीं बिक न जाए,
जागो रंक हो या अमीर |

चूर करो हर शिला मार्ग का,
तोड़ दो उपजी हर दीवार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

आज गुलामी खुद से ही है,
आज तोड़ना अपना दंभ;
आज अपनों से देश बचाना,
आज करो नया आरंभ |

आज देश हित लहू बहेगा,
आज उठो, हो जाओ तैयार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

-"दीप"

आपकी परछाईयां

              आपकी परछाईयां
सुबह सुबह जब उगता है सूरज,
परछाईयाँ लम्बी  होती है
उसी तरह ,जीवन का सूरज  उगता है,
यानी की बचपन,
आप सभी को डेक कर मुस्काते है
किलकारियां भरते है
खुशियाँ लुटाने में,
कोई  भेदभाव नहीं करते है
आपकी मुस्कान का दायरा,
सुबह की परछाईं की तरह,
बड़ा लम्बा होता है
और दोपहरी में,
याने जीवन के मध्यान्ह में,
आपकी परछाईं,आपके नीचे,
अपने में ही सिमट कर रह जाती है
वैसे ही आप जब,
अपने उत्कर्ष की चरमता पर होते है,
अहम से अभिभूत होकर,
स्वार्थ में लिपटे हुए,
सिर्फ अपने आप को ही देखते है
और दोपहर की परछांई की तरह,
अपने में ही सिमट कर रह जाते है
और शाम को,
जब सूरज ढलने को होता है,
आपकी परछांई,लम्बी होती जाती है,
वैसे ही जब जीवन की शाम आती है,
आपकी सोच बदल जाती है
आपकी भावनाओं का दायरा,
पुरानी यादों की तरह,
उमड़ते जज्बातों की तरह,
तन्हाई भरी रातों की तरह,
लम्बा होता ही जाता है
जब तक सूरज ना ढल जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


अपने मन की कोई खिड़की खोल कर तो देख तू

अपने मन की कोई खिड़की खोल कर तो  देख तू     

अपने मन की कोई खिड़की,खोल कर तो देख तू

प्यार के दो बोल मीठे  , बोल कर तो देख तू
            मिटा दे मायूसियों को, मुदित होकर  मुस्करा
             खोल मन की ग्रंथियों को,हाथ तू आगे  बढ़ा
            सैकड़ों ही हाथ तुझसे ,लिपट कर मिल जायेंगे
             और हजारों फूल जीवन में तेरे खिल जायेंगे
             महकने जीवन लगेगा,खुशबुओं से प्यार की
             जायेंगी मिल ,तुझे खुशियाँ,सभी इस संसार की
अपने जीवन में मधुरता,घोल कर तो देख तू
प्यार के दो बोल मीठे ,  बोल कर तो देख   तू
             धुप सूरज की सुहानी सी लगेगी ,कुनकुनी 
             तन बदन उष्मित करेगी,प्यार से होगी सनी
             और रातों को चंदरमा,प्यार बस बरसायेगा
              मधुर शीतल,चांदनी में,मन तेरा मुस्काएगा
              मंद शीतल हवायें, सहलायेगी तेरा  बदन
              तुझे ये दुनिया लगेगी ,महकता सा एक चमन
घृणा ,कटुता,डाह ,इर्षा,मन के बाहर फेंक  तू
प्यार के दो बोल मीठे ,बोल कर तो  देख तू
              क्यों सिमट कर,दुबक कर,बैठा हुआ तू खोह में
              स्वयं को उलझा रखा है,व्यर्थ  माया मोह में
              कूपमंडूक,कुए से ,बहार निकल कर  देख ले
              लहलहाते सरोवर में ,भी उछल कर   देख ले
              किसी को अपना बना कर,डूब जा तू प्यार में
              सभी कुछ तुझको सुहाना लगेगा संसार  में
उलझनों के सामने मत,यूं ही घुटने टेक तू
प्यार के दो बोल मीठे, बोल कर तो देख तू 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 26 सितंबर 2012

♥♥♥♥*चाहो मुझे इतना*♥♥♥♥


चाहो मुझे इतना कि पागल ही हो जाए हम,
हम टूट कर भी याद सिर्फ तुझे करे सनम |

रतजगों में भी मेरे अब बस तेरा ही नाम हो,
खुशियों में मेरे बस अब तेरा ही एहसान हो |

तेरे मेरे दरमियान न हो किसी दूरी का एहसास,
जब तक जियूं रहे तू मेरे दिल के आस-पास |

एक-दूजे के भूल को भी खुले दिल से माफ करें,
आओ, कि चाहत से अपने अब इंसाफ करें |

खुने-जिगर से लिख दूँ तेरी धडकनों में अपना नाम,
मोहब्बतों से भरा अपना ये रिश्ता है अनाम |

स्याही की जगह कलम में अपने लहू मैं भर दूँ,
ख्वाबों को भी अपने आज आ, तेरे नाम मैं कर दूँ |

चाहो मुझे इतना कि मैं खुद को ही भूल जाऊँ,
चाहो मुझे इतना कि तुझ बिन एक पल न रह पाऊँ |

चाहो मुझे इतना कि उसकी तपिश में जला दो,
चाहो मुझे इतना कि मेरी हर दुनिया भुला दो |

चाहो मुझे इतना कि ये पल यहीं पे रुक जाए,
चाहो मुझे इतना कि ये आसमान भी झुक जाए |

चाहो मुझे इतना कि हर तरफ तुम ही नजर आओ,
चाहो मुझे इतना कि तुम आज मुझमे समा जाओ |

चाहो मुझे इतना कि भूलूँ जो भी कोई दुःख हो,
कि गेसूओं तले तेरी कोई जन्नत -सा सुख हो |

चाहो मुझे चाहो तुम बस, मैं भी तुम्हें चाहूँ,
चाहत में तेरी मैं अब बस सब कुछ ही भुलाऊँ |

-♥♥"दीप"♥♥

दो इंची मुस्कान और फरमाईश गज भर

    दो इंची मुस्कान और फरमाईश गज भर

सुबह सुबह यदि पत्नीजी,खुश हो मुस्काये

जरुरत से थोडा ज्यादा ही प्यार  दिखाये
मनपसंद तुम्हारा ब्रेकफास्ट   करवाये
सजी धजी सुन्दर सी ,मीठी बात बनाये
प्यारी प्यारी बातें कर ,खुश करती दिल है
तुम्हे पटाने की ये उनकी स्टाईल   है
मस्ती मारेंगे हम,आज न जाओ दफ्तर
दो इंची मुस्कान और फरमाईश गज भर
हम खुश होते सोच ,सुबह इतनी मतवाली
क्या होगा आलम जब रात आएगी प्यारी
देख अदाएं,रूप सुहाना,जलवे, नखरा
हो जाता तैयार ,बली को खुद ये बकरा
ले जाती बाज़ार,दुकानों में भटका कर
शौपिंग करती ,हम घूमे,झोले लटका कर
भाग दौड़ में दिन भर की ,इतने थक जाते
घर आकर सो जाते ,और भरते   खर्राटे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 25 सितंबर 2012

चोर तुम भी ,चोर हम भी ....

चोर तुम भी ,चोर हम भी ....

चोर तुम भी,चोर हम भी,सिर्फ इतना फर्क है,

 कल तलक सत्ता में थे तुम,आज हम पावर में हैं
हम भी नंगे,तुम भी नंगे,रहते है हम्माम में,
दिखावे की दुश्मनी है,दोस्त हम सब घर में है
       हम हो या तुम,नहीं कोई भी धुला है दूध का
        पोल एक दूसरे की,हमको तुमको है पता
        सेकतें हैं,अपनी अपनी ,राजनेतिक रोटियां
       चलानी है ,तुमको भी और हमको भी अपनी दुकां
 ये तुम्हारा ओपोजिशन ,बंद ये,हड़ताल ये,
 कैसे सत्ता करें काबिज,बस इसी चक्कर में है
           एक थैली के हैं चट्टे बट्टे,हम भी,आप भी,
            नौ सौ चूहे मार कर के बिल्ली है हज को चली
           कोयले की दलाली में, हाथ काले सभी के,
            हमारी करतूत काली ,है ये जनता  जानती
'जिधर दम है,उधर दम है,एसे भी कुछ लोग है,
जिनको दाना डाल कर के,आज हम पावर में है
चोर तुम भी ,चोर हम भी,सिर्फ इतना फर्क है,
कल तलक सत्ता में थे तुम,आज हम पावर में है

सचमुच हम कितने मूरख है

सचमुच हम कितने मूरख है

कोई कुछ भी कह दे,उसकी बातों में  आ जाते झट है

                                सचमुच हम कितने मूरख है
 भ्रष्टाचार विहीन व्यवस्था,और सुराज के सपने देखें
इस कलयुग में,त्रेता युग के,रामराज  के सपने   देखें
पग पग पर रिश्वतखोरी है,दिन दिन बढती है मंहगाई
लूटखसोट,कमीशन बाजी,सांसद करते हाथापाई
राजनीती को ,खुर्राटों ने,पुश्तेनी व्यापार बनाया
अर्थव्यवस्था को निचोड़ कर,घोटालों का जाल बिछाया
उनके झूंठे बहकावे में,फिर भी आ जाते जब तब है
                                सचमुच हम कितने मूरख है
कथा भागवत सुनते,मन में ,ये आशा ले,स्वर्ग जायेंगे
करते है गोदान ,पकड़कर पूंछ बेतरनी ,तर जायेंगे
मोटे मोटे टिकिट कटा कर,तीर्थ ,धाम के , करते दर्शन
ढोंगी,धर्माचार्य ,गुरु के,खुश होतें है,सुन कर प्रवचन
गंगा में डुबकियाँ लगाते,सोच यही,सब पाप धुलेंगे
रातजगा,व्रत कीर्तन करते,इस भ्रम में कि पुण्य मिलेंगे
दान पुण्य और मंत्रजाप से,कट जाते सारे  संकट है
                             सचमुच हम कितने मूरख है
आज बीज बोकर खुश होते,अपने मन में ,आस लगा कर
वृक्ष घना होकर बिकसेगा, खाने को देगा मीठे फल
नहीं अपेक्षा करो किसी से,पायेगा दुःख ,ह्रदय तुम्हारा
करो किसी के खातिर यदि कुछ,समझो था कर्तव्य तुम्हारा
नेकी कर दरिया में डालो, सबसे अच्छी बात यही  है
सिर्फ भावनाओं में बह कर के, करना दिल को दुखी नहीं है
प्रतिकार की ,आशा मन में,रखना संजो,व्यर्थ,नाहक है
                           सचमुच  हम कितने मूरख है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

 

सोमवार, 24 सितंबर 2012

बढ़ने चला हूँ


आँखों में लेके एक नूर कोई,

सपनों की दुनिया सच करने चला हूँ;
अपनों के सपनों को दिल में लेकर,
दुनिया में अपना हक करने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |

राहों में बाधक हैं, मुश्किलें भी हैं,
पर खुद ही हर मुश्किल से लड़ने चला हूँ,
मार्ग में सबको बस खुशियाँ परोसता,
खुशियाँ लुटाता मैं उड़ने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |

सपनों को अपने है साकार करना,
भागती इस दुनिया में दौड़ने चला हूँ;
पर्वत, पहाड़ या मिले कोई चट्टान,
हौसले का हथौड़ा ले तोड़ने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |

मौका परस्त दौर में एक जज्बा लेकर,
इंसानियत की खोज अब करने चला हूँ;
अँधियारों में अपना ही "दीप" लेकर,
हवाओं का रुख भी मोड़ने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |

रविवार, 23 सितंबर 2012

एक विलुप्त कविता / रामधारी सिंह "दिनकर"

आज राष्ट्रकवि रामधारी सिंह "दिनकर" का जन्म दिवस है | उनकी इस रचना के साथ उन्हे अनेकानेक नमन और भावभीनी श्रद्धांजलि |
बरसों बाद मिले तुम हमको आओ जरा बिचारें,
आज क्या है कि देख कौम को गम है।
कौम-कौम का शोर मचा है, किन्तु कहो असल में
कौन मर्द है जिसे कौम की सच्ची लगी लगन है?
भूखे, अपढ़, नग्न बच्चे क्या नहीं तुम्हारे घर में?
कहता धनी कुबेर किन्तु क्या आती तुम्हें शरम है?
आग लगे उस धन में जो दुखियों के काम न आए,
लाख लानत जिनका, फटता नही मरम है।
दुह-दुह कर जाति गाय की निजतन धन तुम पा लो
दो बूँद आँसू न उनको यह भी कोई धरम है?
देख रही है राह कौम अपने वैभव वालों की
मगर फिकर क्या, उन्हें सोच तो अपन ही हरदम है?
हँसते हैं सब लोग जिन्हें गैरत हो वे सरमायें
यह महफ़िल कहने वालों को बड़ा भारी विभ्रम है।
सेवा व्रत शूल का पथ है गद्दी नहीं कुसुम की!
घर बैठो चुपचाप नहीं जो इस पर चलने का दम है।

(सन 1938 में पटना में अखिल भारतीय ब्रह्मर्षि महासम्मेलन क आयोजन किया गया था जिसमें काशी नरेश विभूति नारायण सिंह, सर गणेश दत्त, बाबू रज्जनधारी सिंह आदि गणमान्य लोग मौज़ूद थे। दिनकर जी ने उस महाजाति सम्मेलन के लिए यह कविता लिख भेजी थी जिसे उसमें स्वागत-गान के रूप में पढ़ा गया था। कविता कोश के सहयोगी पश्चिमी सिंहभूम, झारखण्ड के निवासी श्री रवि रंजन ने बाबू रज्जनधारी सिंह के गाँव 'भरतपुरा' में बने उनके निजी पुस्तकालय से यह कविता उनकी नोटबुक से ढूँढ निकाली है। इस कविता का कोई शीर्षक नहीं दिया गया है।)

सौजन्य-"कविता कोश"

शनिवार, 22 सितंबर 2012

लब-प्यार से लबालब

     लब-प्यार से लबालब

चाँद जैसे सुहाने मुख पर सजे,

                          ये गुलाबी झिलमिलाते होंठ है
खिला करते हैं कमल के फूल से,
                         जब कभी ये खिलखिलाते होंठ है
ये मुलायम,मदभरे हैं,रस भरे,
                           लरजते हैं प्यार बरसाते कभी
दौड़ने लगती है साँसें तेजी से,
                           होंठ जब नजदीक आते है कभी
प्यार का पहला प्रदर्शन होंठ है,
                         रसीला मद भरा चुम्बन होंठ है
जब भी मिलते है किसी के होंठ से,
                         तोड़ देते सारे बंधन होंठ है
अधर पर धर कर अधर तो देखिये,
                         ये अधर तो प्यार का आधार है,
नहीं धीरज धर सकेंगे आप फिर,
                          बड़ी तीखी,मधुर इनकी धार  है
मिलन की बेताबियाँ बढ़ जायेगी,
                             तन बदन में आग सी लग जायेगी
सांस की सरगम निकल कर जिगर से,
                            सब से पहले लबों से टकरायगी
उमरभर पियो मगर खाली न हो,
                             जाम हैं ये वो छलकते,मद भरे
लब नहीं ये युगल फल है प्यार से,
                                लबालब, और लहलहाते,रस भरे
  मुस्कराते तो गिराते बिजलियाँ,
                         गोल हो सीटी बजाते होंठ  है
और खुश हो दूर तक जब फैलते,
                        तो ठहाके भी लगाते होंठ   है
सख्त से बत्तीस दांतों के लिए,
                        ये मुलायम दोनों ,पहरेदार हैं
हैं रसीले शहद जैसे ये कभी,
                        लब नहीं,ये प्यार का भण्डार है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

साथ छोड़ कर भागी ममता.....

         साथ छोड़ कर भागी ममता.....

साथ छोड़ कर भागी ममता,अब क्या होगा रे

नज़र आ रहा सूरज ढलता, अब क्या होगा  रे
नहीं मुलायम,रहते कायम,अपने  वादों पर
नज़र बड़ी आवश्यक रखना,गुप्त इरादों पर
उनका सपना,पी एम् पद का,अब क्या होगा रे
नज़र आरहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे
माया महा ठगिनी हम जानी,आनी जानी है
कब इसका रुख बदल जाए, ये घाघ पुरानी है
यदि उसने जो पाला पलता,तब क्या होगा रे
नज़र आ रहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे
अब तो करूणानिधि से ही करुणा की आशा है
सी बी आइ का दबाब भी अच्छा  खासा है
साम दाम से काम न बनता,तब क्या होगा रे
नजर आरहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे
 सब चीजों के दाम बढ़ गए,जनता है अकुलायी
सुरसा जैसी मुख फैलाती,रोज रोज मंहगाई
साथ छोड़ देगी यदि जनता,तब क्या होगा रे
नज़र आरहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

पढ़ना था मुझे


पढ़ना था मुझे पर पढ़ न पाई,

सपनों को अपने सच कर ना पाई;

रह गए अधूरे हर अरमान मेरे,
बदनसीबी की लकीर मेरे माथे पे छाई |

खेलने की उम्र में कमाना है पड़ा,
झाड़ू-पोंछा हाथों से लगाना है पड़ा;
घर-बाहर कर काम हुआ है गुज़ारा,
इच्छाओं को अपनी खुद जलाना है पड़ा |

एक अनाथ ने कब कभी नसीब है पाया,
किताबों की जगह हाथों झाड़ू है आया;
सरकारी वादे तो दफ्तरों तक हैं बस,
कष्टों में भी अब मुसकुराना है आया |

नियति मेरी यूं ही दर-दर है भटकना,
झाड़ू-पोंछा, बर्तन अब मजबूरी है करना;
हालात मेरे शायद न सुधरने हैं वाले,
अच्छे रहन-सहन और किताबों को तरसना |

बुधवार, 19 सितंबर 2012

अंग्रेजी का भूत

        अंग्रेजी का भूत

हमारी एक पड़ोसन,

एकदम देशी अंग्रेजन
वैसे तो फूहड़ लगती थी
पर अंग्रेजी शब्दों का उपयोग करने में,
अपनी शान समझती थी
हिंदी से परहेज था,
उनके घर का हर सदस्य,
पूरा अंग्रेज  था
एक दिन हम उनके घर गये,
करने मुलाक़ात
हो रही थी इधर उधर की बात
इतने में ही उनका बच्चा बोला,
मम्मी,बाथरूम  आ रहा है
हमने इधर उधर देखा और बोले,
हमें तो कहीं भी बाथरूम,
 आता नज़र नहीं आरहा है
क्या आजकल मोबाईल बाथरूम भी आता है
जो ड्राइंग रूम में भी चला आता है
मेडम बोली,भाई साहब,
बच्चे को बाथरूम जाना है
हम बोले इसी सर्दी में,
क्या रात को नहाना है
वोबोली,नहीं,नहीं,बच्चे को सु सु आ रही है
बच्चा बोला,मम्मी ,आ नहीं रही,आ गयी है
मेडम ,गुस्से में लाल पीली थी
हमने देखा,बच्चे की चड्ढी गीली थी
एक दिन वो अपने पति के साथ,
हमारे घर आई
हमारी पत्नीजी ने गरम गरम पकोड़ी बनायी
उनके पतीजी ने फटाफट पांच छह पकोड़ी खाली
तभी बोली उनकी घरवाली
अरे आज तो आपका मंगल का फास्ट था
तो पति बोले,ओह' शिट 'मैंने तो खा ली
हमने बजायी ताली
और बोले भी साहेब,आपने 'शिट 'नहीं,
पकोड़ी है खाई
हमारी बात सुन वो सकपकाई
बोली भाई साहेब,'ओह शिट' इनका तकिया कलाम है
अंग्रेजी उपन्यासों में ये बड़ा आम है
एक दिन उनके पतीजी थे घर पर
हमारी पत्नी ने पूंछ लिया ,
क्या भाई साहेब की तबियत ठीक नहीं है,
जो वो नहीं गये है दफ्तर
पड़ोसन बोली वैसे तो तबियत ठीक है,
हो रहे हैं पर 'मोशन'
हमारी पत्नी ने कहा 'कानग्रेचुलेशन'
कब दे रही हो प्रमोशन की पार्टी
वो झल्लाई  काहे की पार्टी
उन्हें सुबह से 'लूज मोशन 'हो रहे है,
वो पस्त है
पत्नी बोली सीधे सीधे बोलो ना,
लग गये दस्त है 
इन  कई वारदातों के बाद,
आजकल हमसे वो,
 संभल कर  जुबान खोलती है
जब भी बोलती है,हिंदी में बोलती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'




 




 

तुम भी भूखी,मै भी भूखा,आज तुमने व्रत रखा.....

         तुम भी भूखी,मै भी भूखा,आज तुमने व्रत रखा.....

प्रश्न मेरे जहन में ,उठता ये कितनी बार है

आग  क्यों दिल में लगाता,तुम्हारा दीदार है
जिसके कारण नाचता मै,इशारों पर तुम्हारे,
ये तुम्हारा हुस्न है या फिर तुम्हारा प्यार है
रसभरे गुलाबजामुन सी मधुर 'हाँ 'है तेरी,
और  करारे पकोड़ों सा,चटपटा  इनकार  है
प्यार से नज़रें उठा कर,मुस्करा देती हो तुम,
महकने लगता ख़ुशी से,ये मेरा गुलजार है
तुम भी भूखे,हम भी भूखे,आज तुमने व्रत  रखा,
प्यार जतलाने  का ये भी अनोखा  व्यवहार है
बेकरारी   बढाती है ,ये तुम्हारी शोखियाँ,
और दिल को सुकूं देता, तुम्हारा इकरार है
नयी साड़ी मंगाई थी,सज संवरने के लिए,
और अब उस साड़ी में भी ,तुम्हे लगता भार है
आज हमने तय किया है,यूं नहीं पिघलेंगे हम,
देखते हैं आपके,जलवों में कितनी धार है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 18 सितंबर 2012

पशुवत जीवन

              पशुवत जीवन
बचपन में,
हम खरगोश की तरह होते है
नन्हे,मासूम,कोमल,मुलायम,
मुस्कराते रहते है
किलकारियां भरते है
प्यार और दुलार की,
हरी हरी घास चरते है
किशोरावस्था में,
हिरन की तरह कुलांछे लगाते है
या बारहसिंघा की तरह,
अपने सींगों पर इतराते है
और जवानी में,
कभी दूध देती गाय की तरह रंभाते है
कभी कंगारू की तरह,
 अपने बच्चों को सँभालते है
कभी शेर की तरह दहाड़ते है
कभी हाथी की तरह चिंघाड़ते है
और बुढ़ापे के रेगिस्थान में,
ऊँट की तरह,
प्यार के नखलिस्थान की तलाश करते है
लम्बी उम्र की तरह,
अपनी लम्बी गर्दन उचका उचका ,
कांटे भरी झाड़ियों में,
हरी हरी पत्तियां दूंढ ढूंढ,
अपना पेट भरते है
सदा गधों सा बोझा  ढोतें है
हम उम्र भर,
पशुवत जीवन जी रहे होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 17 सितंबर 2012

बुलाया करो


दिलो दिमाग में
यूं छाया करो,
पास कभी आओ
या बुलाया करो;
वफ़ा में जाँ
हम भी दे देंगे,
बस ठेस न दो
न रुलाया करो |

अतिशय प्रेम
बस बरसाया करो,
नैनों में अपने
छुपाया करो;
दूर कर देंगे
हर शिकवा-गिला
एक अवसर तो दो
दिल में बसाया करो |

मन को न
भरमाया करो,
प्रेमगीत नित
गुनगुनाया करो;
छू कर देखो
लफ़्ज़ों को मेरे,
धड़कनों को मेरी
तुम गाया करो |
      समर्पण 

समर्पण,समर्पण,समर्पण,समर्पण

करूं मै सुदर्शन, बनूँ मै सुदर्शन
सभी काम ,क्रोधा,
सभी रोग चिंता
सभी लोभ मोहा,
सभी द्वेष ,निंदा
गुरु के चरण में,सभी कुछ समर्पण
समर्पण,समर्पण,समर्पण,समर्पण
अपने ह्रदय से मै,
'मै' को निकालूँ
करूं प्रेम सबको,
मै अपना बनालूँ
करूं प्यार अपना,सभी को मै अर्पण
समर्पण,समर्पण,समर्पण,समर्पण
ह्रदय में सभी के,
खिले पुष्प सुख के
ख़ुशी ही ख़ुशी बस,
नज़र आये मुख पे
करूं पुष्प सारे,गुरु को मै अर्पण
समर्पण,समर्पण ,समर्पण,समर्पण
साँसों की सरगम से,
मन को हिला दूं
खुदी को मिटा कर,
खुदा से मिला दूं
करूं आत्मदर्शन,बनू मै सुदर्शन
समर्पण,समर्पण,समर्पण,समर्पण

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आओ हम तुम हँसे

         आओ हम तुम हँसे

आओ हम तुम  हंसें

मन में खुशियाँ बसे
जीवन की आपाधापी में,
रहे न यूं ही  फंसे
               खुश हो सबसे मिलें
              दिल की कलियाँ खिले
             नहीं किसी से बैर भाव,
              मन में शिकवे  गिले
बस यूं ही मुस्काके
लगते रहे ठहाके
धीरे धीरे बिसर जायेंगे,
सारे दुःख दुनिया  के
               खिल खिल ,कल कल बहें
                     लगा   सदा  कहकहे
                तन मन दोनों की ही सेहत,
                 सदा    सुहानी      रहे  
चेहरा हँसता लिये
सुखमय जीवन जियें
बहुत मिलेगी खुशियाँ,
यदि कुछ करो किसी के लिये
                 चार दिनों का जीवन
                 हो न किसी से अनबन
                 खुशियाँ बरसेगी,सरसेगी,
                  हँसते रहिये  हरदम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चार दिन की जिंदगी

    चार दिन की जिंदगी

जन्म ले रोते हैं पहले,बाद में मुस्काते हैं,
                           और फिर किलकारियों से,हम लुटाते प्यार हैं
फिर पढाई,लिखाई और खेलना मस्ती भरा,
                          ये किशोरावस्था भी,होती गज़ब की यार   है
 प्यार,जलवा,नाज़,अदाएं,मौज,मस्ती रात दिन,
                          ये जवानी,चार दिन का ,मद भरा  त्योंहार  है
और फिर लाचार करता है बुढ़ापा सभी को,
                          कुछ नहीं उपचार इसका,जिंदगी दिन चार है                 

मदन मोहन बहेती'घोटू'

मंहगाई ने कमर तोड़ दी

              मंहगाई ने कमर तोड़ दी

हे मनमोहन!कुछ तो सोचो,

                                 तुमने है दिल तोडा
मंहगाई ने कमर तोड़ दी,
                                 नहीं कहीं का छोड़ा
रोज रोज बढ़ते दामों का,
                               सबको लगता  कोड़ा
घोटालों से लूट देश को,
                               एसा हमें झिंझोड़ा
अब खुदरा व्यापार विदेशी,
                              हाथों में  है छोड़ा
डीजल ने दिल जला दिया है,
                             सभी चीज   का तोडा
और सातवाँ गेस सिलेंडर,
                              महंगा हुआ  निगोड़ा
लंगड़ा लंगड़ा दौड़ रहा,
                             सूरज का सातवां घोड़ा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 16 सितंबर 2012

जीवन झंझट

         जीवन झंझट

थोडा सा आराम मिला है, मुझको जीवन की खट पट में

कुछ इकसठ में,कुछ बांसठ में,कुछ त्रेसठ में,कुछ चोंसठ में
  चलता यह गाडी के नीचे,पाले गलत फहमियां   सारी
मै था मूरख श्वान समझता ,मुझ से ही चलती है  गाडी
जान हकीकत, मै पछताया,खटता रहा यूं ही फ़ोकट में 
थोडा सा आराम मिला है,मुझको जीवन की खट पट में
मै था एक कूप मंडुप सा,कूए  में सिमटी थी दुनिया
नहीं किसी से लेना देना ,,बस मै था और मेरी दुनिया
निकला बाहर तो ये जाना,सचमुच ही था ,कितना शठ मै
थोडा सा आराम मिला है,मुझको जीवन की खटपट में
उलझा रहा और की रट में,मं में  प्यार भरी चाहत  थी
आह मिली तो होकर आहत,राह ढूंढता था  राहत की
यूं ही फंसा रखा था मैंने,खुदको  बे मतलब,झंझट  में
थोडा सा आराम मिला है,मुझको  जीवन की खटपट में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 
 

शनिवार, 15 सितंबर 2012

जीवन लेखा

                 जीवन लेखा

जीवन के इस दुर्गम पथ पर,पग पग पर भटकाव लिखा है

कहीं धूप का रूप तपाता, कहीं छाँव  का ठावं   लिखा    है
तड़क भड़क है शहरों वाली,बचपन वाला गाँव लिखा   है
गीत लिखे कोकिल के मीठे, कागा  का भी काँव लिखा है
पासे फेंक  खेलना जुआ  ,हार जीत का दाव लिखा  है
कहीं किसी से झगडा,टंटा ,कहीं प्रेम का भाव लिखा है
 अच्छे बुरे  कई लोगों से,जीवन भर टकराव लिखा है
प्रीत परायों ने पुरसी है,अपनों से   अलगाव   लिखा है
लिखी जवानी में उच्श्रन्खलता ,वृद्ध हुए ,ठहराव  लिखा है
वाह रे ऊपरवाले  तूने,जीवन भर   उलझाव लिखा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आ प्रिये कि प्रेम का हो एक नया श्रृंगार अब.....


    आ प्रिये कि हो नयी 
         कुछ कल्पना - कुछ सर्जना,
                आ प्रिये कि प्रेम का हो 
                        एक नया श्रृंगार अब.....

       तू रहे ना तू कि मैं ना 
               मैं रहूँ अब यूं अलग
                       हो विलय अब तन से तन का 
                               मन से मन का - प्राणों का,
                                     आ कि एक - एक स्वप्न मन का
                                             हो सभी साकार अब....

              अधर से अधरों का मिलना
                      साँसों से हो सांस का,
                             हो सभी दुखों का मिटना
                                    और सभी अवसाद का,
                                           आ करें हम ऊर्जा का
                                                  एक नया संचार अब.....

                       चल मिलें मिलकर छुएं
                               हम प्रेम का चरमोत्कर्ष,
                                      चल करें अनुभव सभी
                                                आनंद एवं सारे हर्ष,
                                                        आ चलें हम साथ मिलकर
                                                                 प्रेम के उस पार अब....

                                 ध्यान की ऐसी समाधि
                                        आ लगायें साथ मिल,
                                                 प्रेम की इस साधना से
                                                         ईश्वर भी जाए हिल,
                                                                आ करें ऐसा अलौकिक
                                                                         प्रेम का विस्तार अब....

                                                                         - VISHAAL CHARCHCHIT

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

मनाने का भाव


हिंदी दिवस 
मनाने का भाव 
अपनी जड़ों को सीचने का भाव है . 
राष्ट्र भाव से जुड़ने का भाव है . 
भाव भाषा को अपनाने का भाव है . 

हिंदी दिवस 
एकता , अखंडता और समप्रभुता का भाव है . 
उदारता , विनम्रता और सहजता का भाव है . 
समर्पण,त्याग और विश्वास का भाव है . 
ज्ञान , प्रज्ञा और बोध का भाव है . 

हिंदी दिवस
अपनी समग्रता में 
खुसरो ,जायसी का खुमार है . 
तुलसी का लोकमंगल है 
सूर का वात्सल्य और मीरा का प्यार है . 

हिंदी दिवस 
कबीर का सन्देश है 
बिहारी का चमत्कार है 
घनानंद की पीर है 
पंत की प्रकृति सुषमा और महादेवी की आँखों का नीर है . 


हिंदी दिवस 
निराला की ओजस्विता 
जयशंकर की ऐतिहासिकता 
प्रेमचंद का यथार्थोन्मुख आदर्शवाद 
दिनकर की विरासत और धूमिल का दर्द है . 


हिंदी दिवस 
विमर्शों का क्रांति स्थल है 
वाद-विवाद और संवाद का अनुप्राण है 
यह परंपराओं की खोज है 
जड़ताओं से नहीं , जड़ों से जुड़ने का प्रश्न है . 

हिदी दिवस 
इस देश की उत्सव धर्मिता है 
संस्कारों की आकाश धर्मिता है 
अपनी संपूर्णता में, 
यह हमारी राष्ट्रीय अस्मिता है .





रचनाकार-डॉ मनीष कुमार मिश्र
असोसिएट
भारतीय उच्च अध्ययन केंद्र ,
राष्ट्रपति निवास, शिमला
manishmuntazir@gmail.com

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