एक गोकुल था जहाँ कान्हा बजाता बांसुरी,
निकल कर के घर से आती,भागी भागी गोपियाँ
यहाँ भी आते निकल ,दीवाने सब व्यायाम के ,
सवेरे दीवानजी की,बजती है जब सीटियां
फर्क ये है कि वहां पर ,वो रचाते रास थे ,
और यहाँ होता सवेरे ,योग और व्यायाम है
वहां जुटती गोपियाँ थी,यहाँ सीनियर सिटिज़न ,
दीवान की दीवानगी का ,ये सुखद अंजाम है
घोटू