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सोमवार, 10 मार्च 2014

कुत्ते कि पूँछ

कुत्ते कि पूँछ

जब भी हसीनो से नज़र टकराती है
मुझपे एक दीवानगी सी छाती  है
जवानी के दिनों का ख़याल आता है
बासी कढ़ी में फिर उबाल  आता है
आग सी एक लग जाती है दिल के अंदर
गुलाटी मारने को लगता मचलने बन्दर
भले ही दम नहीं पर चाह मचलती रहती  
पूंछ  है कुत्ते की ,टेढ़ी ही ये  सदा  रहती 

घोटू

पतझड़ के पत्ते

         पतझड़ के पत्ते

पतझड़ के पत्ते ,
जब अपनी डाल  को छोड़ कर,
हवा के झोंकों के संग ,
इधर उधर राजमार्गों पर भटक जाते है
इकट्ठे कर,जला दिए जाते है
और जो पेड़ के नीचे ही ,
गड्ढों  में दबे रह जाते है ,
कुछ समय बाद,खाद बन जाते है
नयी फसल को उगाने के काम आते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पत्ते की जीवनयात्रा

           पत्ते की जीवनयात्रा

एक बरस पहले फूटे थे मेरे अंकुर ,
                       नरम रेशमी ,नन्हे किसलय बन मुस्काये 
टहनी में मातृत्व जगा ,फिर विकसे  बढ़ कर
                          मस्त हवा के झोंकों में नाचे,   लहराये ,
भाई बंधू कितने ही मिल ,पले  साथ में ,
                           सूखा था जो तरु ,हरित होकर हर्षाया
नीड़  बना बस गए वहाँ कितने ही पंछी ,
                            थके पथिक को छाया देकर ,सुख पहुँचाया
ग्रीष्म ऋतू में प्रखर ताप सूरज का झेला ,
                             भीगे पानी में ,जब था मौसम   बरसाती
और कंपकंपाती सर्दी मे भी ठिठुरे हम ,
                             फिर भी जलती रही हमारी ,जीवन बाती
पर जब पतझड़ आया तो डाली से बिछुड़े ,
                             और गिर गए,एक सुहानी याद बन गए
इधर उधर उड़ गए हवा के संग कितने ही ,
                              साथ समय के ,बाकी ,गल कर,खाद बन गए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 9 मार्च 2014

अलग उनको रख दिया

      अलग उनको रख दिया

घर के बर्तन चमचमाते ,आये कितने काम में ,
         मोच खा जब थे पुराने ,अलग उनको रख   दिया
जब तलक मतलब था हमसे ,काम वो  लेते रहे ,
         और  फिर कोई बहाने ,अलग   हमको  कर दिया
हम ने उनके   गुलाबी रुखसार को सहला दिया ,
          लगी वो नखरे दिखाने ,अलग हमको  कर दिया
होली के दिन पहनने में काम ये आ जायेंगे ,
           हुये जब कपडे पुराने ,अलग उनको रख दिया
बोखे मुंह से ,हमने चुम्बन ,अपनी बुढ़िया का लिया ,
        दांत नकली ना   चुभाने ,अलग  उनको रख दिया
 छेद थे बनियान में,पर रखा सीने से लगा ,
           फटा कुरता ,ना दिखाने ,अलग उसको रख दिया
जिनको उनने , पाला पोसा  ,पेट अपना काट कर ,
            लगे जब खाने कमाने ,अलग उनको कर दिया
पाँव छूने और छुलाने की गए बन चीज वो ,
             हुए जब माँ बाप बूढ़े ,अलग उनको  कर  दिया
ये जमाने का चलन है ,क्यों दुखी होते हो तुम ,
              हुए तुम फेशन पुराने ,अलग तुमको कर दिया
               
 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बलात्कार -कानूनी भाषा में

         बलात्कार -कानूनी भाषा में

भगवान ने  एक सुन्दर पुष्प खिलाया
सुन्दर गुलाबी पंखुड़ियों से सजाया 
और उसमे मस्तानी महक भर दी
जो सब के मन को भाये
जो भी देखे ,  खिंचा चला आये
मैंने उसके सौंदर्य को सराहा ,
अगर उसकी थोड़ी सी खुशबू  सूंघ ली ,
उसकी  मख़मली पखुड़ियों को छू लिया
तो कौन सा गुनाह कर दिया
उसके सौंदर्य से अभिभूत होकर ,
मैंने अपलक किया उसका दीदार
तो कानूनी परिभाषा में , क्या ये है बलात्कार ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

पुराने और नये गाने

       पुराने और नये  गाने

पुरानी  फिल्मो के नगमे
भाव विभोर कर देते थे हमें
सुन्दर शब्द और भावों से सजे हुये 
मधुर धुन की चाशनी में पगे हुये
बरसों तक जुबान पर चढ़े रहते थे
ठंडी हवा के झोंको की तरह बहते थे
एक एक शब्द दिल को छुआ करता था
बार बार सुन कर भी मन नहीं भरता था
जैसे 'चौदवीं का चाँद हो या आफताब हो
जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजबाब हो '
होते थे लाजबाब वो गाने
लोग सुन के हो जाते थे दीवाने
और आज के गाने ,दनदनाते है ,शोर करते है
कुछ ही  दिनों बाद बोअर करते है
शब्द है उलटे सीधे ,भावनाए गायब है
फास्ट  संगीत है  और धुनें विदेशी सब है
सुन कर भी कभी नहीं जगते है जज्बात
आज के गाने जैसे 'गंदी बात,गंदी बात '
'दिल है बदतमीज ' और 'इश्क़ कमीना 'है
पुराने नगमो वाली बात ही इनमे ना है

मदन मोहन  बाहेती 'घोटू'
 

शुक्रवार, 7 मार्च 2014

महिलायें ,

         महिलायें
(महिला दिवस पर विशेष)
 
महिलायें ,
जब आपका मन मोह जाये
आपके जीवन को हिलायें
तन मन को बहलाये,सहलाये ,
और घर की रानी कहलाये
महिला का दर्जा जीवन में पहला है
आप हमेशा नहला है वो हमेशा दहला है
उसे देवी समझ कर पूजो,
घर का माहोल बदल जाएगा
छोटा सा घर भी महल बन  जाएगा
इन्हे  प्रसन्न रखो क्योकि ये  यदि कुपित हो जाये
तो अपने पहले दो शब्द ,'मही 'याने पृथ्वी को ,
अपने अंतिम दो शब्द 'हिला'से मिला दे
याने पृथ्वी को हिला कर  ,भूकम्प ला दें
इसलिए खैरियत इसी मे है,
उनसे हिल मिल के रहो
उनके आगे दुम  हिलाते रहो
उनकी हाँ में हाँ मिलाते रहो
और हर दिन महिला दिवस मनाते रहो   
 आपके जीवन को  खुशी से लहलहाये
 महिलाये  
मदन मोहन  बाहेती'घोटू '

गुरुवार, 6 मार्च 2014

फटा हुआ बनियान न देखा

       फटा हुआ बनियान न देखा

चेहरे पर मुस्कान भले पर,
कितना घायल है अन्तर तर
अपने मन की पीर छुपाये,
                 एक टूटा इंसान न देखा
तुमने उजला कुरता देखा,
         फटा हुआ बनियान न देखा
सिर्फ आवरण देखा लेकिन ,
               अंदर घुटता मन ना देखा
ढोलक की थापों पर नाचे,
                उसका खालीपन ना देखा
 सुन्दर ,मोहक ,बिछे गलीचे
कितनी  गर्द   छुपी है नीचे  ,
शायद तुम्हे पता भी होगा ,
               पर बन कर अनजान न देखा
तुमने उजला कुरता देखा ,
                फटा हुआ बनियान न देखा  
सावन की बूंदों में भीजे ,
               जब रिमझिम कर बरसा पानी
फटा कलेजा जिस बादल का ,
                तुमने उसकी पीर न जानी
जिस तरु से हो पत्ते बिछड़े
जिसका दिल हो टुकड़े टुकड़े ,
तुमको सिर्फ बसंत दिखी पर ,
               पतझड़ का अवसान न देखा
तुमने उजला कुरता देखा ,
                फटा हुआ बनियान न देखा

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

पीर विरह की


               पीर विरह की

जबसे मइके चली गयी तुम,छाये जीवन में सन्नाटे
सूनेपन और  तन्हाई में, लम्बी रातें  ,कैसे काटे

पहले भी करवट भरते थे ,अब भी सोते करवट भर भर
उस करवट और इस करवट में ,लेकिन बहुत बड़ा है अंतर
तब करवट हम भरते थे तो,हो जाती थी तुमसे टक्कर
तुम जाने या अनजाने में ,लेती मुझको बाहों में भर
पर अब  खुल्ला खुल्ला बिस्तर ,जितनी चाहो,भरो गुलाटें
दिन कैसे भी कट जाता है  ,लम्बी रातें  कैसे  काटें

ना तो रोज रोज फरमाइश,ना किचकिच ना झगडे ,अनबन
अब खामोशी पसर रही है ,तुम थी तो घर में था  जीवन
अब जब नींद उचट जाती तो,फिर मुंह ढक कर सो जाते है
विरह वेदना है कुछ दिन की,अपने मन को समझाते है
चुप्पी छाई शयनकक्ष में,न तो सांस स्वर,ना खर्राटे
बिस्तर में चुभते है कांटे ,लम्बी रातें ,कैसे काटे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 5 मार्च 2014

भगवान का धर्म प्रचार प्रोग्राम

  भगवान का  धर्म प्रचार प्रोग्राम

दुनिया में जब पापाचार बढ़ा ,
तो नरक में लोगों का रश बढ़ने लगा
स्वर्ग नरक की पॉपुलेशन का,
 बेलेन्स बिगड़ने लगा 
तो भगवान ने,नरक की पॉपुलेशन
पर  लगाने को लगाम
आरम्भ किया एक धर्म प्रचारक प्रोग्राम
हर मृतात्मा को ,ऊपर जाने पर,
स्वर्ग का कंडक्टेड टूर कराया जाये
ताकि स्वर्ग  की सुविधाओं को देख,
लोगों के मन में  धर्म की प्रेरणा आये
ऐसे कंडक्टेड टूर में  लोगों को बड़ा मजा आया
जब कई  धर्माचार्यों को अप्सराओं  संग ,
किलोलें करता हुआ पाया
स्वर्ग में जिधर देखो उधर मस्ती  थी छाई
और एक बड़े महात्मा के साथ ,
मर्लिन मनरो नाम की सुन्दरी  नज़र आयी
एक दर्शक ने पूछ लिया ,
क्या ये वो ही महात्मा जी है ,
जो जीवन भर थे ब्रह्मचारी ,
अब कर हे यहाँ मज़ा है
 गाइड बोला ,नहीं नहीं,ये तो अभी भी,
 ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे है,
 मार्लिन मनरो को ,उनके पास बिठाना
ये तो मर्लिन मनरो को, कर्मो की मिली सजा है
 
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

नेताओं का बुढ़ापा

         नेताओं का बुढ़ापा

स्वर्गलोक के देव, अप्सरायें न कभी बूढ़ी होती 
किन्तु बुढ़ापे  में मानव की,हालत बड़ी बुरी होती
हम लोग  रिटायर जब होते ,तो हो जाता है बुरा हाल
और नेता जब बूढ़े होते तो बन जाते है   राज्य पाल
क्या नेता होते देव तुल्य ,चिरयुवा ,जवां हरदम रहते
जो उनको चुन कर देव बनाते जीवन भर सब दुःख सहते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 4 मार्च 2014

धन्यवादज्ञापन -महिला दिवस पर

   धन्यवादज्ञापन -महिला दिवस पर
 
जितनी भी महिलायें जीवन में आयी ,सबको करें याद
जिससे भी थोडा प्यार मिला ,उस हर महिला का धन्यवाद
                           माँ
जिसने नौ महीने  रखा कोख में ,पाला ,पोसा ,बड़ा किया
मेरे सुख ,दुःख का ख्याल रखा ,जिसके आँचल में दूध पिया
चलना सिखलाया ,थाम हाथ,जो ममता भरा हुआ सागर
उस जीवन दायिनी माता को ,शत शत प्रणाम ,मेरा सादर
                         बहने
हम साथ पले और बड़े हुए ,जिनके संग संग ,काटा बचपन
जिनकी राखी से बंध रहता ,जीवनभर प्यार भरा बंधन
भाई पर प्यार लुटाती जो ,उनकी निष्ठा के क्या कहने
है प्यार भरी और स्नेहशील ,मेरी प्यारी प्यारी बहने
                    पत्नी
जीवन के सूखे उपवन में ,वो आयी ,बहारें मुस्काई
एकाकीपन की पीर मिटी ,और सुधा प्रेम की सरसाई
जो स्वाति बूँद बन समा गयी ,इस ह्रदय सीप में मोती बन
वो पत्नी  जिसने प्यार दिया ,कर दिया सार्थक ये जीवन
                        बिटिया
मेरी बगिया में खिली कली ,मुस्काई,बड़ी हुई ,महकी
खुशियों से घर आबाद हुआ ,वो चंचल,चपल सदा चहकी
फिर हुई पराई वो बेटी ,खुश रहती है ,मुस्काती है
अब भी पापा की फ़िक्र जिसे ,जी भर कर प्यार लुटाती है
                    अन्य महिलायें
कितनी ही महिलायें आयी ,भाभी,चाची,दादी,नानी
कुछ सहपाठिन,कुछ सखी मित्र ,कुछ पडोसने ,कुछ अनजानी
जितनी भी महिलायें जीवन में आयी सबको करें याद
जिससे भी थोडा प्यार मिला ,उस हर महिला  का धन्यवाद

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नज़रिया अपना अपना

         नज़रिया अपना अपना

हों कैसे भी हालत मगर ,कुछ लोग ढूंढ लेते खुशियां
 कुछ लोगों को हर सुख में ,भी आती  नज़र कई कमियां 
                                    नज़रिया अपना अपना
जैसे मरने पर हंसमुख जी को,चित्रगुप्त ने नरक दिया
तो गरम तेल में यमदूतों ने उन्हें पकड़ कर फेंक दिया
हंसमुख बोले जो पुण्य किया ,उसका भी थोडा  फल देते
थोडा सा बेसन मिल जाता ,तो गरम पकोड़े तल लेते
                                 नज़रिया अपना अपना
और दुखीराम को स्वर्ग मिला ,पहले तो थोडा हर्षाये
पर थोड़े दिन के बाद वही पहले से दुखी नज़र आये
बोले जो मिली अप्सरा है ,वो प्यार दिखाती है थोथा
पर अगर उर्वशी मिल जाती तो मज़ा और ही कुछ होता
                                  नज़रिया  अपना अपना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 2 मार्च 2014

जब बीबी मइके जाती है

        जब बीबी मइके जाती है

ना ही खटपट,ना ही झंझट
हो जाता सब कुछ ,उलट पुलट
झगडे टंटे  जाते है छट
रातें कटती ,करवट,करवट
होते थे झटपट काम कभी ,
अब मुश्किल से हो पाते है
अच्छे अच्छे पतिदेवों को ,
भी देव याद  आ जाते है
जगती है मन में विरह पीड ,
हालत पतली हो जाती है
              जब बीबी मइके जाती है
होता जुदाई में बदन  जर्द,
इंसान त्रस्त  हो जाता है
सब सूना सूना लगता है ,
घर अस्त व्यस्त हो जाता है
जब आता है ये बुरा वक़्त ,
हो जाते अपने होंश पस्त
दिन भर रहते है सुस्त सुस्त ,
हो जाते इतने विरह ग्रस्त
उनकी बातें,मीठी यादें ,
आकर मन को तड़फाती है
                जब पत्नी  मइके जाती है
खो जाती घर की चहल पहल,
आती वो याद हमें हर पल
खाली खाली सा लगता है,
वो डबल बेड वाला कम्बल
मन की चंचलता जाती ढल,
दिल ,तिल तिल करके जलता है
जब दर्द जुदाई खलता है ,
मिलने को ह्रदय मचलता है
आ रहा फाग और मिलन आग,
मन में जल जल सी जाती है
               जब पत्नी मइके जाती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'      

पूत के लक्षण-पालने में

          पूत के लक्षण-पालने में
                          १
हमारा बेटा हुआ तो हमसे बेगम ने कहा
लगता है ये एकदम ही ,बाप पर अपने गया
साहबजादे ,बाप के गुण ,सभी दिखलाने लगे
पालने में पूत के लक्षण नज़र आने  लगे
                     २
अभी तो पैदा हुए है और अभी से आशिक़ी
मुस्कराने लगते है जब देखते कोई हसीं
कोई उनको चूमता तो बाँछ खिल जाने लगे
पालने में पूत के लक्षण नज़र आने  लगे
                         ३
हसीनों ने जब भी उनको अपनी गोदी में लिया
होगये  खुश ,मारने वो लग गए किलकारियां
पास देखा ,हसीनो को ,लार टपकाने   लगे
पालने में पूत के लक्षण नज़र आने लगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

मन नहीं लगता

      मन नहीं लगता

मैके में बीबी हो
और बंद टी वी हो ,
          घर भर में चुप्पी हो,
               मन नहीं लगता
सजी हुई थाली हो
पेट पर न खाली हो
           तो कुछ भी खाने में
                मन नहीं लगता
नयन मिले कोई  संग
चढ़ता जब प्यार रंग,
               तो कुछ भी करने में,
                     मन नहीं लगता
मन चाहे ,नींद आये
सपनो में वो आये
                नींद मगर उड़ जाती ,
                       मन नहीं  लगता
जवानी की सब बातें
बन जाती है यादें
             क्या करें बुढ़ापे में,
                मन नहीं लगता    
साथ नहीं देता तन
भटकता ही रहता मन
               अब तो इस जीवन में
                     मन नहीं लगता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

तुमने दाढ़ी बढ़ाई ..

          तुमने दाढ़ी बढ़ाई ..

मीठी मीठी बातें तेरी ,मोहती है ,मन मेरा ,
            तेरी एक मुस्कान काफी ,दिल लगाने के लिए
जादू तेरे जिस्म में है,हर अदा में,प्यार में ,
              जानेमन ,तू बनी है ,जादू चलाने के लिए
तेरी तो हर एक शरारत ,लूट लेती दिल मेरा,
              हमेशा तैयार हूँ मैं ,लुटे  जाने के लिए
सर पे चढ़ कर बोलती है,ये तेरी दिवानगी ,
              मैंने कितने पापड बेले ,तुझको पाने के लिए
हो सिरहाना तेरे तन  का ,हाथ सर सहला रहे ,
                और मुझको चाहिए क्या ,नींद आने के लिए
मैंने जब आगोश में उनको लिया ,कहने लगे,
                 तुमने दाढ़ी  बढ़ाई ,मुझको चुभाने के लिए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'       

शुक्रिया

            शुक्रिया

जिंदगी बन गयी मेरी ,एक सुन्दर ,मधुर धुन,
मेरे सुर से मिलाया ,तुमने, उस सुर का शुक्रिया
जिनने अपनी पाली पोसी ,बेटी मुझको सौंप दी,
शुक्रिया उस सास का और उस ससुर का शुक्रिया
मै तो था एक गोलगप्पा ,हल्का फुल्का ,बेमज़ा,
खट्टा मीठा पानी बन कर ,स्वाद तुमने भर दिया
मेरे मन में चुभ के मुझको ,पीर मीठी दे गयी,
मिल गयी मेरी नज़र से,उस नज़र का शुक्रिया
दिल का मेरे चमन सूखा था,बड़ा बदहाल था ,
तुमने सींचा प्यार रस से ,और महक से भर दिया
 जिसने लायी जिंदगी में ,बहारें और मस्तियाँ  ,
उस गुले गुलजार का ,जाने जिगर का शुक्रिया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
 

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

भरोसा कोई न कल का

        भरोसा कोई न कल का

बहुत कर्म कर लिए ,निकम्मा आज हो गया ,
                          करना चाहे  लाख ,मगर ना कुछ कर पाता
धीरे धीरे शिथिल हो रहा तेरा तन है ,
                           अपने मन में हीन भावना ,क्यों है लाता
सच ये तेरा क्षरण हो रहा साथ समय के ,
                            हर पग तेरा ,बढ़ता जाता ,मरण राह पर
जीर्ण क्षीर्ण हो रही तुम्हारी कंचन काया ,
                            लेकिन तेरा ,नहीं नियंत्रण ,कोई चाह पर
बहुत जवानी में तू खेला,उछला कूदा ,
                             बहुत प्रखर था सूर्य ,लग गया पर अब ढलने
पतझड़ का मौसम आया ,तरु के सब पत्ते,
                              धीरे  धीरे सूख  सूख  कर लगे  बिछड़ने
यह प्रकृति का नियम ,नहीं कुछ तेरे बस में,
                               जो भी आया है दुनिया में ,वो  जाएगा
बस तेरे सत्कर्म ,काम आयेंगे तेरे ,
                                 जिनके कारण तुझको याद किया जाएगा
लाख छोड़ना चाहे तू ,पर छूट न पाती ,
                                  अब भी मोह और माया ,मन में बसी हुई है
और  कामना के कीचड में तेरी किश्ती,
                                  निकल न पाती,बुरी तरह से फसी हुई है
क्यों तू इतना दुखी हो रहा,खुश हो जी ले,
                                   जितने भी दिन बचे ,उठा तू सुख हर पल का
कल कल करती जीवन सरिता ,कब सागर में ,
                                   मिल,विलीन हो जाए ,भरोसा कोई न कल का

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'  
   

बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

कच्चा पक्का

   

आओ तुमको बतलाते है ,कुछ पक्के ,कच्चे की बातें 

कच्चे आमों को चटखारे,ले लेकर ,दुनिया खाती है 
अमिया का बना मुरब्बा या फिर पना अचार बनाती है 
जब पकते है  तो आम मुलायम ,होते रसवाले ,मीठे 
कोई खाता है काट काट ,तो कोई मुंह ले रस चूसे 
है राजा आम फलों के पर ,ज्यादा दिन तक ना टिक पाते 
आओ तुमको बतलाते है,कुछ पक्के ,कच्चे की बातें 

जब कच्ची उमर हमारी थी ,हम नटखट थे ,शैतान बहुत 
दुनियादारी में कच्चे थे ,जीवन पथ से अनजान बहुत 
जब थोड़े पके,जवानी आयी ,शादी की ,मुस्तैद हुए 
जिम्मेदारी आयी सर पर ,तो पक कर बाल सफ़ेद हुए 
अब ढीले ढाले और  निर्बलहै,हम अब बूढ़े कहलाते 
आओ तुमको बतलाते है,कुछ पक्के,कच्चे की बाते 

बिजनैस में आये तो देखी फिर डीलिंग अच्छे अच्छे की 
जिसको भी देखो ,वही बात,करता था पक्के,कच्चे  की 
बिलकुल कच्चे थे बिजनेस में ,पर अकल आयी जब थोड़ी सी 
फिर किया बहुत कच्चा पक्का ,और टैक्स बचाया,चोरी की 
पर गायब मन का चेन हुआ ,हर पल रहते थे घबराते 
आओ तुमको बतलाते है ,कुछ पक्के ,कच्चे की बातें 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

तीन युगल त्रिपदियां

  

                 प्रथम 
                    १ 
    चार पहियों के नीचे , 
    चार नीबू शहीद हुए ,
     किसी की नयी कार आयी 
                    २  
     वधू  का बाप ,
      भारी कर्ज से लदा ,
      वर के घर,बहार आयी 
           
               द्वितीय 
                     १ 
  सास के चेहरे पर ,
   छाई हुई उदासी ,
   बहू ने बेटी जनी
                २ 
मातृत्व सुख पाकर भी,
सहमी सी बहू है ,
थोड़ी सी अनमनी 

            तृतीय  
                १ 
 सब कुत्ते भोंक रहे ,
लगता है गली में ,
आया है नया कुत्ता 
               २ 
देश के कर्णधार ,
देश की संसद में ,
हो रहे गुत्थमगुत्था 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

बहू चाहिए-आलू जैसी

       बहू चाहिए-आलू जैसी

शर्माजी का बेटा बड़ा हुआ,
उन्हें बहू की थी तलाश
ढूंढ रहे थे इधर उधर ,आस पास
हमने उनसे पूछा आपको बहू चाहिए कैसी
शर्मा जी बोले 'आलू 'जैसी
जैसे  आलू हर सब्जी के साथ मिल कर स्वाद बढ़ाये
उसी तरह वह घर के हर सदस्य के साथ,
घुल  मिल जाए
और जिंदगी का स्वाद बढ़ाये
इतनी 'वर्सेटाइल 'हो कि हर जगह काम आ सके
समोसे में भरलो ,आलू टिक्की बनालो,
परांठों में भर कर भी खाई जा सके
आलू के पकोड़े में ,आलू की पेटिस में
वडा पाव वाले बड़े में या आलू की चाट में
सभी जगह आलू बिराजमान रहता है ठाठ में
हर जगह आलू का जलवा है
बड़ा स्वाद होता ,आलू का हलवा है
आज की नयी पीढ़ी को भी ,
प्यार से खाती है आलू जी भर
आलू के 'फ्रेंच फ्राई ' या आलू टिक्की बर्गर
और दिन भर चरने को,आलू के वेफर
और सच्ची बात तो यह है,
अन्य सब्जियां तो,
एक दो दिन में ही,हो जाती है खराब
और आलू को,शीतगृह में,रखदो,
पूरे साल भर ,कायम रहता है उस पर शबाब
इसलिए भाई साहेब ,
अगर कोई आलू के गुण वाली ,बहू मिल जाए
हमारी तो किस्मत ही खुल जाए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


आज की खबर -मेरठ में तेंदुआ

       आज की खबर -मेरठ में तेंदुआ

घुसा शहर में तेंदुआ ,कर घायल,दो चार
पुलिस हुई मुस्तैद और बंद हुए बाज़ार
बंद हुए बाज़ार ,लोग आतंकित इतने
किन्तु शहर में आदमखोर ,दरिंदे कितने
घूम रहे है ,खुल्लेआम नज़र है आते
कितनी ही अबलाओं को शिकार  बनाते

घोटू

रविवार, 23 फ़रवरी 2014

सजी धजी गरम थाली

         सजी धजी गरम थाली    

एक थाली में मीठा भी है ,और नमकीन साथ मे है
चेहरा लिए लुनाई सुन्दर ,गजब मिठास बात में है
सुन्दर प्यारी प्लेट सजी है ,और नाश्ता गरम गरम,
जरा लगा होठों से देखो, लज्जत बड़ी  स्वाद में है
प्यार का क़ानून भी ,कितना अनोखा  यार है
हम करें तो बलात्कार,वो करें तो प्यार  है
'घोटू '

महिलाओं की घटती जनसंख्या

    महिलाओं की घटती जनसंख्या

मर्दों की अपेक्षा घट रही है,
महिलाओं की जनसंख्या
इसका क्या है कारण,
कभी आपने सोचा क्या ?
सीमित नियोजित परिवार ,
या बेटियों की भ्रूणहत्या ?
या फिर और कुछ भी ,
हो सकता है इसका कारण
आओ करें इस शंका का निवारण
क्या आपने सत्संगों में,
भागवत की कथा प्रसंगों में
मंदिरों और तीर्थों में ,
देखी है भीड़ उमड़ती हुई
लगता है लोगों में ,धर्म के प्रति ,
आस्था है बढती हुई
एक बात और बतलायें
इसमें दो तिहाई होती है महिलायें
भगवान को सुमरती रहती है ,
  सुख में या   क्षोभ में 
  मुक्ती के लोभ में
भजन,भक्ती और पूजन में ,
हरिस्मरण और कीर्तन में
महिलाओं की संख्या बढ़ती जा रही है
इसलिए ज्यादा महिलायें मोक्ष पा रही है
और यही असली वजह है कि भारत में,
महिलाओं की जनसंख्या घटती जा रही है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कितने पापड़ बेले है

      कितने पापड़ बेले है

काँटों में भी उलझे  है  हम, फूलों संग   भी  खेले  है
खुशियों का भी स्वाद चखा है दुःख भी हमनेझेले है 
हंसना ,रोना ,खाना पीना ,जीवन की दिनचर्या है ,
रोज रोज जीने के खातिर ,कितने किये झमेले है
हममें जो  खुशबू है गुलाब की ,थोड़ी बहुत आरही है ,
,हम पर कभी गुलाब गिरा था,हम मिटटी के ढेले है
जब विकसे और महक रहे थे,तितली ,भँवरे आते थे ,
अब मुरझाने लगे इसलिए ,तनहा और अकेले है
आज हम यहाँ,इस मुकाम पर ,पंहुचे ठोकर खा खाके ,
अब तुमको हम क्या बतलायें ,कितने पापड बेलें है
इश्क़ ,प्यार को लेकर अपना ,थिंकिंग बड़ा प्रेक्टिकल है,
ना फरहाद की लाइन चलते ,ना मजनू के चेले  है
सूखा तना समझ कर हमको ,यूं ही मत ठुकरा देना,
कोई बेल लिपट कर देखे,हम कितने अलबेले  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 
 

शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

मातृत्व का सुख

    मातृत्व का सुख
              १
कनक छड़ी सी कामिनी,पा कर पति का प्यार
लगी विकसने दिनों दिन ,मिला प्रीती  आहार
मिला प्रीती आहार ,ख्याल था बड़ा फिगर का
मोटी ना हो जाए ,उसे लगता ये  डर  था
फूला पहली बार बदन तो मन मुस्काया
मिला मातृत्व और कोख में बच्चा आया
                    २
नयना थे चंचल ,चपल ,आज हुए गम्भीर
मन में घबराहट भरी,तन में मीठी पीर
तन में मीठी पीर,खुशी ममता की मन में
गिनती दिन ,कब नव मेहमान आये जीवन में
हिरणी सी थी  चाल कभी जो उछल उछल कर
एक एक पग अब रखती  वो संभल संभल कर
                    ३
धीरे धीरे बढ़ रहा , है जब तन का बोझ
खट्टा खट्टा खाएं कुछ ,मन करता है रोज
मन करता है रोज,कभी आती उबकाई
बोझिल सा तन,रहे नींद ,आँखों में छाई
इन्तजार का फल पायेगी ,सुख वो सच्चा
जब किलकारी मारेगा गोदी में बच्चा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

ग़मे जिंदगी

      ग़मे जिंदगी
'घोटू' अपनी जिंदगी का क्या बताएं फ़लसफ़ा
टूटता ही दिल रहा है, हमेशा और हर दफा
चाहते थे जुल्फ में उनकी उगें,लहराये हम,
बाल दाढ़ी की तरह हम,आज निकले,कल सफा
उम्र भर मुस्कान को उनकी तरसते रह गए ,
मगर जब भी वो मिले ,नाराज़ से होकर ख़फ़ा
वो हमेशा , खुश रहे,हँसते रहे,आबाद हो,
बस यही अरमान ले ,की जिंदगी हमने  खपा
प्यार की हर रस्म तो ,हमने निभाई,प्यार से,
ता उमर  हम बावफ़ा थे,वो ही निकले बेवफ़ा

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

दास्ताने जिंदगी

           दास्ताने जिंदगी

सबसे मीठी बातें की और उम्र भर बांटी मिठास ,
  फिर भी देखो बुढ़ापे में ,बढ़ गयी खूं  में  शकर
दुश्मनो  से ता उमर हम ,लोहा ही लेते  रहे ,
   फिर भी तो कम हो रहा है,आयरन खूं  मगर
काम का,चिंताओं का ,परिवार का,संसार का,
   पड़ता ही प्रेशर रहा है हम पे सारी उम्र भर
सौ तरह के प्रेशरों से ,दबे हम हरदम रहे,
  बढ़ा फिर भी ब्लड का प्रेशर,बताते है डाक्टर
कारनामे, कितने काले,किये या करने पड़े,
  फिर भी सर पर,क्यों सफेदी ,लगी है आने नज़र
जिंदगी हमने खपा दी ,जिनके सुख के वास्ते ,
 वो ही हमसे खफा क्यों ,रहने लगे है आजकल
 दिल लगाया,दिल मिलाया ,दिल लुटाया ,दिल जला,
  खुश हुए तो गम भी झेला ,दिल ही दिल में उम्र भर
बड़े ही दिलेर थे ,दिलवर भी थे दिलदार भी ,
हो गया कमजोर अब दिल ,रहना पड़ता संभल कर
चाल में थोड़ी अकड़ थी ,तन के चलते थे सदा ,
खूब चाले चली हमने,उल्टी,  सीधी ,ढाई  घर
चलने का अब वक़्त आया है तो चल पाते नहीं,
हमारी कुछ चल न पायी ,उम्र की इस चाल पर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

ठोकर खाकर सीखेगा

      ठोकर खाकर सीखेगा 

बात बात पर गर्मी मत  खा,
                            तू गम खाकर  सीखेगा
ठीक किस तरह ,सेहत रखना ,
                             तू कम खाकर सीखेगा
माँ बोली कि खा बादामें ,
                              अक्ल तेज हो जायेगी,
देसी घी का मालताल तू,
                              सब तर खा के ,सीखेगा
कहा पिताजी ने चलने दो ,
                              इसको अपने ही ढंग से ,
इधर उधर जब ये भटकेगा ,
                               चक्कर खाकर  सीखेगा
गुरु ने बोला ,जीवन का ये,
                           सफ़र,जटिल आसान नहीं
पथरीले रास्तों पर चल कर ,
                            ठोकर खाकर  सीखेगा
समझदार कोई ये बोला ,
                            इसकी शादी करवा दो,
डाट ऊमर भर घरवाली की ,
                            ये खा खा कर सीखेगा
मदन मोहन बाहेती'घोटू '   

उसकी महिमा

          उसकी महिमा
हम सब को वो ऊपरवाला
ही देता है अन्न,निवाला
करता सबका भला रहा है
वो ही दुनिया चला रहा है
कब कर देगा जेबें  खाली
कब भर दे  झोली तुम्हारी
उसकी महिमा ,कब और कैसे
तुम्हे दिलादे ,धन और पैसे
तीनो लोकों का वो शासक
सारी जगती का वो पालक
वो ही है जीवन का दाता
हंसी खुशी ,सुख दुःख दिखलाता
वो अनंत है,अविनाशी है
वो तो घट घट का वासी है
सच्चे मन से उसका वंदन
आनंदित कर देगा  जीवन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चाकलेट

           

 


          चाकलेट
'चा' से चाव ,महोब्बत ,चाहत ,
                      एक दूजे संग ,अपनेपन की
'क'से कशिश,कामना मन में ,
                       जगती है जब मधुर मिलन की
'ले' से लेना देना चुम्बन,
                       ललक ,लालसा फिर लिपटन  की
'ट'से टशन और टकराहट ,
                        नयन,अधर की और फिर तन की
छू होठों से ,मुंह में जाकर ,
                         घुलती  स्वाद सदा है  देती    
चाकलेट ,प्रेमी जोड़ों का ,
                        मिलन मधुरता से भर देती 
                           
घोटू


अधर से उदर तक

         अधर से उदर तक

मिलना है जिसको ,वो ही तुमको मिलता ,
                           भले लाख झांको,इधर से उधर तक
बसा कोई दिल में , चुराता है नींदें ,
                            जाने जिगर वो  तुम्हारे  जिगर तक
मचलती है चाहें,जब मिलती निगांहे ,
                             चलता है जादू ,नज़र का नज़र तक  
वो बाहों का बंधन ,वो झप्पी वो चुम्बन,
                              मज़ा प्यार का है,अधर से अधर तक
ये है बात निराली  ,हो गर पेट खाली ,
                               तो भूखे  से होता नहीं है भजन तक
न तन में है हिम्मत,भले कितनी चाहत,
                                नहीं होता तन से फिर तन का मिलन तक
तब होता है चुम्बन और बाहों का बंधन ,
                                  भरा हो उदर और   मिलते  अधर तब
मचल जाता मन है,मिलन ही मिलन है  ,
                                     अधर से उदर तक ,तुम चाहो जिधर तक

मदन मोहन बाहेती'घोटू'      

जवानी का मोड़

         जवानी का मोड़

जब होठों के ऊपर और नाक के नीचे,
                          रूंआली उभरने लगे
जब किसी हसीना को कनखियों से देखने
                             को दिल  करने लगे
जब मन अस्थिर और अधीर  हो ,
                             इधर उधर भटकने लगे 
जब किसी कन्या का स्पर्श,मात्र से ,
                              तन में सिहरन भरने लगे
जब न जाने क्या क्या सोच कर ,
                                तुम्हारा मन मुस्कराता  है
समझलो,आप उम्र के उस मोड़ पर है ,
                                जो जवानी की ओर  जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                                

बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

सबके अपने अपने किस्से

    सबके अपने अपने किस्से

अपने गम ,अपनी पीडायें
कोई छुपाये,कोई बताये
किसका दिल है कितना टूटा
किस को है किस किस ने लूटा
खुशियां आयी ,किसके हिस्से
सबके अपने अपने किस्से
एक बुजुर्ग से लाला जी थे
रोज घूमने में थे मिलते 
कुछ दिन से वो नज़र न आये
एक दिन अकस्मात् टकराए
हमने हाल चाल जब पूछा
उनके मन का धीरज टूटा
बोले दिल की बात कहूँ मैं
घर से दिया निकाल बहू ने
बहुत चढ़ गयी थी वो सर पे
बोली निकलो मेरे  घर से
वरना फोन करू थाने  में
करी रेप की कोशिश तुमने
मुझ  संग करने को  मुंह काला
सीधे जेल जाओगे लाला
अगर छोड़ घर ना जाओगे
बहुत दुखी हो, पछताओगे
बेटा मौन,नहीं कुछ बोला
मैंने बाँधा  बिस्तर,झोला
मैं इस घर से चला गया हूँ
बुरी तरह पर छला गया हूँ
अपनों का संग छूट गया है
अब मेरा दिल टूट गया है
और छा गयी बदली गम की
मैंने देखा आँखे नम थी
पर अब करें शिकायत किस से
सब के अपने अपने किस्से
एक हमारी और परिचित
हंसती,गाती और प्रसन्नचित
लगता तो था,बहुत सुखी थी
नज़र एक दिन आयी दुखी थी
हम पूछ लिया कुछ , ऐसे
आज चाँद पर बादल कैसे
पहले तो वो कुछ सकुचाई
फिर मन की पीड़ा बतलाई
 तुमको बात बताऊँ सच्ची     
बेटे की कमाई है अच्छी
रखे हमारा सदा ख्याल वो
हर महीने पंद्रह  हज़ार वो
भेज दिया करता था हमको
पता लगी जब बात बहू को
बोली अब न चलेगा ऐसा
पकड़ाउंगी अब  मैं  पैसा
अपने हाथों ,सासूजी को
बोलो क्या मिल गया बहू को
मुझको था नीचा दिखलाना
था मुझ पर अहसान जताना
रूतबा बढे ,सास पर जिस से
सबके अपने अपने  किस्से

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

प्रकृति और पर्यावरण

         प्रकृति और पर्यावरण

क्या तुमने आवाज सुनी है कभी हवा की ,
                     आप कभी क्या तूफ़ानो से भी खेलें है
तपती धूप भरी गर्मी की दोपहरी में,
                      कभी थपेड़े तुमने क्या लू के झेले है
क्या उद्वेलित सागर की ऊंची लहरों में ,
                     कभी आपकी नैया ,डगमग कर डोली है 
अन्ध तमसमय निशा,अकेले वीराने में ,
                      दिलकी धड़कन क्या डर कर धक् धक् बोली है   
क्या तुमने त्रासदी बाढ़ वाली झेली है,
                       आसपास की नदियां जब उफनाई होगी
क्या अग्नी की लपटों का प्रकोप देखा है ,
                        उसकी झुलस कभी तुम तक भी आयी होगी
ये प्रकृति जो तुम्हे प्यार से पाल रही है ,
                       देती अन्न ,नीर,वायु तुमको   दुलरा के
यदि ना  जो तुम उसका पूरा ख्याल रखोगे ,
                         तो वो तुम्हे ख़तम कर देगी ,प्रलय मचा के
इसीलिए ये आवश्यक है तुमको,हमको,
                          पर्यावरण  बचाना है  ,कर दूर प्रदूषण
वृक्ष बचाओ,हवा और जल शुद्ध रखो तुम,
                           वरना दूभर हो जाएगा,जीना जीवन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'    

मैं अनुशासित

        मैं अनुशासित

           मैं अनुशासित ,पत्नी शासित
          पत्नी पीड़ित ,क्यों परिभाषित
पत्नी प्रेम,पल्लवित पोषित
पत्नी शोषित ,क्यों उदघोषित 
           तन ,मन और जीवन आनंदित
           मैं अनुशासित,पत्नी शासित
नवग्रह रहते सभी शांत है
गृह की गृहणी अगर शांत है
            यह आग्रह है,गृह शांति  हित
             मैं अनुशासित ,पत्नी  शासित
खुश है अगर आपकी बेगम
घर में आता नहीं कोई गम
                सदा रहेगी ,खुशियां संचित
                मैं अनुशासित ,पत्नी शासित
मौज मनाओगे जीवन भर
तुम पत्नी के चमचे बन कर
             होठों से लग,होंगे हर्षित
              मैं अनुशासित  ,पत्नी शासित
उनकी ना में ना ,हाँ में हाँ
मिले जहाँ की सारी खुशियां
                सुन्दर भोजन,प्रेम प्रदर्शित
                 मैं   अनुशासित ,पत्नी शासित
है सच्चा सामिप्य ,समर्पण
सुख पाओगे ,हर पल,हर क्षण
                 पत्नी को कर जीवन अर्पित
                 मै अनुशासित  ,पत्नी शासित
भले दहाडो ,तुम दफ्तर में
पर भीगी बिल्ली बन घर में
                रहने में ही ,है पति का  हित
                 मै अनुशासित,पत्नी शासित
यदि पत्नी को दोगे  आदर
खुशियों से भर जाएगा घर
               प्रेम सुरभिं से ,सदा सुगन्धित
               मै अनुशासित ,पत्नी शासित

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

ऊँट कौन करवट बैठेगा ?

           ऊँट कौन करवट बैठेगा ?

 

सब नेताओं के सपनो में ,पी एम कुर्सी घूम रही है

ऊँट कौन करवट बैठेगा ,कोई को मालूम नहीं   है

मात सोनिया सपने देखें,ताजपोशी राहुल की होगी

ममता का मन भी मचले है,है पंवार ,पॉवर के लोभी

जयललिता भी लालायित है और नितीश भी नज़र गढ़ाये

साईकिल पर बैठ मुलायम ,लालकिले के सपन सजाये

फूट रहे मोदी मन मोदक ,निकल मांद  से करते गर्जन

कभी भाग्य से छींका टूटे ,अडवाणी सोचे मन ही मन

माया दलित कार्ड दिखला कर ,चाह  रही आये पॉवर में

लोग नाम ले रहे आप का ,पर अरविन्द ढके मफलर में

हम भी,हम भी,हम भी ,हम भी,कह कर के सब उछल रहे है 

एक बार फिर सत्ता पा लें ,देवगोड़ा जी ,मचल रहे है

एक मोरचा  बी जे पी का,एक मोरचा  कांग्रेस   का

खुला तीसरा, अगर मोरचा,तो क्या होगा ,भला देश का

अभी इलेक्शन में टाइम पर,मन में सत्ता झूम रही है

ऊँट कौन करवट बैठेगा ,कोई को मालूम नहीं   है

 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 16 फ़रवरी 2014

माँ और मासी

       माँ और मासी

मेरी माँ और मेरी मासी
एक की उम्र बानवे,एक की अठ्ठासी
दोनों दूर दूर ,अलग और अकेली
एक दुसरे को फोन करती है डेली
उनकी बातचीत कुछ होती है ऐसी
और तुम कैसी हो और मैं कैसी
तबियत कैसी है ,ठीक है ना हालचाल
तेरे बहू बेटे ,रखते है ना ख्याल
मोह माया के जाल में फंसी  है
सबकी चिंताएं ,मन में बसी है  
इधर उधर की बातें करने के बाद
रोज होता है उनका संवाद
क्या करें बहन,मन नहीं लगता है
बड़ी ही मुश्किल से वक़्त कटता है
दिन भर क्या करें ,बैठे ठाले
इतनी उम्र हो गयी है,अब तो राम उठाले
क्या करें,मौत ही नहीं आती,एक दिन है मरना
पल भर का भरोसा नहीं ,पर कहती है,
अच्छा कल बात करना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वेलेंटाइन डे और वेलेट

      वेलेंटाइन डे और वेलेट

पीज़ा के संग पेप्सी ,प्रियतमा संग प्यार
ऐसे हमने मनाया ,प्रीत भरा   त्योंहार
प्रीत भरा त्योंहार ,सीट कोने की लेकर
करी शरारत खूब ,प्रेम से देखी  पिक्चर
देकर लाल गुलाब,चुरा  होठों की लाली
वेलेंटाइन डे पर वेलेट हो गया  खाली

घोटू

बसन्ती ऋतू आ गयी

       बसन्ती ऋतू आ गयी

सर्दियों के सितम से हालत ये थे,
                 तन बदन था खुश्क,गायब थी लुनाई
ढके रहना ,लबादों से लदे  दिन भर ,
                 रात पड़ते दुबक जाना ,ले   रजाई
शाल ,कार्डिगन,इनर और जाने क्या क्या,
                  हुस्न की दौलत छिपी थी,लगा ताले
बसन्ती ऋतू आयी ,ताले खुल गए सब ,
                   खुली गंगा बह रही है,हम नहा ले
आम्र तरु के बौर ,फल बनने लगे है,
                   गेंहूं की बाली में दाने भर रहे है
लहलहाती स्वर्णवर्णी सरस सरसों ,
                    रसिक भँवरे,मधुर गुंजन कर रहे है
 पल्ल्वित नव पल्लवों से तरु तरुण है ,
                     कूक कोयल की बहुत मन को लुभाती
तन सिहरता ,मन मचलता ,चूमती जब,
                      बसन्ती  ,मादक बयारें ,मदमदाती
इस तरह अंगड़ाइयां ऋतू ले रही है ,
                       हमें भी अंगड़ाई  आने लग गयी है
फाग ने आ ,आग ऐसी लगा दी ,
                        पिय मिलन की आस मन में जग गयी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'                     

इश्क़ का इजहार करलें

         इश्क़ का इजहार करलें

झगड़ते तो रोज ही रहते है हम तुम,
                   आज वेलेंटाइन दिन है,प्यार करलें
नयी पीढ़ी की तरह गुलाब देकर,
                   हम भी अपने इश्क़ का इजहार करले
 एक दूजे की कमी हरदम निकाली ,
                     छोटी छोटी बातों पर लड़ते रहे  हम
एक दूजे की कभी तारीफ़ ना की ,
                       एक दूजे से हमेशा  रही   अनबन
     आज आओ एक दूजे को सराहे
     एक दूजे संग चलें हम मिला बाहें 
 प्यार से हम एक दूजे को निहारें,
                        संग  मिल कर सुहाना संसार करले
नयी पीढ़ी की तरह गुलाब देकर ,
                          हम भी अपने इश्क़ का इजहार कर लें  
जिंदगी के झंझटों में व्यस्त रह कर ,
                              दुनियादारी में फंसे दिन रात रहते
चितायें  और परेशानी में उलझ कर ,
                               मिल न पाये,भले ही हम साथ रहते
       आओ हम तुम आज सारे गम भुलादे
        मिलें खुल कर  ,प्यार की  गंगा बहा दे
कुछ बहक कर,कुछ चहक कर,कुछ महक कर ,
                           सूखते इस चमन को गुलजार  करलें
नयी पीढ़ी की तरह गुलाब देकर,
                              हम भी अपने इश्क़ का इजहार करलें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 15 फ़रवरी 2014

दिल्ली का दंगल

       दिल्ली का दंगल

कांग्रेस ,बीजेपी ,इक दूजे के दुश्मन
वेलेंटाइन डे पर दोनों मित्र गए बन
इक दूजे का साथ दिया और हाथ मिलाया
और 'आप 'की गवर्नमेंट का किया सफाया
करे तीसरा राज,सोच ये बोझ हो गयी
एक दूजे की मिलीभगत ,एक्सपोज हो गयी
जिसने जब सत्ता पायी  ,वो खुल कर खेले
गिरेबान   दोनों के   ही है      अंदर  मैले
अब चुनाव का ऊँट ,कौन करवट बैठेगा
दोनों की ही लुटिया कहीं डूबा ना देगा
हुयी सियासी कुश्ती ,दिल्ली के दंगल में
फंसी हुई है जनता ,बेचारी  दलदल में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

वेलेंटाइन डे के हालत-दिल्ली में बरसात

     वेलेंटाइन डे के हालत-दिल्ली में बरसात

 सोचा था देखेंगे पिक्चर नयी 'गुंडे',उनके संग ,
                गुंडों से डरती  है वो,उनने मना पर कर दिया
सोचा फिर  कि साथ उनके,घूमेंगे हम पार्क में ,
                  किन्तु बारिश ने बरस कर ,ये भी ना होने दिया
रेस्तरां में पंहुचे तो पाया गज़ब की भीड़ थी ,
                   माल में पंहुचें वहाँ भी  भीड़ थी, धमाल   था
बिठा कर बाइक पर उनको ,इधर उधर भटकते ,
                    भीग कर सर्दी के मारे ,बहुत बिगड़ा हाल था
उनका मेक अप ,धुल गया और नाक भी बहने लगी ,
                     लहलहाते केश उनके चिपक  गालों पर गये
ऐसे वेलेंटाइन डे ,हमने मनाया आज का,
                      दिल के सब अरमां संजोये,आँसुवों में बह गये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

बुढ़ापा-अहसास उम्र का

        बुढ़ापा-अहसास उम्र का

अबकी कड़कड़ाती ,ठिठुरन  भरी सर्दी के बाद ,
मुझे हुआ अहसास
कि बुढ़ापा आ गया है पास
सर्दी में केप और मफलर में ,
रहते थे ढके
सर के सब बाल सफ़ेद होकर थे  पके
और जब  सर्दी गयी और टोपी हटी ,
तो मन में आया खेद
क्योंकि मेरे सर के बाल ,
सारे के सारे हो गये थे  थे सफ़ेद
 और सर की सफेदी ,याने बुढ़ापे का अहसास
मुझे कर गया निराश
और मैंने झटपट अपने बालों पर लगा कर खिजाब
कर लिया काला
सच इस  कालिख का भी ,अंदाज है निराला
आँखों  में जब काजल बन लग जाती है
आँखों को सजाती है  
कलम से जब कागज़ पर उतरती है
तो शब्दों में बंध  कर,महाकाव्य रचती है
श्वेत बालों पर  जब लगाई जाती है
जवानी का अहसास कराती है
बच्चो के चेहरे पर काला टीका लगाते है
 और बुरी नज़र से बचाते है
मगर ये ही कालिख ,जब मुंह पर पुत  जाती है
बदनाम कर जाती है
तो हमारे सफ़ेद बालों पर जब लगा खिजाब
उनमे आ गयी  नयी जान  ,
 और हम  अपने आपको समझने लगे जवान
पर हम सचमुच में है कितने  नादान 
क्योंकि ,बुढ़ापा या जवानी ,
इसमें कोई अंतर नहीं खास है
ये तो सिर्फ ,मन का एक अहसास है
अगर सोच जवान है ,तो आप जवान है
और सर पर के काले बाल
ला देतें है आपको जवान होने का ख्याल
तो अपने सोच में जवानी का रंग आने दो
और जीवन में उमंग आने दो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

हम नेता हैं

         हम नेता हैं

हम नेता है,हम न किसी के सगे हुए है
जोड़ तोड़ कर ,बस कुर्सी से टंगे  हुए है
जनता के सेवक खुद को तो  कहते है पर,
खुद अपनी ही सेवा में हम लगे हुए है
मीठी मीठी बातें कर सबको बहलाते,
क्योंकि चाशनी में असत्य की पगे हुए है
आश्वासन की लोरी सुन ,सोती है जनता ,
और हम उसको ,थपकी देते ,जगे हुए है
हम भी तो है,इस जंगल के रहनेवाले ,
है तो वो ही सियार ,मगर हम रंगे  हुए है
लाख कोशिशें करते जनता को ठगने की,
पर सच ये है,हम  अपनों से ठगे  हुए है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सरस्वती वंदना

          सरस्वती वंदना

भावना के प्रसूनों से ,गुंथी उज्जवल,श्वेत माला 
अलंकारों से हुआ है   रूप आभूषित निराला
श्वेत वाहन,हंस सुन्दर ,श्वेत पद्मासन तुम्हारा
श्वेत वस्त्रों से सुसज्जित ,दिव्य सुन्दर रूप प्यारा
हाथ में वीणा लिए माँ,तुम स्वरों की सुरसरी हो
बुद्धि का भण्डार हो तुम,भावनाओं से भरी  हो
भक्त,सेवक मैं तुम्हारा ,मुझे ,आशीर्वाद दो माँ
प्रीत दो,संगीत दो और ज्ञान का परशाद  दो माँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

एक जूता किसी नेता पे उछालो यारों

         एक जूता किसी नेता पे उछालो यारों

यूं ही गुमनाम से आये हो,चले जाओगे ,
                        करो कुछ ऐसा कि कुछ नाम कमा लो यारों
कौन कहता है कि टी वी पे नहीं छा सकते ,
                        एक  जूता तो  किसी नेता  पे उछालो    यारों 
बड़ी मुश्किल से ये मानव शरीर पाया है,
                         हसरतें मन की अपनी ,सारी निकालों यारों
वैसे लड़ना तो बुरी बात है सब कहते है ,
                          नाम करना है तो चुनाव लड़  डालो यारों      
करो अफ़सोस नहीं,हार जीत चलती है,
                            भड़ास मन की तुम बीबी पे निकालों यारों
लोग ठगते है सब ,औरों को टोपी पहना कर ,
                              बदल के टोपी खुद ही पैसा कमालो यारों
एक के साथ ही निष्ठां की नहीं जरुरत है,
                              माल जो दल दे उसे ,अपना बना लो यारों
जिंदगी सुख से जो जीना है,जुगाड़ी बन कर,
                               निकालो काम ,अपनी गाडी धका लो यारों  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

जीवन के रंग

              जीवन के रंग

घट घट वासी ने लिखी,कुछ ऐसी तक़दीर
घूँट घूँट घोटू पिये ,घाट घाट  का   नीर
घाट घाट का नीर ,घोटते ऐसी    वाणी
भरे ज्ञान घट ,तृप्त सभी हो जाते  प्राणी
कह 'घोटू 'कवि फिर भी जल बिच मीन पियासी
बहुत  दिखाए  रंग जीवन के ,घट घट वासी

'घोटू '

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