पापा तो पापा होते है
लाख मुश्किलें हो जीवन में ,कभी नहीं आपा खोते है
पापा तो पापा होते है
हो संतान भले नाशुक्री ,लायक हो चाहे नालायक
बेगाना व्यवहार अधिकतर ,होता जिनका पीड़ादायक
अपने घर में ,अपनी ही सन्तानो से डरते रहते है
पर बच्चे ,खुशहाल ,सुखी हो,यही दुआ करते रहते है
घरवालों के तिरस्कार से ,भरा बुढ़ापा वो ढोते है
पापा तो पापा होते है
भले विचारों में उनके और इनके हो पीढ़ी का अंतर
भले बहू ने, आ ,बेटे के ,कानो में फूँका हो मंतर
भले भुला उपकार समझते बच्चे है उनको नाकारा
किन्तु मुसीबत यदि आ जाए ,बढ़ कर देते यही सहारा
एकाकीपन की पीड़ा से ,परेशान ,घुट कर रोते है
पापा तो पापा होते है
उनसे आँख चुराने लगते ,जब उनकी आँखों के टुकड़े
तो फिर भला कौन के आगे ,जा वो रोवें अपने दुखड़े
वो था जिन्हे सहारा देना ,वो ही कन्नी काट रहे है
इज्जत देने के बदले वो ,मात पिता को डाट रहे है
फिर भी सदबुद्धि आएगी ,मन में सपन संजोते है
पापा तो पापा होते है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।