मंथरा
जो लोग अपना भला बुरा नहीं समझते
आँख मूँद कर, दूसरों की सलाह पर है चलते
उन पर मुसीबत आती ही आती है
बुद्धि भ्रष्ट करने के लिए ,हर केकैयी को ,
कोई ना कोई मंथरा मिल ही जाती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कलम
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रचनाकार - ऋता शेखर 'मधु'
विधा - नवगीत
विषय - कलम, लेखनी
चिंतन की भीड़ से पन्नों को आस
कलम की सड़क पर शब्द चले खास
परिश्रम के पेड़ पर मीठे लगे फल
स्य...
1 घंटे पहले
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