सच ,हम कितने बेसबरे है
हमने जो कुछ भी पाया है ,उससे भी ज्यादा पाने को
मौकापरस्त है ,मौका पा ,जल्दी से उसे भुनाने को
कच्ची केरी का पाल लगा ,जल्दी से आम बनाने को
अपने सारे संबंधों का ,जी भर कर लाभ उठाने को
करते गड़बड़ी ,हड़बड़ी में ,करते प्रयास अधकचरे है
सच हम कितने बेसबरे है
किस्मत ने जितना दिया हमें ,उससे ना है संतोष हमे
औरों को आगे बढा देख ,मन में आता है रोष हमें
हम भी कुछ कर दिखला ही दे ,आने लगता है जोश हमे
पर नहीं सफलता जब मिलती ,तो आता है आक्रोश हमें
और अपना रौब दिखाने को ,हम बनने लगते जबरे है
सच हम कितने बेसबरे है
हम आज बीज बो ,फल पाने ,कल से अधीर हो जाते है
कितना ही सींचों रोज रोज ,फल मौसम में ही आते है
कितने ही लोग प्रगतिपथ पर ,नित नित रोड़े अटकाते है
बाधा से लड़ ,धीरे धीरे ,हम निज मंजिल को पाते है
इस धूपछांव के जीवन में ,हम बन जाते चितकबरे है
सच हम कितने बेसबरे है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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