खुद का धंधा
तुमने बी ए ,एम् ए ,करके ,पायी पगार बस कुछ हज़ार
दफ्तर जाते हो रोज रोज , और साहेब डाटते बार बार
और गला सूखता नहीं कभी ,यस सर ,यस सर ,यस सर कहते
मजबूरी में तुम सब ये सहते ,और सदा टेंशन में रहते
और साथी एक तुम्हारा था ,जो था दसवीं में फ़ैल किया
उसने एक चाट पकोड़ी का ,ठेला बाज़ार में लगा लिया
था स्वाद हाथ में कुछ उसके ,थोड़ी कुछ उसकी मेहनत थी
लगने लग गयी भीड़ उसके ठेले पर उसकी किस्मत थी
प्रॉफिट भी दूना तिगना था ,और धंधा सभी केश से था
उसकी कमाई लाखों में थी और रहता बड़े ऐश से था
अब वो निज मरजी का मालिक ,है उसके सात आठ नौकर
बढ़िया सी कोठी बनवा ली ,उसने है मेट्रिक फ़ैल होकर
और तुम लेने दो रूम फ्लैट ,बैंकों के काट रहे चक्कर
छोटा मोटा धंधा खुद का ,है सदा नौकरी से बेहतर
सरकारी सर्विस मिल जाए ,कुछ लोग पड़े इस चक्कर में
क्यों खुद का काम नहीं करते ,बैठे बेकार रहे घर में
अंदर के 'इंटरप्रेनर 'को ,एक बार जगा कर तो देखो
छोटा मोटा धंधा कोई ,एक बार लगा कर तो देखो
मेहनत थोड़ी करनी होगी ,तब सुई भाग्य की घूमेगी
जो आज नहीं तो कल लक्ष्मी ,आ कदम तुम्हारे चूमेंगी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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