वो बचपन कितना प्यारा था
जब मै था,नन्हा नन्हा मुन्ना गोलू सा
सबको देख मुस्करा देता था मै भोलू सा
सजा धजा कर मुझको सुन्दर और सलोना
आँखों में काजल ,माथे पर लगा ठिठोना
करती थी तैयार,पास था जो भी आता
करता मुझको प्यार और था मै इठलाता
बूढ़े,बड़े,जवान,और कितनी कन्यायें
मुझसे मिलने आती थी ,बाँहें फैलाये
मुझको गोदी में लेकर घूमा करती थी
मेरे कोमल गालों को चूमा करती थी
उन्हें देख कर मै भी भरता था किलकारी
टांगें हिला हिला उन पर जाता बलिहारी
मुझको गोदी में लेकर जो थी इतराती
आज वो ही कन्यायें ,मुझसे है कतराती
बड़ा हो गया तो क्या,मै हूँ,वो का वोही
पहले जैसा प्यार क्यों नहीं करता कोई
हे भगवन,मुझको लौटा दे,प्यारा बचपन
उठा गोद में,प्यार करें,कन्यायें ,हरदम
जब मै उनकी प्यारी आँखों का तारा था
वो बचपन कितना प्यारा था
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
चमकना इतना नहीं चाहता ....................
-
चमकना इतना नहीं चाहता कि चौंधिया जाओ तुम बस तमन्ना इतनी है कि धरती को छूता
रहूँ। यूं तलवार की धार पर चलता तो रोज ही हूँ मगर बनकर कोई पेड़ छाया किसी
को देत...
4 घंटे पहले
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।