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गुरुवार, 23 अगस्त 2018

माँ अशक्त है 

सीधीसादी प्रतिमा एक सादगी की वह 
 श्वेत केश ,लगती एक साध्वी सी  वह 
मोहमाया से उसका मन थोड़ा विरक्त है 
हमको शक्ति देनेवाली  ,माँ अशक्त है 

ऊँगली पकड़ सिखाया हमको जिसने चलना 
ऊँगली पकड़ हमारी उसको पड़ता  चलना 
दिन भर जो थी व्यस्त काम में ,चलती फिरती 
विवश आज बिस्तर पर है वो ,उठती ,गिरती 
और दवा की गोली मुश्किल से  खाती  है 
इंजेक्शन का नाम लिया , घबरा जाती  है 
करना चाहे काम ,मगर ना उससे होता 
पर दिन भर लेटे आराम न उससे  होता 
छोटी छोटी जिद करती है बच्चों जैसी 
फल ना खाती,दूध न पीती ,बच्चों जैसी 
चौथाई ही रोटी खा पा रही  फ़क़्त  है 
हमको शक्ति देनेवाली ,माँ अशक्त है 

छूटा पूजा पाठ ,न रामायण ना गीता 
आँखे मूँद ,पड़े रहकर ,दिन करता बीता 
फिर भी जिद कर एकादशी का व्रत करती है 
सुबह चाय पहले नहाने की हठ करती है 
पानी भी अब गटकाने में होती मुश्किल 
आगे पाँव बढ़ा ,मुश्किल से सकती है हिल 
गाउन नहीं पहनती ,साड़ी ही पहनेगी 
कोई मिलने आये तो सर तुरंत ढकेगी 
मंद पड़  गयी उसकी आँखों की ज्योति है 
अब उसको सुनने में भी दिक़्क़त होती है 
अस्थि अस्थि दिखती ,तन में कम बचा रक्त है 
हमको शक्ति देने वाली माँ अशक्त है 

होकर के नाराज़ कभी जो थी चिल्लाती 
अब ज्यादा स्पष्ट शब्द भी बोल न पाती 
तन झुर्राया ,मुख कुम्हलाया ,सिकुड़ी आंतें 
इच्छा होती ,किन्तु नहीं कुछ बनता खाते 
थी विशालहृदया पर जबसे बिगड़ी सेहत 
उसका हृदय कामकरता बस बीस प्रतिशत 
बिमारी में बदन  इस तरह टूट गया है 
धरम करम और पूजा करना छूट गया है 
याद पुरानी बातें उसको रहती सारी 
बेटी बेटे ,नाती पोते  सबकी प्यारी 
अब भी अपने सिद्धांतों पर ,मगर सख्त है 
हमको शक्ति देनेवाली ,माँ अशक्त है 

कोई आता ,स्वागत करती है मुस्काके 
स्थिरप्रज्ञ पड़ी रहती है ,खोले आँखें 
नहीं किसी से अब वो करती टोका टाकी
सिर्फ दो बरस ,उम्र शतक करने में बाकी  
जिसने सबके जीवन को ऊष्मा दी ,तपकर 
वही सूर्य अस्ताचल को हो रहा अग्रसर  
हम सब करें प्रार्थना ,सच्चे दिल से चाहें 
उनका सौवाँ जन्मदिवस मिल सभी मनायें 
रहे स्वास्थ्य भी ठीक ,हमेशा वो मुस्कायें  
हम पर आशीर्वादों की बारिश बरसायें 
हमें छत्रछाया दी जिसने ,माँ वो दरख्त है 
हमको शक्ति देनेवाली ,माँ अशक्त है 

मदन मोहन बाहेतीघोटू '



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