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बुधवार, 16 दिसंबर 2015

सोने की फ्रेम में जड़ी तस्वीर

 सोने की फ्रेम में जड़ी तस्वीर

मैंने अपने दिल के कोरे,
 कैनवास पर सच्चे मन से
सुंदर सी एक तस्वीर बनाई थी ,
बड़ी लगन से
चाँद को चूमने की आशा लिए ,
एक मासूम विहंग
अपने  पंख फैलाये ,गगन में,
उड़ रहा था स्वच्छंद
मैंने उस चित्र को ,
सोने की फ्रेम मे जड़वा ,
अपने ड्राइंग  रूम में टांगा
यह सोच कर कि इससे ,
हो  जाएगा सोने में सुहागा
पर मैं  कितना गलत था
आज मुझे वो पंछी ,
अपने पंख पसारे ,
आसमान में उड़ता हुआ नहीं ,
सोने की फ्रैंम के पिंजरे में ,
छटपटाता नज़र आता  है
कई बार सोने की फ्रेम में फंस ,
जीव कितना मजबूर हो जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


ऊंचे लोग -ऊंची पसंद

      ऊंचे लोग -ऊंची पसंद

शिराओं में ,उच्चस्तरीय रक्तचाप
बातों में मधुमेह मयी  मिठास
आँखों में मोतियाबिंद बिराजमान
सर पर चांदी से केशो की शान
स्वर्ण के प्रति मोह इतना कि ,
स्वर्ण को भी भस्म करके खाते  है
लोह तत्व की अल्पता के कारण ,
हर किसी से लोहा लेने को तैयार हो जाते है
प्रकृती से प्रेम इतना कि सर्दियों में भी,
'बसंत कुसुमाकर रस'और  'चंद्रप्रभा वटी 'का
 लेते है  आनंद
ऊंचे लोग ,ऊंची पसंद

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फेस बुक स्टेटस

     फेस बुक स्टेटस

विदेश बसे  बेटे से बाप ने फोन किया ,
बेटा कई दिनों तुमने कोई समाचार नहीं दिया
सप्ताह में कम से कम
एक बार तो फोन कर लिया करो तुम
बेटा बोला 'पापा ,चिंता मत किया करो
फेसबुक पर रोज मेरा स्टेटस देख लिया करो
और आप की  फेसबुक पर भी ,
यदि आपका स्टेटस' अप टू  डेट'रहेगा
तो हमको भी ,आपके बारे में ,
सब पता लगता रहेगा
पिता के अंतर्मन ने ,बुझे स्वर में कहा,बेटा
ये बूढ़ा  जब  अचानक  मरेगा
तो स्टेटस कौन 'अप टू डेट' करेगा ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हम वो पुराना माल है

               हम वो पुराना माल है

चूरमे की तरह वो ,मीठी,मुलायम,स्वाद है ,
 और बाटी की तरह ,मोटी  हमारी खाल है
वो है जूही की कली ,प्यारी सी खुशबू से भरी,
फूल हम भी मगर  गोभी सा हमारा हाल है
वो है छप्पन भोग जैसी,व्यंजनों की खान सी ,
और हम तो सीधे सादे ,सिरफ़ रोटी दाल है
सारंगी से सुर सजाती है मधुर वो सुंदरी ,
हम पुरानी ढोलकी से , बेसुरे  ,बेताल  है
काजू की कतली सी है वो और हम गुड़ की गजक ,
खनखनाती वो तिजोरी ,हम तो ठनठन पाल है
एल ई डी का बल्ब है वो ,टिमटिमाते हम दिये ,
कबाड़ी भी नहीं ले ,हम वो पुराना  माल है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
            

सोमवार, 14 दिसंबर 2015

मन हुँकार बैठा है

उस आईने में खुद को देख रहा है कोई,
वो सज संवर के होने शिकार बैठा है ।

इस माहौल से हैं वाकिफ तुम और हम भी,
इस उजड़े हुए बाग में ढूँढने बहार बैठा है ।

फिर कोई आके सहला रहा है दिल को,
दे देने को फिर गम कोई तैयार बैठा है ।

ये प्यार करने वाले, अब फिर दिख रहे,
वो लूटने को फिर दिल-ए-करार बैठा है ।

जो जिंदा है वो बस, सो रहा है बेखबर,
जो कत्ल हो चुका वो यूँ  पुकार बैठा है ।

चुन लिए हैं हमने कुछ दोस्त ऐसे ऐसे,
जो पास मैं बुलाऊँ वो फरार बैठा है ।

अब मौत की खबर भी वो गा कर सुनाता,
लेने को भी अर्थी, देखो कहार बैठा है ।

है आस रखो जिसपे वो सपने ही दिखाता,
हर सपने तेरे लेकर वो डकार बैठा है ।

अपना जिसे समझो वो हो गया पराया,
गैर कोई आके किस्मत सँवार बैठा है ।

काम का समझकर, आगे किया जिसको,
विश्वास को लुटाकर वो बेकार बैठा है ।

हर आग को बुझाना, अंधकार को मिटाना,
अलख फिर जगाने, मन हुँकार बैठा है ।

-प्रदीप कुमार साहनी

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