संगिनी ,ओ मेरी संगिनी
पंचतत्वों से मिल तुम हो ऐसी बनी
पूर्ण मुझको किया , बन के अर्धांगिनी
संगिनी ,ओ मेरी संगिनी
तुम हवा हो हवा, बन के शीतल पवन ,
मेरे जीवन में लाना ,महक प्यार की
भूल कर भी कभी ,बन के तूफ़ान तुम ,
लूटना मत ख़ुशी ,मेरे गुलजार की
खुशबुओं से रहो ,तुम हमेशा सनी
पूर्ण मुझको किया बन के अर्धांगिनी
संगिनी ,ओ मेरी संगिनी
तुम हो शीतल सा जल और जल ही रहो ,
मंद सरिता सी बहती रहो तुम सदा
तोडना ना कभी ,अपने तटबंध तुम ,
बाढ़ बन के न लाना ,कभी आपदा
सबके मन को हरो ,कर के कल कल ध्वनि
पूर्ण मुझको किया ,बन के अर्धांगिनी
संगिनी ,ओ मेरी संगिनी
तुम अगन हो अगन, बाती दीपक की बन ,
जगमगाना प्रिये ,मेरे घर बार को
बन के ज्वाला कभी तुम भड़कना नहीं ,
स्वाह करना न खुशियों के संसार को
तुमसे जीवन में फैले सदा रौशनी
पूर्ण मुझको किया बन के अर्धांगिनी
संगिनी ,ओ मेरी संगिनी
तुम धरा हो धरा ,मातृरूपा बनो ,
सबका पोषण करो ,तुम रहो उर्वरा
पेड़ पौधे फसल ,सारे फूले फले ,
तुम बंजर कभी भी न बनना जरा
रहे हरियाली जीवन में हरदम बनी
पूर्ण मुझको किया बन के अर्धांगिनी
संगिनी ,ओ मेरी संगिनी
तुम हो आकाश विस्तृत ,भरा प्यार से ,
छा रहा हर तरफ ,ओर ना छोर है
बन के पंछी मैं उन्मुक्त उड़ता रहूँ ,
तेरी बाहों का बंधन चहुँ ऒर है
मैं हूँ हंसा तेरा ,तू मेरी हंसिनी
पूर्ण मुझको किया बन के अर्धांगिनी
संगिनी ,ओ मेरी संगिनी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
सुन्दर प्रस्तुति
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