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रविवार, 19 अप्रैल 2015

मोहब्बत और शादी

           मोहब्बत और  शादी

कभी लैला और मजनू के,कभी फरहाद शीरी के ,
      मोहब्बत करने वालों के ,कई किस्से नज़र आये 
मगर इन सारे किस्सों में ,एक ही बात  है 'कॉमन',
         हुई इनकी नहीं शादी ,या वो शादी न कर पाये
अगर हो जाती जो शादी ,वो बन जाते मियां बीबी ,
        मगर फिरभी रहे कायम ,मोहब्बत असली वो होती
सितम शादीशुदा जीवन के, हंस कर झेलते रहना ,
        और उस पे उफ़ भी ना करना ,शहादत असली वो होती
मोहब्बत के लिए कुरबान  होना,बात दीगर है,
         निभाना साथ ,शादी कर,बड़ा है काम हिम्मत का
भाव जब दाल आटे  के,पता लगते है तो सर से,
         बहुत जल्दी उतर  जाता ,चढ़ा जो भूत  उल्फत  का

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

शनिवार, 18 अप्रैल 2015

विदेश यात्रा का बहाना

           विदेश यात्रा का बहाना

जब से सत्ताच्युत हुए ,मलते है हम हाथ
हमको चुभने लगी है,मोदी की हर बात
मोदी की हर बात ,दिया किस्मत ने धोखा
पोल हमारी खोले ,जब भी पाये मौका
हम विरोध करने मोदी संग  जा पहुंचेंगे
इसी बहाने ,घूम  विदेशों  में हम  लेंगे

घोटू

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

खुशहाल चमन

             खुशहाल चमन

जहाँ बेख़ौफ़ होकर खिलती  कलियाँ ,लहलहाती है
जहाँ पंछी करे कलरव ,कुहू कोकिल   सुनाती  है
जहाँ मंडराया करती ,नाचती है तितलियाँ सुन्दर
जहाँ पर आशिक़ी फूलों से करते ,भ्रमर गुनगुन कर
जहाँ छायी हो हरियाली , हवा बहती रहे  शीतल
जहाँ गुलाब,बेला और चमेली खिलते है मिलकर
चमन आबाद वो रहता ,महकते फूल मुस्काते
कभी भी उसकी शाखों पर ,न उल्लू घर बसा पाते
रहेगी उस गुलिस्तां में, हमेशा खुशियां,  खुशहाली
सींचता ख्याल रख जिसको ,लुटाता प्यार हो माली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मौसम और सियासत

              मौसम और सियासत
                           १
मौसम ने इस साल तो ,ऐसा खेला खेल
बारिश,ओले,आँधियाँ ,सर्द रहा अप्रेल
सर्द रहा अप्रेल ,देश प्रगती को रोका
बाहर गए नरेन्द्र ,इन्द्र ने पाया मौक़ा
अच्छे दिन ना आये उलटी आफत आयी
फसल हुई बरबाद ,बढ़ेगी अब मंहगाई
                      २
ख़ुशी विरोधी दल हुए,अपनी जीत बताय
पप्पू ने की साधना ,बेंकाक में जाय
बेंकाक में जाय ,'शत्रुहन्ता ' जप जापा
शायद दिन फिर जाय,दूर हो जाय सियापा
'घोटू'चालू राजनीति का खेल हो गया
टूटे ,बिखरे,जनता दल में मेल हो गया 

घोटू

बुधवार, 15 अप्रैल 2015

सब्जियां और सियासत

           सब्जियां और सियासत
                         १
        जो जमीन से जुड़े होते है
         लोग उन्हें सस्ते में लेते है
         और गाजर ,मूली की तरह ,
          काट दिया  करते है
                  २
     बिना पेंदी के लोगों पर भी,
    ताज चढ़ाया  जाता है
    सब्जियों में यह उदाहरण ,
बैंगन के मामले में पाया जाता है
                    ३
  जब से अंग्रेजों ने भिन्डी को,
 'लेडी फिंगर' का नाम दिया है  
  तब से वो बड़ा अकड़ती है
जमीन से जुड़े ,आलू या गाजर,
 के साथ नहीं मिलती
अकेली ही पकती है
               ४
इटालियन पिज़्ज़ा पर ,
जबसे देशी टॉपिंग चढ़ने लगी है
भारत की राजनीती ही बदलने लगी है
                ५
पत्ता पत्ता मिल कर ,
एक दुसरे से बंध  कर,
बनती पत्ता गोभी है
'चाइनीज'समाज व्यवस्था भी,
ऐसी ही होती है
भोजन समाजका दर्पण है
इसीलिये पत्तागोभी से ही,
बनते कई 'चाइनीज'व्यंजन है 
             ६
सब्जियां यूं तो अपनी ही
खांप में सम्बन्ध बनाती है
और अक्सर आलू,प्याज या टमाटर
से अपना दिल लगाती है
पर जबसे मटरगश्ती करती मटर ने ,
विजातीय पनीर से ,
दिल उलझाया है
लोगों को बड़ा मन भाया है
              ७
जमीन से जुड़े आलू और प्याज ,
भले सस्ते बिकते है
पर लम्बे समय टिकते है
और सब सब्जियों के साथ ,
उनके मधुर  रिश्ते है
               ८
काशीफल याने कद्दू ,
बंधी मुट्ठी की तरह है
जब तलक बंद है,
तब तक सेहतमंद है
और एक बार जब खुल जाता है
ज्यादा नहीं टिक पाता है
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

किस्मत का चक्कर

            किस्मत का चक्कर

तमन्ना थी दिल में ,बड़ी थी ये हसरत
कभी हम पे हो उनकी नज़रे इनायत
मगर घास उनने , कभी  भी  डाली,
जरा सी भी हम पे, दिखाई  न उल्फत
         अब जाके उनपे हुआ कुछ असर है
         यूं ही खामखां, ये इनायत मगर है 
         हरी घास जब सूखने लग गयी  है,
         लगे डालने हमको ,शामो-सहर है
देखो खुदा  का ये  कैसा  करम है 
वो सत्तर की है और पचोत्तर के हम है
न खाने की हिम्मत ,न ही भूख बाकी,
न ही दांतों में जब चबाने का दम है
         क्यों होता हमारे ही संग हर दफा है
         वफ़ा चाहते तब,न मिलती वफ़ा है
         थे जब बाल सर पर तो कंघी नहीं थी,
        मिली कंघी ,जब बाल सर के सफा है
खुदा तेरा इन्साफ  कैसा अजब है
नहीं मिलता खाना,लगे भूख जब है
और जब पचाने के लायक न रहते ,
पुरसता है हमको ,तू पकवान सब है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

सोमवार, 13 अप्रैल 2015

शिकायतें-पत्नी की

       शिकायतें-पत्नी की

उनको कुछ ना कुछ शिकायत ,हमसे रहती सर्वदा
प्यार है  ये  उनका  या फिर सताने  की  है  अदा
हमने घूंघट उठाया उनका सुहागरात को
बोले मंहगी साडी है ,पहले समेटो और रखो
    तबसे घर के कपडे हम ही ,समेटे करते सदा
   उनको कुछ ना कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
उनको ' बाइक' पर घुमाने ,ले गए एक दिन कहीं
बोले 'राइड' में तुम्हारे संग 'थ्रिल 'बिलकुल नहीं
     ब्रेक तुमने नहीं मारे और न कुछ झटका  लगा
     उनको कुछ ना कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
एक दिन उनके लिए चाय बना के लाये हम
बोली क्या कुछ पकोड़े भी नहीं तल सकते थे तुम
            चाय के संग खिलाते हो हमको बिस्किट ही सदा
           उनको कुछ ना कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
हमने अपना काट के सर ट्रे में रख उनको दिया
लगी कहने ,हेयर कट तो ,करवा तुम लेते मियां
       लगा था आंसू   बहाने ,कटा सर ,हो   गमजदा
       उनको कुछ न कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
ये करो  और  वो करो ,ऐसे  करो  ,वैसे   नहीं
सिखाती रहती है हमको क्या गलत,क्या है सही
            काम  है  इतना  कराती ,हमको  देती   है   पदा
            उनको कुछ ना कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
कराते है उनको शॉपिंग ,ढीली होती जेब है
फिर भी वो खुश न रहती ,यही उनमे  एब है
       बोझ हम पर,लादती सब ,समझ कर हमको गधा
        उनको कुछ न कुछ शिकायत ,हमसे रहती सर्वदा 
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

देखो हम क्या क्या खाते है

       देखो हम क्या क्या खाते है

कुछ चीजे ऐसी होती है ,नहीं निगलते ,नहीं चबाते
फिर भी हम सब,उनको अक्सर जीवनभर रहते है खाते
खाते ठंडी हवा रोज ही  ,खाते   धूप बैठ कर छत पर
पत्नीजी के तीखे तीखे ताने हम खाते है अक्सर
झूंठी सच्ची ,कितनी कसमे,हम खाते ,मौके,बे मौके
मिलती सीख,ठोकरे खाते ,कितनो से ही खाते धोखे
रिश्वत कभी घूस खाते है और कमीशन भी है खाते
इसीलिए स्विस की बैंकों में हमने खोल रखे है खाते
स्कूल में गुरु ,और दफ्तर में ,डाँट बॉस की हम खाते है
और डाट पत्नी की घर पर ,हम सारा जीवन खाते है
कभी कभी जब गुस्सा खाते  तो थोड़ा सा गम भी खाते
फिर अपने  आंसू पी लेते , पीड़ा मन की नहीं दिखाते
इश्क़ मोहब्बत के चक्कर में ,उनके घर के चक्कर खाते
शादी करते ,हवनकुंड के ,सात सात हम चक्कर खाते
गाली कभी मार खाते है ,खाने मिलते जूते,चप्पल
इसी तरह बस खाते पीते ,उमर गुजरती रहती पल पल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
 
 
 


शनिवार, 11 अप्रैल 2015

मतलब की दुनिया

       मतलब की दुनिया
सबने अपने मतलब साधे
काम हुआ तो  ,राधे राधे
               १ 
कच्चा आम,अचार बनाया
चटकारे ले ले कर खाया
और पककर जब हुआ रसीला
दबा दबा कर,करके ढीला
जब तक रस था,चूसा जी भर
फेंक दिया ,सूखी गुठली कर
रस के लोभी,सीधे सादे
रस न बचा तो ,राधे राधे
             २
सभी यार मतलब के भैया
सब से बढ़ कर ,जिन्हे रुपैया
जब तक काम,हिलाते है दुम
मतलब निकला ,हो जाते गुम
अपना उल्लू सीधा करके
अपनी अपनी जेबें भर के
अपना ठेंगा ,तुम्हे दिखाते
काम हुआ तो राधे राधे
               ३
समरथ को सब शीश झुकाते
जय जय करते ,नहीं अगाथे
जब तक आप रहे कुर्सी पर
मख्खन तुम्हे लगाते जी भर
खुश करने को भाग,दौड़ते
कुर्सी छूटी  ,तुम्हे छोड़ते
नज़रें चुरा ,निकल झट जाते
काम हुआ तो राधे,राधे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

वही सुलतान होता है

           वही सुलतान होता है
काम  कितने ही ऐसे है ,देखने में सरल लगते ,
       सान  कर देखिये आटा ,नहीं आसान  होता है
निकल कर होंठ से आती,गाल पर फ़ैल जाती है,
        कान से लेना ना देना ,नाम मुस्कान होता  है 
मज़ा थोड़ा जरूर आता ,चंद लम्हे सरूर आता ,
        जाम जो रोज पीते है ,बुरा अंजाम  होता है
जिसे भी मिलता है मौका ,उसे सब चूसते रहते,
       आम की ही तरह यारों ,आम इंसान   होता है
फोटो छपती है पेपर मे ,नज़र आता है टी वी पर ,
       कोई बदनाम भी होता ,तो उसका नाम होता है
जो दबते है दबंगों से ,हमेशा रोते  रहते है ,
        जो सीना तान के रहता ,वही सुलतान  होता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
    

क्या सेवा इसको कहते है ?

       क्या सेवा इसको कहते है ?

मुझे बिमारी ने था घेरा
थोड़ा ख्याल रखा क्या मेरा
        इसको तुम हो सेवा कहते
खुद को सेवाव्रती बता कर
पत्नीभक्त  पति बतला कर
       अपना ढोल पीटते रहते
पत्नी  ने जब ये फरमाया
हमको काफी गुस्सा आया
       हम बोले  ये बात गलत है
होता  देखा  है ये   अक्सर
अलगअलग जगहों,मौकों पर
          होता सेवा अर्थ अलग है
ठाकुरजी को यदि नहलाओ
पूजा कर, परसाद चढ़ाओ
          प्रभु जी की सेवा कहलाती
दादा दादी पौत्र खिलाते
ऊँगली थाम उसे टहलाते
           बच्चों की सेवा  कहलाती
दफ्तर में हो काम कराना
बाबू को देना, नज़राना
           इसको सेवा पानी कहते
साला आये ,  उसे घुमाओ
साली को तुम गिफ्ट दिलाओ
          इस सेवा से सब खुश रहते
साहब के घर ,सब्जी और फल
यदि  लाओगे, थैला भर भर
         पा सकते हो शीध्र प्रमोशन
अगर गाय को चारा डालो
उसकी सेवा करो ,सम्भालो
        दूध तभी मिलता भर बरतन
गुरु की सेवा आये काम में
अच्छे नंबर 'एक्जाम 'में
        सेवा से मेवा मिलता है
साधू संत  की करिये सेवा
मिलता  ज्ञान ,कृपा का मेवा
        खुशियों से जीवन खिलता है
पिता और माँ की सेवा कर
मिलती आशिषे  ,झोली भर
       बहुत पुण्य भागी हम होते
तुम बीमार पड़ी बिस्तर पर
दी दवाई तुमको टाइम  पर 
        ख्याल रखा था जगते सोते
इस पर भी ये तुम्हे ग़िला है
इसे नहीं कहते सेवा  है
      तो क्या करता ,पाँव दबाता
ये भी तो ना कर सकता था
हुआ ऑपरेशन घुटनो का
      इसीलिये बस मैं सहलाता
किया वही जो कर सकता था
ख्याल तुम्हारा मैं रखता था
      सेवा समझो इस सेवक की
मैं पति,तुम्हारा दीवाना
बदले में दो ,मेवा या ना
       ये तो है तुम्हारी   मरजी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीवन यात्रा

       जीवन यात्रा
जब जीवन पथ पर हम चलते
गिरते,  उठते  और  सँभलते
जीवन भर ये ही चलता है,
         खुशियां कभी तो कभी गम है
सरस्वती जैसी चिन्ताएँ ,
गुप्त रूप से आ मिलती है ,
सुख दुःख की गंगा जमुना का ,
            होता जीवन भर संगम  है
भागीरथ तप करना  पड़ता ,तभी स्वर्ग से गंगा आती
सूर्यसुता कालिंदी बनती ,जो यम की बहना कहलाती
एक उज्जवल शीतल जल वाली
एक   गहरी ,गंभीर    निराली
सिंचित करती है जीवन को,
                  दोनों की दोनों पावन है 
सुख दुःख की गंगा जमुना का,
                  होता जीवन भर संगम है
मिलन  पाट  देता  दूरी को,तभी  पाट  होता  है  चौड़ा
पतितपावनी सुरसरी मिलने ,सागर को करती है दौड़ा
गति में भी प्रगति आती है
गहराई  भी बढ़   जाती  है
 जब अपने प्रिय रत्नाकर से ,
                 होता उसका मधुर मिलन है
सुख दुःख की गंगा  जमुना का ,
                होता जीवन भर संगम है
भले चन्द्र  हो चाहे सूरज ,ग्रहण सभी को ही लगता है
शीत ,ग्रीष्म फिर वर्षा  आती ,ऋतू चक्र स्वाभाविकता है
पात पुराने जब  झड़ जाते 
तब ही नव किसलय है आते
जाना आना नैसर्गिक है ,
                 यह प्रकृति का अटल  नियम है
सुख दुःख की गंगा जमुना का ,
                  होता जीवन भर संगम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

आ गया कैसा युग है ?

            आ गया कैसा युग है ?

सूरज पहले भी पूरब से ही उगता था ,
        अब भी वह पूरब से ही तो आता उग है
प्रकृति ने तो अपना  चलन नहीं बदला है ,
         बदल गए है लोग,आ गया कैसा युग है 
                    १   
 नहीं ययाति जैसे तुमको पुत्र मिलेंगे ,
        जो कि पिता को अपना यौवन करदे अर्पित
नहीं मिलेंगे ,हरिश्चंद्र से सत्यव्रती भी ,
        राजपाट जो वचन रक्ष  ,करे समर्पित
राम सरीखे बेटे अब ना पैदा होते ,
     छोड़ राज्य हक़ ,पिता वचन हित ,भटके वन वन
अब तो घर घर में पैदा होते है अक्सर ,
       कहीं कंस  तो , कहीं दुशासन  और  दुर्योधन
मात पिता की आकंक्षाएँ जाय भाड़ में ,
       अब खुद की ,महत्वकांक्षएं  हुई  प्रमुख है 
प्रकृति ने तो अपना चलन नहीं बदला है ,
       बदल गए है लोग, आ गया कैसा  युग है
                २
अपना  अपना चलन हरेक युग का होता है ,
      होती है हर युग की है  अलग अलग गाथाएं
होता सीता हरण ,अहिल्या पत्थर बनती ,
       तब भी थी और अब भी है क्यों वही प्रथाएं
नारी तब भी शोषित थी ,अब भी शोषित है,
          अब भी जुए में है उसको दांव लगाते
अब भी द्रोपदियों का चीरहरण होता है,
       लेकिन कोई कृष्ण न उसका  चीर  बढ़ाते
तब भी नारी त्रसित दुखी थी और भोग्या थी ,
       अब भी उसका शोषण होता,मन में दुःख है
प्रकृति ने तो अपना चलन नहीं बदला है,
       बदल गए है लोग ,आ गया कैसा युग है
                   ३     
हर कोई बैचेन व्यग्र है और व्यस्त है ,
       और पैसे के चक्कर में  पागल रहता है
अब कोई संयुक्त नहीं परिवार बचा है,
      आत्म केंद्रित हर कोई एकल रहता  है
संस्कारों को लील गयी पश्चिम की आंधी,
      बिखर गए सब ,छिन्न भिन्न ,हालत नाजुक है
जाने क्यों कुछ लोग प्रगति इसको कहते है ,
       जब कि पतन की ओर हो रहे हम उन्मुख  है
सतयुग गया ,गया त्रेता भी और द्वापर भी ,
     कल जैसे सब  हुए मशीनी,अब  कलयुग है
प्रकृती ने तो अपना चलन  नहीं बदला है,
      बदल गए है लोग ,आ गया कैसा  युग है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रविवार, 5 अप्रैल 2015

सुख पत्नी सेवा का

          सुख पत्नी सेवा का

जिसने सच्चे मन से मेरी,सेवा की जीवन भर सारे
 उस पत्नी की सेवा स्रुषमा में मैंने कुछ रोज गुजारे
जब से आई ब्याह घर मेरे ,कर निज तनमन मुझको अर्पित
सच्ची  सेवा और लगन से ,पूर्ण रूप से रही समर्पित
 जिसने मुझको सुख देने को ,ही अपना सच्चा सुख माना
जिसकी बांहे थाम कट गया ,अब तक जीवन सफर सुहाना
मेरी हर पीड़ा,मुश्किल में,जिसने मुझको दिया सहारा
हर पल मेरा सम्बल बन के ,जिसने सब घरबार संभाला
रही हमसफ़र ,किन्तु आजकल,मुश्किल होती थी चलने में
क्योंकि समय के साथ हो गया ,क्षरण अस्थियों का घुटने में
शल्य चिकित्सा से घुटने का ,उनने  करा लिया प्रत्यार्पण
थोड़े दिन तक ,उनकी सारी ,गतिविधियों पर लगा नियंत्रण
थी अक्षम ,बिस्तर पर सीमित,बहुत दर्द और पीड़ा सहती
मुझ बोझ पड़े कम से कम ,फिर भी उसकी कोशिश रहती
पर मैंने उनकी सेवा की ,जितना कुछ भी मैं कर पाया
उनकी आँखों में मजबूरी,धन्यवाद का भाव समाया
सेवा में ही सच्चा सुख है, बात समझ आ गयी हमारे
 पत्नी  की सेवा स्रुषमा  में ,मैंने जब  कुछ रोज गुजारे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 4 अप्रैल 2015

अहसास

           अहसास
बाल रंग लेने से होती है उमर कम तो नहीं ,
           मन में अहसास जवानी का मगर आता है
देख कर आईने में सर पे पुरानी रौनक,
           चन्द लम्हे ही सही ,दिल तो बहल जाता है
बुढ़ापा है तो क्या ,हम सजते और संवरते है,
           पड़ी चेहरे की सभी झुर्रियां  छुप जाती  है
रूप जाता है निखर ,चमचमाता चेहरा है ,
           पुरानी यादें जवानी की ,उभर  आती  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अदालत है उनकी

         अदालत है  उनकी

वो जालिम है कातिल,जुलम हम पे ढाते ,
         सताना दिखा के ,अदा ,लत है उनकी
 ऊपर से हमको ,बताते है मुजरिम ,
         वो हाकिम है और ये अदालत है उनकी
  तड़फाना अपने सभी आशिकों को,
          बुरी  ही  सही ,पर ये आदत है  उनकी
मगर फिर भी  हम तो   ,दिवाने है ऐसे ,
          बसी रहती   मन में ,चाहत है उनकी

घोटू

प्यार की झंकार

        प्यार की झंकार

जब पायल की छनछन ,दिल को छनकाती है
भटक  रहे  बनजारे  मन  की  बन   आती है
   जब अपना मन, बन जाता अपना ही दुश्मन
   नज़रें उलझ किसी से ,बन जाती है उलझन
छतरी तर होने से बचा नहीं पाती है
भटक रहे बनजारे मन की बन आती है
       जब सपने ,अपने ,साकार ,सामने आते
       बन  हमराही कोई  बांह थामने   आते
जेठ भरी दोपहरी बन सावन जाती है
भटक रहे बनजारे मन की बन आती है
     जब मैं और तुम मिल कर,एक हो जाते है हम
      गम  सारे  गुम  हो जाते , हो  जाता    संगम 
दिल की बस्ती में मस्ती सी छन जाती है
भटक  रहे  बनजारे मन की  बन आती  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

प्रोत्साहन

       प्रोत्साहन
एक छोटे से बच्चे ने ,
एक कविता लिखी
माँ को सुनाई
माँ ने सुनी ,ताली बजाई
जब माँ की सहेलियां आई,
उन्हें भी सुनवाया
सभी ने तारीफ़ की,सराहा
बच्चे ने वो कविता ,
अपने पिता को भी सुनाई
पिता ने जल्दी जल्दी सुनी ,
शायद पसंद भी आई होगी ,
क्योंकि उन्होंने डाट ना लगाईं
सिर्फ इतना बोला
पढाई पर भी ध्यान दिया करो थोड़ा
बड़े भाई को सुनाई तो बोला ,
'ये तुकबंदी छोड़
थोड़ा स्पोर्ट में इंट्रेस्ट ले ,
सेहत बना,सुबह सुबह दौड़
छोटी बहन ने  सुनी तो ,
खुश होकर बोली छोटी बहना
 भैया ,एक कविता मुझ पर भी लिखो ना
स्कूल में दोस्तों को सुनाई
किसी ने मुंह बनाया  ,किसी  ने सराही
टीचर  ने सुनी तो दी शाबासी
स्कूल की मेंगज़िन  में छपवा दी
इन तरह तरह के प्रोत्साहनों ने ,
 बच्चे का उत्साह बढ़ाया
उसके अंदर के सोये कवि को जगाया
और आज वो साहित्य जगत में ,
जाना माना नाम है
ये उस बचपन में मिले ,
प्रोत्साहन का ही अंजाम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नज़र लग गयी

           नज़र लग गयी
बड़े गर्व से कहता था मैं ,मेरी   उमर  हुई   चौहत्तर
फिर भी मैं फिट और फाइन हूँ,कई जवानो सेभी  बेहतर
किन्तु हो रहा है कुछ ऐसा ,बढ़ने लगी खून में   शक्कर
करता मुझको परेशान है ,घटता ,बढ़ता ब्लड का प्रेशर
चक्कर आने लगे मुझे है ,डाक्टर के घर ,खाकर चक्कर
कहते है ये लोग सयाने, मेरी  नज़र लग गयी मुझ पर

घोटू

उनकी आदत नहीं बदलती

                उनकी आदत नहीं बदलती

कितना ही साबुन से धोलो ,काले काले ही रहते है,
        क्रीम पाउडर मल लेने से ,उनकी रंगत नहीं बदलती
कितना ही पैसा आ जाए ,लेकिन कृपण, कृपण रहता है ,
        मोल भाव सब्जी वाले से,करने की लत नहीं बदलती 
कितना ही बूढा हो जाए ,नेता ,नेता ही कहलाता  ,
        उदघाटन ,भाषण करने की ,उनकी चाहत नहीं बदलती
बंगलों के हो या सड़कों के ,कुत्ते ,कुत्ते ही रहते है ,
        सुबह ढूंढते खम्बा ,टायर,उनकी आदत नहीं  बदलती
प्यार पिता भी करता है पर,मन ही मन,दिखलाता कम है,
        लेकिन खुल कर प्यार लुटाती,माँ की फितरत नहीं बदलती
पति पत्नी यदि सच्चे प्रेमी ,जनम जनम का जिनका बंधन,
        चाहे जवानी ,चाहे बुढ़ापा ,उनकी  उल्फत  नहीं  बदलती
लक्ष्मी तो चंचल माया है ,कई धनी  निर्धन हो जाते ,
          विद्या की दौलत पर ऐसी ,है जो दौलत नहीं बदलती
कहते है बारह वर्षों में ,घूरे के भी दिन फिरते है,
           होते करमजले कुछ ऐसे ,जिनकी किस्मत नहीं बदलती
जिनके मन में लगन लक्ष्य की,मुश्किल से लड़ ,बढ़ते जाते ,
             होते है जो लोग जुझारू , उनकी हिम्मत नहीं  बदलती
माया के चक्कर में मानव ,सारी उमर खपा देता है,
              खाली हाथ सभी जाते है ,यही हक़ीक़त  नहीं बदलती

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शनिवार, 28 मार्च 2015

पापा तो पापा रहते है

        पापा तो पापा रहते है

अपनी पीड़ा खुद सहते है
नहीं किसी से कुछ कहते है
बच्चे बदल जाए कितने भी,
पापा तो पापा रहते है
मन में ममता ,प्रेम वही है
कोई भी दुष्भाव  नहीं है
जिन्हे प्यार से पाला पोसा
जिन पर इतना किया भरोसा
प्यार लुटाया जिन पर इतना
इक दिन बदल  जाएंगे  इतना
बिलकुल उन्हें भुला वो  बैठे
पर क्या ,है तो उनके बेटे
भले मर गयी  उनकी गैरत
फिर भी उनसे वही मोहब्बत
बस मन में घुटते रहते  है
पापा तो पापा रहते  है
जब काटे यादों का कीड़ा
मन में  होने लगती पीड़ा
यही सोचते रहते मन में
कि उनके लालन पोषण में
में ही शायद रही कसर है
या फिर कोई बाह्य असर है
वर्ना वो क्यों करते ऐसा 
ये व्यवहार परायों जैसा
पर वो खुश तो ये भी खुश है
पास नहीं,मन में ये दुःख है
याद आती ,आंसू बहते है
पापा तो पापा रहते है 
शायद होगी कुछ मजबूरी
तभी बनाली उनने  दूरी
ऐसे तो वे ना थे वरना
बदल गए तो अब क्या करना
जब भी कभी कभी  मिल जाते
हो प्रसन्न उनके दिल जाते 
बैठे मन में  आस लगाए
शायद उन्हें सुबुद्धि आजाए
है नादान  ,नासमझ बच्चे
शायद वक़्त  बनादे अच्छे 
आस लगाए बस रहते है
पापा तो पापा  रहते  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



नव निर्माण

                   नव निर्माण

धराशायी पुरानी जब ,इमारत कोई होती है ,
               तभी तो उस जगह फिर से ,नया निर्माण होता है
बिना  पतझड़ ,नयी कोंपल ,नहीं आती है वृक्षों पर,
               अँधेरी रात  ढलती तब  ,सुबह का भान  होता  है 
फसल पक जाती,कट जाती,तभी फसलें नयी आती,
                बीज से वृक्ष ,वृक्ष से फल ,फलों से बीज होते है
कोई जाता,कोई आता,यही है चक्र जीवन का ,
                 कभी सुख है कभी दुःख है ,कभी हम हँसते ,रोते है
जहाँ जितनी अधिक गहरी ,बनी बुनियाद होती है ,
                 वहां उतनी अधिक ऊंची ,बना करती  इमारत है
चाह जितनी अधिक गहरी ,किसी की दिल में होती है ,
                  उतनी ज्यादा अधिक ऊंची ,चढ़ा करती मोहब्बत है
कोई ऊपर को चढ़ता है ,कोई नीचे उतरता है ,
                  ये तुम पर है ,चढ़ो,उतरो ,वही सोपान   होता  है
धराशायी पुरानी जब ,इमारत कोई होती है ,
                   तभी तो उस जगह फिर से ,नया निर्माण होता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'     

पड़ोसन भाभी

         पड़ोसन भाभी

कल पड़ोसन ने शिकायत दागी
भाईसाहब ,मैं तो बहुत छोटी हूँ,
 फिर आप मुझे क्यों कहते  है भाभी
हमने कहा आपकी  बात सही है
आप छोटी तो है ,मगर ,
आपको बेटी कहना भी ठीक नहीं है
क्योंकि बाप बेटी का रिश्ता,
 बड़ा नाजुक होता है
छोटी छोटी अपेक्षाएं पूरी नहीं होती,
तो बड़ा  दुःख होता है
आपको मैं कह नहीं सकता हूँ 'साली'
क्योंकि साली लगती है गाली
और ये शायद आपके पति को भी न भाये ,
क्योंकि साली कहलाती आधी  घरवाली
'बहू' कहने की नहीं है मेरी मर्जी
क्योंकि बहू को हमेशा ,
सास  ससुर  से   रहती है 'एलर्जी '
एक देवर भाभी का ही ऐसा रिश्ता है
जिसमे  भाईचारा  झलकता  है
हंसी मज़ाक की भी होती है आजादी
इसलिए आपको  हम बुलाते है भाभी

घोटू

पैसे तेरे रूप अनेक

         पैसे तेरे रूप अनेक

साधू कहते तुझको 'माया'
मंदिर में कहलाय 'चढ़ावा '
 बीबी मांगे कह कर' खर्चा'
सभी तरफ है तेरी चर्चा
'भीख 'भिखारी कह कर मांगे
ले सरकार 'टैक्स' कहलाके
मांगे कोर्ट कहे 'जुर्माना'
मिले किसी को बन हर्जाना
रेल और बस में कहे 'किराया'
स्कूल मे तू ' फीस 'कहाया
'यूरो','पोंड' तो कहीं 'डॉलर '
 तेरा भूत चढ़ा है सब पर
जैसा देश  है वैसा भेष
पैसे  तेरे  रूप अनेक
गुंडा मांगे कह'रंगदारी'
अफसर की तू 'रिश्वत 'प्यारी
चपरासी का 'चायपान'है
हर मुश्किल का तू निदान है
'पत्र पुष्प' कहलाय कहीं पर
दे  सरकार 'सब्सिडी'कह कर
सौदों में कहलाय 'कमीशन'
प्यारी लगती तेरी खन खन
'टिप'है कहीं,कहीं 'नज़राना'
कोई तुझे कहता 'शुकराना'
ले मजदूर कहे'मजदूरी'
नौकर की तू 'तनख्वाह'पूरी
शादी में कहलाय 'दहेज़'
पैसे  तेरे  रूप  अनेक
नेता अफसर खाते है सब
तू ही 'लक्ष्मी ' तू ही 'दौलत'
कभी'ब्याज' तो कभी 'मुनाफ़ा'
दिन दिन दूना होय इजाफा
पाँव नहीं  पर तुझे चलाते
 पंख नहीं पर तुझे उड़ाते
कोई बहाता पानी जैसा
कितने रूप धरे तू पैसा
तेरा रंग है अजब निराला 
कहीं सफ़ेद ,कहीं तू काला
छुपा बैंक के खातों में तू
कभी पर्स तो हाथों में तू
मन हरषाता तुझको देख
पैसे तेरे  रूप अनेक

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गाँठ

             गाँठ
अगर प्रेम के  धागे  कभी टूट जाते है
भले गाँठ पड़ जाती लेकिन जुड़ जाते है
शादी का बंधन है जनम जनम का बंधन
ये रिश्ता तब बनता जब होता गठबंधन
अगर गाँठ में पैसा तो दुनिया झुकती है
बात गाँठ में बाँधी ,सीख हुआ करती  है
लोग गांठते रहते  मतलब की यारी है
रौब गांठने वाले  बाहुबली  भारी   है
किसी सुई में जब भी धागा जाय पिरोया   
बिना गाँठ के ,फटा वस्त्र ना जाता सिया
कंचुकी हो   या साड़ी ,सबके मन भाते है
बिना गाँठ के ,ये तन पर ना टिक पाते है
बिना गाँठ के नाड़ा ,रस्सी का टुकड़ा है
गाठों के ही बंधन से संसार  जुड़ा  है
खुली गाँठ,कितने ही राज खुला करते है
गाँठ बाँध ,रस्सी पर सीढ़ी से चढ़ते है
बाहुपाश भी तो एक गांठों का बंधन है
गाँठ पड़  गयी तो क्या,जुड़े जुड़े तो हम है
घोटू

मैं औरत हूँ

            मैं औरत हूँ

मैं औरत हूँ
कोमल ह्रदय,कामिनी सुन्दर,स्नेहिल ममता की मूरत हूँ
विधि की सर्वोत्तम रचना हूँ,मैं अनमोल निधि ,अमृत  हूँ
सरस्वती सी ज्ञानवती हूँ,और  लक्ष्मी  की सम्पद   हूँ
मैं सीता सी सहनशील हूँ, और सावित्री का पतिव्रत हूँ
माँ हूँ कभी,कभी बहना हूँ,पत्नी कभी  खूबसूरत   हूँ
परिवार की मर्यादा हूँ,और हर घर की मैं  इज्जत हूँ
जिसकी छाँव  तले सब पलते ,हरा भरा वह अक्षयवट हूँ
मुझको अबला कहने वालों ,मैं तो दुर्गा की ताकत हूँ
मैं बेटी ,पर लोग  भ्रूण में ,हत्या करते ,मैं आहत  हूँ
मैं औरत हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

I am writing this mail to you with tears and sorrow from my heart.




 PLEASE REPLY ME THROUGH MY PRIVATE EMAIL ADDRESS Missvanilakipkalya@myself.com
 

I am writing this mail to you with tears and sorrow from my heart. With due respect trust and humanity, I appeal to you to exercise a little patience and read through my letter, I wish to contact you personally for a long term business relationship and investment assistance in your Country so I feel quite safe dealing with you in this important business having gone through your remarkable profile, honestly I am writing this email to you with pains, tears and sorrow from my heart, I will really like to have a good relationship with you and I have a special reason why I decided to contact you, I decided to contact you due to the urgency of my situation, My name is Miss Vanila Kipkalya Kones, 23yrs old female and I held from Kenya in East Africa. My father was the former Kenyan road Minister. He and Assistant Minister of Home Affairs Lorna Laboso had been on board the Cessna 210, which was headed to Kericho and crashed in a remote area called Kajong,
in western Kenya. The plane crashed on the Tuesday 10th, June, 2008.
You can read more about the crash through the below site:

http://edition.cnn.com/2008/WORLD/africa/06/10/kenya.crash/index.html

After the burial of my father, my stepmother and uncle conspired and sold my father's property to an Italian Expert rate which the shared the money among themselves and live nothing for me. I am constrained to contact you because of the abuse I am receiving from my wicked stepmother and uncle. They planned to take away all my late father's treasury and properties from me since the unexpected death of my beloved Father. Meanwhile I wanted to escape to the USA but they hide away my international passport and other valuable traveling documents. Luckily they did not discover where I kept my fathers File which contains important documents. So I decided to run to the refugee camp where I am presently seeking asylum under the United Nations High Commission for the Refugee here in Ouagadougou, Republic of Burkina Faso.

One faithful morning, I opened my father's briefcase and found out the documents which he has deposited huge amount of money in one bank in Burkina Faso with my name as the next of kin. I traveled to Burkina Faso to withdraw the money for a better life so that I can take care of myself and start a new life, on my arrival, the Bank Director whom I met in person told me that my father's instruction/will to the bank is that the money would only be release to me when I am married or present a trustee who will help me and invest the money overseas. I am in search of an honest and reliable person who will help me and stand as my trustee so that I will present him to the Bank for transfer of the money to his bank account overseas. I have chosen to contact you after my prayers and I believe that you will not betray my trust. But rather take me as your own sister or daughter.

Although, you may wonder why I am so soon revealing myself to you without knowing you, well I will say that my mind convinced me that you may be the true person to help me. More so, my father of blessed memory deposited the sum of (US$11.500, 000) Dollars in Bank with my name as the next of kin. However, I shall forward you with the necessary documents on confirmation of your acceptance to assist me for the transfer and statement of the fund in your country. As you will help me in an investment, and I will like to complete my studies, as I was in my 1year in the university when my beloved father died. It is my intention to compensate you with 30% of the total money for your services and the balance shall be my capital in your establishment. As soon as I receive your positive response showing your interest I will put things into action immediately. In the light of the above. I shall appreciate an urgent message indicating your ability and willingness to
handle this transaction sincerely.

AWAITING YOUR URGENT AND POSITIVE RESPONSE, Please do keep this only to your self for now un till the bank will transfer the fund. I plead to you not to disclose it till I come over because I am afraid of my wicked stepmother who has threatened to kill me and have the money alone, I thank God Today that am out from my country (KENYA) but now In (Burkina Faso) where my father deposited these money with my name as the next of Kin. I have the documents for the claims.
Yours Sincerely
Miss Vanila Kipkalya Kones

PLEASE REPLY ME THROUGH MY PRIVATE EMAIL ADDRESS Missvanilakipkalya@myself.com
vanilak8@aim.com

मंगलवार, 24 मार्च 2015

रंग-ए-जिंदगानी: तलाश जारी हैं...

रंग-ए-जिंदगानी: तलाश जारी हैं...: चलती हुई बस चलाता हुआ बस चालक यात्रियों के बीच बेठा हुआ एक अच्छा आदमी सहयात्री, सहपाठी या अलग-थलग लगता है या हैं..... अचा...

शनिवार, 21 मार्च 2015

"निरंतर" की कलम से.....: आज पकड़ते हैं कल छोड़ते हैं

"निरंतर" की कलम से.....: आज पकड़ते हैं कल छोड़ते हैं: वे शाख-ऐ-नाज़ुक पर, आशियाना बनाना चाहते हैं गुलफाम बिना दिल का गुलिस्तां बसाना चाहते हैं दिल दिए,बिना दिल लेना चाहते हैं बुझी हुई...

"निरंतर" की कलम से.....: ये पत्थरों का शहर है

"निरंतर" की कलम से.....: ये पत्थरों का शहर है: ये पत्थरों का शहर है, यहाँ अश्कों का क्या काम जहाँ पत्थर के बुत रहते हों, वहां मोहब्बत का क्या काम जहां जिस्मों में दिल नहीं वहां दर्द का ...

"निरंतर" की कलम से.....: मेरे चमन के वीराने दिखते नहीं है

"निरंतर" की कलम से.....: मेरे चमन के वीराने दिखते नहीं है: मेरे चमन के  वीराने, दिखते नहीं है लदा है फूलों से  पर उनमें   महक नहीं है मुस्कान से पुते चेहरे के गम, दिखते नहीं है लब्जों से  इत्मान...

बुधवार, 18 मार्च 2015

मैं पूर्ण हुई

                 मैं पूर्ण हुई

फटे दूध का छेना थी मैं ,डूबा प्यार के रस में,
        तुमने नयी जिंदगी दे दी ,बना मुझे रसगुल्ला
दिन चांदी से ,रात सुनहरी ,जीवन मेरा  बदला ,
         जिस दिन से तुमने पहनाया मुझे स्वर्ण का छल्ला
सिन्दूरी सी सुबह हो गयी ,रात हुई रंगीली  ,
           जब से तुम्हारे हाथों ने , मांग भरी  सिन्दूरी
बड़ा अधूरा सा जीवन था सूना सा छितराया,  
            प्रीत तुम्हारी जब से पायी ,हुई कामना   पूरी
तुमने वरमाला पहना कर बाँध लिया बंधन में ,
         जनम जनम का साथ दे गए ,फेरे सात   अगन के
जबसे मैंने अपना सब कुछ किया समर्पित तुमको ,
           पूर्ण हुई मैं ,तबसे आये ,स्वर्णिम  दिन  जीवन के
              
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुजरा ज़माना

          गुजरा ज़माना
याद आता है हमें वो ज़माना ,
              गुल खिलाते थे बड़े गुलफाम थे 
जवानी की बात ही कुछ और थी ,
              देखती थी लड़कियां दिल थाम के
बुढ़ापे में हाल ऐसा हो गया ,
               रह गए है आदमी  बस नाम के
उम्र ने हमको निकम्मा कर दिया ,
                वरना हम भी आदमी थे काम के
घोटू

सच्चा श्राद्ध

             सच्चा श्राद्ध
वो,अपनी माँ की याद में ,
श्रद्धा से श्राद्ध में ,
अपनी मेहनत की कमाई हुई
दो रोटी ,
किसी ब्राह्मण को खिलाना चाहता था
माँ का आशीर्वाद पाना चाहता था
पर सभी पंडित पहले से बुक थे
तीन चार जगह,न्योता खाने के बाद भी,
दक्षिणा क्या मिलेगी,
जानने में उत्सुक थे 
उसकी खस्ता हालत देख,
सभी ने मना कर दिया
दो सादी रोटी देख कर ,
मुंह बना लिया
तभी  उसे एक बूढ़ा ,अपाहिज ,
भूखा वृद्ध  नज़र आया
उसने बड़े प्रेम से उसे भोजन कराया
भूखे वृद्ध ने तृप्त होकर ,
उठा दिए अपने हाथ
उसने देखा ,आसमान में ,
उसकी माँ तृप्त होकर ,
बरसा रही थी आशीर्वाद

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 7 मार्च 2015

होली पर -उनसे

             होली पर -उनसे
सारा बरस ,एक रस रह कर ,
कई रसों का स्वाद मिले जब ,
पुलकित पुलकित से चेहरे पर,
             झलका करता हर्ष हमारा
कैसे तुम्हे मना मैं कर दूँ,
मुझ पर नहीं गुलाल मलो तुम,
एक बरस में एक बार ही,
            मिलता है स्पर्श तुम्हारा
तुम्हारे नाजुक हाथों की ,
कोमल नरम नरम सी उंगली ,
के जब पौर मुझे छूते है ,
              मेरे पौर पौर  सिहराते
जब तुम मुझे गुलाल लगाती,
तुमको भी कुछ होता होगा ,
मेरे छूये बिना तुम्हारे ,
               गाल गुलाबी जब हो जाते
तुम्हारे कोमल कपोल को,
मिलती छूने  की आजादी ,
प्यासी आँखे यूं तो अक्सर ,
             करती रहती  दर्श  तुम्हारा
कैसे तुम्हे मना मैं करदूं ,
मुझ पर नहीं गुलाल मलो तुम,
एक बरस में एक बार ही,
मिलता है स्पर्श तुम्हारा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मंगलवार, 3 मार्च 2015

जिनके आगे घुटने टेके

            जिनके आगे घुटने टेके

घुटने टेके ,देकर गुलाब,था मैंने तुम्हे 'प्रपोज़ 'किया
फिर घुटने टेक तुम्हारी हर जिद को पूरा हर रोज किया
वर्जिश तो मेरे घुटनो की बस  रही सदा ,ऐसे होती
तुम रूप गर्विता तनी रही,और नहीं झुकी,अब हो मोटी
दिक्कत आयी तो लगा लिए ,घुटनो में दो 'जॉइंट'नए
जिनके आगे घुटने टेके ,उनके घुटने ही बदल  गए

घोटू

पत्नीजी ने घुटने बदले

            पत्नीजी ने घुटने बदले

मोरनी सी चाल थी ,उनकी ,उसी  को देख कर
फ़िदा उन पर हो गए हम रख दिया दिल फेंक कर
इश्क़ में  डूबे  रहे हम ,बावले और   बेखबर
प्यार का इजहार इक दिन किया घुटने टेक कर
उनने जब  हाँ कर दिया तो मस्त 'लाइफ' हो गयी
बन गए' हसबैंड' उनके और वो 'वाईफ' हो गयी
जिंदगी शादीशुदा हम बाद में  ऐसे जिए
उम्र भर हम उनके आगे घुटने ही टेका किये
इस तरह वर्जिश  हमारे घुटनो की होती रही
और वो  खुशहाल ,खाती पीती और सोती रही
धीरे धीरे बदन फैला ,बात कुछ ऐसी  बनी
मोर जैसी चालवाली बन गयी ,गजगामिनी
घुटने की तकलीफ से जब लगी घुटने दिलरुबां
घुटने प्रत्यार्पण करा लो ,डाक्टरों ने ये कहा
अब नए घुटने लगा कर हिरणिया वो हो गयी
और घुटने टेकते है अब भी हम वो के वो ही

घोटू

बदली बदली बीबी

             बदली बदली बीबी

घटा सी घनेरी थी जुल्फें वो काली,
         हुए श्वेत छिछले ,घने बाल पतले
हिरणी सी आँखें,फ़िदा जिन पे हम थे,
        हुआ मोतियाबिन्द ,और 'लेन्स'बदले
छरहरा बदन आज मांसल हुआ है ,
         दिल की शिराओं में 'स्टंट' डाले
ठुमक करके जिन पर अदा से थी चलती ,
        वो घुटने भी तुमने ,बदल दोनों डाले
बदल जिस्म के सारे पुर्जे गए है ,
        बचा कोई 'ओरिजिनल' अब नहीं है 
मोती से दाँतों पे सोना चढ़ा है ,
         मगर प्यार तुम्हारा ,वो का वही है

घोटू

शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

आंटी का दर्द

          आंटी का दर्द

जब मैं थी छोटी ,
नन्ही मुन्नी सी गुड़िया ,
लोग मुझे कहते थे 'क्यूटी '
जब मैं बड़ी हुई,
जवानी और निखार आया,
लोग मुझे कहने लगे' ब्यूटी'
शादी के बाद ,
पति ने दिया ढेर सा प्यार,
 और कहते थे मुझे 'स्वीटी'
बाद में जब गृहस्थी में जुटी,
तो बच्चों और परिवार की सेवा में ,
लग गयी मेरी 'ड्यूटी'
और अब जब जवानी रूठी,
हो रही हूँ मोटी ,
और खो जाया करती है मेरी ' शांती'
जब अच्छे खासे ,
बड़े बड़े लोग भी,
मुझे बुलाते है कह कर 'आंटी'
ये लोगो का आंटी कहना
मेरे मन को चुभता है,
बन कर के नश्तर
इंग्लिश में 'आंट 'याने चींटी,
तो क्या मेरी हालत ,
हो गयी है चींटी से भी बदतर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


राहुल बाबा का चिंतन

        राहुल बाबा का  चिंतन

मम्मी  ने ये बोला था तू पी एम बनेगा,
     सब सर झुका के रहेंगे तेरे हुज़ूर में
किस्मत ने मगर खेल कुछ दिखलाया इस तरह,
      टपका जो आसमान से ,लटका खजूर में
जब तक छपरपलंग था ,बंदा मलंग था,
      लेकिन गए है इस कदर ,हालात अब बदल
करवट को बदलने की भी अब तो जगह नहीं,
      स्लीपर की साइड बर्थ है ,सोने को आजकल
बेहतर विदेश जाऊं मैं ,चिंतन के नाम पर ,
       मेरे  उबलते खून को ठंडक  तो  मिलेगी
मम्मा ,मुझे कांग्रेस का अध्यक्ष बनादो,
      आहत मेरे  इस दिल को कुछ राहत तो मिलेगी

घोंटू  

सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

यूं बीत गया बस जन्मदिवस

         यूं  बीत गया बस जन्मदिवस

 हम ख़ुशी मनाते भूल गए ,घट गयी उमर है एक बरस
                                     यूं बीत गया बस जन्मदिवस
कुछ मित्र ,सगे और सम्बन्धी ,जतलाने आये हमें प्यार
कुछ पुष्पगुच्छ लेकर आये ,कुछ लेकर आये उपहार
कुछ 'व्हाटस एप 'सन्देश मिले ,मेसेज मिले  मोबाईल पर
लम्बी हो उम्र ,सुखी जीवन ,और खुशियां बरसे जीवन भर
फिर' केक' कटी,गाने गाये,और हुयी पार्टी,खान पान
यह चला सिलसिला बहुत देर,तन अलसाया ,आयी थकान
उपहार प्यार का हमें दिया ,पत्नी ने खुश हो  विहंस ,विहंस
सारा दिन गुजरा  मस्ती में ,अगले दिन से फिर जस के तस
                                       यूं बीत गया बस जन्म  दिवस

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 22 फ़रवरी 2015

चौहत्तरवें जन्मदिन पर -जीवन संगिनी से

      चौहत्तरवें जन्मदिन पर -जीवन संगिनी से

उमर बढ़ रही ,पलपल,झटझट
 हुआ तिहत्तर मैं   ,तुम अड़सठ 
एक दूसरे पर अवलम्बित ,
एक सिक्के के हम दोनों पट
      सीधे सादे ,मन के सच्चे    
      पर दुनियादारी में कच्चे
     बंधे भावना के बंधन में,
    पर दुनिया कहती हमको षठ
कोई मिलता ,पुलकित होते 
याद कोई आ जाता ,रोते
तुम भी पागल,हम भी पागल,
 नहीं किसी से है कोई घट
       पलपल जीवन ,घटता जाता
      भावी कल ,गत कल बन जाता
       कभी चांदनी है पूनम की,
      कभी  अमावस का श्यामल पट
इस जीवन के  महासमर में
हरदम हार जीत के डर  में
हमने हंस हंस कर झेले है,
पग पग पर कितने ही संकट
      मन में क्रन्दन ,पीड़ा  ,चिंतन
      क्षरण हो रहा,तन का हर क्षण
      अब तो ऐसे लगता जैसे ,
      देने लगा  बुढ़ापा   आहट

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

          हम मुफ्तखोर है
                       १
सूरज की धूप हमें ,मुफ्त मिले दिनभर ही ,
          और रात मुफ्त मिले ,चांदनी  सुहानी है
मुफ्त हवा के झोंको की ठंडक मिलती है ,
           मुफ्त में ही बादल भी ,बरसाते पानी है
मज़ा स्वाद खुशबू का ,मुफ्त लिया करते हम ,
              पकती पड़ोसी के घर जब बिरयानी है  
मुफ्त खुशबुएँ लेते,खिले पुष्प,कलियों की,
               हमें मुफ्तखोरी की ,आदत पुरानी है
                                २
 मुफ्त हुस्न सड़कों पर ,खुला खुला  दिखता है,
                 और मुफ्त में ही हम ,आँख सेक लेते है   
नए नए फैशन का ,मुफ्त ज्ञान हो जाता ,
                 जहाँ मिले परसादी ,माथ टेक  लेते है
मुफ्त रोटी लंगर की ,बड़ी स्वाद लगती है,
                  मुफ्त मिले दारू तो ,छक कर पी लेते है
मुफ्त में कंप्यूटर , बिजली और पानी का ,
                   वादा जो करता , हम वोट  उसे  देते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

औलाद का सुख

           औलाद का सुख

हे परवरदिगार !
ये खाकसार
है तेरा बहुत शुक्रगुजार
तूने मुझे बक्शें है दो दो चश्मेचिराग
दोनों ही बेटे ,लायक,काबिल और लाजबाब
अच्छे ओहदों पर दूर दूर तैनात है
अपनी वल्दियत में  मेरा नाम लिखते है,
ये मेरे लिए फ़क्र की बात है 
लोग उनकी तारीफ़ करते है,गुण  गाते है
और वो भी जी जान से अपना फर्ज निभाते है
पर काम में इतने मशगूल  रहते है कि ,
अपने माबाप के लिए ,
बिलकुल भी समय नहीं निकाल पाते है
मेरे मौला !
तेरा तहेदिल से शुक्रिया
तूने जो भी दिया ,अच्छा दिया
पर काश!
तू मुझे दे देता एक और नालायक औलाद
जो भले ही कोई बड़ा काम तो नहीं करती ,
पर बुढ़ापे में तो रहती हमारे साथ
उम्र के इस मोड़ पर हमारा  ख्याल रखती ,
और सहारा देती ,पकड़ कर हमारा हाथ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

उम्र-ठगिनी

                      उम्र-ठगिनी

वक़्त चलता था हमारे साथ में ,
                      उम्र के संग तबदीली यूं  छागयी
नींद भी गुस्ताख़ अब होने लगी,
                       हम न सोये,उसके पहले आ गयी
आजकल तो ढलता है दिन बाद में,
                       उसके पहले ढलने लग जाते है हम
साँझ घिरते ,लगता छाई रात है ,
                       और उस पर नींद ढाती है सितम
सपन भी तो आजकल आते नहीं ,
                        कहते है कि आते आते थक गए
एक भी अंजाम तक पहुंचा नहीं ,
                         हमारे संग इस तरह वो पक गए   
 हमारी मर्ज़ी मुताबिक़ कल तलक,
                         चला करती थी हवायें ,बेदखल
अपनी मन मर्जी की सब मालिक हुई ,
                      बदला बदला रुख है उनका आजकल     
आफताबी चमक थी हममें कभी ,
                       पीड़ाओं की बदलियों ने  ढक  लिया
'माया ठगिनी' को बहुत हमने ठगा ,
                        'उम्र ठगिनी'ने हमें पर ठग लिया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

रंग-ए-जिंदगानी: दो शब्द दिल की कलम से

रंग-ए-जिंदगानी: दो शब्द दिल की कलम से: आज बहुत कोशिश करने पर भी कुछ नहीं लिख पाया। शायद अब लिखने के लिए बहुत कुछ हैं, बहुत कुछ में जो कुछ था लिखने के लिए वहीं कहीं खो गया हैं...

सोमवार, 9 फ़रवरी 2015

प्रगति और रूढ़ियाँ

                प्रगति और रूढ़ियाँ

पथप्रदर्शक,ज्ञानवर्धक,यंत्र छोटा सा मगर ,
           दूर बैठे प्रियजनों से मिलाता ,सन्देश देता
छोटे से गागर में जैसे कोई सागर सा भरा हो ,
            इसी कारण आज मोबाइल बना ,सबका चहेता
उँगलियों से अब कलम का पकड़ना कम हो रहा,
            मोबाईल स्क्रीन पर सब उंगलियां है फेरते
सुबह उठ के 'फेस 'अपना चाहे देखे या नहीं,
            सबसे पहले मोबाईल पर ,'फेस बुक'है देखते
प्रगति हमने बहुत कर ली ,हो रहे है आधुनिक,
              चन्द्रमा ,मंगल ग्रहों पर रखा हमने हाथ है
रूढ़िवादी सोच लेकिन और पुरानी भ्रांतियां ,
               आज भी चिपकी हुई,  रहती  हमारे साथ है
'रेड लाईट 'पर भले ही ,हम रुकें या ना रुकें,
                बिल्ली रास्ता काट देती,झट से रुक जाते है हम
कोई भी शुभ कार्य हो या जा रहे हो हम कहीं,
                 छींक जो देता है कोई ,तो सहम जाते   कदम

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

बात -रात की

              बात -रात की

तुम पडी हुई उस कोने में,मैं पड़ा हुआ इस कोने में
ऐसे भी मज़ा कहीं कोई  ,आता है जानम  सोने में
मेरी आँखों में उतर रही ,निंदिया  घुल कर ,धीरे धीरे
खर्राटे बन कर उभर रहे , साँसों के स्वर ,धीरे धीरे
तुम भी लगती जागी जागी ,हो शायद इसी प्रतीक्षा में,
मैं पास तुम्हारे आ जाऊं ,करवट भर कर ,धीरे धीरे
तुम सोच रही ,मैं पहल करूँ ,मैं सोच रहा तुम पहल करो,
लेटे है इस उधेड़बुन में, हम और तुम एक  बिछोने में
तुम पड़ी हुई उस कोने में,मैं पड़ा हुआ इस कोने में
ना तो कोई झगड़ा हम मे ,ना ही कोई  मजबूरी है
तो फिर ऐसी क्या बात हुई ,जो हम में तुम में दूरी है
मैं  सीधी  करवट एक भरता ,आ जाते है हम तुम करीब,
तुम  उलटी करवट  ले लेती  ,बढ़ जाती हम मे दूरी है 
समझौतो का हो समीकरण ,यह मधुर मिलन का मूलमंत्र ,
टकराव अहम का अक्सर बाधा बनता प्यार संजोने में 
तुम पडी हुई उस कोने में ,मैं  पड़ा हुआ इस कोने में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

सब मौसम अच्छे

        सब मौसम अच्छे

जब तुम अच्छे,जब हम अच्छे
गुजरेंगे  सब  मौसम   अच्छे
प्यार भरी ठंडक  गरमी  में,
और सर्दी में बंधन   अच्छे
 तुम भी सीधे,हम भी भोले,
नहीं बनावट के कुछ लच्छे
गाँठ पड़े ना और ना टूटे  ,
प्रेम सूत  के धागे   कच्चे
हमें भुला कर रम जाएंगे,
अपने अपने घर सब बच्चे
बस हम और तुमसाथ रहेंगे ,
तुम संग गुजरें,सब दिन अच्छे 
साथ निभाना ,तुम जीवन भर,
बन कर मेरे हमदम  सच्चे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मैं हूँ झाड़ू

                     मैं  हूँ  झाड़ू

सेक रहे है अपनी अपनी रोटी , नेता , सभी  जुगाड़ू
राजनीति  का शस्त्र बनी मैं ,किसे सुधारूं किसे बिगाड़ूँ
                                                मैं  हूँ झाड़ू
सुबह सुबह गृहणी हाथों में आती,घर का गंद बुहरता
स्वच्छ साफ़ हर कोना होता,और सारा घरबार चमकता
सड़कों पर और गलियों में जो बिखरा रहता सारा कचरा
मैं ही उसे साफ़ करती हूँ, गाँव,शहर  रहता है  निखरा
फिर भी घर के एक कोने में पडी उपेक्षित मैं रहती हूँ
कोई मेरे दिल से पूछे ,मैं कितनी  पीड़ा  सहती हूँ
घर भर तो मैं साफ़ करूं पर,कैसे मन की पीर बुहारूं
                                               मैं हूँ झाड़ू
 कहते है बारह वर्षों मे ,घूरे के भी दिन फिर जाते
लेकिन बरस सैकड़ों बीते,मेरे अच्छे दिन को आते
'आप'पार्टी ,लड़ी इलेक्शन ,और चुनाव का चिन्ह बनाया
मोदी जी ने मुझे उठाया और स्वच्छ अभियान  चलाया
तब से  बड़े  बड़े नेताओं, के हाथों   की शान बनी मैं
जगह जगह 'बैनर्स 'पर दिखती,एक नयी पहचान बनी मैं
चाहूँ स्वच्छ प्रशासन कर दूँ और व्यवस्था सभी सुधारूं
                                                 मैं  हूँ झाड़ू
एक सींक जब रहे अकेली ,तो खुद ही कचरा कहलाती
कई सींक मिलती ,झाड़ू बन ,घर का कचरा दूर हटाती
यही एकता की महिमा है ,यही संगठन की शक्ति है
कचरा सभी साफ़ हो जाता ,जहाँ जहाँ झाड़ू फिरती है
मोदी जी ने ,अच्छे दिन के सब को सपने दिखलाये है
और किसी के ,आये न आये ,मेरे अच्छे दिन   आये है
मेरी शान बढ़ गयी कितनी,खुशियां इतनी ,कहाँ सम्भालू
                                                  मै  हूँ  झाड़ू

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
 

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