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मंगलवार, 30 जुलाई 2024

ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी 


ये मिट्टी नहीं है हमारी ये मां है 

मिट्टी से अपना बदन ये बना है 

जीवन के पल-पल में छाई है मिट्टी 

हमेशा बहुत काम आई है मिट्टी 

ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी 


गांव की मिट्टी में बीता था बचपन

मिट्टी का घर था और मिट्टी का आंगन मिट्टी के चूल्हे की रोटी सुहानी 

मिट्टी के मटके से पीते थे पानी 


मिट्टी के होते खिलौने थे सुंदर 

वो गाड़ी वो गुड़िया वो भालू वो बंदर 

मिट्टी की पाटी में खड़िया लगाकर 

सीखे थे हमने गिनती और अक्षर 

मिट्टी में खेले ,हुए कपड़े मैले 

बचपन में छुप छुप कर खाई है मिट्टी 

ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी 


मिट्टी की सिगड़ी में सर्दी में दादी 

हमें सेक मक्की के भुट्टे खिलाती 

मिट्टी सुराही का ठंडा वो पानी

 मिट्टी के  कुल्हड़ की चाय सुहानी


 बारिश में मिट्टी में चलना वो थप थप बचाने को पैसे थी मिट्टी की गुल्लक 

हमेशा बहुत काम आई है मिट्टी 

जीवन के हर रंग छाई है मिट्टी 

ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी 


त्यौहार जब भी दिवाली का आता

 मिट्टी के गणपति और लक्ष्मी माता 

सभी लोग मिलकर के करते थे पूजन मिट्टी के दीपक से घर होता रोशन 


अब तो शहर में है कंक्रीट के घर 

मिट्टी की खुशबू नहीं है कहीं पर 

एक कंचन काया बदन यह हमारा 

इसकी भीअंतिम विदाई है मिट्टी 

जीवन के पल-पल मे छाई है मिट्टी 

  ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी ये मिट्टी 


मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 20 जुलाई 2024

छुपे रुस्तम 


हम जमीन से जुड़े हुए हैं 

पर पापुलर हैं जन-जन में 

चाहे अमीर ,चाहे गरीब 

हम मौजूद सबके भोजन में 

मैं तो हूं छुपी हुई रुस्तम 

मत समझो मैं मामूली हूं 

बाहर से हरी भरी पत्ती 

पर अंदर लंबी मूली हूं 

छोटे पौधों सी मैं दिखती 

पर अंदर मीठी गाजर हूं 

मैं शलजम प्यारी रूप भरी 

मैं गुण की खान चुकंदर हूं 

माटी के अंदर छुपा हुआ 

मैं आलू सबको भाता हूं 

मैं निकल धरा से प्याज बना 

भोजन का स्वाद बढ़ाता हूं 

मैं गुणकारी सब पर भारी 

भरा मसाला मैं गुण का 

तो मैं हल्दी हूं हितकारी 

मैं हूं तड़का लहसुन का 

मैं तेल भरी, हूं मूंगफली ,

मिट्टी में पलकर हूं निखरी 

मैं जमीकंद , मैं हूं अरबी 

मैं शकरकंद हूं स्वाद भरी 

हम सब धरती की माटी में 

छुप कर रह कर है बड़े हुए 

बाहर से दिखते घास फूस

पर अंदर गुण से भरे हुए 

इसलिए किसी का बाह्य रूप 

को देख ना कीमत आंको तुम 

अगर परखना है गुण को 

तो उसके अंदर झांको तुम 


मदन मोहन बाहेती घोटू

घोटू के पद 


घोटू ,बात प्रिया की मानो 

वरन तुम्हारी क्या गति होगी,

 तुम अपनी ही जानो 

घोटू, बात प्रिया की मानो 


जीवन यदि सुख से जीना है, पत्नी के गुण गाओ 

पत्नी की हां में हां बोलो और आनंद उठाओ 

वह देवी है सुख की दाता,वही मालकिन घर की 

उसके कारण ,घर में रौनक ,खुशियां जीवन भर की 

चला रही वो सारे घर को, उसमें है चतुराई तुम कमाओ ,उसके चरणों में ,अर्पित करो कमाई 

पत्नी भक्ति में जो डुबोगे, पाओगे फल प्यारा 

तुम्हें प्यार प्रसाद मिलेगा , भोजन नवरस वाला 

वह बिग बॉस तुम्हारे घर की कदर करो दीवानों 

घोटू ,बात प्रिया की मानो


मदन मोहन बाहेती घोटू

बच्चे तो रौनक है घर की 


जीवन में खुशियां लाने को अनमोल भेंट ये ईश्वर की 

बच्चे तो रौनक है घर की 


नन्हे मुन्ने ,भोले भाले ,मासूम बहुत ,निश्चल निर्मल 

पहले चलते घुटने घुटने फिर चलते उंगली पकड़ पकड़ 

पल में रोना पल में हंसना ,पल में दुध्दू पल में सुस्सु 

है चेहरे पर मुस्कान कभी तो गालों पर बहते आंसू 

गोदी में आना ,सो जाना पलकों पर निंदिया पल भर की

बच्चे तो रौनक है घर की 


उनके छोटे-मोटे झगड़े ,हर रोज लगे ही रहते हैं 

मम्मी से शिकायत करते पर,

पापा से डर कर रहते हैं 

हरदम ही लगी रहा करती 

इनकी कुछ ना कुछ फरमाइश 

ये ढेरों खिलौने पा जाए ,हरदम रहती 

 इनकी ख्वाहिश 

दिनभर करते ही रहते हैं , ये शैतानी दुनिया भर की

बच्चे तो है रौनक घर की 


बच्चे जब होते हैं घर में तो चहल पहल सी रहती है 

सन्नाटा नहीं काटता है ,घर में हलचल सी रहती है 

ये बाल स्वरूप कन्हैया है ,नटखट इनकी लीलाएं हैं 

तुम्हारे जीवन में हरदम खुशियां बरसाने आए हैं 

इन पर न्योछावर कर दो तुम

 ममता अपने जीवन भर की 

बच्चे तो रौनक है घर की


मदन मोहन बाहेती घोटू

झुर्रियां


झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां 

छा गई पूरे तन पर हैं अब झुर्रियां 


मेरा कोमल बदन जो था मांसल कभी 

हर जगह अब तो चमड़ी सिकड़ने लगी

अंग तन के गए पड़ है ढीले सभी 

हाथ में झुर्रियां,पांव में झुर्रियां 

झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां 


जोश था जो जवानी का सब खुट गया

ऐसा आया बुढ़ापा कि मैं लुट गया 

गाल थे जो गुलाबी, भरी झुर्रियां 

आइना भी उड़ाता है अब खिल्लियां

झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां 


उम्र ऐसी बड़ी बेवफा हो गई 

सारे चेहरे की रौनक दफा हो गई 

जब कहती है बाबा हमें सुंदरिया 

तो चलती है दिल पर कई छुर्रियां 

झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां 

छा गई पूरे तन पर अब झुर्रियां 


मदन मोहन बाहेती घोटू

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