उम्र-ठगिनी
वक़्त चलता था हमारे साथ में ,
उम्र के संग तबदीली यूं छागयी
नींद भी गुस्ताख़ अब होने लगी,
हम न सोये,उसके पहले आ गयी
आजकल तो ढलता है दिन बाद में,
उसके पहले ढलने लग जाते है हम
साँझ घिरते ,लगता छाई रात है ,
और उस पर नींद ढाती है सितम
सपन भी तो आजकल आते नहीं ,
कहते है कि आते आते थक गए
एक भी अंजाम तक पहुंचा नहीं ,
हमारे संग इस तरह वो पक गए
हमारी मर्ज़ी मुताबिक़ कल तलक,
चला करती थी हवायें ,बेदखल
अपनी मन मर्जी की सब मालिक हुई ,
बदला बदला रुख है उनका आजकल
आफताबी चमक थी हममें कभी ,
पीड़ाओं की बदलियों ने ढक लिया
'माया ठगिनी' को बहुत हमने ठगा ,
'उम्र ठगिनी'ने हमें पर ठग लिया
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
वक़्त चलता था हमारे साथ में ,
उम्र के संग तबदीली यूं छागयी
नींद भी गुस्ताख़ अब होने लगी,
हम न सोये,उसके पहले आ गयी
आजकल तो ढलता है दिन बाद में,
उसके पहले ढलने लग जाते है हम
साँझ घिरते ,लगता छाई रात है ,
और उस पर नींद ढाती है सितम
सपन भी तो आजकल आते नहीं ,
कहते है कि आते आते थक गए
एक भी अंजाम तक पहुंचा नहीं ,
हमारे संग इस तरह वो पक गए
हमारी मर्ज़ी मुताबिक़ कल तलक,
चला करती थी हवायें ,बेदखल
अपनी मन मर्जी की सब मालिक हुई ,
बदला बदला रुख है उनका आजकल
आफताबी चमक थी हममें कभी ,
पीड़ाओं की बदलियों ने ढक लिया
'माया ठगिनी' को बहुत हमने ठगा ,
'उम्र ठगिनी'ने हमें पर ठग लिया
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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