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रविवार, 23 अगस्त 2015

मैं भटका तो जग था स्थिर, मैं स्थिर जग भटक रहा है...


1 टिप्पणी:

  1. सुन्दर व सार्थक रचना ..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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