सबके अपने अपने किस्से
अपने गम ,अपनी पीडायें
कोई छुपाये,कोई बताये
किसका दिल है कितना टूटा
किस को है किस किस ने लूटा
खुशियां आयी ,किसके हिस्से
सबके अपने अपने किस्से
एक बुजुर्ग से लाला जी थे
रोज घूमने में थे मिलते
कुछ दिन से वो नज़र न आये
एक दिन अकस्मात् टकराए
हमने हाल चाल जब पूछा
उनके मन का धीरज टूटा
बोले दिल की बात कहूँ मैं
घर से दिया निकाल बहू ने
बहुत चढ़ गयी थी वो सर पे
बोली निकलो मेरे घर से
वरना फोन करू थाने में
करी रेप की कोशिश तुमने
मुझ संग करने को मुंह काला
सीधे जेल जाओगे लाला
अगर छोड़ घर ना जाओगे
बहुत दुखी हो, पछताओगे
बेटा मौन,नहीं कुछ बोला
मैंने बाँधा बिस्तर,झोला
मैं इस घर से चला गया हूँ
बुरी तरह पर छला गया हूँ
अपनों का संग छूट गया है
अब मेरा दिल टूट गया है
और छा गयी बदली गम की
मैंने देखा आँखे नम थी
पर अब करें शिकायत किस से
सब के अपने अपने किस्से
एक हमारी और परिचित
हंसती,गाती और प्रसन्नचित
लगता तो था,बहुत सुखी थी
नज़र एक दिन आयी दुखी थी
हम पूछ लिया कुछ , ऐसे
आज चाँद पर बादल कैसे
पहले तो वो कुछ सकुचाई
फिर मन की पीड़ा बतलाई
तुमको बात बताऊँ सच्ची
बेटे की कमाई है अच्छी
रखे हमारा सदा ख्याल वो
हर महीने पंद्रह हज़ार वो
भेज दिया करता था हमको
पता लगी जब बात बहू को
बोली अब न चलेगा ऐसा
पकड़ाउंगी अब मैं पैसा
अपने हाथों ,सासूजी को
बोलो क्या मिल गया बहू को
मुझको था नीचा दिखलाना
था मुझ पर अहसान जताना
रूतबा बढे ,सास पर जिस से
सबके अपने अपने किस्से
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अपने गम ,अपनी पीडायें
कोई छुपाये,कोई बताये
किसका दिल है कितना टूटा
किस को है किस किस ने लूटा
खुशियां आयी ,किसके हिस्से
सबके अपने अपने किस्से
एक बुजुर्ग से लाला जी थे
रोज घूमने में थे मिलते
कुछ दिन से वो नज़र न आये
एक दिन अकस्मात् टकराए
हमने हाल चाल जब पूछा
उनके मन का धीरज टूटा
बोले दिल की बात कहूँ मैं
घर से दिया निकाल बहू ने
बहुत चढ़ गयी थी वो सर पे
बोली निकलो मेरे घर से
वरना फोन करू थाने में
करी रेप की कोशिश तुमने
मुझ संग करने को मुंह काला
सीधे जेल जाओगे लाला
अगर छोड़ घर ना जाओगे
बहुत दुखी हो, पछताओगे
बेटा मौन,नहीं कुछ बोला
मैंने बाँधा बिस्तर,झोला
मैं इस घर से चला गया हूँ
बुरी तरह पर छला गया हूँ
अपनों का संग छूट गया है
अब मेरा दिल टूट गया है
और छा गयी बदली गम की
मैंने देखा आँखे नम थी
पर अब करें शिकायत किस से
सब के अपने अपने किस्से
एक हमारी और परिचित
हंसती,गाती और प्रसन्नचित
लगता तो था,बहुत सुखी थी
नज़र एक दिन आयी दुखी थी
हम पूछ लिया कुछ , ऐसे
आज चाँद पर बादल कैसे
पहले तो वो कुछ सकुचाई
फिर मन की पीड़ा बतलाई
तुमको बात बताऊँ सच्ची
बेटे की कमाई है अच्छी
रखे हमारा सदा ख्याल वो
हर महीने पंद्रह हज़ार वो
भेज दिया करता था हमको
पता लगी जब बात बहू को
बोली अब न चलेगा ऐसा
पकड़ाउंगी अब मैं पैसा
अपने हाथों ,सासूजी को
बोलो क्या मिल गया बहू को
मुझको था नीचा दिखलाना
था मुझ पर अहसान जताना
रूतबा बढे ,सास पर जिस से
सबके अपने अपने किस्से
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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