एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 4 अप्रैल 2015

प्यार की झंकार

        प्यार की झंकार

जब पायल की छनछन ,दिल को छनकाती है
भटक  रहे  बनजारे  मन  की  बन   आती है
   जब अपना मन, बन जाता अपना ही दुश्मन
   नज़रें उलझ किसी से ,बन जाती है उलझन
छतरी तर होने से बचा नहीं पाती है
भटक रहे बनजारे मन की बन आती है
       जब सपने ,अपने ,साकार ,सामने आते
       बन  हमराही कोई  बांह थामने   आते
जेठ भरी दोपहरी बन सावन जाती है
भटक रहे बनजारे मन की बन आती है
     जब मैं और तुम मिल कर,एक हो जाते है हम
      गम  सारे  गुम  हो जाते , हो  जाता    संगम 
दिल की बस्ती में मस्ती सी छन जाती है
भटक  रहे  बनजारे मन की  बन आती  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-