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शनिवार, 15 जून 2024

बुधवार, 12 जून 2024

शबरी के राम 


बनवासी है रूप ,माथ पर तिलक लगाए हैं शबरी मैया की कुटिया में राम जी आए हैं

 बोलो राम राम राम सीता राम राम 


शबरी खुशी से हुई बावरी मन में उल्लास प्रभु दर्शन की जन्म जन्म की पूरी हो गई आस 

बड़े प्रेम से पत्तल आसन पर प्रभु को बैठाया 

गदगद होकर रामचरण में अपना शीश 

नमाया 

अश्रु जल से पांव पखारे पुष्प चढ़ाए हैं शबरी मैया की कुटिया में राम जी आए हैं

बोलो राम राम राम सीता राम राम 


बरसों से करती आई थी राम नाम की टेर प्रभु प्रसाद को लाया करती ताजेताजे बेर इतनी हुई भाव विव्हल वो राम प्रभु को देख 

चख कर मीठे बेर प्रभु को, बाकी देती फेंक 

जूंठे बेर किए शबरी के, राम ने खाए हैं शबरी मैया की कुटिया में राम जी आए है

बोलो राम राम राम सीता राम राम राम 


मदन मोहन बाहेती घोटू

झगड़ने का बहाना 


बहुत दिन हुए ,जंग ना छिड़ा 

हम मे तू तू मैं मैं का 

आओ चले ढूंढते हैं 

हम कोई बहाना लड़ने का 


मैं कुछ बोलूं,, तुम झट मानो

 तुम कुछ बोलो मैं मानू 

सदा मिलाते हो हां में हां 

किस पर भृकुटी मैं तानू 

डांट लगाओ मेहरी को तो 

काम छोड़ बैठेगी घर 

अपने अंदर दबा हुआ सब 

रौब निकालूं मैं किसी पर 

हंसकर मिले पड़ोसन,

ना दे मौका बात बिगड़ने का 

आओ चलो ढूंढते हैं हम 

कोई बहाना लड़ने का


जो भी तुम्हें पका कर देती 

खाते हो तारीफ कर कर

तेज नमक या ज्यादा मिर्ची 

कभी ना आई तुम्हें नजर 

मैं जैसा भी जो भी पहनू 

तुमको सभी सुहाता है 

ढलता यौवन चढ़ा बुढ़ापा

 तुमको ना दिखलाता है 

गलती से झट कहते सॉरी 

दोष न हम पर मढ़ने का 

आओ ढूंढे कोई बहाना 

हम आपस में लड़ने का 


कितने बरस हुए शादी को

 याद तुम्हें ना आई क्या 

मेरी मैरिज एनिवर्सरी 

तुमने कभी मनाई क्या

किया स्वयं की वर्षगांठ पर 

गोवा या कश्मीर भ्रमण 

लेकिन मेरे विवाह दिवस पर 

किया न कोई आयोजन 

अबकी बार बनेगा उत्सव 

मेरा डोली चढ़ने का 

आओ ढूंढते कोई बहाना 

हम आपस में लड़ने का


मदन मोहन बाहेती घोटू

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मेहमान 


घर में है मेहमान आ रहे 

बहुत खुशी है आल्हादित मन 

बोझ  काम का बढ़ जाएगा 

पत्नी  को हो रहा टेंशन 

कैसे काम सभालूंगी सब

 यही सोच कर घबराती है 

उससे ज्यादा काम ना होता

 जल्दी से वह थक जाती है

 बात-बात में होती नर्वस 

हाथ पांव में होता कंपन 

बढ़ती उम्र असर दिखलाती 

पहले जैसा रहा न दम खम 

भाग भाग कर दौड़-दौड़ कर 

ख्याल रखा करती थी सबका 

पहले जैसी मेहनत करना 

रहा नहीं अब उसके बस का

 मैं बोला यह सत्य जानलो 

तुम्हें बुढ़ापा घेर रहा है 

दूर हो रही चुस्ती फुर्ती 

अब यौवन मुख फेर रहा है 

आंखों से भी कम दिखता है 

थोड़ा ऊंची भी सुनती हो 

लाख तुम्हें समझाता हूं मैं 

लेकिन मेरी कब सुनती हो 

अब हम तुम दोनों बूढ़े हैं 

तुम थोड़ी कम में कुछ ज्यादा 

ज्यादा दिन तक टिक पाएंगे  

जीवन अगर जिएंगे सदा 

पहले जैसा भ्रमण यात्रा 

करने के हालात नहीं है 

खाना पीना खातिरदारी 

करना बस की बात नहीं है  

पहले जैसे नहीं रहे हम 

यही सत्य है और हकीकत 

 काम करो केवल उतना ही 

 जितनी तुम में हो वह हिम्मत 

कोई बुरा नहीं मानेगा 

मालूम हालत पस्त तुम्हारी 

खुशी खुशी त्यौहार मनाएगी 

मिलकर फैमिली सारी 


मदन मोहन बाहेती घोटू

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