क्या सेवा इसको कहते है ?
मुझे बिमारी ने था घेरा
थोड़ा ख्याल रखा क्या मेरा
इसको तुम हो सेवा कहते
खुद को सेवाव्रती बता कर
पत्नीभक्त पति बतला कर
अपना ढोल पीटते रहते
पत्नी ने जब ये फरमाया
हमको काफी गुस्सा आया
हम बोले ये बात गलत है
होता देखा है ये अक्सर
अलगअलग जगहों,मौकों पर
होता सेवा अर्थ अलग है
ठाकुरजी को यदि नहलाओ
पूजा कर, परसाद चढ़ाओ
प्रभु जी की सेवा कहलाती
दादा दादी पौत्र खिलाते
ऊँगली थाम उसे टहलाते
बच्चों की सेवा कहलाती
दफ्तर में हो काम कराना
बाबू को देना, नज़राना
इसको सेवा पानी कहते
साला आये , उसे घुमाओ
साली को तुम गिफ्ट दिलाओ
इस सेवा से सब खुश रहते
साहब के घर ,सब्जी और फल
यदि लाओगे, थैला भर भर
पा सकते हो शीध्र प्रमोशन
अगर गाय को चारा डालो
उसकी सेवा करो ,सम्भालो
दूध तभी मिलता भर बरतन
गुरु की सेवा आये काम में
अच्छे नंबर 'एक्जाम 'में
सेवा से मेवा मिलता है
साधू संत की करिये सेवा
मिलता ज्ञान ,कृपा का मेवा
खुशियों से जीवन खिलता है
पिता और माँ की सेवा कर
मिलती आशिषे ,झोली भर
बहुत पुण्य भागी हम होते
तुम बीमार पड़ी बिस्तर पर
दी दवाई तुमको टाइम पर
ख्याल रखा था जगते सोते
इस पर भी ये तुम्हे ग़िला है
इसे नहीं कहते सेवा है
तो क्या करता ,पाँव दबाता
ये भी तो ना कर सकता था
हुआ ऑपरेशन घुटनो का
इसीलिये बस मैं सहलाता
किया वही जो कर सकता था
ख्याल तुम्हारा मैं रखता था
सेवा समझो इस सेवक की
मैं पति,तुम्हारा दीवाना
बदले में दो ,मेवा या ना
ये तो है तुम्हारी मरजी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मुझे बिमारी ने था घेरा
थोड़ा ख्याल रखा क्या मेरा
इसको तुम हो सेवा कहते
खुद को सेवाव्रती बता कर
पत्नीभक्त पति बतला कर
अपना ढोल पीटते रहते
पत्नी ने जब ये फरमाया
हमको काफी गुस्सा आया
हम बोले ये बात गलत है
होता देखा है ये अक्सर
अलगअलग जगहों,मौकों पर
होता सेवा अर्थ अलग है
ठाकुरजी को यदि नहलाओ
पूजा कर, परसाद चढ़ाओ
प्रभु जी की सेवा कहलाती
दादा दादी पौत्र खिलाते
ऊँगली थाम उसे टहलाते
बच्चों की सेवा कहलाती
दफ्तर में हो काम कराना
बाबू को देना, नज़राना
इसको सेवा पानी कहते
साला आये , उसे घुमाओ
साली को तुम गिफ्ट दिलाओ
इस सेवा से सब खुश रहते
साहब के घर ,सब्जी और फल
यदि लाओगे, थैला भर भर
पा सकते हो शीध्र प्रमोशन
अगर गाय को चारा डालो
उसकी सेवा करो ,सम्भालो
दूध तभी मिलता भर बरतन
गुरु की सेवा आये काम में
अच्छे नंबर 'एक्जाम 'में
सेवा से मेवा मिलता है
साधू संत की करिये सेवा
मिलता ज्ञान ,कृपा का मेवा
खुशियों से जीवन खिलता है
पिता और माँ की सेवा कर
मिलती आशिषे ,झोली भर
बहुत पुण्य भागी हम होते
तुम बीमार पड़ी बिस्तर पर
दी दवाई तुमको टाइम पर
ख्याल रखा था जगते सोते
इस पर भी ये तुम्हे ग़िला है
इसे नहीं कहते सेवा है
तो क्या करता ,पाँव दबाता
ये भी तो ना कर सकता था
हुआ ऑपरेशन घुटनो का
इसीलिये बस मैं सहलाता
किया वही जो कर सकता था
ख्याल तुम्हारा मैं रखता था
सेवा समझो इस सेवक की
मैं पति,तुम्हारा दीवाना
बदले में दो ,मेवा या ना
ये तो है तुम्हारी मरजी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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