बात -रात की
तुम पडी हुई उस कोने में,मैं पड़ा हुआ इस कोने में
ऐसे भी मज़ा कहीं कोई ,आता है जानम सोने में
मेरी आँखों में उतर रही ,निंदिया घुल कर ,धीरे धीरे
खर्राटे बन कर उभर रहे , साँसों के स्वर ,धीरे धीरे
तुम भी लगती जागी जागी ,हो शायद इसी प्रतीक्षा में,
मैं पास तुम्हारे आ जाऊं ,करवट भर कर ,धीरे धीरे
तुम सोच रही ,मैं पहल करूँ ,मैं सोच रहा तुम पहल करो,
लेटे है इस उधेड़बुन में, हम और तुम एक बिछोने में
तुम पड़ी हुई उस कोने में,मैं पड़ा हुआ इस कोने में
ना तो कोई झगड़ा हम मे ,ना ही कोई मजबूरी है
तो फिर ऐसी क्या बात हुई ,जो हम में तुम में दूरी है
मैं सीधी करवट एक भरता ,आ जाते है हम तुम करीब,
तुम उलटी करवट ले लेती ,बढ़ जाती हम मे दूरी है
समझौतो का हो समीकरण ,यह मधुर मिलन का मूलमंत्र ,
टकराव अहम का अक्सर बाधा बनता प्यार संजोने में
तुम पडी हुई उस कोने में ,मैं पड़ा हुआ इस कोने में
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
तुम पडी हुई उस कोने में,मैं पड़ा हुआ इस कोने में
ऐसे भी मज़ा कहीं कोई ,आता है जानम सोने में
मेरी आँखों में उतर रही ,निंदिया घुल कर ,धीरे धीरे
खर्राटे बन कर उभर रहे , साँसों के स्वर ,धीरे धीरे
तुम भी लगती जागी जागी ,हो शायद इसी प्रतीक्षा में,
मैं पास तुम्हारे आ जाऊं ,करवट भर कर ,धीरे धीरे
तुम सोच रही ,मैं पहल करूँ ,मैं सोच रहा तुम पहल करो,
लेटे है इस उधेड़बुन में, हम और तुम एक बिछोने में
तुम पड़ी हुई उस कोने में,मैं पड़ा हुआ इस कोने में
ना तो कोई झगड़ा हम मे ,ना ही कोई मजबूरी है
तो फिर ऐसी क्या बात हुई ,जो हम में तुम में दूरी है
मैं सीधी करवट एक भरता ,आ जाते है हम तुम करीब,
तुम उलटी करवट ले लेती ,बढ़ जाती हम मे दूरी है
समझौतो का हो समीकरण ,यह मधुर मिलन का मूलमंत्र ,
टकराव अहम का अक्सर बाधा बनता प्यार संजोने में
तुम पडी हुई उस कोने में ,मैं पड़ा हुआ इस कोने में
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 8-2-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1883 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सुन्दर प्रस्तुति
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