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रविवार, 17 नवंबर 2013

दिल की बात

         दिल की बात

दिल,शरीर का वो अंग है
जैसे कोई पम्प है
जिसका काम ,रक्त को पम्प कर,
नसों में प्रवाहित  करना है
और जीवन में गति भरना है
यह प्रोसेस है मेकेनिकल
और यह क्रिया चलती है निरंतर
जिस दिन ये पम्प बंद होता
आदमी चिर निंद्रा सोता
लेकिन इस दिल की  मशीन को ,
हम भावनाओं से क्यों जोड़ते है
कभी दिल जोड़ते है,कभी दिल तोड़ते है
कभी दिल जलता है,कभी दिल बुझता है 
कभी दिल लगता है ,कभी दिल कुढ़ता है
कभी किसी पर दिल आता है
कभी किसी के लिए तड़फ जाता है
कभी हम दिल मसोस कर रह जाते है
कभी हम दिल में करार पाते है
प्यार होने पर दिल मिल जाते है
जुदाई में दिल टूट जाते है
पर डाक्टरों के हिसाब से ,प्यार होने में ,
दिल की कोई भूमिका नज़र नहीं आती है
हाँ,प्रेम की कुछ प्रक्रियाओं में ,
दिल की धड़कन,कम ज्यादा हो जाती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

सर्दियों का सितम -बुढ़ापे में

सर्दियों का सितम -बुढ़ापे में

बुढ़ापे में यूं ही ढीली खाल है
सर्दियों के सितम से ये हाल है
हाथ जो थे पहले से ही खुरदुरे ,
                    आजकल तो एकदम झुर्रा गये
महकते थे डाल पर सर तान के
गए दिन,जब बगीचे की शान थे
एक एक कर पंखुड़ियां गिरने लगी ,
                     आजकल हम  और भी कुम्हला गये
रजाई में रात ,घुस ,लेटे रहे
और दिन भर धूप में बैठे रहे
गले में गुलबंद ,सर पर केप है,
                       ओढ़ कर के शाल हम  दुबका गये 
 हमें अपनी जवानी का वास्ता
कभी मियां मारते थे फाख्ता
सर्दियों में चमक चेहरे की गयी ,
                       गया दम ख़म,अब बुरे दिन आ गये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 13 नवंबर 2013

सुप्रभातम्

           सुप्रभातम्

प्रातः की लुनाइयां सब, हो मुबारक
पवन कि शहनाइयां सब, हो मुबारक
लालिमा सिन्दूर सी जिसने बिखेरी ,
उषा की अंगड़ाइयां सब, हो मुबारक
आ रही है दबे पाँव ,चुपके चुपके,
भोर के आने की आहट ,हो मुबारक
तरुओं की डाल पर कर रहे कलरव,
पंछियों की  चहचहाहट ,हो मुबारक
झांकती सी किरण की चंचल निगाहें ,
दिखाती मुख,हटा घूंघट,हो मुबारक
डाल पर खिलती कली की सकुचाहट ,
और भ्रमर की गुनगुनाहट ,हो मुबारक
छुपा कर मुख ,सितारों की  ओढ़नी में ,
हो रही है,रात रुखसत,हो मुबारक
सजा कर निज द्वार तोरण आज प्राची ,
कर रही नवदिवस स्वागत,हो मुबारक
बांटता है सूर्य ,ऊर्जा ,बैठ जिसमे ,
सप्त अश्वों का रवि रथ ,हो मुबारक
आज का दिन ,आपको सुख ,समृद्धी दे,
खुशी बरसे,भली सेहत ,हो मुबारक

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

मौसम सर्दियों का

         मौसम  सर्दियों का

उनने ओढ़ी ,शाल काली ,अपना तन ऐसे ढका ,
                     जैसे सूरज बादलों में ,छुप गया ,ढलने लगा
उनने पहना ,श्वेत स्वेटर ,तो हमें ऐसा लगा ,
                     ढक गए है पहाड़ उनपर ,बर्फ है  पड़ने  लगा
हाथ उनके ,कमल जैसे ,दस्तानों से ढक गए,
                     ज्यों कमल के सरोवर में ,कोहरा हो छा गया
हममे भी सिहरन हुई और उनमे भी सिहरन हुई ,
                      ऐसा लगता है कि मौसम ,सर्दियों का आ गया

घोटू


इलेक्शन आ गया

       इलेक्शन आ गया

लगी बिछने खेल की  है  बिसातें,
                       ऐसा  लगता है  इलेक्शन आ गया
अपने अपने मोहरे सब  सजाते ,
                        ऐसा लगता है इलेक्शन  आ गया
सत्ताधारी गिनाते उपलब्धियां ,
                         और विरोधी दलों को है कोसते
अपनी नाकामयाबियों का ठीकरा ,
                           सब विपक्षी दलों पर है फोड़ते
घोषणा पत्रों में देखो सब के सब,
                              मुंगेरी सपने तुम्हे  दिखलायेंगे
काम छांछट साल में कुछ ना किया ,
                              पांच सालों में वो कर दिखलायेंगे
एक दूजे को है देते गालियां ,
                              खींचते एक दूसरे की  टांग है
वोट की मछली पकड़ने के लिए ,
                               धरते बगुले भगत जी का स्वांग है
कहीं पर है खेल जातिवाद का ,
                               धर्म पर दंगे  कहीं  करवा  रहे
राजनिती का खुला हम्माम है ,
                                सभी नंगे नज़र हमको आ रहे
बांटते  है खुल्ले हाथों हर तरफ ,
                                 मिठाई  आश्वासनों की लीजिये
जोड़ कर के हाथ सब विनती करें,
                                 वोट अबकी बार हमको दीजिये
बाद में रंग अपना असली दिखाते,
                                  रंग  बदलने  का है  मौसम आ गया 
लगी बिछने खेल की है बिसाते ,
                                   ऐसा लगता है इलेक्शन  आ गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

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