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रविवार, 27 सितंबर 2020

साफ़ करो दिल दीवाली में

नफरत की जो कंगाली है ,उसे बदल दो खुशहाली में
घर तो सभी साफ़ करते तुम,साफ़ करो दिल दीवाली में

अगर किसी के लिए बैर का ,मन में कचरा भरा हुआ है
अगर किसी से नाराजी है ,दिल का रिश्ता मरा  हुआ है
तो लो  प्रेमभाव की  झाड़ू , और बुराइयाँ   सभी बुहारो    
अपने  मन को  निर्मल कर दो,क्षमा भाव से उसे संवारो
मुस्कानो के फूल बिखेरो , मुंह गंदा न करो   गाली में
घर तो सभी साफ़ करते तुम,साफ़ करो दिल दीवाली में

स्नेहभाव की अगर सफेदी ,पोतोगे ,मन चमक जाएगा
दिवाली पर ,दीप प्यार का ,रोशन करना ,झिमिलायेगा
मित्रभाव के खील पताशे ,चढ़ा लक्ष्मी  पूजन करना
मीठी बोली भरी चाशनी ,का प्रशाद भी अर्पण करना
लक्ष्मी माँ ,सुख के सिक्कों की ,वर्षा कर देगी थाली में
घर तो सभी साफ़ करते तुम साफ़ करो दिल दीवाली में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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Alex Peters

गुरुवार, 24 सितंबर 2020

तूती की आवाज

पगडंडी पर पैर  रगड़ कर ,मैं भटका हूँ
खाई ठोकरें ,और काँटों में ,मैं अटका  हूँ
मुश्किल से काटा है  ये रस्ता  दुखदायी
तब जाकर के मैंने अपनी मंजिल पायी
झाड़फूस की झोपड़ में भी मैंने रहकर
कितने वर्ष गुजारा जीवन पीड़ा सहकर
एक एक ले ईंट ,स्वयं ही है चुनवाया
कितनी कोशिश कर रहने को महल बनाया
मैं पतला सा नाला मिला नदी के जल से
तब जाकर के मेरा मिलन हुआ सागर से
रूप वृहद्ध हुआ पर मैं मुश्किल का मारा
मेरा सारा जल मीठा था अब है खारा
ये सागर दिखने में लगता बहुत बड़ा है
लेकिन मगरमच्छ से पूरा भरा पड़ा है
बहुत देर के बाद ,बात यह समझ में आयी
बहुत बड़ा बनना भी होता है दुखदायी
 छोटी इकाई की एक अपनी हस्ती होती है  
निज मन मरजी जीने की मस्ती होती है
था आनंद निराला नदिया की कल कल में
अब लगता अस्तित्व हीन हूँ ,मैं सागर में
जब छोटा था ,मेरी भी बजती थी तूती
मेरी भी थी एक हैसियत अपनी ऊंची
नक्कारों की नगरी में नक्कार बजेगा
तूती की आवाज यहाँ पर कौन सुनेगा
इसीलिये मित्रों ,मेरा ये मशवरा है
नहीं रुचेगा तुमको लेकिन बड़ा खरा है
इतनी प्रगति करो कि उसका मज़ा उठा लो
जरूरत से ज्यादा चिताएं तुम मत पालो
नहीं जरूरी ,तुम विराट हो ,रहो मंझोले
रहो जहाँ भी ,बस तुम्हारी तूती  बोले

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
प्रतिबंधित जीवन

प्रतिबंधों के परिवेश में ,जीवन जीना बहुत कठिन है
बात बात में ,मजबूरी  के ,आंसूं पीना  बहुत कठिन है

रोज रोज पत्नीजी हमको ,देती रहती  सीख नयी है
इतना ज्यादा ,कंट्रोल भी ,पति पर रखना ठीक नहीं है
आसपास सुंदरता बिखरी ,अगर झांक लूं ,क्या बिगड़ेगा
नज़र मिलाऊँ ,नहीं किसी से ,मगर ताक लूं ,क्या बिगड़ेगा
पकती बिरयानी पड़ोस में ,खा न सकूं ,खुशबू तो ले लूं
सुन सकता क्या नहीं कमेंट्री ,खुद क्रिकेट मैच ना खेलूं
चमक रहा ,चंदा पूनम का ,कर दूँ उसकी अगर प्रशंसा
क्या इससे जाहिर होता है ,बिगड़ गयी है मेरी मंशा
खिले पुष्प ,खुशबू भी ना लूं ,बोलो ये कैसे मुमकिन है
प्रतिबंधों के परिवेश में ,घुट घुट जीना बहुत कठिन है

शायद तुमको डर तुम्हारे ,चंगुल से मैं निकल जाऊँगा
यदि ज्यादा कंट्रोल ना रखा  ,मैं हाथों से फिसल जाऊँगा
मुझे पता ,इस बढ़ी उमर में ,एक तुम्ही पालोगी मुझको
कोई नहीं जरा पूछेगा ,तुम्ही  घास डालोगी मुझको
खुले खेत में जा चरने की ,अगर इजाजत भी दे दोगी
मुझमे हिम्मत ना चरने की ,कई रोग का ,मैं हूँ रोगी
तरह तरह के पकवानो की ,महक भले ही ललचायेगी
मुझे पता ,मेरी थाली में ,घर की रोटी दाल आएगी
मांग रहा आजादी पंछी ,बंद पींजरे से  लेकिन है  
प्रतिबंधों के परिवेश में ,घुट घुट जीना बहुत कठिन है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ;

\मुझको लल्लू बना दिया

मेरी खिदमत  कर बीबी ने ,है मुझे निठल्लू बना दिया
 यूं तो मैं अच्छा ख़ासा हूँ पर मुझको लल्लू बना दिया

अहसासे बुढ़ापा दिला दिला ,वो मेरी सेवा करती है
तुम ये न करो ,तुम वो न करो ,प्रतिबंध लगा कर रखती है
मैं ऊंचा बोलूं तो कहती ,ब्लड का प्रेशर बढ़ जाएगा
कहती मीठा ,मत खाओ तुम  ,शुगर लेवल चढ़ जाएगा  
वह रखती मुझे संभाले ज्यों ,साड़ी का पल्लू बना दिया
यूं तो मैं अच्छा खासा हूँ ,पर मुझको लल्लू बना दिया  

करने ना देती काम कोई ,है  मुझ पर कितने रिस्ट्रिक्शन  
हलकी सी  खांसी आजाये  ,चालू हो जाता मेडिकेशन  
ये सारा नाटक ,इस कारण ,वो मुझको लम्बा टिका सके
व्रत करवा चौथ ,सुहागन बन ,वो जब तक जिये ,मना सके
लेकिन मुझको ,आरामतलब बनवा के मोटल्लू बना दिया
यूं तो मैं अच्छा खासा हूँ  ,पर मुझको लल्लू बना दिया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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