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गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

अधर से उदर तक

         अधर से उदर तक

मिलना है जिसको ,वो ही तुमको मिलता ,
                           भले लाख झांको,इधर से उधर तक
बसा कोई दिल में , चुराता है नींदें ,
                            जाने जिगर वो  तुम्हारे  जिगर तक
मचलती है चाहें,जब मिलती निगांहे ,
                             चलता है जादू ,नज़र का नज़र तक  
वो बाहों का बंधन ,वो झप्पी वो चुम्बन,
                              मज़ा प्यार का है,अधर से अधर तक
ये है बात निराली  ,हो गर पेट खाली ,
                               तो भूखे  से होता नहीं है भजन तक
न तन में है हिम्मत,भले कितनी चाहत,
                                नहीं होता तन से फिर तन का मिलन तक
तब होता है चुम्बन और बाहों का बंधन ,
                                  भरा हो उदर और   मिलते  अधर तब
मचल जाता मन है,मिलन ही मिलन है  ,
                                     अधर से उदर तक ,तुम चाहो जिधर तक

मदन मोहन बाहेती'घोटू'      

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