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शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2019

त्योंहारों का मज़ा  

जब भी सब भाई बहन ,एक साथ मिल जाते ,
सूना घर भरा भरा लगता है
पुष्प सभी एक साथ ,जब सुरभि बिखराते ,
उपवन भी हरा भरा लगता है

घर के हर कोने में ख़ुशी व्याप्त हो जाती ,
चाहे हो होली या चाहे हो दीवाली
दीपक सा ज्योतिर्मय ,हर चेहरा हो जाता ,
संग मिले लगता है ,हरदिन ही त्योहारी  
हंसी ख़ुशी ,मेलजोल ,प्यार भरे मधुर बोल ,
अपनापन खरा खरा लगता है
जब भी सब भाई बहन ,एक साथ मिल जाते ,
सूना घर भरा भरा लगता है

स्नेह बिखराते  बुजुर्ग ,प्यार लुटाते बच्चे ,
चहलपहल चमकदमक ,खुशियों की बरसाते
संग संग जब आ जाते ,सब चेहरे मुस्काते ,
करते है हंस हंस कर ,जग भर की सब बातें
एक दूसरे के सुख दुःख ,आपस में बंट जाते ,
परिवार साथ खड़ा लगता है
जब भी सब भाई बहन एक साथ मिल जाते
सूना घर भरा भरा लगता है

कुछ दिन रह संग संग ,रंग जाते एक रंग ,
रिश्तों की अहमियत ,जान जाते है बच्चे
एक साथ खानपान ,मधुर मधुर व्यंजन सब ,
लगते है स्वाद भरे और,और भी अच्छे
माला के मोती सब ,एक साथ जुड़ते जब
कंठ हार ,बड़ा बड़ा लगता है
जब भी सब भाई बहन एक साथ मिल जाते ,
सूना घर भरा भरा लगता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ''

बुधवार, 23 अक्तूबर 2019

दर्द तो है

पीर थोड़ी कम हुई पर दर्द तो है
आग दिल में ,मगर आहें सर्द तो है

चाल ढीली है मगर चल तो रहें है
तेल कम ,पर ये दिये  जल तो रहे है
नज़र धुंधली है मगर दिख तो रहा है
चलता रुकरुक,पेन पर लिख तो रहा है  
बीबी बूढी ,मगर करती प्यार तो है
बसा अब तक ,तुम्हारा संसार तो है
तुम्हारा जग में कोई हमदर्द तो है
पीर थोड़ी कम हुई पर दर्द तो है

हुए उजले ,मगर सर पर बाल तो है
बजती ढपली ,भले ही बेताल तो है
धूप थोड़ी कुनकुनी पर गर्म तो है
वो बड़े बिंदास है पर शर्म तो है
सपन आते नहीं ,आती नींद तो है
झगड़ते हम ,मगर हममें प्रीत तो है
गजब जलवा हुस्न का ,बेपर्द तो है
पीर थोड़ी कम हुई पर दर्द तो है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
रूप चौदस मनाऊंगा

चाँद सा चेहरा चमकता ,केश ये काले घनेरे
रूप चौदस मनाउंगा  ,रूपसी मैं साथ तेरे
 
कपोलों के कागजों पर ,कलम से अपने अधर की ,
चुंबनों की स्याही  से मैं ,प्यार की पाती लिखूंगा
प्रीत का गहरा समंदर ,है तुम्हारा ह्रदय  सजनी ,
डूब कर उस समंदर में ,मैं तुम्हारी थाह लूँगा
तमसमय काली निशा को,दीप्त,ज्योतिर्मय करूंगा ,
जला कर के प्रेम दीपक ,दूर कर दूंगा अँधेरे
रूप चौदस मनाऊंगा ,रूपसी मैं साथ तेरे

पुष्प सा तनबदन सुरभित ,गंध यौवन की बसी है ,
भ्र्मर  सा रसपान कर ,मकरंद का आनंद लूँगा
अंग अंग अनंग रस में ,डूब कर होगा प्रफुल्लित ,
कसमसाते इस बदन को ,बांह में ऐसा कसूँगा
पौर पौर शरीर का थक , सुखानुभूति  करेगा ,
संगेमरमर सा बदन ,इठलायेगा जब पास मेरे
रूप चौदस मनाऊंगा ,रूपसी मैं साथ तेरे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

सजना संवरना

नहीं पड़ती कोई जरुरत ,है बचपन में संवरने की ,
जवानी में यूं ही चेहरे पे  छाया नूर होता  है
दिनोदिन रूप अपने आप ही जाता निखरता है ,
लबालब हुस्न से चेहरा भरा भरपूर  होता है
मगर फिर  भी हसीनायें ,संवरती और सजती है,
आइना देख कर के अक्स भी मगरूर होता है
पार चालीस के घटती लुनाई जब है चेहरे की ,
नशा सारा जवानी का ,यूं ही काफूर होता है
सफेदी बालों में और चेहरे पे जब सल नज़र आते ,
बुढ़ापा इस तरह आना   नहीं  मंजूर होता है
तभी पड़ती है जरूरत ख़ास ,नित सजने सँवरने की ,
नहीं तो हुस्न का जलवा ये चकनाचूर होता है

घोटू 
पर्यटक का प्यार

आज मेरी चाह 'अजमेरी 'हुई है ,
और 'दिल्ली' की तरह है दिल धड़कता
'चेन्नई 'सा चैन भी खोने लगा है ,
'आगरे' की आग में तन बदन जलता
मैं 'अलीगढ' का अली हूँ ,तुम कली थी,
देह' देहरादून' सी विकसी  हुई है
मन बना है 'बनारस' जैसा रसीला ,
मुरादें  अब , 'मुरादाबादी' हुई है
चाहता हूँ प्यार से दिल विजय करके ,
तुझे 'जयपुर' में गले जयमाल डालूं
बना रानी ,रखूँ  'रानीखेत' दिल में ,
मिलान की रजनी 'मनाली 'में मनालूं

घोटू  

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