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शनिवार, 28 मार्च 2015

नव निर्माण

                   नव निर्माण

धराशायी पुरानी जब ,इमारत कोई होती है ,
               तभी तो उस जगह फिर से ,नया निर्माण होता है
बिना  पतझड़ ,नयी कोंपल ,नहीं आती है वृक्षों पर,
               अँधेरी रात  ढलती तब  ,सुबह का भान  होता  है 
फसल पक जाती,कट जाती,तभी फसलें नयी आती,
                बीज से वृक्ष ,वृक्ष से फल ,फलों से बीज होते है
कोई जाता,कोई आता,यही है चक्र जीवन का ,
                 कभी सुख है कभी दुःख है ,कभी हम हँसते ,रोते है
जहाँ जितनी अधिक गहरी ,बनी बुनियाद होती है ,
                 वहां उतनी अधिक ऊंची ,बना करती  इमारत है
चाह जितनी अधिक गहरी ,किसी की दिल में होती है ,
                  उतनी ज्यादा अधिक ऊंची ,चढ़ा करती मोहब्बत है
कोई ऊपर को चढ़ता है ,कोई नीचे उतरता है ,
                  ये तुम पर है ,चढ़ो,उतरो ,वही सोपान   होता  है
धराशायी पुरानी जब ,इमारत कोई होती है ,
                   तभी तो उस जगह फिर से ,नया निर्माण होता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'     

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