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गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

प्रभु दर्शन का प्रताप

       प्रभु दर्शन का प्रताप

एक आदमी उम्र भर रहा बुरे कामो में लगा

जब पचास के आसपास हुआ ,
उसका जमीर जगा
सोचा अब तलक करता रहा पाप कर्म
न कोई भला काम किया ना दान धर्म
मरने के बाद पछताऊंगा
यहाँ भी नारकीय जीवन जिया है,
मरने के बाद भी नरक जाऊँगा
तो क्यों न जीते जी अपना जीवन सुधार लूं
दान धर्म करलूं और प्रभू का नाम लूं
मौके की बात की उस समय भगवान,
पृथ्वी  का लगा रहे थे चक्कर 
उन्होंने  उसका ह्रदय परिवर्तन देख कर
सोचा इसकी परीक्षा ले लें जरा
और उन्होंने एक बीमार,निर्धन बूढ़े का रूप धरा
और इस आदमी से मदद की गुहार की,
तो उसके  भीतर का सोया इंसान जग गया
और वो उस बूढ़े की सेवा में लग गया
प्रभु जी प्रसन्न  हुए  ,और प्रकट  होकर
उन्होंने उसको दे दिया ये वर
सामनेवाले मंदिर के तू लगाएगा जितने चक्कर
उतने ही वर्षों की होगी तेरी उमर,
आदमी ख़ुशी से पागल हो चक्कर लगाने लगा
और तेजी से भागने लगा
पर पचासवें चक्कर में उसका हार्ट फ़ैल हो गया
और उसका देहांत हो गया
मरने के बाद वो चकराया
जब उसने अपने आप को स्वर्ग में पाया
उसने चित्रगुप्त जी से पूछा,
मैंने उम्र भर था पाप किया
तो आपने कैसे मुझे ये स्वर्ग  दिया
चित्रगुप्त  जी बोले  ये सच है,तूने,
 उमर भर अपने को  पाप ही पाप में उलझाया था 
पर मरने के पूर्व तेरे मन में पश्चाताप आया था
और तूने साक्षात् प्रभू के दर्शन का पुण्य कमाया है
बस इसी का प्रताप है,तू स्वर्ग आया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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