आ गया कैसा युग है ?
सूरज पहले भी पूरब से ही उगता था ,
अब भी वह पूरब से ही तो आता उग है
प्रकृति ने तो अपना चलन नहीं बदला है ,
बदल गए है लोग,आ गया कैसा युग है
१
नहीं ययाति जैसे तुमको पुत्र मिलेंगे ,
जो कि पिता को अपना यौवन करदे अर्पित
नहीं मिलेंगे ,हरिश्चंद्र से सत्यव्रती भी ,
राजपाट जो वचन रक्ष ,करे समर्पित
राम सरीखे बेटे अब ना पैदा होते ,
छोड़ राज्य हक़ ,पिता वचन हित ,भटके वन वन
अब तो घर घर में पैदा होते है अक्सर ,
कहीं कंस तो , कहीं दुशासन और दुर्योधन
मात पिता की आकंक्षाएँ जाय भाड़ में ,
अब खुद की ,महत्वकांक्षएं हुई प्रमुख है
प्रकृति ने तो अपना चलन नहीं बदला है ,
बदल गए है लोग, आ गया कैसा युग है
२
अपना अपना चलन हरेक युग का होता है ,
होती है हर युग की है अलग अलग गाथाएं
होता सीता हरण ,अहिल्या पत्थर बनती ,
तब भी थी और अब भी है क्यों वही प्रथाएं
नारी तब भी शोषित थी ,अब भी शोषित है,
अब भी जुए में है उसको दांव लगाते
अब भी द्रोपदियों का चीरहरण होता है,
लेकिन कोई कृष्ण न उसका चीर बढ़ाते
तब भी नारी त्रसित दुखी थी और भोग्या थी ,
अब भी उसका शोषण होता,मन में दुःख है
प्रकृति ने तो अपना चलन नहीं बदला है,
बदल गए है लोग ,आ गया कैसा युग है
३
हर कोई बैचेन व्यग्र है और व्यस्त है ,
और पैसे के चक्कर में पागल रहता है
अब कोई संयुक्त नहीं परिवार बचा है,
आत्म केंद्रित हर कोई एकल रहता है
संस्कारों को लील गयी पश्चिम की आंधी,
बिखर गए सब ,छिन्न भिन्न ,हालत नाजुक है
जाने क्यों कुछ लोग प्रगति इसको कहते है ,
जब कि पतन की ओर हो रहे हम उन्मुख है
सतयुग गया ,गया त्रेता भी और द्वापर भी ,
कल जैसे सब हुए मशीनी,अब कलयुग है
प्रकृती ने तो अपना चलन नहीं बदला है,
बदल गए है लोग ,आ गया कैसा युग है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
सूरज पहले भी पूरब से ही उगता था ,
अब भी वह पूरब से ही तो आता उग है
प्रकृति ने तो अपना चलन नहीं बदला है ,
बदल गए है लोग,आ गया कैसा युग है
१
नहीं ययाति जैसे तुमको पुत्र मिलेंगे ,
जो कि पिता को अपना यौवन करदे अर्पित
नहीं मिलेंगे ,हरिश्चंद्र से सत्यव्रती भी ,
राजपाट जो वचन रक्ष ,करे समर्पित
राम सरीखे बेटे अब ना पैदा होते ,
छोड़ राज्य हक़ ,पिता वचन हित ,भटके वन वन
अब तो घर घर में पैदा होते है अक्सर ,
कहीं कंस तो , कहीं दुशासन और दुर्योधन
मात पिता की आकंक्षाएँ जाय भाड़ में ,
अब खुद की ,महत्वकांक्षएं हुई प्रमुख है
प्रकृति ने तो अपना चलन नहीं बदला है ,
बदल गए है लोग, आ गया कैसा युग है
२
अपना अपना चलन हरेक युग का होता है ,
होती है हर युग की है अलग अलग गाथाएं
होता सीता हरण ,अहिल्या पत्थर बनती ,
तब भी थी और अब भी है क्यों वही प्रथाएं
नारी तब भी शोषित थी ,अब भी शोषित है,
अब भी जुए में है उसको दांव लगाते
अब भी द्रोपदियों का चीरहरण होता है,
लेकिन कोई कृष्ण न उसका चीर बढ़ाते
तब भी नारी त्रसित दुखी थी और भोग्या थी ,
अब भी उसका शोषण होता,मन में दुःख है
प्रकृति ने तो अपना चलन नहीं बदला है,
बदल गए है लोग ,आ गया कैसा युग है
३
हर कोई बैचेन व्यग्र है और व्यस्त है ,
और पैसे के चक्कर में पागल रहता है
अब कोई संयुक्त नहीं परिवार बचा है,
आत्म केंद्रित हर कोई एकल रहता है
संस्कारों को लील गयी पश्चिम की आंधी,
बिखर गए सब ,छिन्न भिन्न ,हालत नाजुक है
जाने क्यों कुछ लोग प्रगति इसको कहते है ,
जब कि पतन की ओर हो रहे हम उन्मुख है
सतयुग गया ,गया त्रेता भी और द्वापर भी ,
कल जैसे सब हुए मशीनी,अब कलयुग है
प्रकृती ने तो अपना चलन नहीं बदला है,
बदल गए है लोग ,आ गया कैसा युग है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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