होली पर -उनसे
सारा बरस ,एक रस रह कर ,
कई रसों का स्वाद मिले जब ,
पुलकित पुलकित से चेहरे पर,
झलका करता हर्ष हमारा
कैसे तुम्हे मना मैं कर दूँ,
मुझ पर नहीं गुलाल मलो तुम,
एक बरस में एक बार ही,
मिलता है स्पर्श तुम्हारा
तुम्हारे नाजुक हाथों की ,
कोमल नरम नरम सी उंगली ,
के जब पौर मुझे छूते है ,
मेरे पौर पौर सिहराते
जब तुम मुझे गुलाल लगाती,
तुमको भी कुछ होता होगा ,
मेरे छूये बिना तुम्हारे ,
गाल गुलाबी जब हो जाते
तुम्हारे कोमल कपोल को,
मिलती छूने की आजादी ,
प्यासी आँखे यूं तो अक्सर ,
करती रहती दर्श तुम्हारा
कैसे तुम्हे मना मैं करदूं ,
मुझ पर नहीं गुलाल मलो तुम,
एक बरस में एक बार ही,
मिलता है स्पर्श तुम्हारा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
सारा बरस ,एक रस रह कर ,
कई रसों का स्वाद मिले जब ,
पुलकित पुलकित से चेहरे पर,
झलका करता हर्ष हमारा
कैसे तुम्हे मना मैं कर दूँ,
मुझ पर नहीं गुलाल मलो तुम,
एक बरस में एक बार ही,
मिलता है स्पर्श तुम्हारा
तुम्हारे नाजुक हाथों की ,
कोमल नरम नरम सी उंगली ,
के जब पौर मुझे छूते है ,
मेरे पौर पौर सिहराते
जब तुम मुझे गुलाल लगाती,
तुमको भी कुछ होता होगा ,
मेरे छूये बिना तुम्हारे ,
गाल गुलाबी जब हो जाते
तुम्हारे कोमल कपोल को,
मिलती छूने की आजादी ,
प्यासी आँखे यूं तो अक्सर ,
करती रहती दर्श तुम्हारा
कैसे तुम्हे मना मैं करदूं ,
मुझ पर नहीं गुलाल मलो तुम,
एक बरस में एक बार ही,
मिलता है स्पर्श तुम्हारा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।