पते की बात
जिव्हा
नहीं होती कोई हड्डी जीभ में ,
पर हिल कितने ही दिल तोड़ दिया करती है
वही जीभ जब तलुवे से मिल कहती 'सोरी',
टूटे हुए दिलों को जोड़ दिया करती है
घोटू
अब
-
अब चीजें अब साफ़ हो गयीं अंधेरा छँटने लगा है पहचान रहा मन मंज़िल कोजो
भ्रमित करता रहा है पकड़ी है प्रकाश की डोरीजीवन जैसे एक किताब कोरी जिसमें
लिखा जाना ...
1 दिन पहले
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