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शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

औलाद का सुख

           औलाद का सुख

हे परवरदिगार !
ये खाकसार
है तेरा बहुत शुक्रगुजार
तूने मुझे बक्शें है दो दो चश्मेचिराग
दोनों ही बेटे ,लायक,काबिल और लाजबाब
अच्छे ओहदों पर दूर दूर तैनात है
अपनी वल्दियत में  मेरा नाम लिखते है,
ये मेरे लिए फ़क्र की बात है 
लोग उनकी तारीफ़ करते है,गुण  गाते है
और वो भी जी जान से अपना फर्ज निभाते है
पर काम में इतने मशगूल  रहते है कि ,
अपने माबाप के लिए ,
बिलकुल भी समय नहीं निकाल पाते है
मेरे मौला !
तेरा तहेदिल से शुक्रिया
तूने जो भी दिया ,अच्छा दिया
पर काश!
तू मुझे दे देता एक और नालायक औलाद
जो भले ही कोई बड़ा काम तो नहीं करती ,
पर बुढ़ापे में तो रहती हमारे साथ
उम्र के इस मोड़ पर हमारा  ख्याल रखती ,
और सहारा देती ,पकड़ कर हमारा हाथ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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