सशक्त नारी -बिगड़ता समाज
-
आख़िरकार वही हुआ जो बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए था. आज तक पुरुष पर दरिंदगी के
आरोप लगते रहे किन्तु आज की भारतीय नारी ने पिछले कुछ समय से यह साबित करके
दिख...
11 घंटे पहले
वाह मित्र वाह क्या कविता है एक -2 पंक्तियाँ लाजवाब हैं, पढ़कर आनंद आ गया.
जवाब देंहटाएंलाजवाब | सत्यता को बयां करती बहुत ही उम्दा रचना | एक-एक पंक्ति में समाज की सच्छाई छुपी हुई है |
जवाब देंहटाएं"काव्य का संसार" में आपका हार्दिक स्वागत है | निरंतर इसी तरह सहयोग की आवश्यकता है | आभार |
जवाब देंहटाएंवाह आज के हालात का क्या मारमिक वर्णन है । सोने चांदी की दुकां पर रोटियां बिकने लगीं । हर एक शेर जबरदस्त ।
जवाब देंहटाएं