ज़िंदगी अधूरी तेरे बिन - भाग पाँच (05)
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ज़िंदगी अधूरी तेरे बिन - भाग पाँच (05) भाग 5 प्रियंकाजैसे ही मैंने सनशाइन
होम्स रिज़ॉर्ट के बरामदे में कदम रखा, मुझे हल्का महसूस हुआ, जैसे अपने
परिवार को पी...
8 घंटे पहले

वाह मित्र वाह क्या कविता है एक -2 पंक्तियाँ लाजवाब हैं, पढ़कर आनंद आ गया.
जवाब देंहटाएंलाजवाब | सत्यता को बयां करती बहुत ही उम्दा रचना | एक-एक पंक्ति में समाज की सच्छाई छुपी हुई है |
जवाब देंहटाएं"काव्य का संसार" में आपका हार्दिक स्वागत है | निरंतर इसी तरह सहयोग की आवश्यकता है | आभार |
जवाब देंहटाएंवाह आज के हालात का क्या मारमिक वर्णन है । सोने चांदी की दुकां पर रोटियां बिकने लगीं । हर एक शेर जबरदस्त ।
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